
27/09/2025
अर्थी की ऐसे सजावट हो रही थी
देख कर के ही थकावट हो रही थी
सज रहा था जिस्म मुर्दा इस कदर
ज़िंदा लोगों को शिकायत हो रही थी
अब कहेंगे लोग अच्छा आदमी था
जी रहा था तब मलामत हो रही थी
रो रहा था अपनी जब बदहालियों पर
सारी दुनिया मुंह को ढाॅपे सो रही थी
बढ़ गया अब उसके क़ौलों का वजन
जीते जी जिसकी ख़िलाफत हो रही थी