Dehati masti

Dehati masti my name neelu Pandey and I am a gamer & streamer I am live for 2 hours on day

रात का सन्नाटा था, लेकिन बीच-बीच में एक कमरे से रुक-रुक कर चीखें सुनाई दे रही थीं। माया की नींद खुल गई। उसने ध्यान से सु...
10/08/2025

रात का सन्नाटा था, लेकिन बीच-बीच में एक कमरे से रुक-रुक कर चीखें सुनाई दे रही थीं। माया की नींद खुल गई। उसने ध्यान से सुना—"छोड़ो मुझे… मत मारो…" यह उसकी सास कमला देवी की आवाज़ थी। माया का दिल धक से रह गया। उसने तुरंत अपने पति अजय को झकझोरा, "अजय! उठो… मम्मी की आवाज़ आ रही है, पापा उन्हें मार रहे हैं!" अजय ने करवट बदलते हुए तकिया सिर पर दबाया और बोला, "सोने दे यार… ये उनका आपसी मामला है… तू क्यों बीच में पड़ रही है?" माया की आंखें भर आईं। "तुम्हारी मां की चीखें तुम्हारे लिए ‘आपसी मामला’ हैं?" अजय चिढ़कर बोला, "तू नाटक मत कर।" माया ने गुस्से में कहा, "तो सुन लो अजय… आज एक बहू वो करेगी, जो एक बेटा नहीं कर सका।"

वो नंगे पांव भागती हुई कमरे की ओर गई। दरवाज़ा बंद था, लेकिन अंदर से मारपीट और दबे हुए रोने की आवाजें साफ आ रही थीं। उसने पूरी ताकत से धक्का मारा और दरवाज़ा खुलते ही जो देखा, उससे उसकी सांसें थम गईं—अजय के पिता, सुरेश प्रसाद, कमला देवी की गर्दन दबाए हुए थे। माया दौड़कर उनके बीच में आ गई, सास को अपनी ओर खींचा और दुपट्टे से उनके आंसू पोंछे। सुरेश प्रसाद गुर्राए, "बहू हो, बहू बनकर रहो! ये मेरे और मेरी औरत के बीच का मामला है!" माया की आवाज़ में अब डर नहीं था, आग थी—"औरत? औरत नहीं, वो आपकी पत्नी हैं… इंसान हैं… कोई खिलौना या पंचिंग बैग नहीं!"

उस रात माया ने कमला देवी को अपने कमरे में लाकर बैठाया। उनके नील पड़े गालों पर दवा लगाई और कहा, "मम्मी… या तो हम चुप रहकर रोज़ मरेंगे… या एक बार बोलकर ज़िंदा रहेंगे।" अगली सुबह माया थाने में शिकायत दर्ज करवाने गई। मोहल्ले के लोग कानाफूसी कर रहे थे, "बहू ने अपने ही ससुर को जेल भिजवा दिया…" घर लौटने पर अजय गुस्से से लाल था, "तूने मेरे बाप को जेल भिजवा दिया!" माया ने शांत लेकिन ठोस आवाज़ में कहा, "क्योंकि तुम्हारे बाप ने, किसी की मां को हर रोज़ मारा। और बेटा… मैं बहू हूं, पर अबला नहीं। अगर मैं चुप रहती, तो कल मेरी बारी होती।"

कुछ दिन बाद कोर्ट में गवाही चल रही थी। कमला देवी की आवाज़ कांप रही थी—"मैं सालों से सहती आई हूं… क्योंकि मुझे सिखाया गया था कि चुप रहो… पति ही भगवान होता है।" पीछे माया खड़ी थी, आंखों में आंसू नहीं, बल्कि आग थी। अचानक अजय ने माया को कोर्ट से बाहर खींचा और गरजते हुए बोला, "क्या साबित करना चाहती हो तुम? मेरे बाप को जेल भिजवाया है… अब क्या चाहती हो?" माया चुप रही। अजय फिर चिल्लाया, "ये नौटंकी बंद करो… वरना मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा!" वहां खड़ी भीड़ सन्न रह गई। कमला देवी के हाथ कांप उठे।

