Dehati masti

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उस एक सवाल ने बदल दिया सबकुछ"तुम्हें कितनी बार कहा है, मेरे तैयार होने से पहले नाश्ता टेबल पर होना चाहिए! 25 साल हो गए ह...
04/09/2025

उस एक सवाल ने बदल दिया सबकुछ

"तुम्हें कितनी बार कहा है, मेरे तैयार होने से पहले नाश्ता टेबल पर होना चाहिए! 25 साल हो गए हमारी शादी को, फिर भी मुझे हर बार एक ही बात क्यों दोहरानी पड़ती है, माया?"
विक्रम गीला तौलिया कुर्सी पर फेंकते हुए गरज पड़ा।

माया ने चुपचाप सिर झुका लिया।
यह पहली बार नहीं था। महीने में कई बार ऐसा तूफ़ान उठता था और वह खामोश रहकर सब सह लेती थी।
पहले-पहले उसने विरोध किया था, पर धीरे-धीरे उसने खुद को बदल लिया। अब विक्रम की डांट, ताने और गुस्सा—सब उसके लिए बस शोर थे, जिन पर ध्यान देना छोड़ दिया था।

विवाह के शुरुआती सालों में उसने कोशिश की थी कि विक्रम सुधरे, लेकिन वक्त के साथ उसे एहसास हुआ कि बदलाव केवल किताबों और फिल्मों में होता है। असल जीवन में उसने बस अपनी आवाज़ खो दी।

फिर भी वह सब सहती रही—अपने बूढ़े माता-पिता को बोझ न बनाना चाहती थी और अपनी बेटी की खातिर इस रिश्ते को निभाती रही।

आर्या, उनकी बेटी, अब बड़ी हो चुकी थी। पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और उसके लिए रिश्ते आने लगे थे।
एक शाम विक्रम ने बेटी से कहा—
"आर्या, इस बार जो रिश्ता आया है, बहुत अच्छा है। लड़का पढ़ा-लिखा है, बड़ी नौकरी करता है, परिवार भी अच्छा है। ऐसे रिश्ते बार-बार नहीं मिलते। इस बार मना मत करना।"

आर्या ने डरते-डरते बोलना शुरू किया—
"पापा, मुझे अभी शादी नहीं करनी। मैं नौकरी करना चाहती हूं, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं।"

विक्रम हंसते हुए बोला—
"तो उसमें दिक्कत क्या है? लड़के से मैंने पूछ लिया है, वो तुम्हें नौकरी करने देगा।"

आर्या की आँखों में आग चमकी—
"मेरी नौकरी उसके देने या ना देने पर क्यों निर्भर करेगी, पापा?"

विक्रम का चेहरा कस गया—
"तुम्हें किसी भी चीज़ की कमी नहीं होगी वहां। मना मत करना। बहुत खुश रहोगी।"

आर्या ने गहरी सांस ली और कहा—
"क्या मैं उतनी ही खुश रहूंगी, जितनी मम्मी इस घर में खुश हैं?"

यह सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया।
विक्रम की आंखें चौड़ी हो गईं—
"तुम्हारी ज़ुबान आज कुछ ज़्यादा नहीं चल रही?"

पर आर्या रुकने वाली नहीं थी।
"पापा, मैं शादी ही नहीं करना चाहती क्योंकि अगर मेरा पति आपके जैसा निकला तो? अगर उसने मेरी हर छोटी-बड़ी गलती पर मुझे नीचा दिखाया तो? अगर उसने मुझे मायके जाने की धमकी दी तो? अगर उसने मुझे सिर्फ गुस्से का थैला समझा तो? मुझे आपके जैसा पति नहीं चाहिए।"

विक्रम का चेहरा लाल था, पर उसकी आवाज़ गुम हो चुकी थी।
आर्या की बातें तीर की तरह उसके दिल को चीर रही थीं।

