06/06/2023
रावण के साथ धोखा राम ने किया।
राजा रावण का सर्वनाश इसलिए हुआ, गद्दार भिबीषण के कारण और किसी कारण नहीं। और चूंकि राम उस गद्दार के कारण जीते। उस गद्दार को उन्होंने पुरस्कार भी खूब दिया, लंका का पूरा राज्य दे दिया। और तुम देखते हो, ये राम के भक्तों में से एक ने भी नहीं कहा कि भिबीषण ने गद्दारी की, अपने भाई को धोखा दिया।
इससे बड़ा गद्दार दुनिया में दूसरा नहीं हुआ। अगर रावण जीत गया होता, तो भिबीषण की निंदा सदियों तक होती। लेकिन चूंकि राम जीत गये, उसकी गद्दारी के कारण जीते क्योंकि जब भाई ने ही सूत्र दे दिये, राज बता दिये तो रावण कि हार सुनिश्चित थी। रावण अहंकारी नहीं था ये भ्रांति भी छोड़ दो, ये ख्याल गलत है। रावण के साथ धोखा राम ने किया।
क्योंकि जब सीता का स्वंबर रचा जा रहा था तो ये बात जाहिर थी कि रावण इतना शक्तीशाली है कि वो सीता को ले जायेगा। और वो शिव का भक्त था, और शिव का धनुष तोड़ना था। वो उसका हकदार था तोड़ने का, उसने तोड़ दिया होता। 'तो एक चालबाजी की गई, चालबाजी वहां सुरू होती है, बेईमानी वहां सुरू होती है, राजनीति वहां सुरू होती है। इसमें राम जिम्मेवार हैं इस सारे उपद्रव में, रावण नहीं।
चालबाजी ये की गयी कि झूंठी खबर दी गयी उसे 'कि रावण तेरी लंका में आग लग गयी, तुझे जल्दी बुलावा आया है तू भाग, तेरी लंका जल रही 'सोने की लंका जल रही है। रावण भागा! अब जब लंका में आग लगी हो, तो कोई स्वयंवर में रूका रहे, कोई विवाह के लिए तैयारी करे? ये कोई समय है। वो भागा लंका गया, झूठ थी बात 'लंका में आग नहीं लगी थी। जब तक वो लौटा तब तक स्वयंवर समाप्त हो चुका था!
राम ने सीता का वरन् कर लिया था। इसका ही बदला देने के लिए, और इसका बदला देना जरूरी था। क्योंकि यह बेईमानी की गयी थी, ये सीधा सड़यन्त्र था। 'इसका बदला देने के लिए उसने सीता को चुराया, मगर सीता के साथ उसने जो सद्- व्यावहार किया 'वो राम ने भी कभी नहीं किया। सीता को तीन साल तक कारागृह में रखके भी, उसने सारी सुविधाएं दीं थी।जंगल में नहीं रख दिया था, किसी जेलखाने में नहीं बंद कर दिया था। 'उसके पास जो सुन्दरतम् वाटिका थी, सुन्दरतम् बगीचा था 'अशोक वाटिका वहां रखा था।
और उसने कभी भी कोई जबरदस्ती नहीं की, कोई बलात्कार नहीं किया! सीता को छुआ भी नहीं, स्पर्श भी नहीं किया। 'वो आदमी अपने किस्म का प्रामाणिक आदमी था, ईमानदार आदमी था। राम से बदला लेना था, सीता से क्या बदला लेना था! सीता का तो कोई कसूर था नहीं इसलिए सीता को उसने कोई परेशानी नहीं दी। राम ने सीता के साथ दुर्व्यवहार किया। पहले तो उसकी अग्नि परीक्षा ली! जिस पती को अपनी पत्नी पर सन्देह है उसको प्रेम नहीं।
संदेह तो तभी उठता है, जब प्रेम ना हो! जहां प्रेम है वहां कैसा सन्देह? जहां प्रेम है वहां भरोसा है, आदर है, सम्मान है। 'पहला तो अपमान यह किया कि सीता की अग्नि परीक्षा ली! और बेईमानी देखो, खुद भी अग्नि परीक्षा दे देनी थी तो भी समझ में आता। तो दोहरे मापदंड न हो पाते, क्योंकि तुम भी तीन साल तक अलग रहे थे। और ऐसे सोधकर्ता हैं। जिनका कहना है कि राम का सबरी से प्रेम था।