माया ने धीरे लेकिन साफ आवाज़ में कहा, "तलाक? दे दो। लेकिन सुन लो अजय—तुम्हारा रिश्ता मेरे लिए अब सिर्फ एक बंधन नहीं, एक जंजीर बन चुका है। अगर एक बेटी, एक बहू, एक औरत की कीमत सिर्फ तुम्हारी 'इज़्ज़त' से मापी जाती है, तो मैं वो रिश्ता नहीं चाहती। मैं वो मां नहीं बनना चाहती जो अपनी बेटी से कहे—‘बर्दाश्त कर ले बेटा, सब सहना पड़ता है।’ मैं वो मां बनना चाहती हूं जो उसे सिखाए—‘अगर कोई तुझे मारे… तो पलटकर कानून का दरवाज़ा खटखटाना।’ आज मैंने एक औरत को इंसाफ दिलाया है… और अगर इसके लिए मुझे रिश्ता तोड़ना पड़े—तो टूट जाए!"

अजय स्तब्ध था। कमला देवी की आंखों से आंसू बह निकले… लेकिन इस बार ये डर के नहीं, गर्व के आंसू थे।

मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि अगर थोड़ा सा बर्दाश्त करने से रिश्ता चलता है तो जरूर चलाएं… लेकिन अगर आपके ऊपर अत्याचार हो रहा है, तो आवाज़ अवश्य उठाएं, क्योंकि चुप्पी ही अत्याचारी की सबसे बड़ी ताकत है।

राजेन्द्र प्रसाद जी के सबसे छोटे बेटे अजय का विवाह पूरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बना हुआ था।राजेन्द्र जी और उनकी पत्नी ...
10/08/2025

राजेन्द्र प्रसाद जी के सबसे छोटे बेटे अजय का विवाह पूरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बना हुआ था।
राजेन्द्र जी और उनकी पत्नी कमला देवी की चार संतानें थीं — तीन बेटियाँ और सबसे छोटा बेटा अजय।

करीब तीस साल पहले, जब राजेन्द्र जी इस शहर में आए थे, तो उन्होंने सड़क किनारे साप्ताहिक बाज़ार में तैयार कपड़े बेचने का छोटा-सा काम शुरू किया था।
एक कमरे का घर — जिसमें रसोई, बिस्तर और दुकान का सारा सामान भी समा जाता था।
बरसों तक की कठिनाई, सर्दियों में बिना गर्म कपड़ों के दिन, और गर्मियों में पंखे के नीचे भी पसीने से तर-बतर रातें — दोनों ने सब सहा, सिर्फ़ अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए।

मेहनत रंग लाई।
आज शहर के मुख्य चौराहे पर उनका शानदार रेडीमेड कपड़ों और साड़ियों का शोरूम था।
अपना बड़ा घर, गाड़ी, नौकर — सब कुछ था।
फिर भी राजेन्द्र जी और कमला देवी अपने ऊपर कभी एक रुपया भी फिजूल खर्च नहीं करते थे।
बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और अच्छे संस्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी।

तीनों बेटियों की शादी अच्छे और संस्कारी घरों में करवाई, और अब अजय का विवाह भी भव्य तरीके से संपन्न हो चुका था।

अजय के लिए उन्होंने बरसों पहले ही अपने पुराने मित्र और सरकारी स्कूल में चपरासी रहे रामपाल जी की बेटी संध्या को चुन लिया था।
अजय भी संध्या को जीवनसाथी के रूप में पाकर बेहद खुश था।

विवाह की हलचल और मेहमानों की विदाई के बाद आज पहली बार पूरा परिवार एक साथ खाने बैठा था।
तीनों बेटियाँ कुछ दिन मायके रुकने वाली थीं।
संध्या, अपनी सबसे छोटी ननद के साथ मिलकर सबको खाना परोस रही थी।

भोजन के बाद राजेन्द्र जी ने इलायची का दाना चबाते हुए कहा,
“अजय, संध्या... अब तुम दोनों को हफ़्ते-दस दिन कहीं घूम आना चाहिए।
विवाह के बाद जीवन में एक नया जन्म होता है।
ऐसे में किसी ठंडे, हरे-भरे इलाके में कुछ दिन बिताओ, ताकि दाम्पत्य जीवन में हमेशा ठंडक और हरियाली बनी रहे।”

कमला देवी ने भी मुस्कुराकर बेटे से कहा,
“तुम्हारे पिताजी सही कह रहे हैं। घर-दुकान की चिंता छोड़ो और बाहर घूम आओ।”

तभी संध्या ने नज़रें झुकाते हुए धीमे से कहा,
“माँ, पिताजी, अगर इजाज़त हो तो मैं कुछ कहूँ?”

