13/10/2025
आज सुबह कॉलेज के लिए थोड़ी देर हो गई थी।जल्दी-जल्दी निकला, बस पकड़ी और किसी तरह कॉलेज पहुँच गया। आज कॉलेज से गुरुग्राम आउटडोर विज़िट तय था, तो कॉलेज पहुँचते ही हमने कैब बुलाई। मेरे साथ मेरे दो दोस्त भी थे.. एक बिहार का और एक दिल्ली का।
कैब आते ही माहौल बड़ा दिलचस्प था.. भोजपुरी गाने बज रहे थे। हम बैठे ही थे कि कैब वाले भैया बोले,
“सर, अगर आप लोग कोई और गाना सुनना चाहें तो बता दीजिए।”
मैं मुस्कुराया और बोला, “नहीं भैया, भोजपुरी ही बजने दीजिए, कोई दिक्कत नहीं। मैं भी बिहार से ही हूँ।” मेरे दिल्ली वाले दोस्त ने मज़ाक में कहा, “यार, तुम लोग कहीं भी चले जाओ, भोजपुरी का कनेक्शन नहीं छोड़ते!” हम सब हँस पड़े।
मैंने कहा, “भले मैं रोज़ भोजपुरी गाने नहीं सुनता, लेकिन जब कहीं बाहर भोजपुरी सुनता हूँ, तो एक अपनापन-सा महसूस होता है.. अपनी मिट्टी, अपने लोग याद आ जाते हैं।”
गाने सुनते-सुनते मुझे अंदाज़ हो गया कि भैया भी बिहार से ही होंगे। मैंने पूछा, “भैया, आप बिहार में कहाँ के रहने वाले हैं?” वो बोले, “मधुबनी।”
फिर बात छठ पूजा पर चली। मैंने पूछा, “भैया, छठ पर घर जा रहे हो?” वो बोले, “नहीं, छठ यहीं होता है। परिवार भी यहीं है। लगभग 24 साल से दिल्ली में ही हूँ।”
मेरे बिहार वाले दोस्त ने हँसते हुए कहा,
“अरे भैया, इतने साल दिल्ली में रह लिए, पर बोली और गीत से तो लगता नहीं कभी अलग हुए हो।” कैब में सब हँसने लगे।
फिर मैंने पूछा, “बिहार में चुनाव आ रहा है, वोट देने नहीं जा रहे?” वो हल्की मुस्कान के साथ बोले,
“वोट देने क्यों जाएँ साहब? नेता जीतकर हमारे लिए क्या करते हैं? हम तो कमाएँगे तो खाएँगे।”
उनका यह जवाब साधारण नहीं था.. यह एक बड़े वर्ग का टूटा हुआ भरोसा और सच्चाई थी। लोकतंत्र के गीत चाहे जितने गाए जाएँ, पर लोगों के दिल से विश्वास कहीं न कहीं उठ चुका है।
फिर बात मधुबनी के चुनाव पर आई। मैंने पूछा, “आपके घर पर क्या बात होती होगी मधुबनी में? इस बार किसकी हवा है?” वो बोले, “इस बार लोगों का मन तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का बन गया है। 17 महीने के अपने कार्यकाल में नौकरी दी थी और अब भी वही वादा कर रहे हैं। युवा उनके साथ खड़ा है।”
मुझे याद आया.. मधुबनी वही ज़िला है जहाँ 2020 में महागठबंधन को सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ था। 10 में से 8 सीटें एनडीए जीत गई थीं, जबकि ये महागठबंधन के प्रभाव वाली सीटें मानी जाती थीं। उस समय धार्मिक ध्रुवीकरण ने पूरी तस्वीर बदल दी थी।
इस बार क्या होगा, यह समय के गर्भ में है। पर उस सफ़र के अंत में जब हमने गुरुग्राम की सड़कों पर कदम रखा, तो मन में एक एहसास रह गया.. देश चाहे जहाँ पहुँच जाए, दिल अब भी उसी मिट्टी से जुड़ा है जहाँ से हमारी पहचान शुरू हुई थी।
भोजपुरी गीत बंद हो चुके थे, पर कानों में उनकी लय अब भी गूँज रही थी.. जैसे अपनी ज़मीन की आवाज़ दिल में बस गई हो।
धन्यवाद 🙏