आर्या ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा—
"पापा, सिर्फ एक सवाल का जवाब दीजिए—क्या आप चाहेंगे कि मेरा पति आपके जैसा हो? अगर हां, तो आज ही मेरी शादी तय कर दीजिए। और अगर नहीं, तो मुझे अपने सपनों के लिए जीने दीजिए।"

विक्रम की आंखें डबडबा गईं। उसके पास कोई जवाब नहीं था।
वह चुपचाप कमरे से बाहर चला गया। पहली बार उसे अपनी गलती का बोझ महसूस हुआ।

अगले ही दिन से विक्रम में बदलाव आने लगा।
माया सालों बाद चौंक गई जब उसने पति को बिना वजह डांटे हुए, शांत बैठा देखा।
उसे लगा—"काश, मेरे पास भी उतनी हिम्मत होती जितनी आर्या ने दिखाई।"

समय बीता।
आर्या नौकरी में सफल हुई और तीन साल बाद जब उसका रिश्ता तय हुआ, विदाई के वक्त विक्रम ने कांपती आवाज़ में कहा—
"बेटी, तू हमेशा खुश रहना… क्योंकि तेरा पति तेरे पिता जैसा नहीं होगा।"

यह सुनकर माया और आर्या की आंखें छलक पड़ीं।

संदेश

हमारे समाज में औरत को देवी कहा जाता है, पर असल में उसे आज़ादी, इज्ज़त और बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता।
औरत का असली घर मायका है या ससुराल? शायद कोई नहीं।
उसका असली घर वही होगा, जहां उसे बिना डरे अपनी बात कहने और जीने का हक़ मिले

सौतेली माँ..आज वो भी चल बसी थी।आज उसके जाने से पचास साल का अमित बच्चों की तरह बिलख रहा था।वैसे तो उसका और उसका कोई रिश्त...
04/09/2025

सौतेली माँ
..आज वो भी चल बसी थी।
आज उसके जाने से पचास साल का अमित बच्चों की तरह बिलख रहा था।

वैसे तो उसका और उसका कोई रिश्ता नहीं था। बस उसके पिता की पहली पत्नी थी – नाम था सुषमा।

सुषमा के माँ न बन पाने के कारण उसके पिता ने उसे छोड़कर दूसरी शादी की थी, और उसी से अमित का जन्म हुआ था।

जब वो छोटा था, तो अक्सर उसकी माँ सुषमा को लेकर पिता से झगड़ती रहती थी। माँ कहती –
“तुम्हारा सुषमा से अभी भी संबंध है।”
उन झगड़ों में माँ रो पड़ती थी, और बच्चा अमित माँ के आँसू देखकर सुषमा को ही दोषी मान लेता था। उसने कभी सुषमा को देखा तक नहीं था, लेकिन उसके मन में सुषमा एक “बुरी औरत” के रूप में बैठ गई थी।

अमित को याद आ रहा था वो दिन, जब महज़ तेरह साल की उम्र में उसके माता–पिता एक सड़क दुर्घटना में चल बसे थे।
वो तड़प–तड़प कर रो रहा था। चारों तरफ रिश्तेदार इकट्ठा थे।

उसी भीड़ में से किसी ने उसके सिर पर हाथ रखा।
उसने सिर उठाकर देखा — एक अनजान औरत, आँखों में आंसू लिए खड़ी थी।

“तुम…तुम कौन हो?” अमित ने रोते हुए पूछा।

“मैं… मैं सुषमा हूँ।”

सुषमा नाम सुनते ही उसने झटके से उसका हाथ हटा दिया।
“तुम बहुत खराब हो! तुमने मेरी माँ को रुलाया है… यहाँ से चली जाओ।”
वो और ज़ोर से रोने लगा।

सुषमा चुपचाप एक कोने में जाकर बैठ गई। उसकी आँखों से आँसुओं का सैलाब बह निकला। रिश्तेदार सब उसे जानते थे, इसलिए किसी ने कुछ नहीं कहा।