दोनों ने एक साथ कहा, “अरे, इसमें इजाज़त कैसी, बोलो बेटा।”

संध्या की आवाज़ में हल्की-सी नमी थी,
“माँ, पिताजी... बचपन से सुनती आई हूँ कि आपने अपनी एक साड़ी या गमछा लेने से पहले भी दस बार सोचा, लेकिन बच्चों के लिए कभी कोई कमी नहीं रखी।
शादी के बाद आप दोनों कभी कहीं बाहर घूमने नहीं गए... फिर बताइए, आपको ये ठंडा मिजाज़ और हरा-भरा रिश्ता कैसे मिल गया?

हमारे सामने तो पूरा जीवन पड़ा है घूमने का,
लेकिन अब बारी आपकी है।

हम दोनों ने आपके लिए एक महीने का यूरोप टूर बुक किया है — वीज़ा, टिकट सब तैयार है।
कल मैं आपको मॉल लेकर जाऊँगी, ताकि यूरोप के मौसम के हिसाब से गर्म कपड़े और बाकी ज़रूरी सामान ले लिया जाए।
अगले रविवार को आपको निकलना है।
टूर कंपनी वाले आपका पूरा ख़याल रखेंगे।”

अजय हँसते हुए बोला,
“और हाँ माँ, मेरे लिए लंदन से एक हैट ज़रूर लाना।”
यह सुनकर अजय और संध्या दोनों खिलखिला पड़े।

राजेन्द्र जी की आँखों में विश्वास और गर्व की चमक थी —
आज के समय में जहाँ नई-नवेली बहुएँ अपने घूमने-फिरने के सपने देखती हैं,
वहाँ उनकी बहू ने अपने सास-ससुर के लिए ‘हनीमून’ जैसा सफ़र सोच डाला था।

“वाह भाभी!” तीनों बहनें बोल पड़ीं,
“आपने तो मम्मी-पापा के लिए सबसे अनमोल तोहफ़ा दे दिया।”

तीनों बहनें अपनी भाभी और भाई से लिपट गईं,
और घर का माहौल हँसी और ख़ुशी से भर गया।

विधवा औरत और जवान लड़का बरसात की बूंदें छत से टपक रही थीं। सीमा, 33 साल की, जर्जर घर के कोने में बैठी थी। दो छोटे बच्चे ...
09/08/2025

विधवा औरत और जवान लड़का
बरसात की बूंदें छत से टपक रही थीं। सीमा, 33 साल की, जर्जर घर के कोने में बैठी थी। दो छोटे बच्चे उसके पास सिमटे हुए थे। दीवार पर पति अजय की तस्वीर टंगी थी — जो ट्रक हादसे में चला गया था।

पति के जाने के बाद उसने रिश्तेदारों और समाज से सहारा मांगा, लेकिन हर दरवाज़ा बंद मिला। गुज़ारे के लिए वह गांव के स्कूल में सफाई का काम करने लगी।

वहीं उसकी मुलाकात अर्जुन से हुई — 25 साल का, बेरोज़गार लेकिन बेहद संवेदनशील युवक।
वो रोज़ उससे बातें करता, हंसाता, और बिना कहे उसकी तकलीफ समझ लेता।

एक ठंडी, अकेली रात… सीमा टूटकर रो पड़ी।
अर्जुन चुपचाप उसके पास आया, उसका कांपता हाथ थाम लिया।
उस रात एक रिश्ता बन गया — जिसमें सिर्फ़ जिस्म नहीं, बल्कि अपनापन और सहारा भी था।

कुछ महीनों तक यह रिश्ता छुपा रहा, लेकिन गांव में राज़ ज़्यादा दिन नहीं छुपते।
किसी ने दोनों को साथ देख लिया और पंचायत बुलाई गई।

पंचायत में एक बुज़ुर्ग ने कहा —
"विधवा और जवान लड़का? ये रिश्ता समाज के खिलाफ है!"

सीमा ने पहली बार सिर उठाकर जवाब दिया —
"जब मेरे बच्चे भूखे थे, कोई सामने नहीं आया… अब जब किसी ने मेरा आंसू पोंछा, तो आपको मेरी खुशी क्यों चुभ रही है?"

