The Historic Journey of Jharkhand

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The Historic Journey of Jharkhand This page traces the evolution & transformation of the Jharkhandi identity over the last half century

हमारा एक मात्र उद्देश्य यह है की आने वाली पीढ़ी झारखण्ड के इतिहास को जाने और यह समझे की झारखण्ड का निर्माण एक लम्बे अथक समर का प्रतिफल है।

रतिलाल महतो (1949-99), जो जीवन भर शोषणकारी व्यवहार के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए! उनका राजनीतिक विश्वास था 'जब तक शोषण है,...
13/07/2025

रतिलाल महतो (1949-99), जो जीवन भर शोषणकारी व्यवहार के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए! उनका राजनीतिक विश्वास था 'जब तक शोषण है, लड़ाई जारी रहेगी'! झारखंड आंदोलनकारीयों को देखते हुए रतिलाल दा की एक बात अनोखी है कि उन्होंने सबसे लंबा समय जेल में बिताया। झारखंड आंदोलन में इस ट्रेड यूनियन नेता के साहसी और शानदार योगदान को हमेशा याद किया जाता है।
गम्हरिया (सिंहभूम) के महान सपूत की शहादत के दिन उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!!
HUL JOHAR ✊✊
#शहीद_रतिलाल_महतो

झारखंड आंदोलन से संबंधित किताब प्रकाशित ---------------------------------------------------------प्रभात खबर के पूर्व कार...
03/07/2025

झारखंड आंदोलन से संबंधित किताब प्रकाशित
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प्रभात खबर के पूर्व कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा और उसकी पत्नी डॉ अंजू कुमारी ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है। पुस्तक का नाम है- "झारखंड आंदोलन और पत्र-पत्रिकाएं"। सौभाग्य से पुस्तक की भूमिका लिखने की जिम्मेदारी अनुज कुमार सिन्हा ने मुझ पर सौंपा जिसे मैंने उनका अनुरोध स्वीकारा और भूमिका लिखी।
अनुज कुमार सिन्हा और डॉक्टर अंजु कुमारी ने बहुत मेहनत कर एक-एक तथ्य को खोजा है। इन लोगों ने झारखंड आंदोलन के इतिहास को सबूत के साथ पाठकों के सामने परोसा है। झारखंड आंदोलन के दौरान अनेक अखबार, पत्र, पत्रिकाएं निकली, बंद भी हो गई। उनकी बड़ी भूमिका रही है लेकिन उन्हें कोई जानता नहीं या याद करता नहीं। इस पुस्तक के माध्यम से झारखंड राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पत्रकार, अखबार और पत्रिकाओं को भी याद किया गया है। उन्हें सम्मान दिया गया है। पुरानी चीजों, पुराने दस्तावेजों को, पुरानी घटनाओं को खोज- खोज कर निकालने और पुस्तक, अखबार में छापने का जुनून अनुज सिन्हा में रहा है। लंबे समय से मैं उनके काम को जानता हूं उन्होंने झारखंड आंदोलन पर और भी पुस्तकें लिखी है। पुस्तक को "प्रभात प्रकाशन प्रा• लि•(नई दिल्ली) ने प्रकाशित किया है।
धन्यवाद,

शैलेंद्र महतो (पूर्व सांसद)

Post Courtesy: झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व संसद Shailendra Mahto जी के फेसबुक वॉल से |||

आदिवासिओं का क्रांतिकारी इतिहास।।'हूल' कथा का सरल पाठ=====================================1857 के सिपाही विद्रोह को आजाद...
30/06/2025

आदिवासिओं का क्रांतिकारी इतिहास।।
'हूल' कथा का सरल पाठ
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1857 के सिपाही विद्रोह को आजादी के पहले संग्राम के रूप में इतिहास में याद किया जाता है, लेकिन उसके दो वर्ष पूर्व 1855 में हुए संथाल विद्रोह को इतिहास में कम ही जगह मिली है. वैसे, हममे से अधिकतर साथी हूल दिवस के महत्व को जानते हैं. जो नहीं जानते, उनके लिए अपनी ही किताब 'झारखंड के आदिवासियों का संक्षिप्त इतिहास' से हूल कथा का सरल पाठ यहां शेयर कर रहा हूं.

