Khidmatgar E Mewat

Khidmatgar E Mewat मकसद – कौम की खिदमत
नौजवानों को दीन से जोड़ने के साथ दुनिया के हालातो से रूबरू कराना।
कौम में फैल रही नफरत को खत्म कर भाईचारा को कायम करना।

04/08/2024

🌺Hazrat Umar ibn al-Khattab, (Radiallah anhu) jo doosre khalifa the, unka insaf bohot mashhoor tha. Ek dafa Misr ka ek aadmi unke paas aya aur Amr ibn al-As, jo Misr ke governor the, ke bete ki shikayat ki. Governor ke bete ne us aadmi ko na-haq maara tha. Hazrat Umar ne governor aur uske bete ko Madina bulaya.

🌹 Sab ke samne, unhone us Misri aadmi ko chabuk diya aur kaha ke governor ke bete ko waisa hi maare jaisa use maara gaya. Saza ke baad, Umar ne governor se kaha, "Tumne logon ko kab se ghulam banana shuru kar diya jo Allah ne azad paida kiya?" Yeh waqia dikhata hai ke Islam mein insaf sab ke liye barabar hai, chahe wo kisi bhi rutbe ka ho.

📚(Tareekh-al-tabari)

Tere guru yogi se na hua, tu bhi aazma le 😎
19/05/2024

Tere guru yogi se na hua, tu bhi aazma le 😎

15/05/2024

गौतस्करों द्वारा जलाकर मारे गए शहीद जुनैद की बड़ी बेटी 'परवाना' की हुई हार्ट अटैक से मौत.

Me kitne ese non Muslim dikha du jinhone desh ka khufiya jankari Pakistan ko di h, pr me kbhi ye nhi khta ki us dhrm k l...
12/05/2024

Me kitne ese non Muslim dikha du jinhone desh ka khufiya jankari Pakistan ko di h, pr me kbhi ye nhi khta ki us dhrm k log gaddar h, pr pta nhi kyo agr ek bhi Muslim esa pkda jae jisne esa Kiya ho to Sare muslman gaddar ho jate h..why??

I think criminal ka koi dhrm nhi..

11/05/2024
अगर आप से कोई देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगे और कहे की आप ने देश के लिए किया ही क्या है, तो ये तस्वीर उसके मुँह पर मारना। ...
11/05/2024

अगर आप से कोई देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगे और कहे की आप ने देश के लिए किया ही क्या है, तो ये तस्वीर उसके मुँह पर मारना। ये तस्वीर 1857 के इंकलाब में हिस्सा लेने वाले उलेमाओं की है। जिन्हें फिरंगियों ने तोप के दहाने पर रख कर उड़ा दिया था।

एक दो तीन या चार को नहीं कुल 30 हज़ार उलेमाओं को तोप से उड़ा कर शहीद कर दिया गया था। सिराजुद्दौला और टीपू सुल्तान की शहादत के बाद अंग्रेज विरोधी आन्दोलन जनता में भड़कने लगा। जिसकी शुरुआत शाह वलीउल्लाह देहलवी के अंग्रेज़ विरोधी विचारों से होती है लेकिन इस आन्दोलन की औपचारिक शुरुआत उस समय होती है जब शाह वलीउल्लाह देहलवी रह० के बेटे शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी ने सन 1803 में अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का फ़तवा जारी कर जेहाद फ़र्ज़ कर दिया।

इस फतवे का व्यापक असर हुआ और अवाम के भीतर अंग्रेज़ों के लिए विरोधी भावना और भी ज़्यादा भड़क गई। फ़तवा देने के कुछ साल बाद शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी ने अपने शागिर्द सय्यद अहमद रायबरेलवी को मराठा यशवंत राव होलकर के मुंह बोले भाई राजपुताना के आमिर खान की सेना में भेज दिया क्यूंकि उस समय मराठा यशवंत राव होलकर और आमिर खान दोनों संयुक्त रूप से अंग्रेज़ों से लोहा लेने का इरादा रखते थे।

लेकिन बाद में इन्होंने अंग्रेजों से सन्धि कर ली तो सैय्यद अहमद ने मराठा सेना छोड़ तहरीके मुजाहिदीन आंदोलन शुरू कर दिया। आंदोलन कई सालों तक चला आखिरकार 1831 में सय्यद अहमद रायबरेलवी और शाह इस्माइल की हार हुई और उन्हें शहीद कर दिया गया। सय्यद अहमद रायबरेलवी ने ग्वालियर के राजा हिन्दू राव को लिखे गए अपने ख़त में अंग्रेज़ों के विरोध को खुलकर लिखा है और इस बात का इज़हार किया है की उनकी लड़ाई मुख्यतः अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने की लड़ाई है।

आंदोलन वक़्त के साथ बढ़ता गया और साल 1857 आ गया। लेकिन आंदोलन बढ़ता ही गया फिर अल्लामा फ़ज़ल-ए-हक़ खैराबादी (गीतकार जावेद अख्तर के परदादा) ने दिल्ली की जामा मस्जिद से अंग्रेजों के ख़िलाफ़ फिर से जेहाद का फ़तवा दिया। इस फ़तवे के बाद आपने बहादुर शाह ज़फर के साथ मिलकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला और अज़ीम जंग-ए-आज़ादी लड़ी।