अर्जुन भी खड़ा हुआ —
"मैंने सीमा को सिर्फ़ एक औरत नहीं, इंसान समझा है। अगर ये गुनाह है, तो मैं हर जन्म यही गुनाह करूंगा।"

गांव दो हिस्सों में बंट गया।
कुछ दिन बाद सीमा ने गांव छोड़ दिया।

आज वो शहर में एक स्कूल में काम करती है, अर्जुन उसके साथ है, और बच्चों को पिता का नाम मिला है।
जब कोई पूछता है —
"क्या तुम विधवा हो?"
सीमा मुस्कुराकर कहती है —
"नहीं… मैं बस एक इंसान हूं, जिसे प्यार मिला तो फिर से जी उठी।"

रीमा की शादी को पंद्रह दिन ही हुए थे। हनीमून से लौटने के बाद वह पहली बार अपने ससुराल गाँव जाने की तैयारी कर रही थी। अक्ष...
08/08/2025

रीमा की शादी को पंद्रह दिन ही हुए थे। हनीमून से लौटने के बाद वह पहली बार अपने ससुराल गाँव जाने की तैयारी कर रही थी। अक्षय, उसका पति, ऑफिस की छुट्टी न मिलने के कारण उसे अकेले भेज रहा था। ट्रेन की खिड़की से बहते खेतों को देखती रीमा मन-ही-मन सोच रही थी—
"गाँव में सब अपना-अपना मानते होंगे… वहाँ तो सास, ननद के साथ अच्छा समय बीतेगा।"

गाँव पहुँचते ही, ढोलक की थाप, फूलों की माला और सास गीता की मुस्कान ने उसका स्वागत किया। पर यह सिर्फ़ शुरुआत थी… आगे जो होने वाला था, उसने पूरे गाँव को हिला दिया।

दूसरा दिन — मुँह दिखाई के लिए औरतें जुटीं। हलवे-पूरी, पकवान और मिठाइयों का ढेर… रीमा ने भरपेट खाया, लेकिन दोपहर तक उसके माथे पर पसीना और आँखों में चक्कर था।
सास बोलीं— "चल, डॉक्टर राहुल के पास चलते हैं, अच्छा आदमी है, पूरे गाँव का इलाज करता है।
छोटा-सा कमरा… दीवारों पर पुराने कैलेंडर, एक कोने में दवाई की अलमारी और टेबल पर ठंडी-सी स्टेथोस्कोप पड़ी थी।
डॉक्टर राहुल ने मुस्कराकर कहा— "आइए, बैठिए भाभीजी…"
जाँच के बहाने वह धीरे-धीरे पास आने लगा। उसकी उंगलियाँ रीमा के हाथ से सरककर कमर की तरफ़ पहुँचीं।

रीमा की आँखें चौड़ी हो गईं। उसने कुर्सी से उठकर जोरदार तमाचा मारा— “गंदे आदमी!”
राहुल की मुस्कान गायब हो गई। वह गुर्राया—
"तुम नहीं जानतीं मेरे पास क्या है… इस गाँव की कई औरतों के वीडियो और फोटो हैं। अगर मुँह खोला, तो तुम्हारी इज्जत भी इनकी तरह नीलाम कर दूँगा।"

रीमा का दिल तेजी से धड़क रहा था, लेकिन उसकी आँखों में डर नहीं, गुस्सा था।

रात को उसने अक्षय को सब बताया। तभी प्रियंका—ननद—ने रोते हुए कहा,
"भाभी… मेरे साथ भी वही किया था उसने। पर मैं डर गई थी…"

अक्षय का चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो गया।
"अब वो बचेगा नहीं।"

अगली सुबह, रीमा फिर डॉक्टर के पास गई। इस बार उसके चेहरे पर घबराहट नहीं, बल्कि नकली मुस्कान थी।
"डॉक्टर साहब, कल की बात किसी को मत बताइए… मैं माफ़ करने आई हूँ।"

राहुल को लगा कि शिकार जाल में लौट आया है। वह आराम से कुर्सी पर बैठ गया, मोबाइल हाथ में लिए। रीमा ने बातें करते-करते पानी का गिलास पकड़ाया। जैसे ही उसने गिलास उठाया, रीमा ने उसकी मेज पर रखा फोन बिजली की तरह उठा लिया और बाहर भाग पड़ी।

पीछे से राहुल चिल्लाया— "ओए! फोन दे!"
गली के मोड़ पर अक्षय खड़ा था। उसने फोन पकड़ा और सीधे थाने की ओर दौड़ पड़ा।

