
25/04/2024
कुछ देर बैठ गया मैं भी,, रईसों की महफ़िल में,,
ऊंचे-ऊंचे ख्वाबों ने,,मेरा चाल-चलन बदल दिया,,
अब डरता हूं मैं,,लोग गरीब ना समझ ले मुझको,,
गरीबों की दोस्ती को मैंने,, अमीरों में बदल दिया,,
जब लगने लगा,, मुझे,,मेरा लिबास और पोशीदा,,
मेरे फटे लिबास को,,शीशे के फरेब ने बदल दिया,,
अब नींद ने भी आना छोड़ा ,, मेरे कच्चे मकान पर,,
जब आंख लगी तो,,मलबे को महल में बदल दिया,,