समाज के युवाओं को संगठित करने, नवीन पीढी में धार्मिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने, समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने, समाज के आयोजनों में सेवा देने के उद्धेश्य से वर्ष 1998 के जावरा चातुर्मास में ज्योतिषाचार्य मुनिप्रवर श्री जयप्रभविजयजी म.सा. द्वारा श्री राजेन्द्र श्रमण विद्यापीठ के नाम से एक संस्था का गठन किया गया। मार्गदर्शक के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई प्रबुद्ध प्रवचनकार मुनिराज श्री हितेश
चन्द्रविजयजी म.सा. एवं मधुर गायक मुनिराज श्री दिव्यचन्द्रविजयजी म.सा. को।
संस्था ने प्रारम्भ से ही समाज मे एक नई छाप छोडते हुए सेवा, सद्भाव एवं सहकार के नये आयाम स्थापित किए। विद्यापीठ द्वारा समाज में धार्मिक शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिये पांच पाठ्यक्रमों के माध्यम से एक सुव्यवस्थित योजना तैयार की गई। विद्या भूषण, यतीन्द्र वाणी, भूपेन्द्र विशारद, धनचन्द्र ज्योति एवं राजेन्द्र विशारद नाम से पांच पाठ्यक्रमों में मन्दिर विधि से लेकर पंच प्रतिक्रमण तक के सू़त्रों, तत्व ज्ञान, जीवन चरित्र आदि को समाहित किया गया। प्रदेश के विभिन्न स्थानों जावरा, मन्दसौर, रतलाम, बडावदा, खाचरौद, नागदा, उज्जैन, धार, झाबुआ, राजगढ, मनावर, दसई, बडवाह, महिदपुर रोड, महिदपुर सीटी, नालछा आदि में विद्यापीठ के केन्द्र प्रारम्भ कर उक्त पाठ्यक्रमों की परीक्षायें आयोजित की गई। सभी केन्द्रों पर उक्त योजना को काफी अच्छा प्रतिसाद मिला। प्रथम वर्ष की परीक्षा के आयोजन के पश्चात जावरा नगर में विद्याभूषण अलंकरण समारोह का भव्यातिभव्य आयोजन समाजरत्न श्रेष्ठीवर्य, जावरा दादावाडी गुरू मन्दिर के निर्माता सेठ श्री मूलचन्दजी फूलचन्दजी बाफना के आतिथ्य में किया गया। महिदपुर सीटी की समता बांठिया को विद्या भूषण अलंकरण से नवाजा गया। 31 दिसम्बर 2002 को विद्यापीठ संस्थापक ज्योतिषाचार्य मुनिप्रवर श्री जयप्रभविजयजी म.सा. के असामयिक देवलोकगमन से उक्त योजना को मध्य में ही विराम देना पडा किन्तु विद्यापीठ सदस्यों के सेवा-सहकार के कार्य आज भी निरंतर प्रगतिशील है।
समाज की युवा पीढी में संस्कारों के बीजारोपण हेतु संस्कार शिविरों के आयोजन ने भी विद्यापीठ को नई पहचान दी। जावरा एवं श्री मोहनखेडा तीर्थ में कई संस्कार शिविरों का आयोजन विद्यापीठ द्वारा किया जा चुका है और आज भी यह क्रम सतत जारी है।
दादावाडी में त्रिशिखरबद्ध जिनालय की अंजनशलाका प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन हो या श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी ग्रंथ का विमोचन, महावीर जयंती का आयोजन हो या नगर में चातुर्मास का कार्यक्रम, चाौपाटी जैन मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हो या अन्य कोई भी धार्मिक आयोजन विद्यापीठ सदस्यों ने सेवा के नीत नए आयाम स्थापित कर समाज के प्रत्येक व्यक्ति के दिल में एक अमिट छाप अंकित की है। पयूर्षण महापर्व के दौरान अनेकविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने में विद्यापीठ का कोई सानी नहीं है।
गुरूदेव की क्रियो़द्धार पुण्य स्थली श्री राजेन्द्रसूरि जैन दादावाडी जावरा के लिये विद्यापीठ का प्रत्येक सदस्य तन-मन-धन से समर्पित है। दादावाडी में प्रत्येक रविवार एवं पूर्णिमा पर विद्यापीठ सदस्यों द्वारा भक्ति भावना पूर्वक विभिन्न रागों में आरती की जाती है। दादावाडी दर्शनार्थ आने वाले देश के कोने-कोने के श्रद्धालुओं का मानना है कि इस तरह की सुन्दर एवं मनभावन आरती हमने कहीं नहीं सुनी है। क्रियोद्धार दिवस, गुरू सप्तमी, पयूर्षण पर्व में महावीर जन्म वांचन पर विद्यापीठ सदस्यों द्वारा प्रतिवर्ष दादावाडी में परमात्मा श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ भगवान, आदिनाथ भगवान एवं गुरूदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीष्वरजी मसा की प्रतिमा की नयनाभिराम अंगरचना के साथ ही आकर्षक विद्युत एवं पुष्प सज्जा की जाती है।
स्थाई गतिविधियों में विद्यापीठ द्वारा प्रत्येक रविवार एवं पूर्णिमा पर दादावाडी पर आरती के बाद प्रभावना वितरित की जा रही है। साथ ही चाौपाटी पर निर्मित नूतन जिनालय पर प्रत्येक पूर्णिमा पर समाज के गुरूभक्तों के सहयोग से भाता वितरण की सुन्दर व्यवस्था की गई है। इस वर्ष 14 जून 2012 को क्रियोद्धार दिवस पर दो दिवसीय आयोजन विद्यापीठ द्वारा किया गया जिसे समाजजनों ने काफी सराहा।
श्री राजेन्द्र श्रमण विद्यापीठ जावरा में वर्तमान में 29 सक्रिय सदस्य है और प्रत्येक सदस्य समस्त आयोजन में पूर्णरूपेण सहभागिता करता है। पद और नाम की लालसा से परे विद्यापीठ का प्रत्येक सदस्य देव, गुरू और धर्म के लिये पूरी तरह समर्पित है। वर्तमान में प्रबुद्ध प्रवचनकार मालव केसरी मुनिराज श्री हितेशचन्द्रविजयजी म.सा. एवं मधुर गायक मुनिराज श्री दिव्यचन्द्रविजयजी म.सा. के मार्गदर्शन में अध्यक्ष पियुष चपडोद, सचिव अमित चत्तर और कोषाध्यक्ष मितेश करनावट विद्यापीठ को कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहे है।