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prm_press हिंदू मेरा परिचय। सनातन सर्वोपरी, जय श्री राम🚩
जोधपुर से उत्राखंड चार धाम और अयोध्या साइकिल यात्रा।

जिन आंखों ने देखी इंतजार की घड़ियां,उनसे पूछो राम मंदिर बनने की खुशियां।।
14/01/2025

जिन आंखों ने देखी इंतजार की घड़ियां,
उनसे पूछो राम मंदिर बनने की खुशियां।।

ग़ज़ब संयोग... बीकानेर में टीचर पिता के रिटायरमेंट ऑर्डर पर उनके प्रधानाचार्य बेटे ने हस्ताक्षर किए। मामला बीकानेर जिले ...
02/01/2025

ग़ज़ब संयोग...

बीकानेर में टीचर पिता के रिटायरमेंट ऑर्डर पर उनके प्रधानाचार्य बेटे ने हस्ताक्षर किए। मामला बीकानेर जिले के नोखा क्षेत्र राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल बंधड़ा का है। किसी भी पिता पुत्र के लिये इससे बड़कर संयोग क्या हो सकता है।

एक रिएक्शन तो बनता है..... ❤️😍

गेहूं की पिसाई 3 ₹ KG है,बाजार में एक किलो गेहूं 32 से 33 ₹ Kg है,आशीर्वाद आटा का 10 Kg का पैकेट 445 ₹ है,किसान के गेहूं...
27/12/2024

गेहूं की पिसाई 3 ₹ KG है,
बाजार में एक किलो गेहूं 32 से 33 ₹ Kg है,

आशीर्वाद आटा का 10 Kg का पैकेट 445 ₹ है,

किसान के गेहूं का MSP 22.75 ₹ Kg है,

किसान के खेत से 22.75 ₹ Kg निकला गेहूं,
आटा बनने के बाद आम जनता के घर में 36 ₹ Kg के रूप में पहुंचता है,
बनिया दस रुपए 1 Kg पर कमा रहा है,

किसान ने सर्दी में बोया, गर्मी में काटा,
लागत लगाई, हड्डी गलाई, पसीना बहाया,
दो से तीन रुपया किलो पीछे मुनाफा पाया,

27/12/2024
एक दिन जरूर मिलता है - “ कर्म का फल ”एक गांव था , वह ऐसी जगह बसा था जहाँ आने जाने के लिए एक मात्र साधन नांव थी। क्योंकि ...
21/11/2024

एक दिन जरूर मिलता है - “ कर्म का फल ”

एक गांव था , वह ऐसी जगह बसा था जहाँ आने जाने के लिए एक मात्र साधन नांव थी। क्योंकि बीच में नदी पड़ती थी और कोई रास्ता भी नहीं था।

एक बार उस गाँव में महामारी फैल गई और बहुत सी मौते हो गयी, लगभग सभी लोग वहाँ से जा चुके थे।

अब कुछ ही गिने-चुने लोग बचें थे और वो नाविक गाँव में बोल कर आ गया था कि मैं इसके बाद नहीं आऊँगा जिसको चलना है वो आ जाये।
सबसे पहले एक भिखारी आ गया और बोला मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है, मुझे अपने साथ ले चलो, ईश्वर आपका भला करेगा !

नाविक सज्जन पुरुष था। उसने कहा कि यहीं रुको यदि जगह बचेगी तो तुम्हें मैं ले जाऊँगा।

धीरे-धीरे करके पूरी नांव भर गई सिर्फ एक ही जगह बची !

नाविक भिखारी को बोलने ही वाला था कि एक आवाज आयी रुको मैं भी आ रहा हूँ...
यह आवाज जमीदार की थी, जिसका धन-दौलत से लोभ और मोह देख कर उसका परिवार भी उसे छोड़कर जा चुका था।

अब सवाल यह था कि किसे लिया जाए ?

जमीदार ने नाविक से कहा - मेरे पास सोना चांदी है ,मैं तुम्हें दे दूँगा और भिखारी ने हाथ जोड़कर कहा कि भगवान के लिए मुझे ले चलो।

नाविक समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ तो उसने फैसला नाव में बैठे सभी लोगों पर छोड़ दिया और वो सब आपस में चर्चा करने लगे।
इधर जमीदार सबको अपने धन का प्रलोभन देता रहा और उसने उस भिखारी को बोला ये सबकुछ तू ले ले, मैं तेरे हाथ पैर जोड़ता हूँ ,मुझे जाने दे !

तो भिखारी ने कहा:- मुझे भी अपनी जान बहुत प्यारी है अगर मेरी जिंदगी ही नहीं रहेगी, तो मैं इस धन दौलत का क्या करूँगा?
जीवन है तो जहान है !

तो सभी ने मिलकर ये फैसला किया कि ये जमीदार ने आज तक हमसे लूटा ही है
ब्याज पर ब्याज लगाकर हमारी जमीन अपने नाम कर ली और माना की ये भिखारी हमसे हमेशा माँगता रहा पर उसके बदले में इसने हमें खूब दुआएं दी और इस तरह भिखारी को साथ में ले लिया गया !

बस यही फैसला है... ईश्वर भी वही हमारे साथ न्याय करता है, जब अंत समय आता हैं वो सारे कर्मों का लेखा- जोखा हमारे सामने रख देता है और फैसले उसी हिसाब से होते हैं , फिर रोना गिड़गिगिड़ाना काम नहीं आता !
शुभ कर्म ही साथ होते हैं। इसलिए अभी भी वक्त है हमारे पास सम्भलने का और शुभ कर्म करने का , बाद में कुछ नहीं होगा।

शायद इसलिए कहा गया है..
अब पछताय होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

!! जय श्री हरि !!

राजा दिलीप की कथा...रघुवंश का आरम्भ राजा दिलीप से होता है । जिसका बड़ा ही सुन्दर और विशद वर्णन महाकवि कालिदास ने अपने मह...
20/11/2024

राजा दिलीप की कथा...

रघुवंश का आरम्भ राजा दिलीप से होता है । जिसका बड़ा ही सुन्दर
और विशद वर्णन महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम में
किया है ।
कालिदास ने राजा दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, लव, कुश, अतिथि

और बाद के बीस रघुवंशी राजाओं की कथाओं का समायोजन अपने
काव्य में किया है। राजा दिलीप की कथा भी उन्हीं में से एक है।
राजा दिलीप बड़े ही धर्मपरायण, गुणवान, बुद्धिमान और धनवान थे ।

यदि कोई कमी थी तो वह यह थी कि उनके कोई संतान नहीं थी । सभी
उपाय करने के बाद भी जब कोई सफलता नहीं मिली तो राजा दिलीप अपनी पत्नी सुदक्षिणा को लेकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम संतान
प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे । महर्षि वशिष्ठ ने राजा का आथित्य सत्कार किया और आने का
प्रयोजन पूछा तो राजा ने अपने निसंतान होने की बात बताई ।

तब महर्षि वशिष्ठ बोले – हे राजन ! तुमसे एक अपराध हुआ है, इसलिए तुम्हारी अभी तक कोई संतान नहीं हुई है ।
तब राजा दिलीप ने आश्चर्य से पूछा – गुरुदेव ! मुझसे ऐसा कोनसा
अपराध हुआ है कि मैं अब तक निसंतान हूँ। कृपा करके मुझे बताइए ?
महर्षि वशिष्ठ बोले – राजन ! एक बार की बात है, जब तुम देवताओं
की एक युद्ध में सहायता करके लौट रहे थे । तब रास्ते में एक विशाल

वटवृक्ष के नीचे देवताओं को भोग और मोक्ष देने वाली कामधेनु
विश्राम कर रही थी और उनकी सहचरी गौ मातायें निकट ही चर रही थी।
तुम्हारा अपराध यह है कि तुमने शीघ्रतावश अपना विमान रोककर
उन्हें प्रणाम नहीं किया ।

जबकि राजन ! यदि रास्ते में कहीं भी गौवंश दिखे तो दायीं ओर होकर
राह देते हुयें उन्हें प्रणाम करना चाहिए । यह बात तुम्हे गुरुजनों द्वारा
पूर्वकाल में ही बताई जा चुकी थी ।
लेकिन फिर भी तुमने गौवंश का अपमान और गुरु आज्ञा का उलंघन
किया है । इसीलिए राजन !

तुम्हारे घर में अभी तक कोई संतान नहीं हुई ।
महर्षि वशिष्ठ की बात सुनकर राजा दिलीप बड़े दुखी हुए।
आँखों में अश्रु लेकर और विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर राजा दिलीप

गुरु वशिष्ठ से प्रार्थना करने लगे – गुरुदेव ! मैं मानता हूँ कि मुझसे
अपराध हुआ है किन्तु अब इसका कोई तो उपाय होगा ?
तब महर्षि वशिष्ठ बोले – एक उपाय है राजन ! ये है मेरी गाय नंदिनी

है जो कामधेनु की ही पुत्री है। इसे ले जाओ और इसके संतुष्ट होने
तक दोनों पति – पत्नी इसकी सेवा करो और इसी के दुग्ध का सेवन करो ।
जब यह संतुष्ट होगी तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।

ऐसा आशीर्वाद देकर महर्षि वशिष्ठ ने राजा दिलीप को विदा किया।
अब राजा दिलीप प्राण – प्रण से नंदिनी की सेवा में लग गये । जब

नंदिनी चलती तो वह भी उसी के साथ – साथ चलते, जब वह रुक
जाती तो वह भी रुक जाते ।
दिनभर उसे चराकर संध्या को उसके दुग्ध का सेवन करके उसी पर
निर्वाह करते थे।
एक दिन संयोग से एक सिंह ने नंदिनी पर आक्रमण कर दिया और

उसे दबोच लिया । उस समय राजा दिलीप कोई अस्त्र – शस्त्र चलाने
में भी असमर्थ हो गया । कोई उपाय न देख राजा दिलीप सिंह से प्रार्थना करने लगे –
हे वनराज...
कृपा करके नंदिनी को छोड़ दीजिये, यह मेरे गुरु वशिष्ठ की सबसे
प्रिय गाय है । मैं आपके भोजन की अन्य व्यवस्था कर दूंगा ।
तो सिंह बोला – नहीं राजन !

यह गाय मेरा भोजन है अतः मैं उसे नहीं
छोडूंगा । इसके बदले तुम अपने गुरु को सहस्त्रो गायें दे सकते हो ।
बिलकुल निर्बल होते हुए राजा दिलीप बोले – हे वनराज !

आप इसके बदले मुझे खा लो, लेकिन मेरे गुरु की गाय नंदिनी को छोड़ दो ।
तब सिंह बोला – यदि तुम्हें प्राणों का मोह नहीं है तो इसके बदले
स्वयं को प्रस्तुत करो ।
मैं इसे अभी छोड़ दूंगा ।
कोई उपाय न देख राजा दिलीप ने सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया
और स्वयं सिंह का आहार बनने के लिए तैयार हो गया ।

सिंह ने नंदिनी गाय को छोड़ दिया और राजा को खाने के लिए उसकी
ओर झपटा । लेकिन तत्क्षण हवा में गायब हो गया।
तब नंदिनी गाय बोली – उठो राजन ! यह मायाजाल, मैंने ही आपकी
परीक्षा लेने के लिए रचा था । जाओ राजन !

तुम दोनों दम्पति ने मेरे दुग्ध पर निर्वाह किया है अतः तुम्हें एक
गुणवान, बलवान और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी ।
इतना कहकर नंदिनी अंतर्ध्यान हो गई।
उसके कुछ दिन बाद नंदिनी के आशीर्वाद से महारानी सुदक्षिणा ने

एक पुत्र को जन्म दिया, रघु के नाम से विख्यात हुआ और उसके
पराक्रम के कारण ही इस वंश को रघुवंश के नाम से जाना जाता है ।
महाकवि कालिदास ने भी इसी रघु के नाम पर अपने महाकाव्य का
नाम “रघुवंशम” रखा ।

एक बार अवश्य पढ़े 👇 एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे। एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत ...
11/11/2024

एक बार अवश्य पढ़े 👇

एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे।

एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी।

मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गई, जिसमें लिखा था कि..

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?
19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार. फिर?

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।
सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10, बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4, नौकर को दे दिए।

10+5+4=19
बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...

वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया।

👉 सो हम सब के जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।

🔹5 ज्ञानेंद्रियाँ
(आँख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)

🔹5 कर्मेन्द्रियाँ
(हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)

🔹5 प्राण
(प्राण, अपान, समन, व्यान, उदान)
और

🔹4 अंतःकरण
(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)

कुल 19 ऊँट होते हैं।

सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊँटो के बँटवारे में उलझा रहता है।

और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

यह है 19 ऊंट की कहानी...कहानी अच्छी लगी हो तो शेयर अवश्य करिएगा।।

!! हर हर महादेव , जय शिव शंभू !!

🔹ईश्वर का गणित🔹एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे। वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे।थोड़ी देर ...
10/11/2024

🔹ईश्वर का गणित🔹

एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे। वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे।

थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा।

कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी।

पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।
उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ??

पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकड़े करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकड़े (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8-8 टुकड़े बराबर-बराबर बंट जाएंगे।

तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकड़े करके प्रत्येक ने 8-8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए ।
सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया ।

उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने पहले आदमी से कहा हम दोनों 4-4 गिन्नी बांट लेते हैं।

पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी 5 रोटी थी, अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी।
इस पर दोनों में बहस होने लगी ।

इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें समस्या बताई तथा समाधान के लिए प्रार्थना की ।

पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों दूसरे को ज्यादा देने के लिये लड़ रहे हैं। पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा।
पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया।

कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3-5 बंटवारा ही उचित लगता है।

भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं,
पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए ।
भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा-

प्रभु, ऐसा कैसे ?

भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :

इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था।

इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है।
जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए।

इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है !

ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी नतमस्तक हो गया।

इस कहानी का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है। हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं।
दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये
हम अपने त्याग का गुणगान करते है, परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौर कर यथोचित निर्णय करते हैं।

यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न हैं, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है।

!! जय जय श्री राम !!

आखिर क्यों मनाया जाता है दिवाली का त्योहार? जानें इसके पीछे का पौराणिक महत्व....दीपावली क्यों मनाई जाती है, इस बारे में ...
31/10/2024

आखिर क्यों मनाया जाता है दिवाली का त्योहार? जानें इसके पीछे का पौराणिक महत्व....
दीपावली क्यों मनाई जाती है, इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया और खुशियों के दीप जलाए गए। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।
लेकिन इसके अलावे भी कई कहानियां हैं, जिनके बारे में कम लोग जानते हैं। आज हम आपको दीपावली मनाने के पीछे की छह कहानियां बताएंगे।

✨️ (1). श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी -

यह वह कहानी है जो लगभग सभी भारतीय को पता है। कहा जाता है कि मंथरा की बातों में आकर कैकई ने दशरथ से राम को वनवास भेजने का वचन मांग लिया। इसके बाद श्रीराम को वनवास जाना पड़ा।
14 वर्षों का वनवास बिताकर जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। तभी से दीपावली मनाई जाती है।

✨️ (2). पांडवों का अपने राज्य लौटना -

महाभारत काल में कौरवों ने, शकुनी मामा की मदद से शतरंज के खेल में पांडवों को हराकर छलपूर्वक उनका सबकुछ ले लिया और उन्हें राज्य छोड़कर 13 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा।
कार्तिक अमावस्या को 5 पांडव (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) 13 वर्ष का वनवास पूरा कर अपने राज्य लौटे। उनके लौटने की खुशी में राज्य के लोगों नें दीप जलाए। माना जाता है कि तभी से कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है।

✨️ (3). राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक -

राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के महान सम्राट थे। वह आदर्श राजा थे। उन्हें उनकी उदारता, साहस के लिए जाना है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को ही उनका राज्याभिषेक हुआ था। ऐसे धर्मनिष्ठ राजा की याद में तभी से दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।

✨️ (4). मां लक्ष्मी का अवतार -

दीपावली का त्यौहार हिंदी कैलंडर के अनुसार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी जी ने अवतार लिया था। मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इसलिए हर घर में दीप जलने के साथ-साथ हम माता लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं।

✨️ (5). छठवें सिख गुरु की आजादी -

इस त्यौहार को सिख समुदाय के लोग अपने छठवें गुरु श्री हरगोविंदजी की याद में मनाते हैं। गुरु श्री हरगोविंदजी मुगल सम्राट जहांगीर की कैद में ग्वालियर जेल में थे। जहां से मुक्त होने पर खुशियां मनाई गईं। तभी से इस दिन त्यौहार मनाया जाता है।

✨️ (6). नरकासुर वध -

दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे एक और सबसे बड़ी कहानी है। कहा जाता है कि इसी दिन प्रभु श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। नरकासुर उस समय प्रागज्योतिषपुर का राजा था।
वह इतना क्रूर था कि उसने देवमाता अदिति की बालियां छीन ली। देवमाता अदिति श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा की संबंधी थीं। श्रीकृष्ण की मदद से सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया था। यह भी दीपावली मनाने का एक प्रमुख कारण बताया जाता है।

31/10/2024

1000₹ से 1500₹ ही होती है।
• वहां आपको यह लगता ही है कि इतना तो कमाया ही है थोड़ा एक्स्ट्रा लग जाएगा तो क्या ही चला जाएगा आप पैसा भेज देते हैं।
• आपको लगभग दो गुना नहीं तो डेढ़ गुना राशि आपके वॉलेट में वापस की जाती है।
• फिर आपसे दूसरा इन्वेस्टमेंट करने के लिए कहा जाता है जहां यह रकम 3000₹ से 5000₹ तक होती है। और फिर आपको रिटर्न करने से रोका जाता है और बाकी के 3 टास्क पूरे करने के लिए नियमावली बताई जाती है।
•फिर आप सोचते हैं कि पिछले 2 दिनों में इन्होंने सब पैसा प्रॉफिट सहित वापस किया है मैं बेवजह शक कर रहा हूं। आप बाकी के 3 टास्क में 5k फिर 30k और फिर 1L तक इन्वेस्ट करते हैं।
• इसकी रेंज वहां बैठे 5 से 6 लोग खुद डिसाइड करते हैं ज्यादा ठगी के शिकार लोग 10 हजार से 50हजार के बीच में हैं।
•जो लोग लाखों में इन्वेस्ट करते हैं और फिर उनके हाथ कुछ नहीं लगता तो फिर पुलिस के पास जाते हैं। उनकी खबरें आप अखबारों में पढ़ते हैं।
•पुलिस उन अकाउंट्स को ट्रेस करती है जिनसे आपने transaction किए होते हैं।
• ज्यादातर वो बहुत ही साधारण लोग होते हैं जिनके अकाउंट्स स्कैमस्टर्स कमीशन पर लेते हैं। वरना वो लोग उन्ही शिकार हुए लोगों में भी चिन्हित किए जाते हैं इसका पूरा एक अलग मॉडल है।
•असली अपराधी लगभग ना के बराबर पकड़े जाते हैं और एक वेबसाइट से 2 से 50 करोड़ तक का स्कैम करते हैं।
• फिर दूसरी साइट बना लेते हैं और यही पूरा पैटर्न रिपीट करते हैं।
ये सिर्फ एक पैटर्न है जो मैने साझा किया है ऐसे बीसों पैटर्न हैं और अलग अलग पैटर्न के लिए अलग अलग इन्वेस्टमेंट अमाउंट है। छोटी वेब साइट्स को छोटे इनफ्लूएंसर्स (10k -1L फॉलोवर्स) और बड़ी वेबसाइट और एप को बड़े इन्फ्लूएंसर्स(1L - Millons फॉलोवर्स) से प्रमोट कराया जाता है।
यहां तक कि बड़े मीडिया चैनल्स ने भी अपने पेज से प्रमोट किया है।
अब तक यह फ्रॉड 5000 करोड़ से भी ऊपर पहुंच चुका है।

आप लोग किसी भी सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर की विश्वसनीयता आकलन उसके फॉलोवर्स की संख्या से कतई ना करें।

30/10/2024

देश की आबादी 150 करोड़ होने को है...!
🙄
पटाखों के विस्फोट पर नहीं जनसंख्या_विस्फोट पर बैन लगाओ...!

खाटू श्याम बाबा की कहानी...दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी...अंत तक जरुर पढ़ेराजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू...
24/10/2024

खाटू श्याम बाबा की कहानी...दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी...अंत तक जरुर पढ़े
राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर है. वैसे तो खाटू श्याम बाबा के भक्तों की कोई गिनती नहीं लेकिन इनमें खासकर वैश्य, मारवाड़ी जैसे व्यवसायी वर्ग अधिक संख्या में है. श्याम बाबा कौन थे, उनके जन्म और जीवन चरित्र के बारे में जानते हैं इस लेख में.
खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है. महाभारत की एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था. इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ. वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है. खाटू श्याम बाबा जी कलियुग में श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं.
श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं. पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे. कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया. बर्बरीक का नाम श्याम बाबा (Shyam Baba) कैसे पड़ा, आइये इसकी कहानी जानते हैं.
बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी. बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वादस्वरुप भगवान ने शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए. इसी कारणवश बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है. भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे.
जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया. बर्बरीक अपनी माँ का आशीर्वाद लिए और उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े. इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई.
जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला. यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्री कृष्ण थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे. ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है ? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है. बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा. अतः अगर तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है.
ब्राह्मण ने बर्बरीक (Barbarik) से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए. बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया. उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा. असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था. बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है. बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा.
श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए. उन्होंने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे. बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे. श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे. कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे. इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे. अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे.
कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा. बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया. अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए. इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है. बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों.
भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए. बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है. श्री कृष्ण बर्बरीक ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया. श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें. इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया.
महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए. विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है. श्री कृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए. तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योकि यह सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ. विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी.
बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे. श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है. मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे. कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे
भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं. बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं. इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा सताया गया होता है वो भी अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का सच्चे मन से नाम ले और स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है. श्री खाटू श्याम बाबा (Shri Khatu Shyam Baba ji) की महिमा अपरम्पार है, सश्रद्धा विनती है कि बाबा श्याम इसी प्रकार अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखें.
जय श्रीकृष्ण, जय खाटूश्यामजी बाबा जी 🙏💕✨🤍🧡💛💚✨💕⚡☮️

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प्रभु श्री राम के बाल्यकाल का एक प्रेरक प्रसंग ❣️कैकेयी जी वर्षों पुराने स्मृति कोष में चली गईं, उन्हें वह दिन याद आ गया...
24/10/2024

प्रभु श्री राम के बाल्यकाल का एक प्रेरक प्रसंग ❣️

कैकेयी जी वर्षों पुराने स्मृति कोष में चली गईं, उन्हें वह दिन याद आ गया जब वे राम और भरत को बाण संधान की प्रारम्भिक शिक्षा दे रहीं थीं।

जब उन्होंने भरत से घने वृक्ष की डाल पर चुपचाप बैठे हुए एक कपोत पर लक्ष्य साधने के लिए कहा तो भरत ने भावुक होते हुए अपना धनुष नीचे रख दिया था और कैकेयी से कहा था- माँ किसी का जीवन लेने पर यदि मेरी दक्षता निर्भर है तो मुझे दक्ष नहीं होना। मैं इस निर्दोष पक्षी को अपना लक्ष्य नहीं बना सकता, उसने क्या बिगाड़ा है जो उसे मेरे लक्ष्य की प्रवीणता के लिए उसे अपने प्राण गँवाने पड़ें ?
कैकेयी बालक भरत के हृदय में चल रहे भावों को बहुत अच्छे से समझ रहीं थीं, ये बालक बिल्कुल ‘यथा गुण तथा नाम ही है।’ भावों से भरा हुआ, जिसके हृदय में प्रेम सदैव विद्यमान रहता है।

तब कैकेयी ने राम से कहा- पुत्र राम उस कपोत पर अपना लक्ष्य साधो। राम ने क्षण भी नहीं लगाया और उस कपोत को भेदकर रख दिया था।

राम के सधे हुए निशाने से प्रसन्न कैकेयी ने राम से पूछा था- पुत्र, तुमने उचित-अनुचित का विचार नहीं किया ? तुम्हें उस पक्षी पर तनिक भी दया ना आयी ?
राम ने भोलेपन से कहा था- माँ, मेरे लिए जीवन से अधिक महत्वपूर्ण मेरी माँ की आज्ञा है। उचित-अनुचित का विचार करना ये माँ का काम है। माँ का संकल्प, उसकी इच्छा, उसके आदेश को पूरा करना ही मेरा लक्ष्य है। तुम मुझे सिखा भी रही हो और दिखा भी रही हो, तुम हमारी माँ ही नहीं गुरु भी हो, यह किसी भी पुत्र का, शिष्य का कर्तव्य होता है कि वह अपने गुरु अपनी माँ के दिखाए और सिखाए गए मार्ग पर निर्विकार निर्भिकता के साथ बढ़े, अन्यथा गुरु का सिखाना और दिखाना सब व्यर्थ हो जाएगा।

कैकेयी ने आह्लादित होते हुए राम को अपने अंक में भर लिया था, और दोनों बच्चों को लेकर राम के द्वारा गिराए गए कपोत के पास पहुँच गईं।
भरत आश्चर्य से उस पक्षी को देख रहे थे, जिसे राम ने अपने पहले ही प्रयास में मार गिराया था। पक्षी के वक्ष में बाण घुसा होने के बाद भी उन्हें रक्त की एक भी बूँद दिखाई नहीं दे रही थी !

भरत ने उस पक्षी को हाथ में लेते हुए कहा- माँ ये क्या ? ये तो खिलौना है ? तुमने कितना सुंदर प्रतिरूप बनाया इस पक्षी का ! मुझे ये सच का जीवित पक्षी प्रतीत हुआ था। तभी मैं इसके प्रति दया के भाव से भर गया था, माया के वशीभूत होकर मैंने आपकी आज्ञा का उल्लंघन किया इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
तब कैकेयी ने बहुत ममता से कहा था- पुत्रो मैं तुम्हारी माँ हूँ.. मैं तुम्हें बाण का संधान सिखाना चाहती हूँ, वध का विधान नहीं क्योंकि लक्ष्य भेद में प्रवीण होते ही व्यक्ति स्वयं जान जाता है कि किसका वध करना आवश्यक है और कौन अवध है।

किंतु स्मरण रखो जो दिखाई देता है आवश्यक नहीं वह वास्तविकता हो, और ये भी आवश्यक नहीं की जो वास्तविकता हो वह तुम्हें दिखाई दे।

कुछ जीवन, संसार की मृत्यु के कारण होते हैं, तो कुछ मृत्यु संसार के लिए जीवनदायी होती हैं।
तब भरत ने बहुत नेह से पूछा था- माँ तुम्हारे इस कथन का अर्थ समझ नहीं आया, हमें कैसे पता चलेगा कि इस जीवन के पीछे मृत्यु है या इस मृत्यु में जीवन छिपा हुआ है ?

वृक्ष के नीचे शिला पर बैठी हुई कैकेयी ने एक अन्वेषक दृष्टि राम और भरत पर डाली, उन्होंने देखा की दोनों बच्चे धरती पर बैठे हुए बहुत धैर्य से उसके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। धैर्य विश्वासी चित्त का प्रमाण होता है और अधीरता अविश्वासी चित्त की चेतना। कैकेयी को आनंद मिला कि उसके बच्चे विश्वासी चित्त वाले हैं।
उन्होंने बताया था- असार में से सार को ढूँढना और सार में से असार को अलग कर देना ही संसार है। असार में सार देखना प्रेम दृष्टि है तो सार में से असार को अलग करना ज्ञान दृष्टि।

पुत्र भरत, तुम्हारा चित्त प्रेमी का चित्त है क्योंकि तुम्हें मृणमय भी चिन्मय दिखाई देता है और पुत्र राम तुम्हारा चित्त ज्ञानी का चित्त है क्योंकि तुम चिन्मय में छिपे मृणमय को स्पष्ट देख लेते हो।

राम ने उत्सुकता से पूछा- माँ प्रेम और ज्ञान में क्या अंतर होता है ?
वही अंतर होता है पुत्र, जो कली और पुष्प में होता है। अविकसित ज्ञान, प्रेम कहलाता है और पूर्ण विकसित प्रेम, ज्ञान कहलाता है।

हर सदगृहस्थ अपने जीवन में ज्ञान, वैराग्य, भक्ति और शक्ति चाहता है क्योंकि संतान माता पिता की प्रवृति और निवृत्ति का आधार होते हैं। इसलिए वे अपनी संतानों के नाम उनमें व्याप्त गुणों के आधार पर रखते हैं। तुम्हारी तीनों माताओं और महाराज दशरथ को इस बात की प्रसन्नता है कि हमारे सभी पुत्र यथा नाम तथा गुण हैं।

भरत, राम तुम सभी भाइयों में श्रेष्ठ है, ज्ञान स्वरूप है क्योंकि उसमें शक्ति, भक्ति, वैराग्य सभी के सुसंचालन की क्षमता है, इसलिए तुम सभी सदैव राम के मार्ग पर, उसके अनुसार उसे धारण करते हुए चलना। क्योंकि वह ज्ञान ही होता है जो हमारी प्रवृत्तियों का सदुपयोग करते हुए हमारी निवृत्ति का हेतु होता है।
जय रघुनंदन “ जय जय श्री राम ”

🔸प्रभु भाव के भूखें हैं🔸🔹बहुत सुंदर प्रसंग🔹एक बार की बात है एक संत जगन्नाथ पुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे। उनके पास बड़े स...
22/10/2024

🔸प्रभु भाव के भूखें हैं🔸

🔹बहुत सुंदर प्रसंग🔹

एक बार की बात है एक संत जगन्नाथ पुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे। उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी थे। वे संत उन ठाकुर जी को सदैव साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड़ किया करते थे।

ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपने बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरि चर्चा में मग्न हो गए।
जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाड़ी में ही रह गया उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाड़ी में रह गए। संत सत्संग के दिव्य भावों में ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए।

बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंचे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा कि, हाय हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं।
संत बहुत व्याकुल हो गए, बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं। उन्होंने ठाकुर जी के वियोग में अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया। संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकार कर रोने लगे।

तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मैं आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ परंतु उन संत ने कहा की हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक लाड़-दुलार करते आये हैं।
तभी एक दूसरे संत ने पूछा - आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाड़ी में ही छूट गए होंगे।

एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए है। गाड़ी से किसी ने निकाल लिए होंगे और फिर गाड़ी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी।

इस पर वह संत बोले- मैं स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ वहाँ जाकर। सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे।

स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के गुम होने की शिकायत करने लगे। उन्होंने पूछा की कौन सी गाड़ी में आप बैठ कर आये थे?
संतो ने गाड़ी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा - महाराज ! कई घंटे हो गए, यही वाली गाड़ी ही तो यहां खड़ी हो गई है।
और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है। न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके हैं।
परंतु कोई खराबी दिखती है नहीं।

महात्मा जी बोले। - अभी आगे बढ़ेगी। मेरे बिना मेरे प्यारे कहीं अन्यत्र कैसे चले जायेंगे ?

वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वहीं रखे हुए थे जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था। अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे गाड़ी आगे बढ़ने लग गयी।
ट्रेन का चालाक, स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर सभी आश्चर्य में पड़ गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गदगद हो गए।

हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।।

🔸भक्तों भगवान जी भी स्वयं कहते है ना...

भक्त जहाँ मम पग धरे, तहाँ धरूँ में हाथ।
सदा संग लाग्यो फिरूँ, कबहू न छोडूं साथ।।

!! राधे राधे - जय श्री कृष्ण !!

🔸प्रभु भाव के भूखे हैं🔸एक आलसी लेकिन भोलाभाला युवक था "आनंद"। दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोए रहता। घर व...
21/10/2024

🔸प्रभु भाव के भूखे हैं🔸

एक आलसी लेकिन भोलाभाला युवक था "आनंद"। दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोए रहता। घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो।

वह घर से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं। उसने मन में सोचा यह बढिया है कोई काम धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है।
गुरुजी के पास जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं, गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं?
लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं गुरुजी : कोई काम नहीं करना है बस पूजा करनी होगी।

आनंद : ठीक है वह तो मैं कर लूंगा।

अब आनंद महाराज आश्रम में रहने लगे। ना कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु मक्ति में भजन गाते रहो। महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी। उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई तैयारी नहीं। उसने गुरुजी से पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या गुरुजी ने कहा नहीं आज तो एकादशी है
तुम्हारा भी उपवास है। उसने कहा नहीं अगर हमने उपवास कर लिया तो कल का दिन ही नहीं देख पाएंगे हम तो .... हम नहीं कर सकते उपवास... हमें तो भूख लगती है आपने पहले क्यों नहीं बताया?

गुरुजी ने कहा ठीक है तुम ना करो उपवास, पर खाना भी तुम्हारे लिए कोई और नहीं बनाएगा तुम खुद बना लो। मरता क्या न करता गया रसोई में, गुरुजी फिर आए ''देखो अगर तुम खाना बना लो तो राम जी को भोग जरूर लगा लेना और नदी के उस पार जाकर बना लो रसोई।
ठीक है, लकड़ी, आटा, तेल, घी, सब्जी लेकर आंनद महाराज चले गए, जैसा तैसा खाना भी बनाया, खाने लगा तो याद आया गुरुजी ने कहा था कि राम जी को भोग लगाना है।

वह भजन गाने लगा...आओ मेरे राम जी , भोग लगाओ जी प्रभु राम आइए, श्रीराम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए..... कोई ना आया, तो बैचैन हो गया कि यहां तो भूख लग रही है और राम जी आ ही नहीं रहे।

भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु साक्षात तो आएंगे नहीं । पर गुरुजी की बात मानना जरूरी है। फिर उसने कहा , देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे हैं। मैंने रूखा सूखा बनाया है और आपको तर माल खाने की आदत है इसलिए नहीं आ रहे हैं.... तो सुनो प्रभु ... आज वहां भी कुछ नहीं बना है, सबकी एकादशी है, खाना हो तो यह भोग ही खा लो...
श्रीराम अपने भक्त की सरलता पर बड़े मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए। भक्त असमंजस में। गुरुजी ने तो कहा था कि राम जी आएंगे पर यहां तो माता सीता भी आईं है और मैंने तो भोजन बस दो लोगों का बनाया हैं। चलो कोई बात नहीं आज इन्हें ही खिला देते हैं।

बोला प्रभु मैं भूखा रह गया लेकिन मुझे आप दोनों को देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है लेकिन अगली एकादशी पर ऐसा न करना पहले बता देना कि कितने जन आ रहे हो, और हां थोड़ा जल्दी आ जाना। राम जी उसकी बात पर बड़े मुदित हुए। प्रसाद ग्रहण कर के चले गए।
अगली एकादशी तक यह भोला मानस सब भूल गया। उसे लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे। फिर एकादशी आई। गुरुजी से कहा, मैं चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां दो लोग आते हैं। गुरुजी मुस्कुराए, भूख के मारे बावला है। ठीक है ले जा और अनाज ले जा।

अबकी बार उसने तीन लोगों का खाना बनाया। फिर गुहार लगाई प्रभु राम आइए, सीताराम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए...
प्रभु की महिमा भी निराली है। भक्त के साथ कौतुक करने में उन्हें भी बड़ा मजा आता है। इस बार वे अपने भाई लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न और हनुमान जी को लेकर आ गए।
भक्त को चक्कर आ गए। यह क्या हुआ। एक का भोजन बनाया तो दो आए आज दो का खाना ज्यादा बनाया तो पूरा खानदान आ गया। लगता है आज भी भूखा ही रहना पड़ेगा। सबको भोजन लगाया और बैठे-बैठे देखता रहा।

अनजाने ही उसकी भी एकादशी हो गई। फिर अगली एकादशी आने से पहले गुरुजी से कहा, गुरुजी, ये आपके प्रभु राम जी, अकेले क्यों नहीं आते हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं?

इस बार अनाज ज्यादा देना। गुरुजी को लगा, कहीं यह अनाज बेचता तो नहीं है देखना पड़ेगा जाकर। भंडार में कहा इसे जितना अनाज चाहिए दे दो और छुपकर उसे देखने चल पड़े।
इस बार आनंद ने सोचा, खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने लोग आ जाएं। पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं। फिर टेर लगाई प्रभु राम आइए , श्री राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए... सारा राम दरबार मौजूद...

इस बार तो हनुमान जी भी साथ आए लेकिन यह क्या प्रसाद तो तैयार ही नहीं है। भक्त ठहरा भोला भाला, बोला प्रभु इस बार मैंने खाना नहीं बनाया, प्रभु ने पूछा क्यों?

बोला, मुझे मिलेगा तो है नहीं फिर क्या फायदा बनाने का, आप ही बना लो और खुद ही खा लो...
राम जी मुस्कुराए, सीता माता भी गदगद हो गई उसके मासूम जवाब से... लक्ष्मण जी बोले क्या करें प्रभु... प्रभु बोले भक्त की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी। चलो लग जाओ काम से। लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं। भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा।

माता सीता रसोई बना रही थी तो कई ऋषि-मुनि, यक्ष, गंधर्व प्रसाद लेने आने लगे। इधर गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है। पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं बनाया? बोला, अच्छा किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ.....
गुरुजी बोले, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा भक्त ने माथा पकड़ लिया, एक तो इतनी मेहनत करवाते हैं प्रभु, भूखा भी रखते हैं और ऊपर से गुरुजी को दिख भी नहीं रहे यह और बड़ी मुसीबत है। प्रभु से कहा, आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं?

प्रभु बोले : मैं उन्हें नहीं दिख सकता।
बोला : क्यों वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप?

प्रभु बोले , माना कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। इसलिए उनको नहीं दिख सकता....
आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे, गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सबकुछ पाया पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं। प्रभु प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए। इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई , भक्ति का प्रथम मार्ग सरलता है !

संकट मोचन कृपा निधान जय हनुमान जय जय हनुमान जय सियाराम जय जय सियाराम।

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