
24/05/2025
https://youtu.be/8L-jSUf48_g?si=aCawgaTU9NbZq539
बदलते भारत के सामाजिक क्रांति के अग्रदूत ज्योतिबा फूले और उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई फूले पर आधारित बहुचर्चित फिल्म 'फूले' का जयपुर के गौरव टॉवर स्थित आईनॉक्स सिनेमा हॉल में विशेष प्रदर्शन हुआ।
जयपुर से संचालित सर्वसमाज के हितकारी संगठन डाक्टर अंबेडकर विचार मंच समिति की ओर से प्रदर्शित फूले फिल्म का विशेष शो हाऊस फूल रहा।
फिल्म के विशेष शो को समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एडवोकेट एन पी सिंह अरबउनकी धर्मपत्नी अंजू सिंह के प्रयासों से आयोजित किया गया ।
विशेष शो में दुलीचंद रैगर, निवर्तमान अध्यक्ष सीताराम बैरवा, जयपुर जिलाध्यक्ष महता राम काला, सिमरन सिंह, सावित्री पोरवाल सहित कई सुधारवादी लोग मौजूद रहे।
डाक्टर अम्बेडकर विचार मंच समिति के जयपुर जिलाध्यक्ष महता राम काला ने बताया कि महात्मा ज्योति बा फूले और सावित्री बाई फूले के जीवन का संघर्ष इस फिल्म में दिखाया गया है। आज उन्हीं की बदौलत हम भारत में खुशहाली देख रहे है।
महता राम काला ने शाइनिंग अंबेडकर टाइम्स को बताया कि फिल्म का शो हाऊस फूल रहा। लोगों की मांग को देखते हुए इस फिल्म का एक और विशेष शो कराने का उनका संगठन व्यवस्था कराएगा।
डाक्टर अम्बेडकर विचार मंच के निवर्तमान अध्यक्ष सीताराम बैरवा ने फिल्म का विशेष शो देखने आई महिलाओं को सावित्री बाई फूले के संदेशों को फैलाने का अभियान चलाने का संकल्प दिलाया।..
फिल्म देखने आई शिक्षिका सावित्री पोरवाल ने बताया कि इस फिल्म के जरिए सावित्री बाई फूले की शिक्षा के लिए किए प्रयासों को बखूबी दिखाया गया। उन्होंने समाज को प्रेरणा देने वाली इस फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग की।
अनंत महादेवन के निर्देशन में बनी फिल्म फूले शुरू से ही विवादों से घिरी रही।
ज्योति बा फूले और सावित्री बाई फूले के समाज सुधारों के प्रयासों और उस समय की सामाजिक व्यवस्था का चित्रण करने वाली फिल्म 'फूले' के ट्रेलर रिलीज होने के साथ ही विरोध शुरू हो गया था।
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ और हिन्दू महासभा ने आरोप लगाया था कि फिल्म ब्राह्मणों को नकारात्मक रूप में दिखाती है और जातिवाद को बढ़ावा देती है। इन संगठनों ने सड़कों पर प्रदर्शन किए और सेंसर बोर्ड को पत्र लिखकर आपत्तिजनक दृश्य हटाने की मांग की।
फिल्म को ज्योति बा फूले की जन्म जयंती दिवस 11 अप्रैल को रिलीज किए जाने की तैयारी थी। लेकिन ऐन वक्त पर सेंसर बोर्ड ने फिल्म में 11 कट के आदेश दे दिए।
सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ दृश्यों और संवादों पर आपत्ति जताई जिनमें तीन हजार साल की गुलामी, जाति व्यवस्था और शूद्रों की दुर्दशा पर वॉइस ओवर, ब्राह्मण बच्चे का फूले दंपति पर कूड़ा फेंकने के दृश्य सहित महार, मांग, पेशवाई, मनुस्मृति और जाति व्यवस्था जैसे शब्दों के इस्तेमाल आदी शामिल थे।
गीतकार प्रसून जोशी की अध्यक्षता वाले सेंसर बोर्ड के रवैये के खिलाफ भी जमकर प्रदर्शन और विरोध हुए।
वंचित बहुजन आघाड़ी के नेता और डाक्टर अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने कहा, "फूले को दबाने की साजिश चल रही है। यह फिल्म बहुजन समाज की प्रेरणा है।"