पुलिस ने फोन चेक किया— उसमें गाँव की कई महिलाओं के अश्लील वीडियो और फोटो थे। अगले ही घंटे, राहुल को हथकड़ी पहनाई गई।
गाँव की भीड़ थाने के बाहर इकट्ठी थी। लोग पत्थर और जूते फेंक रहे थे।

प्रियंका ने भीड़ में खड़े होकर कहा—
"आज मेरी भाभी ने सिर्फ़ मेरा नहीं, पूरे गाँव का बदला लिया है।"

सास गीता की आँखों में गर्व के आँसू थे—
"रीमा, तूने अपनी बहादुरी से पूरे गाँव की इज्जत बचाई है।"

डॉक्टर राहुल को अदालत ने लंबी सजा सुनाई।
और रीमा का नाम गाँव में हमेशा के लिए जुड़ गया—
"वो बहू, जिसने अंधेरे को उजाले में बदल दिया।

08/08/2025

ऐसी औरत मिले तो मर्द को भाग कर भी शादी कर लेनी चाहिए #चाणक्य

07/08/2025

ऐसी औरते बदल देती हैं मर्दों की किस्मत

07/08/2025

अगर पति पत्नी ऐसा नहीं करते तो समझ लेना प्यार है ही नहीं #चाणक्य

पति पत्नी रवि और नेहा की शादी को आज दस साल हो गए थे। शादी के शुरूआती सालों में सब कुछ नया था — बातें, लड़ाइयाँ, प्यार, श...
07/08/2025

पति पत्नी
रवि और नेहा की शादी को आज दस साल हो गए थे। शादी के शुरूआती सालों में सब कुछ नया था — बातें, लड़ाइयाँ, प्यार, शिकायतें… और फिर धीरे-धीरे सब आदत बन गया।

रवि सुबह उठकर हमेशा अख़बार पढ़ते हुए चाय पीता था। नेहा रोज़ उसके लिए बिना पूछे चाय बनाती, और रवि बिना कुछ बोले पी जाता। मगर नेहा को एक बात हमेशा खटकती — "रवि कभी नहीं बताता कि चाय कैसी बनी है। मीठी है या फीकी।"

एक दिन नेहा ने चाय में जानबूझकर शक्कर नहीं डाली।

रवि ने चाय का कप लिया, एक सिप लिया… और कुछ देर बाद कप वापस मेज़ पर रख दिया।

नेहा ने पूछा, “क्या हुआ? चाय नहीं अच्छी लगी?”

रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, “आज पहली बार पता चला कि तुम चाय में शक्कर डालती हो…”

नेहा चुप हो गई। और फिर मुस्कुराकर बोली, “और मुझे आज पहली बार पता चला कि तुम बिना कहे फीकी चाय भी पी जाते हो… बस इसलिए कि मैं बुरा न मान जाऊं।”

उस दिन दोनों ने साथ बैठकर दूसरी चाय बनाई — इस बार शक्कर भी थी… और थोड़ी सी बात भी।

सीख:
रिश्तों में कई बार चीज़ें कही नहीं जातीं, बस निभाई जाती हैं। और यही बातें, जब वक्त पर सामने आती हैं, तो रिश्ते और गहरे हो जाते हैं।

मुझे हमेशा से आदत रही है – जब भी किसी के घर काम करने जाती हूँ, सबसे पहले दुपट्टा उतारकर एक कोने में टाँग देती हूँ, फिर क...
06/08/2025

मुझे हमेशा से आदत रही है – जब भी किसी के घर काम करने जाती हूँ, सबसे पहले दुपट्टा उतारकर एक कोने में टाँग देती हूँ, फिर काम शुरू करती हूँ। वजह भी साफ़ है — दुपट्टा लेकर झाड़ू-पोंछा करने में बड़ी दिक्कत होती है। काम में हाथ फिसलता है, उलझन होती है… और आदत भी तो पड़ गई है।

पिछले एक हफ्ते से एक नया घर पकड़ा है। परिवार छोटा सा है – आँटी, अंकल और उनके दो बेटे। काम ज़्यादा नहीं होता, और बुलावा भी देर से आता है, इसलिए बाकी घरों से निपटकर मैं आख़िरी में वहीं जाती हूँ। कभी-कभी फुर्सत मिलती है तो आँटी के साथ बैठकर दो बातें भी कर लेती हूँ — थकान भी जैसे मिट जाती है।

आज भी रोज़ की तरह झाड़ू-पोंछा कर रही थी, आँटी पास ही कुर्सी पर बैठी थीं और बातचीत भी चल रही थी। तभी अचानक उन्होंने पूछा:

"सुधा, तू हर जगह ऐसे ही काम करती है... बिना दुपट्टे के?"