अंग्रेज इतिहासकार लिखते हैं कि इसके बाद अंग्रेजों ने दिल्ली में क़तल ए आम शुरू कर दिया। और 30 हज़ारों उलेमाओं को शहीद कर दिया गया कुछ को फांसी के तख़्ते पर चढ़ा दिया गया। हज़ारो उलेमाओं को तोप से उड़ा कर शहीद कर दिया गया। और बहतों को काले पानी की सजा दे दी गई।
30 हज़ार तो सिर्फ मोहद्दिस और उलेमा थे इनके साथ ना जाने कितने लाखों आम मुसलमानों को शहीद कर दिया गया। जंगे आज़ादी में हर मज़हब के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। मुसलमानों के भी जंग ए आजादी के हजारों वाक्यात है जिन्हें एक पोस्ट में लिख पाना न मुमकिन है हम आगे भी कोशिश करेंगे और चीज़ [...]

10/05/2024

आज के दिन .... 10 मई-1857... हिन्दुस्तान की तारीख़ का अहम दिन!!
(जंगे आजादी पर खास पेशकश)

24 अप्रैल 1857, मेरठ परेड ग्राउंड में रोजाना की तरह परेड चल रही थी। आज 90 सिपाहियों को नए कारतूस बांटे जाने थे। इन नब्बे सिपाहियों में से हिंदू मुसलमान लगभग बराबर तादाद में थे। ये अफवाह तो सब जगह फैली थी कि नए कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है। इसलिए पाँच सिपाहियों को छोड़कर सभी ने कारतूस लेने से इनकार कर दिया।

अपने अफसर का हुक्म न मानने के कारण इन 85 सिपाहियों को दस साल की कठोर कारावास की सजा हुई।

9 मई को परेड ग्राउंड में सभी सजायाफ्ता सिपाहियों की पेशी हुई। सभी की वर्दी उतरवाई गई और मैडल छीन लिए गए। इन्हे बेडियों में डालकर सरे बाज़ार जेल ले जाया गया था.. इसलिए बाकी सिपाहियों में गुस्से की लहर दौड़ गई !

10 मई 1857 । सुबह सुबह ही अफवाह फ़ैल गई कि आज बाकी बचे सिपाहियों से भी हथियार छीन लिए जायेंगे। आज रविवार था। सभी अंग्रेज अफसर अपने परिवार के साथ मौज मस्ती मना रहे थे। उधर मेरठ छावनी के सिपाहियों ने शस्त्रागार पर हमला करके हथियार लूट लिए। इसके बाद उन्होंने जेल में बंद अपने सभी साथियों को आजाद कर लिया।

अब सभी सिपाहियों और आजाद कैदियों ने मेरठ शहर और छावनी में जो भी अंग्रेज दिखा, उसे मौत के घाट उतार दिया। आस पास के गावों से भी लोग बाग़ इस फसाद में शामिल हो गए। जिन्होंने भी इन को समझाने की कोशिश की, वो भी मार डाला गया। अब अंग्रेजों ने योजना बनाई कि रात को तोप का इस्तेमाल करके सभी बागियों को मार डाला जाए। लेकिन रात होने तक सभी सिपाही मेरठ को छोड़कर दिल्ली की और कूच कर चुके थे।

11 मई को मेरठ के क्रान्तिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुँचकर, 12 मई को दिल्ली पर कब्जा कर लिया। इन सैनिकों ने मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफ़र... को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया।

जल्द ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार तथा झांसी में भी फैल गया...और होते होते सारे देश में बगावत फैल गई।

1857 की क्रांति की देशव्यापी शुरूआत के लिए 31 मई 1857 का दिन निर्धारित किया गया था। एक ही दिन क्रांति शुरू होने पर उसका व्यापक प्रभाव होता। मगर.... फौजियों ने आक्रोश में आकर तयशुदा वक्त से पहले.... 10 मई, 1857 को ही विद्रोह कर दिया।

फौजियों की इस जल्दबाजी की वजह से... क्रांति की योजना अधूरी रह गयी। निश्चित समय का पालन नहीं होने के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति की शुरूआत अलग-अलग दिनों में हुई। इससे अंग्रेजों को क्रांतिकारियों का दमन करने में काफी मदद मिली ।

बहुत सी जगहों पर तो 31 मई का इन्तजार कर रहे सैनिकों के हथियार छीन लिए गए। अगर सभी क्षेत्रों में क्रांति का सूत्रपात एक साथ हुआ होता, तो तस्वीर कुछ और ही होती।

लॉर्ड कैनिंग के गवर्नर-जनरल के रूप में शासन करने के दौरान ही 1857 ई. की महान क्रान्ति हुई। इस क्रान्ति का आरम्भ 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुआ, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गया। इस क्रान्ति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, परन्तु कालान्तर में उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।

M.s. Rana साब के वाल से

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