''आदिवासी समुदाय, जिसने अपने मेहनत से दामिन-इ-कोह के जंगलों को साफ कर खेती लायक जमीन बनाई थी, उनका भीषण शोषण हो रहा था. सरकार को नियमित राजस्व चुकाने के लिए उन्हें महाजनों से कर्ज लेना पड़ता. महाजन उदारता से कर्ज देते और सिर्फ सूद के रूप में उनकी फसल का बड़ा हिस्सा उठा ले जाते. बंगाली मूल के हिन्दू जमींदार संथाल गांवों में गैर-आदिवासी जमींदारों को बसाने में लगे थे. महेशपुर और पाकुड़ के राजा संथालों के गांव को गैर-आदिवासी जमींदारों को लीज पर दे रहे थे. महेशपुर के राजा ने अपने अधीन पड़ने वाले 300 संताल गांवों को बाहिरागतों को लीज पर दे दिये जो तरह-तरह के टैक्स संतालों से वसूलते थे. यानी सरकारी राजस्व में तो लगातार वृद्धि हो ही रही थी, जमींदार, सूदखोर-महाजनों, थाना के अमलों द्वारा भी आदिवासियों का भीषण शोषण हो रहा था.

उसी दौरान अंग्रेज सरकार ने रेलवे लाइन बिछाने का काम भी शुरू किया था और करीब 200 मील रेलवे लाइन संथाल क्षेत्र में बिछना था. इसके लिए संथाल क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम शुरू हुआ. बड़े-बड़े बांध, जंगल की सफाई, पुल निर्माण आदि कार्यों में रोजगार का प्रचुर अवसर था और यह कठिन काम संथाल ही कर सकते थे. जाहिर है इस क्षेत्र में रोजगार का अवसर मिला, लेकिन उन आदिवासियों का रेलवे के अधिकारी और ठेकेदार शोषण करते थे और आदिवासी महिलाओं के यौन शोषण की कई घटनाएं भी लगातार हुईं. एक अंग्रेज लेखक मैक्डगाल लिखते हैं- ‘‘विद्रोहियों की मुख्य शिकायत महाजनों और छोटे अधिकारियों द्वारा मनमाने पैसे की उगाही थी, लेकिन जमींदारों-हिन्दू, मुस्लिम और यूरोपीय- द्वारा उन पर होने वाला अत्याचार भी कारण बना. रेलवे के कुछ कर्मचारियों पर संथाल महिलाओं के साथ बलात्कार का भी आरोप था.’’

और विद्रोह फूट पड़ा. 30 जून, 1855 को 10 हजार से भी अधिक सशस्त्र संथाल भोगनाडीह में जमा हुए. उन्होंने इस बात की घोषणा की कि वे बहिरागत महाजनों से इस क्षेत्र को खाली कर देंगे और इस क्षेत्र पर कब्जा कर अपना राज यहां स्थापित करेंगे. डब्लू डब्लू हण्टर ने ‘एनल्स आफ रूरल बंगला’, लंदन, 1868 में अपने ब्योरे में जहां-तहां हिन्दू शब्द का इस्तेमाल इस संदर्भ में किया है कि हूल-विद्रोही हिन्दुओं के विरोधी थे. लेकिन भागलपुर के कमिश्नर ने बंगाल सरकार के सचिव को 28 जुलाई, 1885 को जो पत्र लिखा था, उसके अनुसार कुम्हार, तेली, सोनार, मोमिन, चमार और डोम जैसी दलित हिन्दू एवं मुसलमान जातियां इस हूल में आदिवासियों में साथ थीं. हूल-विद्रोह के नेता सिदो और कान्हू इस मुद्दे पर साफ थे कि उनका दुश्मन वे लोग हैं- चाहे वे हिन्दू हों, मुसलमान हों या यूरोपीय- जो आदिवासी समाज का शोषण कर रहे हैं. वे इस क्षेत्र में ब्रिटिश राज का खात्मा कर अपना राज, अपनी व्यवस्था कायम करना चाहते थे.
और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भोगनाडीह से कलकत्ता के लिए यात्रा शुरू हुई. कारवां बढ़ता गया. हण्टर के ब्योरे के अनुसार कम से कम 30 हजार लोग तो विद्रोह के नेताओं के अंगरक्षक ही थे. यह कारवां अपने साथ अपना रसद लेकर चल रहा था. लेकिन जब वह स्टाॅक खत्म हो गया तो लूटपाट शुरू हो गयी.

