27/09/2025
आईएएस लोगो का सोच का स्तर बहुत नीचा होता है , इसीलिए उन्हें बड़ा बाबू कहते हैं ,,,,, चेतन बैरवा , एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट चेतन बैरवा ने कहा कि निरंजन आर्य अनु जाती के आदमी है तथा अशोक गहलोत के टाइम पर राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं । उन्होंने हाल ही में एक पब्लिक प्रोग्राम में खुलासा किया कि वे राजस्थान के पांच जिलों में कलेक्टर रह चुके हैं तथा राज्य के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं । इसके बावजूद भी वो अपने गांव में अपने बाप दादावो की खेती की जमीन को मनुवादियों के कब्जे से नहीं छुड़वा पा रहे हैं ।
तो ये औकात हैं देश के अनु जाती / जन जाति के आई ए एस / आई पी एस ऑफिसर्स की । और शेखी बघारते हैं , में यह था , में वो था । मैने ये तीर मार दिया , मैने वो तीर मार दिया । माना कि बाबा साहब अम्बेडकर की बदौलत ये कलेक्टर / एसपी बन गए , लेकिन अपनी औकात भूल गए । जब ये पद पर रहते हैं तो एससी / एसटी के किसान मजदूर स्तर के लोगो को घास तक नहीं डालते । बल्कि उनकी तरक्की को देखकर चिढ़ते रहते हैं । सोचते हैं कि कही ये लड़का हमारे जैसे बन गया , तो हमारा क्या होगा । हमारी तो समाज में कोई इज्जत ही नहीं रह जाएगी , हमें तो कोई पूछेगा ही नहीं ।
ये लोग रिटायरमेंट के बाद भी एमपी / एम एल ए बनने के चक्कर में उन लोगों के ढोक मारते रहते हैं , जो मनु स्मृति को ही अपना सब कुछ समझते हैं । जैसे भारत का कानून मंत्री ( बीकानेर का संसद ) अर्जुन मेघवाल । इनके लिए तो स्वयं की तरक्की ही सब कुछ है , भाड़ में जाए समाज । बाबा साहब अम्बेडकर के " पे बैक टू सोसाइटी " वाले सिद्धांत को तो ये लोग कुछ भी नहीं समझते ।
जयपुर में एक डॉक्टर बी. आर. अम्बेडकर मैमोरियल वैल फेयर सोसायटी नाम की संस्था बनी हुई है जिसमें आई ए एस / आई पी एस की भरमार हैं । लेकिन वो सब सूअर की लैट्रिन " हैं , वो किसी काम के नहीं । में इन नालायको को बहुत अच्छी तरह जानता हूं , आज से नहीं 35 - 40 साल से जनता हूं ।
मैने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट जयपुर में लगी मनु की मूर्ति हटाने के लिए पिटीशन लगाई लेकिन इस संस्था के पदाधिकारियों ने उस पिटीशन में पिटीशनर बनने और वकालत नामे पर हस्ताक्षर करने तक से इंकार कर दिया । इस बाबत मैने इस संस्था के तत्कालीन महासचिव अनिल गोठवाल से बात की लेकिन उसने टालम टोल जवाब दिया और कुछ नहीं । आखिरकार मैने तलावड़ा गांव ( गंगापुर सिटी , राजस्थान ) निवासी रामजीलाल बैरवा ( मकान बनाने वाले मिस्त्री ) , उसी गांव के जगदीश गुर्जर किसान तथा टोडाभीम के बेरोजगार इंजीनियर जितेंद्र कुमार मीणा को पिटीशनर बनाकर उस केस को लड़ा । किसी ने एक पैसा नहीं दिया ।
महाराष्ट्र के नागपुर शहर के अनु जाती के एक आई. ए. एस. अधिकारी जेड. ई. खोबरागड़े की भी यही कहानी है । वो श्रीमान जी भी एडीशनल चीफ सेक्रेट्री या फिर प्रिंसिपल सेकेट्री की पोस्ट से रिटायर हुए । तो उन श्रीमान ने भी आर एस एस के कहने पर दीक्षा भूमि नागपुर में अपनी संस्था की तरफ से संविधान साहित्य सम्मेलन करवाने का फैसला किया । असल में उनका उद्देश्य रिटायरमेंट के बाद नागपुर उत्तर रिजर्व सीट से बीजेपी के टिकट से एम एल ए बनने का था ।
उस प्रोग्राम को रुकवाने के लिए भी मैने 7 जून 2019 को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में यह कहते हुए कानूनी लड़ाई लड़ी कि भारतीय संविधान को , साहित्य के समतुल्य रखकर सम्मेलन आयोजित करवाना संविधान के आर्टिकल 19 ( बोलने की आजादी ) का खुला उल्लंघन है । क्योंकि संविधान देश का सर्वोच्च कानून है जिसके इर्द गिर्द पूरा देश दिन रात घूमता रहता है । संविधान धुरी है , संविधान देश की लाइफ लाइन है । जबकि साहित्य मन बहलाव की वस्तु है जिसे कोई मानना चाहे तो मान ले और नहीं मानना चाहे तो ना माने । साहित्य तो अश्लील भी हो सकता है जबकि संविधान अश्लील नहीं हो सकता । संविधान के पीछे देश की जनता की ताकत है । संविधान नहीं मानने पर जेल की सलाखों के पीछे जाने की जरूरत पड़ती है जबकि साहित्य को नहीं मानने पर जेल की सलाखों के पीछे जाने की नौबत नहीं आएगी । मानना है तो मानो नहीं मानना है तो मत मानो । मेरी बहस सुनकर बेंच में बैठे दोनों हाई कोर्ट जज बहुत प्रभावित हुए । लेकिन उन्होंने कहा कि सम्मेलन आज और कल की तारीख में हो रहा है । और आज ही आप रुकवाने की बहस कर रहे हैं । आप लेट आए हो , ऐसे में हम कैसे रुकवाए । यह कहते हुए उन्होंने पिटीशन को डिसाइड कर दिया ।
चेतन बैरवा ,,,,, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ,,,,, मो 85 11 31 63 41 ,,,, 63 77 , 87 , 18 10 ,,,, Dt. 27 सितंबर 2025 , 8.49 am ,,,,, फेस बुक