एक रात अमित डरावना सपना देखकर चीख पड़ा –
“माँ… माँ…”

सुषमा भागकर आई और उसे सीने से लगा लिया।
कुछ पल के लिए अमित को अच्छा लगा, लेकिन होश आते ही उसने धक्का देकर उसे दूर कर दिया और बाहर भाग गया।
भटककर जब वापस लौटा, तो बुखार में तप रहा था।

सुषमा दौड़ी–दौड़ी डॉक्टर को लाई।
डॉक्टर ने कहा – “ठंडी पट्टियाँ रखनी होंगी।”

वो तीन दिन तक उसकी सेवा करती रही — कभी सिर पर पट्टी रखती, कभी उसके पाँव दबाती।
अमित ठीक हो गया। अब वो उससे उतनी नफरत नहीं करता था, पर बात फिर भी नहीं करता था।

कुछ ही दिन बाद सुषमा बीमार पड़ गई। बीमारी इतनी भयानक थी कि जान पर बन आई।
डॉक्टर ने कहा – “ड्रॉप्सी है, बहुत ख़तरनाक है।”

अमित घबरा गया।
“अगर ये भी चली गई तो?… फिर मेरे पास कौन रहेगा?”

वो दिन–रात उसके पास बैठा रहता।
जब सुषमा कराहती, तो उसका हाथ पकड़ लेता। कभी सिर दबाता, कभी पाँव।

पूरी रात जाग–जाग कर वो भगवान से प्रार्थना करता —
“हे भगवान, माँ–बाप तो छीन लिए… अब इसे मत लेना।”

पाँचवें दिन सुबह सुषमा की आँखें खुलीं। उसके होंठों से निकला –
“अमित…”

अपना नाम सुनते ही अमित उससे लिपट गया और रोने लगा।
सुषमा ने काँपते हाथों से उसके सिर पर हाथ फेरा।

“क्या हुआ बेटा?”

“मेरा कोई नहीं है… मुझे छोड़कर मत जाना… कहीं मत जाना।”
अमित फूट–फूट कर रो पड़ा।

सुषमा ने उसे सीने से चिपकाते हुए कहा –
“कोई कैसे नहीं है तेरा? मैं हूँ… तेरी माँ।”

अमित के होंठों से अनायास निकला –
“माँ…”

इतने बरसों बाद पहली बार किसी ने उसे बेटा कहा और उसने किसी को माँ कहा।
दोनों की रुलाई एक हो गई।

उस दिन के बाद से सुषमा ने मेहनत–मजदूरी करके अमित को पढ़ाया।
अमित बड़ा हुआ, सरकारी नौकरी पाई और सुषमा को हमेशा अपनी माँ का दर्जा दिया।

आज वही सुषमा हमेशा के लिए चली गई थी।
और अमित सोच रहा था—

👉 “अगर सुषमा माँ न होती, तो मेरा क्या होता?”

💔 एक पल ने सब कुछ खत्म कर दियारवि और सृष्टि की शादी को पाँच साल हो चुके थे। दोनों की जिंदगी उतार-चढ़ाव से गुज़रती रही, ल...
03/09/2025

💔 एक पल ने सब कुछ खत्म कर दिया

रवि और सृष्टि की शादी को पाँच साल हो चुके थे। दोनों की जिंदगी उतार-चढ़ाव से गुज़रती रही, लेकिन प्यार हमेशा उनका सहारा था।

सृष्टि को आदत थी कि हर सुबह रवि के लिए चाय बनाकर उसकी मुस्कान देखे बिना उसका दिन शुरू नहीं होता। रवि जब भी ऑफिस जाने लगता तो सृष्टि दरवाजे तक छोड़ने आती। उनका रिश्ता छोटे-छोटे पलों से ही खास बनता गया था।

