
10/08/2025
रात का सन्नाटा था, लेकिन बीच-बीच में एक कमरे से रुक-रुक कर चीखें सुनाई दे रही थीं। माया की नींद खुल गई। उसने ध्यान से सुना—"छोड़ो मुझे… मत मारो…" यह उसकी सास कमला देवी की आवाज़ थी। माया का दिल धक से रह गया। उसने तुरंत अपने पति अजय को झकझोरा, "अजय! उठो… मम्मी की आवाज़ आ रही है, पापा उन्हें मार रहे हैं!" अजय ने करवट बदलते हुए तकिया सिर पर दबाया और बोला, "सोने दे यार… ये उनका आपसी मामला है… तू क्यों बीच में पड़ रही है?" माया की आंखें भर आईं। "तुम्हारी मां की चीखें तुम्हारे लिए ‘आपसी मामला’ हैं?" अजय चिढ़कर बोला, "तू नाटक मत कर।" माया ने गुस्से में कहा, "तो सुन लो अजय… आज एक बहू वो करेगी, जो एक बेटा नहीं कर सका।"
वो नंगे पांव भागती हुई कमरे की ओर गई। दरवाज़ा बंद था, लेकिन अंदर से मारपीट और दबे हुए रोने की आवाजें साफ आ रही थीं। उसने पूरी ताकत से धक्का मारा और दरवाज़ा खुलते ही जो देखा, उससे उसकी सांसें थम गईं—अजय के पिता, सुरेश प्रसाद, कमला देवी की गर्दन दबाए हुए थे। माया दौड़कर उनके बीच में आ गई, सास को अपनी ओर खींचा और दुपट्टे से उनके आंसू पोंछे। सुरेश प्रसाद गुर्राए, "बहू हो, बहू बनकर रहो! ये मेरे और मेरी औरत के बीच का मामला है!" माया की आवाज़ में अब डर नहीं था, आग थी—"औरत? औरत नहीं, वो आपकी पत्नी हैं… इंसान हैं… कोई खिलौना या पंचिंग बैग नहीं!"
उस रात माया ने कमला देवी को अपने कमरे में लाकर बैठाया। उनके नील पड़े गालों पर दवा लगाई और कहा, "मम्मी… या तो हम चुप रहकर रोज़ मरेंगे… या एक बार बोलकर ज़िंदा रहेंगे।" अगली सुबह माया थाने में शिकायत दर्ज करवाने गई। मोहल्ले के लोग कानाफूसी कर रहे थे, "बहू ने अपने ही ससुर को जेल भिजवा दिया…" घर लौटने पर अजय गुस्से से लाल था, "तूने मेरे बाप को जेल भिजवा दिया!" माया ने शांत लेकिन ठोस आवाज़ में कहा, "क्योंकि तुम्हारे बाप ने, किसी की मां को हर रोज़ मारा। और बेटा… मैं बहू हूं, पर अबला नहीं। अगर मैं चुप रहती, तो कल मेरी बारी होती।"
कुछ दिन बाद कोर्ट में गवाही चल रही थी। कमला देवी की आवाज़ कांप रही थी—"मैं सालों से सहती आई हूं… क्योंकि मुझे सिखाया गया था कि चुप रहो… पति ही भगवान होता है।" पीछे माया खड़ी थी, आंखों में आंसू नहीं, बल्कि आग थी। अचानक अजय ने माया को कोर्ट से बाहर खींचा और गरजते हुए बोला, "क्या साबित करना चाहती हो तुम? मेरे बाप को जेल भिजवाया है… अब क्या चाहती हो?" माया चुप रही। अजय फिर चिल्लाया, "ये नौटंकी बंद करो… वरना मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा!" वहां खड़ी भीड़ सन्न रह गई। कमला देवी के हाथ कांप उठे।
माया ने धीरे लेकिन साफ आवाज़ में कहा, "तलाक? दे दो। लेकिन सुन लो अजय—तुम्हारा रिश्ता मेरे लिए अब सिर्फ एक बंधन नहीं, एक जंजीर बन चुका है। अगर एक बेटी, एक बहू, एक औरत की कीमत सिर्फ तुम्हारी 'इज़्ज़त' से मापी जाती है, तो मैं वो रिश्ता नहीं चाहती। मैं वो मां नहीं बनना चाहती जो अपनी बेटी से कहे—‘बर्दाश्त कर ले बेटा, सब सहना पड़ता है।’ मैं वो मां बनना चाहती हूं जो उसे सिखाए—‘अगर कोई तुझे मारे… तो पलटकर कानून का दरवाज़ा खटखटाना।’ आज मैंने एक औरत को इंसाफ दिलाया है… और अगर इसके लिए मुझे रिश्ता तोड़ना पड़े—तो टूट जाए!"
अजय स्तब्ध था। कमला देवी की आंखों से आंसू बह निकले… लेकिन इस बार ये डर के नहीं, गर्व के आंसू थे।
मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि अगर थोड़ा सा बर्दाश्त करने से रिश्ता चलता है तो जरूर चलाएं… लेकिन अगर आपके ऊपर अत्याचार हो रहा है, तो आवाज़ अवश्य उठाएं, क्योंकि चुप्पी ही अत्याचारी की सबसे बड़ी ताकत है।