7 जुलाई को पंचकठिया के करीब दीघी थाना का दारोगा महेश लाल दत्त और नायक सेजवाल पुलिस की टुकड़ी के साथ सिदो, कान्हू को गिरफ्तार करने पहुंचा. उसने समझने में भूल की थी. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उसे भीड़ ने उसके दस्ते के साथ पकड़ लिया. भरी जन-अदालत में दो दशकों में किए गये उसके अत्याचारों पर विचार करने के बाद दारोगा और उसके सहयोगी का वध कर दिया गया. पंचकठिया की समीपवर्ती बाजार के महाजन मानिक चैधरी, गोराचन्द सेन, सार्थक रक्षित, निमाई दत्त और हीरू दत्त को भी संथालों ने मार डाला. बरहेट बाजार में नायक सेजवाल खान साहब की हत्या कर दी गयी. अंबर परगना जो पाकुड़ राज का हिस्सा था, में भी कई महाजनों की हत्या कर दी गयी. पाकुड़ राज के पतन के बाद उस क्षेत्र के सबसे बड़े महाजन दीन दयाल और उसके समर्थकों ने घोषणा कर दी कि अब वे अंबर परगना के जमींदार हैं. लेकिन बाद में दीनदयाल रे को भी मार डाला गया. महेशपुर में राजा के घर को लूट लिया गया.

15 जुलाई, 1855 को संथाल विद्रोहियों का सामना अंग्रेजी सेना के 7वें रेजीमेंट से हुआ. उसके बाद पाकुड़ के नजदीक तारी नदी के किनारे बड़ी संख्या में संथाल विद्रोही मारे गये, लेकिन विद्रोह थमा नहीं, बल्कि फैलता चला गया. संथाल विद्रोह के इतिहासकार डाॅ. के. के. दत्ता ;कलकत्ता 1946, पृ. 35, लिखते हैं- ‘‘20 जुलाई, 1854 तक विद्रोह वीरभूम के दक्षिण-पश्चिम ग्रैंड टंक रोड से दक्षिण-पूर्व सैंथिया तक तथा भागलपुर से राजमहल तक फैल चुका था. और उससे निबटने के लिए 37 रेजीमेंट, मूर्शिदाबाद के नवाब के 200 निजामत सिपाही, 30 हाथी, 32 घुड़सवार के साथ 63 रेजीमेंट एन. आई. को लगाया गया.’’

बार-बार अंग्रेज अधिकारी उच्चाधिकारियों को खबर करते कि विद्रोह पर काबू पा लिया गया है, लेकिन अगले दिन विद्रोह के फिर फूट पड़ने की खबर आती. क्योंकि यह विद्रोह किसी रिसायत, राजा या भाड़े के सैनिकों का विद्रोह नहीं था. यह आदिवासी जनता का विद्रोह था और हर संथाल उसका सिपाही था. फिर भी यह लड़ाई अपने समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी शक्ति और एक छोटी-सी भौगोलिक सीमा में निवास करने वाले संथालों के बीच थी. अंग्रेज सिपाहियों के पास अपने समय के आधुनिकतम अग्नेयास्त्रा थे जबकि संथाल विद्रोही तीर-धनुष, टांगी, तलवार जैसे परंपरागत हथियारों से लड़ रहे थे. इसलिए इस यद्ध को तो खत्म होना ही था. 6 दिसंबर, 1855 को वीरभूम के मैजिस्ट्रेट ने 12 संथाल कैदियों - कान्हू, शोभा मांझी, निमई मांझी, चांद मांझी, भैरव मांझी, कानू मांझी, दुर्गा मांझी, मोटा रूमात्सा मांझी, सेन्हा मांझी, हरिदास मांझी, मोरही मांझी और मुटाह मांझी को मेजर जनरल एवायड के पास भेजा. संग्रामपुर में निर्णायक लड़ाई हुई और दिसंबर 1855 के अंत तक संथाल-विद्रोह पर काबू पा लिया गया. कुल 253 विद्राहियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ. दो सरकारी गवाह बन गये. 251 के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई शुरू हुई. इनमें 52 संथाल गांवों के 191 संथाल थे. शेष अन्य दलित जाति समूहों के. 49 कम उम्र के किशोर थे. उन्हें छोड़ कर अन्य को 7 से 14 वर्ष को सश्रम कारावास की सजा मिली. इस विद्रोह में सिदो, कान्हू, चांद, भैरव सहित लगभग 10 हजार से भी अधिक संथाल मारे गये थे.

