09/10/2025
करवाचौथ 10 अक्टूबर को, जम्मू में चंद्रोदय रात्रि 08.12 बजे
प्राचीन शिव मंदिर बिश्नाह से महामंडलेश्वर अनूप गिरी महाराज ने बताया कि इस वर्ष करवाचौथ का व्रत 10 अक्टूबर शुक्रवार को है। जम्मू में चंद्रोदय रात्रि 08.12 बजे होगा। करवाचौथ के दिन सुहागिने अपने पति की लंबी आयु और मंगल कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। जिन युवतियों का विवाह तय हो चुका हो उन्हें भी यह व्रत रखना चाहिए। यह व्रत बहुत कठिन होता है। इसमें जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। रात में चन्द्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्ध्य देकर चंद्रमा की विधिवत पूजा करके पति के हाथों जल ग्रहण करके ही यह व्रत सम्पूर्ण होता है। उसके बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। करवाचौथ का व्रत सौभाग्य, संतान प्राप्ति, पति के स्वास्थ्य की रक्षा तथा पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इसके अलावा इस व्रत के करने से गृहस्थी में आ रही विघ्न-बाधायें और समस्याएं भी समाप्त होती हैं। पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है। एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना जागृत होती है। पतियों के मन में भी यह अहसास रहता है कि हमारी लंबी उम्र और सफलता के लिए हमारी पत्नियों ने यह कठिन व्रत रखा है। आजकल अविवाहित युवतियां भी यह व्रत रखती हैं जिससे उन्हें एक आदर्श पति मिल सके।
करवाचौथ का महत्व:- इस व्रत को रखने वाली सभी स्त्रियां कामना करती हैं कि जिस प्रकार जन्म-जन्म तक पार्वती ही शिव की पत्नी बनी वैसे ही मैं भी अपने पति की संगिनी बनी रहूँ। इस दिन शिव परिवार का पूजन किया जाता है। सती पार्वती पतिव्रताओं का आदर्श हैं। इसलिए स्त्रियां प्रार्थना करती हैं कि जिस प्रकार सती पार्वती का सौभाग्य अजर-अमर है उसी प्रकार मैं भी जन्म-जन्मांतर तक सौभाग्यवती बनी रहूँ। इसके साथ ही मेरे यहाँ भी गणेश जैसी बुद्धिमान और कार्तिकेय जैसी बलवान तथा सभी का हित साधने वाली संतान हो।
द्रौपदी ने भी रखा था करवाचौथ का व्रत:- द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के कहने पर यह व्रत रखा था। पांडवों के वनवास के दौरान अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत चले गए थे। जब कई दिन बीत जाने पर भी वह नहीं लौटे तो द्रौपदी को चिंता होने लगी। द्रौपदी की यह दशा देखकर भगवान कृष्ण ने उन्हें यह व्रत रखने की सलाह दी और इस व्रत के महत्व को समझाया। पौराणिक कथाओं के अनुसार द्रौपदी को उनके इस व्रत का फल भी मिला और अर्जुन तपस्या करके सकुशल लौट आए।
सभी का सहयोग जरूरी:- यह एक कठिन व्रत है जिसमें परिवार के सभी सदस्यों को इसमें सहयोग करना चाहिए। घर में लड़ाई, झगड़े, कलह आदि नहीं करना चाहिए। घर में किसी धार्मिक प्रसंग का आयोजन करना चाहिए। उपवास रखने वाली स्त्रियों के पास बैठकर भोजन आदि नहीं करना चाहिए, उनसे ज़्यादा काम नहीं कराना चाहिए। पतिदेव को शाम को चंद्रोदय से पहले घर आ जाना चाहिए।
व्रत के नियम:- सूर्योदय के पहले तारों की छाँव में स्त्रियां उठकर सरगी खाती हैं। सरगी सास की तरफ़ से अपनी बहू को दिया जाने वाला ख़ास उपहार होता है जो कि सास आशीर्वाद के रूप में अपनी बहू को देती है। इस उपहार में श्रृंगार का सामान, विभिन्न खाद्य पदार्थ, वस्त्र आदि शामिल होते हैं। कई स्थानों पर सरगी बहू के मायके से आती है। सरगी सौभाग्य और समृद्धि की प्रतीक होती है। शाम के समय कथा की जाती है, शगुन के गीत गाये जाते हैं। इसके बाद बहुएँ अपनी सास को उपहार देकर उनके पैर छूती हैं उनसे आशीर्वाद लेती हैं।
व्रत में चन्द्रमा का महत्व:- चन्द्रमा को देवता माना गया है, चंद्रमा का सृष्टि को चलाने में बहुत योगदान है। शास्त्रों में चंद्रमा को औषधियों और मन का अधिपति देवता माना गया है। चंद्रमा की किरणें वनस्पतियों और मानव मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं। चंद्रमा की किरणें अमृत स्वरूप हैं। दिनभर उपवास के बाद चंद्रमा को छलनी की ओट से जब स्त्रियां देखती हैं तो उनके मन में पति के प्रति अनन्य अनुराग का भाव उत्पन्न होता है। उनके मुख पर, शरीर पर एक विशेष तेज छा जाता है। इस प्रकार चन्द्र पूजन के पीछे दीर्घायु और परस्पर प्रेम की प्रार्थना शामिल होती है।