
05/06/2025
"माफ करना सृष्टि"
विकास के नाम पर हमने काट डाले वृक्ष हैं,
माफ करना सृष्टि, सच में हम बड़े ही नीच हैं।
स्वार्थ में अंधे, विवेक को तज बैठे हैं,
अपने ही प्राणों के, हम खुद ही बैरी बन बैठे हैं।
साँसों का मोहताज हर जीवन होता है,
पर इस सत्य को हमने ही अनदेखा किया है।
अब जो हवाएँ बुझी-बुझी सी लगती हैं,
तो दोष उसी कलम का है — जिससे हम खुद को मिटा रहे हैं।
वृहत् वृक्षों को काटकर, हम छोटे पौधे लगाते हैं,
हास्य अपना खुद ही करके, पर्यावरण दिवस मनाते हैं।
छाया छीनी, प्राण हरे, फिर छाया की बातें करते हैं,
फिर फोटो खिंचवाकर, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं।
जहाँ कभी वट-वृक्ष खड़ा था गर्व से,
वहाँ अब एक बोर्ड टँगा है— "यहाँ पौधारोपण किया गया है!"
स्वाति सिंह साहिबा 🙏 🌺