संथाल विद्रोह : चानकु महतो को फॉसी

संथाल विद्रोह के दौरान 1856 में चानकु महतो को अंग्रेज सास्कों ने गोड्डा में सरेआम फांसी के फंदे पर झूला दिया था। चानकु महतो जैसे प्रमुख शहीद का नाम सरकारी दस्तावेज में उपलब्ध है। भारत सरकार के Anthropological Survey of India द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'People of India' के (Bihar including Jharkhand,Volume XVI,Part 2, Page 584) में उल्लेखित है- " During the Santhal rebellion in the Santal parganas and Manbhum the kudmis participated under the leadership of chanku mahto,who was hanged in godda in 1856."
लेकिन इस महान विद्रोह के बाद ही संथाल परगना में प्रशासनिक सुधरों का दौर शुरू हुआ और कई तरह के कानून अस्तित्व में आये. संथाल परगना रेगुलेशन 3-1908, जिसके अंतर्गत उस क्षेत्र में संथालों की जमीन के हस्तांतरण पर पूर्ण रोक का प्रावधन किया गया, के बनने और लागू होने की पृष्ठभूमि हूल-विद्रोही ही था. स्वतंत्रता-प्रप्ति के बाद उन प्रावधनों को ‘संथाल परगना काश्तकारी’ पूरक प्रावधन अधिनियम 1949 में कायम रखा गया.

Source : झारखंड में विद्रोह का इतिहास

झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय  #सुधीर_महतो_जी के 69 वें जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम एवं विनम्र ...
25/06/2025

झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय #सुधीर_महतो_जी के 69 वें जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि🙏🙏

झारखंड आंदोलन के अगुआ नेता सह पूर्व सांसद द्वारा चाईबासा मेडिकल कॉलेज बागुन सूंब्रई व कॉपरेटिव कॉलेज का नाम शहीद निर्मल ...
23/06/2025

झारखंड आंदोलन के अगुआ नेता सह पूर्व सांसद द्वारा चाईबासा मेडिकल कॉलेज बागुन सूंब्रई व कॉपरेटिव कॉलेज का नाम शहीद निर्मल महतो करने की मांग की ।।
दैनिक भास्कर : चाईबासा
#झारखंड_आंदोलन

मुख्यमंत्री Hemant Soren के नाम एक पत्र ---------------------------------आज जमशेदपुर लोकसभा के पूर्व सांसद सह झारखंड आंद...
21/06/2025

मुख्यमंत्री Hemant Soren के नाम एक पत्र
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आज जमशेदपुर लोकसभा के पूर्व सांसद सह झारखंड आंदोलनकारी श्री शैलेंद्र महतो ने झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखा है जिसमें अनुरोध किया गया है कि चाईबासा में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज का नाम "बागुन सुंबरूई मेडिकल कॉलेज" और जमशेदपुर कोऑपरेटिव कॉलेज का नाम बदलकर "शहीद निर्मल महतो विश्वविद्यालय" नामकरण किया जाए।
पत्र को उनके फेसबुक में जारी किया है।।

मार्क्सवादी चिंतक, धनबाद के पूर्व सांसद, पूर्व विधायक झारखंड आंदोलन के अगुआ, सादगी, इमानदारी के प्रतिमूर्ति स्वर्गीय काम...
14/06/2025

मार्क्सवादी चिंतक, धनबाद के पूर्व सांसद, पूर्व विधायक झारखंड आंदोलन के अगुआ, सादगी, इमानदारी के प्रतिमूर्ति स्वर्गीय कामरेड एके राय के जयंती पर क्रांतिकारी अभिवादन।
भारतीय संसदीय राजनीति में एके राय जैसे दूसरा व्यक्तित्व शायद ढूंढने से भी नहीं मिले।
लाल सलाम।।


े_राय
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बरसती लाठियों की गूँज में क्रांति के नगाड़े नहीं सुनाई देते.! गोलियों की तड़तड़ाहट में उलगुलान की माँदर नहीं सुनाई देती....
09/06/2025

बरसती लाठियों की गूँज में क्रांति के नगाड़े नहीं सुनाई देते.! गोलियों की तड़तड़ाहट में उलगुलान की माँदर नहीं सुनाई देती.! लेकिन बिरसा आपकी पुकार कानों में गूँजती है.! जंगलों की चीख दिल को चीर देती है...

