28/09/2025
“रिश्तों की डोर”
स्नेहा और आरव की शादी को सात साल हो चुके थे। शुरू-शुरू में उनका रिश्ता किसी सपने जैसा था। छोटी-छोटी बातें, एक-दूसरे की तारीफें, और हर दिन नए अंदाज़ में प्यार जताना—दोनों के लिए जिंदगी खूबसूरत बना देता था। लेकिन वक्त के साथ कुछ आदतें धीरे-धीरे रिश्ते की नींव हिलाने लगीं।
आरव अक्सर मजाक में स्नेहा की कमियों पर हंस देता। जैसे अगर वो किसी चीज़ को जल्दी नहीं समझ पाती तो कह देता—“तुम्हें तो कुछ आता ही नहीं, बस बातें बनानी आती हैं।” शुरू में स्नेहा मुस्कुरा कर टाल देती, लेकिन उसके दिल पर छोटे-छोटे घाव बनने लगे।
धीरे-धीरे आरव ने उसकी बातों को गंभीरता से लेना भी छोड़ दिया। जब स्नेहा अपने ऑफिस की परेशानियाँ बताती तो वह आधा मोबाइल पर स्क्रॉल करता रहता, आधा “हूँ-हाँ” करता। उसे लगता था, ये सब मामूली बातें हैं, लेकिन स्नेहा के लिए यह बहुत बड़ी चोट थी—उसकी भावनाओं की अनदेखी।
एक और आदत थी—बीच में टोका-टोकी। स्नेहा जब भी कोई बात पूरी करना चाहती, आरव बीच में ही रोक देता। “अरे छोड़ो ये सब, मैं बेहतर जानता हूँ…” ऐसा कहकर वह अपनी राय थोप देता। धीरे-धीरे स्नेहा को लगने लगा कि उसकी बातों की कोई अहमियत ही नहीं है।
स्थिति तब और बिगड़ गई जब आरव ने तुलना करना शुरू किया। कभी अपनी कज़िन से, कभी दोस्तों की पत्नियों से—“देखो, वो कितनी स्मार्ट है… तुम भी थोड़ा ध्यान दो।” ये शब्द स्नेहा को भीतर तक तोड़ देते। उसे लगता जैसे वह कभी भी आरव की नजरों में पर्याप्त नहीं हो पाएगी।
सबसे बड़ी तकलीफ़ तब होती जब आरव उसकी कोशिशों की कदर नहीं करता। चाहे वह उसके लिए पसंद का खाना बनाती या कोई छोटा सरप्राइज़ करती—आरव बिना नोटिस किए बस आगे बढ़ जाता। स्नेहा का दिल धीरे-धीरे सुन्न होने लगा।
एक रात स्नेहा ने खुद से सवाल किया—“क्या प्यार इतना ही होता है? जहाँ मेरी इज्जत, मेरी भावनाएँ और मेरी कोशिशें गिनी ही न जाएँ?” आँसू उसके तकिए को भिगोते रहे।
अगले दिन उसने हिम्मत जुटाई और आरव से साफ कहा—
“रिश्ता सिर्फ प्यार पर नहीं चलता, आरव। अगर इज्जत और समझ खत्म हो जाए तो प्यार भी दम तोड़ देता है। तुम मेरी बात सुनो या मत सुनो, पर सच यही है कि मुझे तुम्हारे शब्दों से ज्यादा तुम्हारे व्यवहार की जरूरत है। मजाक उड़ाने से नहीं, मेरी सराहना करने से मैं तुम्हारे और करीब आ सकती हूँ।”
आरव कुछ देर चुप रहा। पहली बार उसने महसूस किया कि सच में उसकी छोटी-छोटी आदतें ही इस रिश्ते को भारी बना रही हैं। उसने स्नेहा की आँखों में देखा—वहाँ शिकायत भी थी, लेकिन उम्मीद भी।
उस दिन के बाद आरव ने खुद को बदलने की कोशिश शुरू की। जब भी स्नेहा बात करती, वह मोबाइल दूर रखकर ध्यान से सुनता। मजाक उड़ाने की बजाय उसका हौसला बढ़ाता। तुलना करना छोड़ दिया और उसकी छोटी-छोटी कोशिशों पर भी “थैंक यू” और “आई एम प्राउड ऑफ यू” कहना शुरू किया।
धीरे-धीरे स्नेहा के चेहरे पर फिर वही पुरानी मुस्कान लौट आई। उनका रिश्ता फिर से उसी मिठास से भरने लगा।
🌷 कहानी का संदेश
रिश्ता सिर्फ “आई लव यू” कह देने से मजबूत नहीं होता। उसमें इज्जत, समझ और अपनापन भी होना ज़रूरी है। छोटी-छोटी आदतें या तो रिश्ते को तोड़ देती हैं… या फिर उन्हें उम्रभर के लिए और मजबूत बना देती हैं।