मैंने सहजता से जवाब दिया, "हाँ आँटी जी, मुझसे दुपट्टा लेकर काम नहीं होता।"

उन्होंने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "बुरा मत मानना, तू मेरी बेटी जैसी है... इसलिए कह रही हूँ। ज़रा अपने कुर्ते की तरफ देख तो।"

मैंने गले की ओर नज़र डाली और एक पल को खुद ही संकोच में पड़ गई। कुर्ते का गला थोड़ा बड़ा था और झुकते वक्त मेरी शमीज़ भी थोड़ी सी दिख रही थी। मुझे समझते देर नहीं लगी कि क्या कहना चाह रही थीं।

आँटी ने प्यार से कहा,
"मैं औरत हूँ, मेरी नज़र बार-बार वहीं चली जाती है, तो सोच — अगर मर्द होंगे, वो क्या करेंगे? ज़रूरी नहीं कि सबकी नीयत ख़राब हो, लेकिन नज़रों पर किसका बस चलता है? तुम लोग ही बाद में कहोगी कि फलाँ घर के मर्द अच्छे नहीं हैं... लेकिन अगर कुछ दिख ही रहा हो, तो कोई आँख बंद करके तो नहीं चलेगा न?"

वो कह रही थीं, समझा रही थीं, और मैं उन्हें देख रही थी — ठीक वैसे जैसे कभी अपनी माँ को देखा करती थी। लेकिन मेरी माँ तो बहुत पहले चली गई थीं, तब मैं बस आठ-नौ साल की थी। आँटी की आवाज़ में वही अपनापन, वही चिंता, वही ममता महसूस हो रही थी।

"ऐसे क्या देख रही है तू?" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

मेरी आँखें भर आईं, मैंने धीमे से कहा,
"सही कह रही हैं आप... आज तक किसी ने कुछ नहीं कहा... शायद इसलिए कभी ध्यान ही नहीं गया।"

मैंने तुरंत दुपट्टा सामने से ढककर कमर में कस लिया — जैसे कोई आदत नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी ओढ़ ली हो।

💭 कुछ बातें सीखने के लिए किताबों की ज़रूरत नहीं होती... बस कोई माँ जैसा कहने वाला चाहिए।
वो दिन एक साधारण दिन था, लेकिन मेरे लिए बहुत खास बन गया।
क्योंकि उस दिन मैंने सिर्फ एक दुपट्टा नहीं ओढ़ा था,
बल्कि सम्मान, सजगता, और स्वाभिमान की एक परत भी अपने साथ बाँध ली थी।

सच में कलयुग का ही कमाल है। लोग रात 2 बजे भी ऑनलाइन रहते हैं, और जैसे ही कोई स्टेटस अपडेट होता है, तुरंत देख लेते हैं।यह...
03/08/2025

सच में कलयुग का ही कमाल है। लोग रात 2 बजे भी ऑनलाइन रहते हैं, और जैसे ही कोई स्टेटस अपडेट होता है, तुरंत देख लेते हैं।
यह दिखाता है कि हम सब कितनी ज्यादा अपनी-अपनी डिजिटल दुनिया में खोए हुए हैं। कभी-कभी तो यह सोचकर हैरानी होती है कि लोग सोते कब हैं!

मेरी जान,मुझे माफ़ करना अगर मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाया। तुम मेरी दुनिया हो, और तुम्हारे बिना सब अधूरा लगता ...
02/08/2025