लेकिन किस्मत को शायद कुछ और मंज़ूर था…

उस दिन सुबह भी सब कुछ सामान्य था। सृष्टि ने चाय बनाई, रवि को मुस्कुराकर पिलाई और दरवाजे तक छोड़ने आई। रवि ने जाते-जाते कहा,
“आज शाम जल्दी आ जाऊँगा, तुम तैयार रहना… बाहर डिनर पर चलेंगे।”
सृष्टि ने हंसकर हामी भरी।

लेकिन… शाम आई ही नहीं।

रवि का फोन आया, मगर कॉल किसी अनजान शख्स ने उठाया। दूसरी तरफ़ से सिर्फ़ इतना सुना —
“एक्सीडेंट हो गया है, आप तुरंत अस्पताल पहुंचिए।”

सृष्टि का दिल जैसे थम गया। जब वह अस्पताल पहुँची तो देखा रवि स्ट्रेचर पर बेहोश पड़ा था। खून से सना हुआ चेहरा, मशीनों की बीप… और चारों तरफ़ अफरा-तफरी।

डॉक्टर बाहर आए और सिर झुका दिया —
“हमें खेद है, हमने पूरी कोशिश की… लेकिन वो अब नहीं रहे।”

उस एक पल ने सृष्टि की पूरी दुनिया उजाड़ दी।
सुबह जिसने उसे मुस्कुराकर कहा था “शाम को जल्दी आऊँगा”, वही शाम उसकी जिंदगी की सबसे अंधेरी रात बन गई।

अब घर वही था, चीज़ें वही थीं, लेकिन हर कोना खाली हो गया। कपड़ों की अलमारी में रवि की खुशबू, तकिए पर उसकी यादें और दीवारों पर टंगी उसकी हंसी… सब सृष्टि को हर रोज़ तोड़ देते।

सृष्टि अक्सर उस सुबह को याद करती है —
काश! उसने उसे थोड़ा और रोक लिया होता…
काश! उसे एक बार और गले लगा लिया होता…
काश! वह एक पल यूँ गुजरता ही नहीं…

01/09/2025

अपकी भी पत्नी का भी तो नही चल रहा चक्कर,वीडियो पूरा देखो अब समझ आ जाएगा

01/09/2025

अगर ऐसी पत्नी ना मिले तो कुंवारे रह लेना मगर शादी मत करना

जवानी बनी जुर्म आदित्य खन्ना की ज़िंदगी एक सपने जैसी थी। पच्चीस साल की उम्र, एक शानदार नौकरी, दोस्तों का एक बेहतरीन ग्रु...
01/09/2025

जवानी बनी जुर्म
आदित्य खन्ना की ज़िंदगी एक सपने जैसी थी। पच्चीस साल की उम्र, एक शानदार नौकरी, दोस्तों का एक बेहतरीन ग्रुप और एक ऐसी जवानी जो हर पल जीने लायक थी। उसकी दुनिया रंगीन, तेज़ रफ्तार और बेफिक्र थी। लेकिन यह सब एक रात में बदल गया।

यह उसकी प्रोमोशन की पार्टी थी। मुंबई के एक ट्रेंडी रूफटॉप बार में शैंपेन फूट रही थी, संगीत गूंज रहा था और हंसी की आवाज़ें हवा में घुल रही थी। आदित्य अपने दोस्तों के बीच ढेर सारी शाबाशियां बटोर रहा था। देर रात तक जश्न चला। शराब का नशा चढ़ा हुआ था, लेकिन आदित्य ने खुद को कंट्रोल में महसूस किया। "यार, मैं ठीक हूं," उसने अपने दोस्त को आश्वासन दिया और अपनी नई लाल स्पोर्ट्स कार की चाबी घुमाई।

सड़कें खाली थीं। बारिश की हल्की बूंदें कार के विंडशील्ड पर पड़ रही थीं। रेडियो पर बजता गाना और इंजन की गर्जना... आदित्य को लगा जैसे वह दुनिया का राजा है। अचानक, एक मोड़ पर, एक सनकी सी आवाज़ आई... ठक! ...फिर एक चीख।

