24/09/2025
संघर्ष से सफलता तक: लक्ष्मी और राहुल की कहानीसूरजपुर गाँव, राजस्थान के एक छोटे कोने में बसा था। यहाँ की ज़िंदगी साधारण थी, पर कुछ परिवारों के लिए हर दिन एक जंग की तरह था। उसी गाँव के छोर पर, एक कच्ची झोपड़ी में लक्ष्मी अपने दस वर्षीय बेटे राहुल के साथ रहती थी। लक्ष्मी एक साधारण महिला थी, जिसने कम उम्र में ही जीवन के कई थपेड़े झेले थे। पति की मृत्यु के बाद ज़िम्मेदारी का पूरा भार उसी के कंधों पर था। ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा, जिसे उसका परिवार जोतता था, शायद ही महीने भर का राशन दे पाता।राहुल बहुत होशियार और मेहनती बच्चा था। अपनी माँ की मदद के लिए वह स्कूल के बाद खेतों में हाथ बँटाता, कभी घर के बर्तनों की सफाई करता, कभी गाँव के कुएं से पानी लाता। परिस्थितियाँ भले ही कठिन थीं, लेकिन राहुल की आँखों में हमेशा बड़े सपने चमकते रहते।एक सुबह की शुरुआतएक दिन राहुल की स्कूल की फीस भरने का समय आया, लेकिन घर में पैसे नहीं थे। लक्ष्मी ने गाँव में काम मांगने की बहुत कोशिश की, पर मौसम की मार के कारण काम भी कम मिला। हताश होकर, एक रात माँ-बेटे की आँखों में नींद नहीं थी। राहुल बोला, ‘‘माँ, अगर मैं पढ़-लिख जाऊँगा, तो हम भी अच्छा घर बना सकते हैं...’’ लक्ष्मी ने राहुल के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, मेहनत से कभी हार मत मानना। भगवान जरूर मदद करेगा।’’छोटी-सी कोशिश, बड़ी उम्मीदअगली सुबह राहुल स्कूल पहुँचा। उसकी अध्यापिका, मिसेज़ शर्मा ने पढ़ाई में उसकी लगन देखी थी। उन्होंने राहुल से बात की और उसकी आर्थिक स्थिति समझी। उन्होंने स्कूल के फंड से उसकी फीस भरवा दी, लेकिन शर्त रखी—‘‘राहुल, अगर तुम हर महीने क्लास में टॉप करोगे, तो आगे की फीस भी माफ हो जाएगी।’’यह सुनकर राहुल की मेहनत दोगुनी हो गई। सुबह जल्दी उठकर खेत में माँ की मदद, फिर स्कूल की पढ़ाई—रोज़ की दिनचर्या यही थी। गाँव के कुछ बच्चे उसका मज़ाक उड़ाते थे, लेकिन राहुल ने किसी की नहीं सुनी।पहला इनामतीन महीने बाद जब रिजल्ट आया, राहुल पूरे स्कूल में पहली बार प्रथम आया। उसे पुरस्कार में किताबें मिलीं, और गाँव के प्रधान ने भी उसकी सराहना की। लक्ष्मी की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले।मुश्किलें फिर भी आईंपर खेल यहीं समाप्त नहीं हुआ। अगला साल और कठिन था—सूखा पड़ने के कारण फसल भी चौपट हो गई। कई बार खाना भी नहीं मिलता था। राहुल कभी-कभी घर की आर्थिक मदद के लिए गाँव में अखबार भी बाँटने लगा। फिर भी वह शाम को पढ़ाई करता, थककर माँ के पास सिर रखकर कहता, ‘‘मैं हार नहीं मानूँगा।’’एक छोटी जीत, बड़ा बदलावराहुल का नाम एक इंटर-स्कूल क्विज़ में भीज गया। लाखों बच्चों में उसका चयन हुआ। प्रतियोगिता वाले दिन, जयपुर पहुँचना थी, पर रेल टिकट के भी पैसे नहीं थे। गाँव के मास्टर साहब और कुछ गाँव वालों ने चंदा इकट्ठा कर राहुल को ट्रेन का टिकट दिलवाया।राहुल ने प्रतियोगिता में भाग लिया और पूरे जिले में अव्वल आया। उसे स्कॉलरशिप व पहचान मिली। आज वही गाँव का गरीब बच्चा जयपुर के नामी स्कूल में पढता है—पूरी फीस माफ और हॉस्टल की व्यवस्था।नई उड़ानकुछ सालों बाद, राहुल ने इंजीनियरिंग का एंट्रेंस निकाला। सरकारी मदद से उसका दाखिला हुआ। आज वह मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर है और अपनी माँ को शहर बुला लिया है। गाँव के बच्चों को वह समय-समय पर शिक्षा की प्रेरणा देता है और कठिन हालात में हिम्मत न हारने की सलाह देता है।कहानी से शिक्षाहालात चाहे जैसे भी हों, मेहनत और खुद पर विश्वास से कोई भी सपना पूरा हो सकता है।जब निराशा महसूस हो, तो समझो कि यही असली परीक्षा है।परिवार, गाँव और समाज में असली बदलाव—इसी हौसले और लगन से आता है।आर्थिक तंगी, समाज का ताना—कुछ भी आपको रोक नहीं सकता, जब तक आप खुद न हार मानो।दूसरों की मदद, जैसे राहुल को गाँव के लोगों ने की—किसी की लाइफ बदल सकती है��।यह कहानी हम सबको यही प्रेरणा देती है कि मेहनत और उम्मीद कभी साथ नहीं छोड़नी चाहिए। हर कठिनाई के बाद, सफलता जरुर मिलती है
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