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माला पहने हुए धाऊ छतर भान सिंह जी ये भरतपुर m.s.j कौलेज से सन् 1954 पहला छात्रसंघ चुनाव जीत कर। छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे।...
06/06/2025

माला पहने हुए धाऊ छतर भान सिंह जी ये भरतपुर m.s.j कौलेज से सन् 1954 पहला छात्रसंघ चुनाव जीत कर। छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे। भरतपुर महाराज विश्वेंद्र सिंह जी से धाऊ परिवार के इतिहास की पुस्तक का विमोचन करते हुए। 👸 ❤️ 👑 👑





धाऊ बस्सी कर्नल गिरधर सिंह गुर्जर के साथ भरतपुर महाराज किशन सिंह जी जाट। कर्नल गिरधर सिंह जी ने शेर का शिकार करते शेर मह...
04/06/2025

धाऊ बस्सी कर्नल गिरधर सिंह गुर्जर के साथ भरतपुर महाराज किशन सिंह जी जाट। कर्नल गिरधर सिंह जी ने शेर का शिकार करते शेर महाराज को उपहार में दिया और भरतपुर महाराज किशन सिंह जी ने शेर के साथ फोटो करते फोटो कर्नल गिरधर सिंह जी को दिया। ये फोटो गुर्जर सरदारी व भरतपुर रियासत के सम्बन्ध को दर्शाता है। 👸 ❤️ 👑 👑





: राजा किशन सिंह जी की चिठ्ठी सन्  2/5/1923 ई, की समीक्षा यह चिठ्ठी श्री  #कर्नल  #धाऊ   #गिरधरसिंह जी को लिखी हुई है ऐस...
04/06/2025

: राजा किशन सिंह जी की चिठ्ठी सन् 2/5/1923 ई, की समीक्षा

यह चिठ्ठी श्री #कर्नल #धाऊ #गिरधरसिंह जी को लिखी हुई है ऐसा पता चलता है कि कोई शिकायत राजा भरतपुर के खिलाफ किसी बड़े अंग्रेज अफसर के यहाँ हुई है और उसमें जाँच निरन्तर हो रही है राजा भरतपुर को भय है कि यदि नौकर ने और पी,डब्ल्यू, डी, विभाग के अहाते में रहने वाले सिपाहीयो ने राजा किशन सिंह जी भरतपुर के खिलाफ गवाही दे दी तो उनके लिए अहितकर बात हो जायेगी
-(अतः वे अपने कान्फिडेन्शियल पत्र में अपने खास सरदार'' धाऊ "श्री गिरधर सिंह को यह हिदायत(दायित्व ) दे रहे हैं कि किसी प्रकार से डी, एस, पी व अंग्रेज अफसर को धमकाये तथा उस लड़के के बयान राजा के "फेवर "में करवाए

पत्र- में राजा किशन सिंह जी अपने बिशिष्ट हमराही "धाऊ गिरधर सिंह जी " से आशंका प्रकाट करते हैं कि- सितारे गर्दिश में हैं- ,अतः किसी पक्षपात का भरोसा न करके स्वयं लेख की पूरी तदवीरो को चेष्टाशील रहकर करते रहो ।
निष्कर्ष यह है कि वातावरण ऐसा बन चुका है कि राजाओ को भी पुलिस अफसरों व अंग्रेज अफसरों से भय लगता है और- कानून- की सत्ता का अस्तित्व उनके बीच जन्म ले रहा है ।
उस समय #जाट एवं #गुर्जरो में ऐसा पुश्तैनी विश्वास पनपा और अन्त तक रहा कि #जाटराजा और उनके आलिया #गुर्जर सरदार अत तक एक दूसरे के हितैषी रहे उनमें धनिष्ट पारिवारिक सम्वन्ध वने रहे हैं । 👸 ❤️ 👑 👑





धाऊ गुलाब सिंह जी गुर्जर ये भरतपुर रियासत के सबसे योग्य व्यक्ति थे। इनके द्वारा लिखित पुस्तकें फारसी उर्दू में हस्तलिखित...
04/06/2025