मेरी जान,
मुझे माफ़ करना अगर मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाया। तुम मेरी दुनिया हो, और तुम्हारे बिना सब अधूरा लगता है। जब तुम रूठ जाती हो, तो मेरा दिल घबरा जाता है, और जब तुम मुझसे बात नहीं करती, तो मुझे लगता है कि मैं अपनी सबसे प्यारी चीज़ खो रहा हूँ।
मुझे याद है जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था, तुम्हारी हँसी की गूँज आज भी मेरे कानों में गूँजती है। तुम्हें याद है जब हम पहली बार मिले थे, मैंने तुम्हारे लिए एक गुलाब लाया था? तुमने उसे अपनी किताब में रखा था, और मैं अब भी उस गुलाब की महक महसूस करता हूँ।
मेरी जान, जब तुम रूठ जाती हो, तो मुझे अपनी दुनिया खोने का एहसास होता है। तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ हो, और मैं तुम्हें खोने से डरता हूँ। मुझे माफ़ कर दो, मुझे पता है मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया है।
जब तुम मेरे पास आती हो और मेरे हाथों को थाम लेती हो, तो मुझे लगता है कि मैं अपनी ज़िंदगी की सबसे प्यारी चीज़ को थाम रहा हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा, और मैं तुम्हें हमेशा प्यार करूँगा। मेरी जान, तुम मेरी दुनिया हो।

फिर मिलेंगे 👉 वो लड़की याद आती है गर्मी की छुट्टी थी और हम सब दोस्त पास के वॉटर पार्क में गए थे। सूरज आसमान से आग बरसा र...
01/08/2025

फिर मिलेंगे 👉 वो लड़की याद आती है
गर्मी की छुट्टी थी और हम सब दोस्त पास के वॉटर पार्क में गए थे। सूरज आसमान से आग बरसा रहा था और ऐसे में पानी में डुबकी लगाने का ख्याल ही बहुत सुकून दे रहा था। वॉटर पार्क में खूब भीड़ थी, हर तरफ से लोगों के हंसने, चिल्लाने और पानी की लहरों की आवाजें आ रही थीं।
हम सब सबसे ऊँची वॉटर स्लाइड पर चढ़े, जहाँ से पूरा वॉटर पार्क दिखाई दे रहा था। नीचे से लोगों की भीड़ में, मेरी नज़र एक लड़की पर पड़ी। उसने सफेद साड़ी पहन रखी थी और उसका ब्लाउज नीले रंग का था। वॉटर पार्क में ऐसे कपड़े देखकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई, पर वह बहुत खूबसूरत लग रही थी।
जैसे ही हम स्लाइड से नीचे आए, हम सीधे वेव पूल की तरफ गए। वहाँ हल्की-हल्की लहरें आ रही थीं और लोग उछल-कूद कर रहे थे। तभी मैंने उसी लड़की को देखा। वह भी वेव पूल में थी और पानी में बच्चों की तरह खेल रही थी। उसकी सफेद साड़ी पानी में भीगकर उसके शरीर से चिपक गई थी, और उसकी खूबसूरती और भी निखर गई थी।
मैंने अपने दोस्त को भी उस लड़की की तरफ इशारा किया। हम सब दोस्त उसे देखकर हँस रहे थे और एक-दूसरे को छेड़ रहे थे। तभी एक बड़ी लहर आई और हम सब पानी में गिर गए। जब मैं उठा, तो मैंने देखा कि वह लड़की मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कान देखकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा।
वह मेरी तरफ आई और बोली, "लगता है तुम पहली बार वॉटर पार्क आए हो।" उसकी आवाज़ बहुत प्यारी थी। मैंने कहा, "नहीं, मैं कई बार आ चुका हूँ, पर आज मैं थोड़ा हैरान हूँ।" उसने पूछा, "क्यों?" मैंने कहा, "क्योंकि आज मैंने यहाँ किसी को सफेद साड़ी और नीले ब्लाउज में नहीं देखा।"
उसने हँसते हुए कहा, "तो क्या मैं आज के वॉटर पार्क का आकर्षण हूँ?" मैंने शर्माते हुए कहा, "हाँ, तुम सही कह रही हो।"
उस दिन हम दोनों ने खूब बातें कीं। उसने मुझे अपना नाम प्रिया बताया। हमने एक साथ स्लाइड पर सवारी की, और वेव पूल में खूब मस्ती की। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं उसे सालों से जानता हूँ। उसकी सादगी और उसकी प्यारी-सी मुस्कान ने मुझे घायल कर दिया था।
शाम को जब हम घर जाने लगे, तो मैंने उससे उसका नंबर माँगा। उसने अपना नंबर दिया और कहा, "जल्द मिलेंगे।" उसके जाने के बाद भी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं उसे फिर से देख रहा हूँ। उसकी सफेद साड़ी और नीले ब्लाउज ने मुझे एक ऐसे जादू में कैद कर लिया था, जिससे मैं कभी बाहर नहीं निकलना चाहता था।

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