02/08/2025
यौन संबंध एक स्त्री के लिए भी उतना ही जरूरी है जितना कि एक पुरुष के लिए
लेकिन पुरुष प्रधान समाज में यदि एक स्त्री अपनी काम इच्छा के बारे में खुल के बोले तो उसे अक्सर चरित्रहीन समझ लिया जाता है
मेरी शादी को सात साल हो गए हैं। हम दोनों नौकरीपेशा हैं – सुबह निकलना, शाम लौटना, बच्चों की पढ़ाई, सास-ससुर की दवाइयाँ, कभी रिश्तेदारों के फ़ोन, तो कभी किराने की लिस्ट।
दिन खत्म होने से पहले ही एक नया दिन शुरू हो जाता है। और उस बीच, हम दोनों पति-पत्नी से सिर्फ टीम मेंबर बनकर रह गए थे।
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शुरुआत में सब कुछ ठीक था। पहली सालियों वाली हिचकियाँ, फिर धीरे-धीरे अपनापन, फिर बच्चा... और फिर एक दिन अचानक लगा कि...
> "वो मुझे छूता नहीं... और मुझे उसकी छुअन की ज़रूरत है।"
मैंने कभी किसी को ये बात नहीं बताई। क्योंकि हमारे समाज में शादीशुदा औरत की 'यौन इच्छा' को अभी भी या तो शर्म की चीज़ समझा जाता है, या फिर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
मुझे याद है — एक रात जब मैंने बहुत धीरे से पूछा, "तुम थक जाते हो क्या?"
उसने बिना मुड़े कहा,
"हाँ, दिन भर बहुत काम रहता है।"
बस। बात वहीं ख़त्म।
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मैं चुप रही। फिर महीनों चुप रही।
पर भीतर कुछ टूटने लगा था।
मैं अब खुद को 'स्त्री' नहीं, बस एक 'मैनेजर' समझने लगी थी — जो घर चला रही है।
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एक रात, बच्चों को सुलाकर मैं कमरे में गई। वो लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था।
मैंने उसकी उँगलियों को अपने हाथ में ले लिया।
वो चौंका।
मैंने कहा,
"क्या मैं सिर्फ तुम्हारी हमसफ़र हूँ? या कभी हमबिस्तर भी रह सकती हूँ?"
शायद उसे मेरी आँखों में पहली बार वो दिखा — जो मैंने छुपा रखा था।
वो चुप रहा... फिर उसने मुझे बाँहों में भर लिया।
उसने कहा,
"मुझे लगा तुम थक जाती हो... इसलिए मैंने दूरी बनाई। पर मैंने कभी पूछा ही नहीं कि तुम क्या चाहती हो।"
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उस रात बहुत कुछ बदला।
हमने बातें कीं, हँसे, रोए... और एक-दूसरे को फिर से पाया।
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आज भी हम थकते हैं, लड़ते भी हैं...
पर अब हम सिर्फ हमसफ़र नहीं हैं —
हम हमबिस्तर भी हैं।
जहाँ सिर्फ शरीर नहीं, आत्मा भी जुड़ती है।
जहाँ मैं पत्नी होने के साथ एक औरत भी हूँ।
और अब मुझे खुद से शर्म नहीं — गर्व है।