खुद ब्राह्मण समुदाय से आने वाले फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने फिल्म के विरोध पर कहा, "हमने सिर्फ तथ्य दिखाए है। फिल्म में यह भी दिखाया गया कि ब्राह्मणों ने फूले को अस्पताल खोलने में मदद की। मैं क्यों अपने समुदाय को बदनाम करूंगा? यह कोई एजेंडा फिल्म नहीं है।"
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, " फूले फिल्म सिर्फ फिल्म या जीवनी नहीं है। यह बहुजन समाज के उस इतिहास को मान्यता देने की एक अच्छी पहल है, जो हमारी शिक्षा की मुख्यधारा से गायब है। ऐसी फिल्में और बननी चाहिए जो बहुजन इतिहास और संघर्ष को सामने लाए। ऐसी फिल्मों को देखकर, पहचान कर ही न्याय की आवाज और बुलंद होगी।"
राहुल गांधी ने विशेष शो में फिल्म ' फूले' को देखा।
फिल्म देखने के बाद राहुल गांधी ने फिल्म के निर्देशन अनंत महादेवन से बात कर उन्हें बधाई दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज्योति बा फूले की जन्म जयंती के दिन एक्स यानी ट्विटर संदेश देते हुए फूले पर डिस्प्ले फीचर पोस्ट किया लेकिन फिल्म 'फूले' का उन्होंने कोई जिक्र नहीं किया।
गौरतलब है कि विवादित रही फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' और 'द केरल स्टोरी ' के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने सपोर्ट किया था। 'द कश्मीर फाइल्स' की रिलीजिंग के दौरान मोदी ने कहा था, " इन दिनों द कश्मीर फाइल्स फिल्म की चर्चा हो रही है। जो लोग फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के झंडे लेकर घूमते है, वो बौखलाए हुए है। एक पूरे इकोसिस्टम द्वारा षड्यंत्र चलाया जा रहा है। जो सत्य है उसको सही स्वरूप में देश के सामने लाना देश की भलाई के लिए होता है।"
'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म को न केवल सरकारी स्तर पर समर्थन मिला था बल्कि भाजपा शासित राज्यों में उसे टैक्स फ्री भी किया गया था।
अलबत्ता ज्योति बा फूले और सावित्री बाई फूले पर आधारित फिल्म 'फूले' को ना तो किसी सरकार का समर्थन मिला ना ही उसे टैक्स फ्री किया गया।
तमाम संघर्षों और असहयोग के बाद ज्योति बा फूले के रोल में प्रतीक गांधी और सावित्री बाई फूले के रोल में पत्रलेखा अभिनीत फिल्म 'फूले' 21 अप्रैल को रिलीज हुई।
डाक्टर अंबेडकर विचार मंच समिति जैसे सामाजिक संगठनों के निजी प्रयासों से फिल्म 'फूले' के संदेशों को समाज विशेषकर महिलाओं तक पहुंचाने के प्रयास हो रहे है।
गौरतलब है कि ज्योतिबा फूले और सावित्रीबाई फूले 19वीं सदी में सामाजिक सुधार की मशाल थे। पुणे के एक माली परिवार में जन्मे फूले ने जाति प्रथा और शूद्रों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। 1848 में उन्होंने सावित्रीबाई के साथ मिलकर लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल खोला।
उन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया, विधवा पुनर्विवाह को समर्थन दिया और सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
उनकी 1873 में प्रकाशित किताब गुलामगीरी में ब्राह्मणवाद और वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार किया।
फूले ने पेशवाई काल की अमानवीय प्रथाओं, जैसे दलितों को झाड़ू और हांडी बांधकर चलने की मजबूरी की याद दिलाते हुए अंग्रेज़ी राज को राहत भरा बताया था।