14/07/2024
मैं नालंदा विश्वविद्यालय बोल रहा हूँ। आज मैं आपको अपने इतिहास की एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसे जानकर आपकी आँखें भीग जाएंगी। यह कहानी उस गौरवशाली युग की है, जब मैं एशिया की सबसे बड़ी विश्वविद्यालय था। लेकिन फिर एक दिन, तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने मुझे और मेरे पुस्तक भंडार को जला दिया, जिससे मैं महीनों तक जलता रहा। आज की पीढ़ी को मेरे इतिहास के बारे में कम ही जानकारी है, इसलिए मैं आपको अपने इतिहास की पूरी कहानी सुनाऊंगा।
बख्तियार खिलजी एक क्रूर लुटेरा और मूर्ति पूजकों का विरोधी था। उसकी तबियत खराब हो गई थी और उसने अपने हकीमों से बहुत इलाज करवाए, लेकिन उसकी तबियत ठीक नहीं हुई। एक यात्री ने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के मेडिसिन विभाग के प्रमुख पंडित राहुल श्री बद्रा जी से इलाज करवाने की सलाह दी। लेकिन खिलजी ने शर्त रखी कि वह किसी भी भारतीय पद्दति से बनाई दवाई नहीं खाएगा।
राहुल श्री बद्रा जी ने कुरान की प्रतियों पर दवाई का लेप लगाकर खिलजी को ठीक किया, लेकिन जब खिलजी को यह पता चला, तो उसे सहन नहीं हुआ कि काफिर की दवाई से वह ठीक हो गया। उसके मन में द्वेष पैदा हो गया और उसने नालंदा को तहस-नहस करने का निर्णय लिया।
खिलजी और उसके सैनिकों ने मेरे सभी दरवाजों को बाहर से बंद कर दिया और मेरे परिसर में घुस गए। उन्होंने मेरे आचार्यों, पंडितों और विद्यार्थियों का नरसंहार किया। उन्होंने हजारों शिक्षकों और विद्यार्थियों को मार डाला।
मेरी विश्वविख्यात लाइब्रेरी को आग लगा दी, जिसमें भारत का भविष्य था। मेरी लाइब्रेरी में तीन बिल्डिंग्स थीं: रत्नाददि, रत्नसागर और रत्ननीरजक। यह आग छह महीनों तक जलती रही और भारत का भविष्य जलकर राख हो गया।
मेरा खंडहर सदियों तक धूल और मिट्टी में दबा रहा। 19वीं सदी में एक अंग्रेज अफसर ने एक चायनीस यात्री की डायरी के आधार पर मेरी खोज की। उसने मेरे अवशेषों को दुनिया के सामने लाया।
मेरे प्रांगण में 1500 शिक्षक और 10,000 से अधिक विद्यार्थी थे। यहाँ 108 विषयों की पढ़ाई होती थी। विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी यहाँ पढ़ने आते थे। मेरी लाइब्रेरी नौ मंजिला थी, और यहाँ धातु की मूर्तियाँ बनाने का भी अध्ययन होता था।
आज, मेरे अवशेषों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। नरेंद्र मोदी जी के दौर में 2016 में मेरी फिर से खुदाई प्रारंभ की गई। आज भी मेरी महानता और वैभव की गूंज दुनिया भर में सुनाई देती है।
मेरे परिसर में आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है। रेल मार्ग से आने के लिए नालंदा रेलवे स्टेशन और राजगीर प्रमुख स्टेशन हैं। सड़क मार्ग द्वारा भी कई निकटवर्ती शहरों से नालंदा जुड़ा हुआ है।
मेरे इतिहास को जानने के बाद, आपको नालंदा की महिमा और वैभव का एहसास हुआ होगा। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है, कृपया कमेंट सेक्शन में बताएं कि आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं।