28/03/2025
“सती थारो तेज विकरालो, सूरज ने भी लाज आयो,
जग थर थर कांप्यो जद, जोहर रो ज्वार बलायो।”
(सती का तेज ऐसा था कि सूरज भी लजा गया, और जब उन्होंने जौहर किया तो पूरा जग कांप उठा।
साथियों,
आज हम उस भूमि की बात कर रहे हैं जो केवल रेत से नहीं, बलिदान से बनी है।
पोकरण की छतरियाँ — ये सिर्फ पत्थरों की छायाएँ नहीं हैं, ये हमारे पूर्वजों की आत्मा, हमारे इतिहास की साँसे और हमारे संस्कारों की दीवारें हैं।
जहाँ एक ओर इन छतरियों के नीचे वीरों की अंतिम यात्रा की गाथाएँ गूंजती थीं, वहीं दूसरी ओर आज वहाँ अशुद्धता फैलती जा रही है।
जहाँ पहले श्रद्धा से सिर झुकते थे, अब वहाँ शराब की बोतलें बिखरी हैं, गंदगी फैली है, और शर्मनाक हरकतें हो रही हैं।
क्या ये वही राजस्थान है जहाँ स्त्री को देवी माना जाता है?
जहाँ सती और शक्तिरूपा नारी ने अपने प्राणों की आहुति देकर संस्कारों की रक्षा की?
छतरियाँ केवल वीरों की नहीं थीं, वे उन नारियों की भी थीं जिन्होंने अपने पति की चिता में कूदकर अमरता पाई।
क्या हम इतनी नीचता में गिर चुके हैं कि उन्हीं जगहों पर चप्पल पहनकर, अपवित्रता फैलाकर, उनका अपमान कर रहे हैं?
जब तुम इन छतरियों के पास से बेपरवाही से गुजरते हो,
तब तुम सिर्फ एक जगह नहीं लांघते —
तुम अपने इतिहास, अपने कुल, और अपने पूर्वजों की आत्मा को कुचलते हो।
ये छतरियाँ मंदिर हैं, देवस्थल हैं।
इनका अपमान करना मतलब उस विरासत को मिटाना है जिसकी वजह से आज दुनिया हमें "वीरों की धरती" कहती है।
आज वक्त है उठ खड़े होने का।
सम्भलो, जागो —
इन धरोहरों को फिर से पवित्र बनाओ।
उनकी सफाई करो, सर झुकाओ,
और आने वाली पीढ़ी को बताओ कि —
"हम पत्थर नहीं, पूर्वजों की आत्मा की रक्षा कर रहे हैं।"
अंत में बस इतना ही कहूंगा —
जब भी इन छतरियों के नीचे आओ,
चप्पल नहीं श्रद्धा पहनो,
और कान खोलकर सुनो…
वो वीर और सती आज भी फुसफुसाकर कह रहे हैं —
"मत भूलो हमें… हम यहीं हैं, तुम्हारे पीछे खड़े हैं…"
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