20/08/2025
गणेश चतुर्थी 27 अगस्त को, गणेश जी का विसर्जन ना करें:-
प्राचीन शिव मंदिर बिश्नाह से महामण्डलेश्वर स्वामी अनूप गिरी महाराज ने बताया कि इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 27 अगस्त बुधवार को मनाया जाएगा। बुधवार के दिन गणेश चतुर्थी होने से इसका महत्व और भी ज़्यादा बढ़ जाता है क्योंकि बुधवार का दिन गणेश जी का होता है। इस दिन श्री गणेश जी का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन सिद्धि विनायक व्रत रखा जाता है। गणेश जी को इक्कीस दूर्वा और दस लड्डू का भोग लगाया जाता है। गणेश जी को मोदक और दूर्वा अतिप्रिय हैं।
गणेश विसर्जन ना करें:- गणेश जी का विसर्जन नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर विघ्नहर्ता ही विदा हो गए तो आपके विघ्न कौन हरेगा। गणेश जी प्रथम पूज्य हैं जब आपने उन्हें ही विदा कर दिया तो फिर आप दिवाली तथा अन्य त्योहारों को कैसे मनाएँगे, कोई धार्मिक कार्य कैसे करेंगे, विवाह आदि कार्य कैसे संपन्न करेंगे। इसलिए गणेश जी का विसर्जन ना करें। गणेश जी का विसर्जन सिर्फ महाराष्ट्र में हो सकता है क्योंकि वहाँ गणेश जी अतिथि बनकर गए थे। लालबाग के राजा कार्तिकेय जी ने अपने भाई गणेश को अपने पास बुलाया था और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था। कार्तिकेय ने वहाँ गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया था। जितने दिन गणेश जी वहाँ रहे उतने दिन उनके साथ लक्ष्मी जी तथा गणेश जी की पत्नी रिद्धि और सिद्धि भी वहाँ रहीं। इनके रहने से कार्तिकेय जी का राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। दस दिन बाद गणेश जी की इच्छानुसार उनकी विदाई की गई। गणेश जी के आगमन और विदाई को वहाँ पर गणेश उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। इसलिए महाराष्ट्र में गणेश विसर्जन किया जाता है। अन्य राज्यों में गणेश विसर्जन नहीं किया जा सकता है।
गणेश जी के विभिन्न स्वरूपों का महत्व:- घर के मुख्यद्वार पर हरे पत्ते वाले वास्तुदोष नाशक गणपति लगाएं। घर में सुख समृद्धि शांति के लिए आराम करते हुए गणपति लगाएं। व्यवसाय स्थल पर नृत्य करते हुए या पैसे देते हुए गणपति लगाएं। चोरी रोकने के लिए सचेत गणपति लगाएं। नौकरी पाने के लिए या मनचाहा तबादला करवाने के लिए लाल रंग के चारभुजा वाले गणपति लगाएं। विवाह तथा अन्य मनोकामना पूर्ण करने के लिए पीले रंग के गणपति लगाएं और उनकी पूजा करें। गणेश जी की मूर्ति के पीछे दरिद्रता रहती है। इसलिए गणेश जी की मूर्ति के पीछे गणेश जी का स्टीकर लगाएं।
प्रथम पूज्य देवता:- गणेश जी प्रथम पूज्य देवता हैं। इसलिए किसी भी कार्य का शुभारंभ करने के पूर्व गणेश जी का पूजन करना अति आवश्यक होता है। गणेश का अर्थ होता है गणों के ईश अर्थात गणों के स्वामी। पूजा, हवन, विवाह आदि कार्यों में गणेश जी के गण कोई विघ्न बाधा न उत्पन्न करें इसलिए सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। गणेश जी को विघ्नहर्ता व रिद्धि सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। गणेश जी बुद्धि के भी देवता हैं। गणेश जी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। जो व्यक्ति गणेश जी की पूजा करता है गणेश जी उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं उसके विघ्नों का विनाश करते हैं।
गणेश जी को दूर्वा प्रिय है:- एक पौराणिक कथा के अनुसार पूर्व काल में अनलासुर राक्षस ने भयंकर उत्पात मचाया था। उसके उत्पात से चारों तरफ़ त्राहि-त्राहि मच गई। उसका अत्याचार स्वर्गलोक तक फैल गया। वह निर्दोष प्राणियों, ऋषि, मुनियों को ज़िंदा निगल जाता था। इन्द्र सहित सभी देवताओं को उसने पराजित कर दिया था। तब सभी देवताओं ने शिव जी को प्रसन्न किया और उनसे इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। शिव जी ने गणेश जी को कहा कि आप इस संकट से इन्हें मुक्ति दिलाएं। तब गणेश जी ने अनलासुर का पीछा किया और उसे जिंदा ही निगल लिया। परंतु इससे गणेश जी के पेट में बहुत जलन होने लगी जो किसी भी तरह से शांत नहीं हो रही थी। तब ऋषि कश्यप ने कैलाश जाकर इक्कीस दूर्वा लाकर गणेश जी को खिलाई जिससे उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी को दूर्वा अतिप्रिय है।