27/10/2025
जब न्याय इतना धीमा हो जाए कि जीवन खुद हार जाए…
ख़बर है Jageshwar Prasad Awasthi की — उस 89-साल के बुज़ुर्ग की, जिसे लगभग 39 साल तक झूठे आरोपों में संघर्ष करना पड़ा। 1986 में सिर्फ ₹100 के घूस के केस में फंसे और अब हाल-ही में उन्हें बरी किया गया।
➡️ क्या हुआ था?
मामला 1986 का था, जब Awasthi साहब पर आरोप था कि उन्होंने ₹100 घूस मांगी थी।
ट्रैप था : नकल किए गए नोट, लेकिन गवाहों-कौनों ने साफ साबित नहीं किया कि कब-कैसे ये लिया गया।
2004 में एक निचली अदालत ने दोषी ठहराया था, लेकिन अब Chhattisgarh High Court ने बरी कर दिया — न्याय इतना देर से आया कि उम्र साथ नहीं दे पाई।
💔 सोचो उस दर्द को:
39 साल — ज्यादातर एक इंसान ने खो दिए: जिंदगी के वो पल, परिवार के वो लमहे, उम्र-राहत सब पीछे रह गए।
उम्र-बढ़ापे में जब इंसान को उम्मीद होती है चुकता करने की, तब वह जेल की सलाखों की याद लेकर चलता है।
🌟 हमें क्या सीख मिलती है:
सिर्फ ₹100 के आरोप पर भी इंसान की पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है।
सत्य की खोज में न्याय प्रणाली में बहुत-से ऐसे जगह हैं जहाँ बदलाव चाहिए।
बगैर ठोस सबूत किसी को दोषी ठहराना कितना अमानवीय है।
हम सभी को ऐसे मामलों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए — न्याय सिर्फ मुक़दमे की तारीख नहीं है, ये इंसान की जिंदगी से जुड़ा हुआ है।