तुम सोधकर्ताओं की किताबें खोज के देखो! 'रामलीला में तुमने सबरी को देखा होगा, वो झूंठ है बात की सबरी हमेंशा बूढ़ी औरत दिखाई जाती है! वो सिर्फ बताने के लिए बुढ़ापा दिखाया जाता है उसका। सबरी जवान स्त्री थी, और जंगल कि सुन्दरतम् स्त्री थी। "प्रोफेसर नावलेकर ने एक अद्भुत किताब लिखी है। 'न्यू एप्रोच टू रामायण ( रामायण के प्रति नया द्रष्टिकोण) और उसमें उन्होंने सिद्ध करने की कोशिश की है! कि सबरी जवान स्त्री थी, सुन्दर थी, अति सुन्दर थी और राम उसके प्रेम में थे।
इसकी मजबूत दलीलें दी हैं। तो राम को भी परिक्षा दे देनी थी! दोनों साथ ही गुजर जाते अग्नि परीक्षा से। और मेरा मानना है कि 'अगर अग्नि परीक्षा से दोनों गुजरते, तो राम जलते और सीता बहार निकलती। सीता तो बहार निकली ही! मगर सक फिर भी न गया और स्त्री के प्रति अपमान फिर भी ना गया। और फिर भी सीता को किसी धोबी के कहने पर वनवास दे दिया। 'रावण ने जो दुर्व्यवहार नहीं किया था! वो राम ने किया है।
अब मैं किस जनता को समझने जाऊं, तुम थोड़ा सोचो। मेरी बात तुम्हारी भीड़ को समझ में पड़ेगी? सुन सकेंगे वो? 'उनकी आंखें अंधी हैं पक्षपातों से। वो पुनर्विचार कर सकेंगे सांतिपूर्वक? 'रावण में मुझे कोई भ्रांति नहीं दिखाई पड़ती, रावण बहुत सीधा साफ आदमी! राम मुझे चालबाज दिखाई पड़ते। और राम के जो वसिष्ठ वगैरह थे, जिनको तुम रिषी- मुनी कहते हो वो सब एजेंट थे। जैसे ईसाइ मिशनरी एजेंट होते हैं!
नाम तो लेते हैं बाईबल का, आते हैं इरादा कुछ और रखके। 'वो राम के एजेंट थे, वो जो रिषी- मुनी दक्षिण में जाकर उपद्रव खड़ा कर रहे थे। उन्हीं एजेंटों को बचाने के लिए सारा आयोजन किया गया था। और इस गद्दार भिबीषण को सम्मान देना और इसको वापिस राज्य दे देना गद्दारी का सम्मान हो गया! बेईमानी का सम्मान हो गया, धोखेधड़ी का सम्मान हो गया। 'और सीता जैसी निश-कलुस स्त्री को, गर्भवती स्त्री को जंगल में छुड़वा देना, बिना कहे कि कहां भेजा जा रहा है उसे!
'ये स्त्री जाति का बड़ा से बड़ा अपमान हो गया। और राम ने शंबुक नाम के सूद्र के कानों में शीसा पिघलवा के भरवा दिया था। क्योंकि उसने वेद के मंत्र सुन लिये थे। मैं राम को भगवान का अवतार नहीं मान सकता! क्योंकि भगवान के अवतार को क्या ब्राह्मण और क्या सूद्र। 'भगवान के अवतार को इतनी भी द्रष्टि नहीं कि वो देख सके की सीता पवित्र है। इतनी भी द्रष्टि नहीं की देख सके कि धोबी गलत है।
"और अगर ये भी था कि धोबी ने जो बात कही, हो सकता है और लोग भी कह रहे हों! तो फिर खुद भी राज्य छोड़ देना था। तो चले जाते वो भी सीता के साथ जंगल में, यूं ही चौदह साल रहने के अभ्यासी थे कोई नई बात तो थी नहीं।फिर जंगल में साथ ही चले जाते। लेकिन राज्य को तो बचा लिया, पत्नी को छोड़ दिया। पद को बचा लिया और पत्नी को छोड़ दिया। पद प्रेम से बड़ा साबित हुआ।
"राम राजनीतिक पुरुष हैं, मेरे लिए कोई धार्मिकता उनमें दिखाई नहीं पड़ती।'
~ओशो