धाऊ गुलाब सिंह जी गुर्जर ये भरतपुर रियासत के सबसे योग्य व्यक्ति थे। इनके द्वारा लिखित पुस्तकें फारसी उर्दू में हस्तलिखित प्रेम सतसई भारत का सबसे बड़ा साहित्य व अनवर सुहेली फारसी में लिखी हुई है जिसमें धाऊ जी का वंश विवरण और भरतपुर महाराज जसवंत सिंह जी से सम्बंधित है।

ब्रिटिश म्यूजियम में हितकल्पदुर्म नाम से इनकी पुस्तकें मिलती है।

इस तरह भारत ही नहीं अपितु ब्रिटिश म्यूजियम में भी गुर्जर समाज का इतिहास देख सकते हैं।

विष्णु शर्मा ने लगभग 300 ई.पू. में इसका उल्लेख किया था। 'योग वशिष्ठ' में भी गुर्जरों का एक और प्राचीन उल्लेख मिलता है, ज...
04/06/2025

विष्णु शर्मा ने लगभग 300 ई.पू. में इसका उल्लेख किया था। 'योग वशिष्ठ' में भी गुर्जरों का एक और प्राचीन उल्लेख मिलता है, जहाँ क्षत्रिय गुर्जर शहीदों की विधवाएँ गंजा हो जाती थीं। एक और महत्वपूर्ण संदर्भ महाभारत युद्ध से मिलता है गुर्जर योद्धाओं (भगवान कृष्ण की निजी सेना)का वर्णन है।

धाऊ कर्नल गिरधर सिंह गुर्जर,धाऊ रधुवीर सिंह जी गुर्जर, महाराज किशन सिंह जी जाट ,दीवान हेगकांक अंग्रेज ,और परसादी लाल जी ...
03/06/2025

धाऊ कर्नल गिरधर सिंह गुर्जर,धाऊ रधुवीर सिंह जी गुर्जर, महाराज किशन सिंह जी जाट ,दीवान हेगकांक अंग्रेज ,और परसादी लाल जी गुर्जर। इस प्रकार इस फोटो के माध्यम से जाटों और गुर्जर सम्बन्ध को देख सकते हैं। 👸 ❤️ 👑 👑





गुर्जर क्षत्रिय महासभा के जन्मदाता धाऊ बक्शी रधुवीर सिंह जी भरतपुर राजस्थान   �      �  �    �                          ...
03/06/2025

गुर्जर क्षत्रिय महासभा के जन्मदाता धाऊ बक्शी रधुवीर सिंह जी भरतपुर राजस्थान � � � �





गुर्जर क्षत्रिय महासभा के जन्मदाता धाऊ बक्शी रधुवीर सिंह जी भरतपुर राजस्थान   �      �  �    �                          ...
03/06/2025

गुर्जर क्षत्रिय महासभा के जन्मदाता धाऊ बक्शी रधुवीर सिंह जी भरतपुर राजस्थान
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उठ गुर्जर उठ ! तेरी एक अंगडाई से फ़िरंगी भारत छोड़ भागे।उठ! अगर इंसान है तो उठ उठ अगर स्वाभिमान है तो उठतू अभी तक नींद में...
02/06/2025

उठ गुर्जर उठ ! तेरी एक अंगडाई से फ़िरंगी भारत छोड़ भागे।
उठ! अगर इंसान है तो उठ
उठ अगर स्वाभिमान है तो उठ
तू अभी तक नींद में है
जागने के वहम में
ज़िंदगी हलकान है तो उठ।

उठ अगर सम्मान है तो उठ
उठ जो स्व-संज्ञान है तो उठ
तू कोई यूँ ही नहीं है
तू भी तो इंसान है इक
चुभ रहा अपमान है तो उठ।

उठ अगर ईमान है तो उठ
उठ लोग बेईमान हैं तो उठ
ये भी कैसी नींद जिसमें
होश न खुद का रहे
गर तेरा प्रमाण है तो उठ।

