22/05/2025
नक्सलवाद का सफाया देश हित में
छत्तीसगढ़ के अबू झामड़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों ने गत दिवस हुई मुठभेड़ में 30 नक्सली मार गिराए जिनमें 1 करोड़ का इनामी नक्सली नेता बसवराज भी शामिल था। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस वर्ष अभी तक लगभग 200 नक्सलवादी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद एक तरफ जहाँ सीमाओं की सुरक्षा पर काफी ध्यान देते हुए सेना को आधुनिकतम अस्त्र - शस्त्रों से सुसज्जित किया गया वहीं चीन के समर्थन से गृहयुद्ध के जरिये भारत में खूनी क्रांति के जरिये लोकतंत्र के स्थान पर एकदलीय साम्यवादी शासन व्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रयासरत नक्सलवादियों के सफ़ाये के लिए भी निर्णायक कार्रवाई की पुख्ता तैयारी की गई। शुरुआत में तो इसका असर उतना नहीं दिखा लेकिन धीरे - धीरे नक्सलियों की घेराबंदी में सुरक्षा बलों को सफलता मिलने लगी। चूंकि उनका जाल बिहार, झारखंड, म.प्र, आंध्र, उड़ीसा, प. बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में फैला हुआ है इसलिए उनकी जड़ें काटना आसान नहीं था। छत्तीसगढ़ नक्सलियों की मनपसंद जगह है क्योंकि इस राज्य से कई राज्यों की सीमाएं मिलने से नक्सली किसी भी बड़ी वारदात के बाद दूसरे राज्य में जाकर छिप जाते थे। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि उक्त सभी राज्यों में आदिवासी जनसंख्या काफी है जो ज्यादातर वनाच्छादित क्षेत्रों में निवास करती है। उन भोले - भाले आदिवासियों को बहला - फुसलाकर अपने जाल में फंसाकर ये उन्हें समाज की मुख्यधारा से अलग करते हुए उनके मन में व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना भरकर हिंसा के रास्ते पर धकेल देते जिसमें लौटने की गुंजाइश नहीं रहती। इन नक्सलियों को चीन से शस्त्र और आर्थिक संसाधन के साथ ही प्रशिक्षण आदि की सुविधा मिलती रही। लेकिन देश के भीतर भी उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले कम नहीं हैं जिन्हें नक्सलियों द्वारा की गईं नृशंस हत्या तो शोषण के विरुद्ध उठाई आवाज प्रतीत होती है किंतु जब इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई होती है तब उसे मानव अधिकारों का उल्लंघन प्रचारित कर छाती पीटी जाती है। ये वर्ग, शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति के अलावा समाचार माध्यमों में घुसा हुआ है जिसे शहरी नक्सली कहा जाने लगा है। इन शहरी नक्सलियों द्वारा जंगलों में फैले सशस्त्र माओवादियों का बौद्धिक अभिवावक भी कहा जा सकता है जो समाज में वामपंथी विचारधारा के महिमामंडन में जुटा रहता है। इन शहरी नक्सलियों पर किसी भी तरह की कार्रवाई शुरू होते ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का हल्ला मचाया जाने लगता है जिसमें कतिपय बुद्धिजीवी और यू ट्यूबर पत्रकार शामिल रहते हैं। मोदी सरकार के आने के बाद नक्सलियों के सफ़ाये का जो संकल्प लिया गया उसको रुकवाने के लिए तरह - तरह के प्रयास हुए किंतु गृह मंत्री अमित शाह की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने तमाम आलोचनाओं और अवरोधों से विचलित हुए बिना अभियान जारी रखा जिसके सुपरिणाम लगातार आ रहे हैं। श्री शाह काफी दिनों पूरे आत्मविश्वास से कहते आ रहे हैं कि मार्च 2026 तक नक्सलियों को समूल नष्ट कर दिया जाएगा। पहले उनके इस आशावाद को कोरा प्रोपेगंडा माना जाता था किंतु उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी आवाजाही बनाये रखते हुए सुरक्षा बलों और सरकार के बीच बेहतर समन्वय कायम किया। राज्य सरकारों के साथ भी केन्द्र ने अच्छा तालमेल बनाया। साथ ही उन राजनीतिक ताकतों का पर्दाफ़ाश भी किया जो अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए नक्सलियों का इस्तेमाल किया करते थे। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि जो आदिवासी इलाके नक्सलियों के प्रभावक्षेत्र में थे वे विकास की दौड़ में पिछड़ गए क्योंकि उनके आतंक के कारण सड़क, बिजली , शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार नहीं हो पाया। अनेक घटनाएं ऐसी हुईं जिनमें विकास कार्यों में लगे मजदूरों तक पर नक्सली आतंक का कहर बरसा। सरकारी अमले की बेरहमी से हत्या की भी सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं। खनिज संपदा संपन्न क्षेत्रों में अवैध वसूली भी नक्सलियों की कार्य पद्धति का मुख्य स्रोत रहा है। धीरे - धीरे नक्सली पेशेवर अपराधी में बदलते गए। लेकिन उनकी देश विरोधी नीतियां असहनीय हो चली थीं। ऐसे में वे आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन गए थे। केन्द्र सरकार ने उनके सफाये के लिए जो ठोस कदम उठाये वे पूरी तरह देश हित में हैं। नक्सलवाद देश की अखंडता के लिए बड़ा खतरा बन गया था इसलिए उसका सफाया पूरी तरह आवश्यक है।