उलगुलान के नायक बिरसा मुंडा जी के शहादत दिवस पर उन्हें शत शत नमन 🙏🙏🙏🏹🏹

कोल्हान में झामुमो के स्तम्भ व पार्टी को पहचान दिलाने वाले घाटशिला के पूर्व विधायक सह अविभाजित बिहार में मंत्री रहे आदरण...
04/06/2025

कोल्हान में झामुमो के स्तम्भ व पार्टी को पहचान दिलाने वाले घाटशिला के पूर्व विधायक सह अविभाजित बिहार में मंत्री रहे आदरणीय झारखंड आंदोलनकारी यदुनाथ बास्के जी को शत-शत नमन।
हम सभी के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है।
ॐ शांति ! 🙏

#यदुनाथ_बास्के
Hemant Soren

"जब हर कदम एक ही सपने के लिए था..."💚 #अबुआ_दीशुम_अबुआ_राजसंघर्ष की वो राहें, मिट्टी से सने पैर, जनसभा की आवाज़ें — तब ने...
02/06/2025

"जब हर कदम एक ही सपने के लिए था..."💚
#अबुआ_दीशुम_अबुआ_राज

संघर्ष की वो राहें, मिट्टी से सने पैर, जनसभा की आवाज़ें — तब नेता नहीं, साथी थे।
हर कोई एक ही लक्ष्य के लिए लड़ रहा था — झारखंड के हक़ और सम्मान के लिए।

पूर्व सांसद सिंहभूम कृष्णा मार्डी, पूर्व सांसद जमशेदपुर शैलेन्द्र महतो, पूर्व मुख्यमंत्री व विधायक चंपाई सोरेन और पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय सुधीर महतो की कुछ अनदेखी तस्वीरें — उस दौर की जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) एक विचार था, एक संकल्प था।

आज इन भूली-बिसरी तस्वीरों को देखते हुए, उस दौर की याद ताज़ा हो जाती है — जब सभी एक विचार, एक संघर्ष और एक सपने से जुड़े थे।

जय झारखंड 💚

#झारखंड_आंदोलन
#शैलेंद्र_महतो
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#चंपई_सोरेन
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ारखंड

झारखंड आंदोलनकारी एवं प्रसिद्ध नागपुरी लोकगायक महावीर नायक जी को संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए महामहिम र...
29/05/2025

झारखंड आंदोलनकारी एवं प्रसिद्ध नागपुरी लोकगायक महावीर नायक जी को संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने पद्मश्री सम्मान प्रदान किया है। उनके इस सम्मान ने समस्त झारखंडवासियों का मान बढ़ाया है।

बहुत बहुत बधाई।💐


#झारखंड_आंदोलन
ारखंड

आज राज्यवासियों के लिए गौरव का दिन है। आज बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय परिसर में झारखंड आंदोलन के महानायक सह...
20/05/2025

आज राज्यवासियों के लिए गौरव का दिन है। आज बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय परिसर में झारखंड आंदोलन के महानायक सह झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक स्व. बिनोद बिहारी महतो जी के आदमकद प्रतिमा के अनावरण समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में महामहिम राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार जी, झारखंड के लोकप्रिय मुख्यमंत्री माननीय श्री हेमंत सोरेन जी की गरिमामयी उपस्थिति रही तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व मंत्री सह झारखंड राज्य बाल विकास संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती बेबी देवी की गरिमामयी उपस्थिति रही। इस अवसर पर प्रदेश के कई मंत्री, कई सांसद एवं कई विधायकगण की भी उपस्थिति रही।
आप सभी को इस गौरवशाली अवसर पर बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएं और जोहार।
#झारखंड_आंदोलन
#बिनोद_बिहारी_महतो_अमर_रहे

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