उठ अगर अरमान है तो उठ
उठ जो तेरी शान है तो उठ
ख्वाब खाते जा रहे
तेरी ज़िंदगी को रात -दिन
ख्वाब से हैरान है तो उठ।

उठ अगर अंजान है तो उठ
उठ तुझे़ पहचान है तो उठ
ये कहाँ वाज़िब कि तू
सब ज़िंदगी नादाँ रहे
खुद का तुमको ज्ञान है तो उठ।।

🏵️ कुंजा क्रांति (1822–1824): भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम?🔥 भूमिका:जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा होती ह...
01/06/2025

🏵️ कुंजा क्रांति (1822–1824): भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम?

🔥 भूमिका:

जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा होती है, तो अधिकतर लोग 1857 की क्रांति को ही पहला संगठित विद्रोह मानते हैं। परंतु इससे भी तीन दशक पहले, उत्तर भारत के क्षेत्रीय किसान, विशेषकर गुर्जर समुदाय के योद्धा, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद कर चुके थे। यह संघर्ष "कुंजा क्रांति" के नाम से जाना जाता है, जो कि वर्तमान उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित कुंजा बहादुरपुर नामक स्थान पर 1822 में प्रारंभ हुआ।

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📍 स्थान और पृष्ठभूमि:

कुंजा बहादुरपुर (जिला सहारनपुर) एक गुर्जर-बहुल क्षेत्र हैं, जहाँ के लोग स्वाभिमानी, स्वावलंबी और योद्धा परंपरा से जुड़े थे। इस क्षेत्र के किसानों और ज़मींदारों पर ब्रिटिश हुकूमत ने न केवल भारी कर थोपे, बल्कि उनकी पारंपरिक सत्ता को भी चुनौती दी।
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🛡️ नेतृत्व:
इस विद्रोह का नेतृत्व गुर्जर वीरों ने किया, जिनमें प्रमुख नाम हैं:

जोरावर सिंह गुर्जर

नाहर सिंह गुर्जर

भगत सिंह गुर्जर

भीम सिंह गुर्जर

गुलाब सिंह परमार गुर्जर

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🌟 गुलाब सिंह परमार का योगदान:

गुलाब सिंह परमार कुंजा क्रांति के सबसे चतुर और पराक्रमी सेनानायकों में गिने जाते हैं। वे न केवल एक रणकुशल योद्धा थे, बल्कि उन्होंने इस विद्रोह को एक संगठित आंदोलन का रूप देने में केंद्रीय भूमिका निभाई।

उनके योगदान की मुख्य विशेषताएँ:

उन्होंने कुंजा गढ़ी को एक सशस्त्र मोर्चा बना दिया जहाँ से संचालन किया जाता था।

उनकी रणनीति से ही पास के गाँवों जैसे ढाई, बघरा, छपरौली, कांधला आदि में भी विद्रोह की ज्वाला भड़की।

वे ग्रामीण जनता को संगठित कर उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी देते थे।

गुलाब सिंह परमार ने कई बार ब्रिटिश टुकड़ियों पर छापा मारकर उनके हथियार और रसद छीन ली।

एक समय ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन मिलर ने उन्हें पकड़ने के लिए विशेष अभियान चलाया, पर गुलाब सिंह अपनी चतुराई और स्थानीय समर्थन से बच निकले।

अंततः एक विश्वासघात के कारण वे अंग्रेजों के हाथ लगे और उन्हें सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई, जिससे विद्रोहियों का मनोबल तो गिरा, पर उनकी शहादत एक प्रेरणा बन गई।
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⚔️ संघर्ष और घटनाक्रम:

1822 में कुंजा बहादुरपुर से यह विद्रोह शुरू हुआ।

विद्रोहियों ने कर वसूली के दस्तों को लूटा और ब्रिटिश चौकियों पर हमला किया।

कई छावनियों और राजस्व कार्यालयों को नष्ट कर दिया गया।

छापामार युद्ध शैली ने अंग्रेजों को भ्रमित कर दिया।
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💣 अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया:

ब्रिटिश सेना ने इस विद्रोह को दबाने के लिए क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं।

गाँवों को जलाया गया, महिलाओं और बच्चों तक पर अत्याचार हुआ।

गुलाब सिंह परमार सहित कई नेताओं को मृत्यु दंड दिया गया।
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🕊️ ऐतिहासिक महत्त्व:

यह आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की पहली लौ था।

इसने यह दिखाया कि किसान और ग्रामीण समाज, विशेषकर गुर्जर जैसे साहसी समुदाय, ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने का माद्दा रखते हैं।

गुलाब सिंह परमार जैसे नायकों की कुर्बानियाँ आज भी प्रेरणा हैं।
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🌺 श्रद्धांजलि:

> “गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत को, सबसे पहले जिन्होंने तोड़ने की कोशिश की — वे थे कुंजा के पराक्रमी गुर्जर।”

गुलाब सिंह परमार, जोरावर सिंह, नाहर सिंह, और उनके जैसे असंख्य वीरों की यह गाथा हर भारतीय के दिल में स्थान पाने योग्य है।

इस मे कोई जानकारी और अगर जोड़ी जा सकती हैं या कुछ हटाया जा सकता हैं तो बताये /?

मंडोर शिलालेख में पहले गुर्जर प्रतिहार था फिर भैरोसिंह मुख्यमंत्री बने तब उसको जगह दूसरा लगा दिया अब उसमें केवल प्रतिहार...
01/06/2025

मंडोर शिलालेख में पहले गुर्जर प्रतिहार था फिर भैरोसिंह मुख्यमंत्री बने तब उसको जगह दूसरा लगा दिया अब उसमें केवल प्रतिहार लिखा है। बहुत से जगहों से गुर्जरों का इतिहास मिटाया जा रहा है।
समय रहते आवाज उठाओ नहीं तो ये सब जगह अपना नाम लिखवा लेंगे।

आख़िरकार ये इतिहास चोर कब सुधरेंगे?बेटी सौंप कर ग़ुलामी करने को उल्लू बनाना लिख दो और हार को जीत लिख दो.! इसी तरह से इति...
01/06/2025

आख़िरकार ये इतिहास चोर कब सुधरेंगे?

बेटी सौंप कर ग़ुलामी करने को उल्लू बनाना लिख दो और हार को जीत लिख दो.!
इसी तरह से इतिहास परिवर्तित किया जाता है।

इतिहास कैसे परिवर्तित किया जाता है;
1. जोधा-अकबर की शादी नहीं हुई थी.!
2. शिलालेख पर “हार” को “जीत” लिख दिया.!

इसके अलावा ये लोग

1. गुर्जर सम्राट मिहिर भोज को “गुर्जर” से “राजपूत” बनाने के षड्यंत्र जारी है
2. गुर्जर सम्राट पृथ्वीराज चौहान को राजपूत बनाने का षड्यंत्र जारी है
3. भीलू राणा पूंजा भील को “भील” से “राजपूत” बनाने में तुले हुए है
4. महाराजा सूरजमल को “जाट” से “राजपूत” बनाने का खेल शुरू कर दिया है
5. बूंदी की स्थापना “बूँदा मीणा” ने की लेकिन उसे भी राजपूतों द्वारा स्थापित करने का खेल जारी है.!

भारमल ने अकबर को उल्लू बनाया था ~ इतिहासकार हरिभाऊ बागड़े, राजभवन वाले।

राजस्थान में इतिहास को ले कर लड़ाई बहुत पुरानी है। लड़ाईयां का स्तर ये है कि राजा की छवि यदि साफ़ सुथरी है आज की राजनीति के अनुसार है तो उसे कोई भी अपना बताने को राजी है लेकिन यदि छवि ख़राब है तो उस पर भयानक चुप्पी छा जाती है।

महाराणा प्रताप सभी को अच्छे लगते है और उनका योगदान भी है लेकिन भारमल, मानसिंह, जयसिंह से पल्ला झाड़ लिया जाता है।

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