उसका दिल धड़कना बंद हो गया। कार रुकी। उसके हाथ कांप रहे थे। सामने की ओर देखा तो सड़क खाली थी। पीछे देखा... कुछ दूर पर एक अंधेरे में एक हलचल नज़र आई। वह दौड़ा। वहां एक बाइक पलटी हुई थी और उसके पास एक युवक जमीन पर पड़ा था, उसके सिर से खून बह रहा था। और थोड़ी दूर पर, एक और शख्स... एक लड़की। उसकी आंखें खुली हुई थीं, लेकिन उनमें कोई जान नहीं थी। उसके हाथ में कसी हुई माला टूटकर बिखर गई थी।

आदित्य का दिमाग सुन्न हो गया। डर, आतंक और शराब के नशे ने उसे पूरी तरह जकड़ लिया। उसने फोन निकाला, लेकिन अंकित उसका नाम, उसकी नौकरी, उसकी बर्बाद होती जवानी की तस्वीरें दिमाग में घूमने लगीं। एक पल की भयानक गलतफहमी में, वह वहां से भाग गया।

अगली सुबह उसकी आंख अखबार की एक खबर से खुली: "नाइट आउट के दौरान हिट एंड रन, एक की मौत, एक गंभीर रूप से घायल।" उसकी तस्वीर छपी थी, CCTV के एक धुंधले से फ्रेम में उसकी लाल कार। पुलिस उसे ढूंढ रही थी। उसकी जवानी, उसका भविष्य, सब कुछ एक पल की मूर्खता की भेंट चढ़ गया था। जवानी जुर्म बन गई थी।

आदित्य भागा। उसने शहर छोड़ दिया, अपना फोन फेंक दिया, और एक सस्ते से होटल के कमरे में दुबक गया। हर सायरन की आवाज़ उसे डरा देती, हर दस्तक पर उसका दिल धड़कने लगता। अखबार की कतरनों के पीछे, एक और खबर ने उसका ध्यान खींचा। मरने वाला लड़का एक छोटा मोटा गुंडा था, लेकिन घायल लड़की, आर्या, एक गरीब परिवार से थी जो उसकी देखभाल के लिए दान की गुहार लगा रहा था।

एक रात, छिपकर अस्पताल जाने का जोखिम उठाकर, आदित्य ने आर्या को देखा। वह कोमा में थी, उसके चेहरे पर चोट के निशान थे। उसकी मां उसके पास बैठी रो रही थी। यह दृश्य देखकर आदित्य की आत्मा कांप उठी। यह उसका जुर्म था जिसने इस परिवार की ज़िंदगी तबाह कर दी थी।

लेकिन तभी, कुछ अजीब हुआ। एक अनजान आदमी, काले कपड़ों में, चुपचाप आर्या के कमरे में घुसा। उसने नर्स को रिश्वत देने की कोशिश की, जैसे कोई फाइल या कोई चीज़ ढूंढ रहा हो। आदित्य ने छिपकर यह सब देखा। उसके मन में सवाल उठा: यह आदमी कौन है? आर्या के पास ऐसा क्या है जिसकी किसी को तलाश है?

अब सिर्फ डर नहीं, बल्कि जिज्ञासा ने भी उसे घेर लिया। वह उस अनजान आदमी का पीछा करने लगा। पता चला कि वह आदमी एक प्राइवेट डिटेक्टिव था, जिसे एक ताकतवर और रहस्यमयी आदमी "मि. मल्होत्रा" ने किसी चीज़ की तलाश के लिए hired किया था। आदित्य को समझ नहीं आ रहा था कि एक साधारण हिट एंड रन केस में इतना रहस्य क्यों है?

उसने रिस्क लेकर उस दुर्घटना स्थल पर वापस जाने का फैसला किया। रात के अंधेरे में, टॉर्च की रोशनी में, उसे बाइक के पास एक चीज़ मिली जो पुलिस और उसने पहले नहीं देखी थी - एक छोटा, ब्लूटूथ वाला पेन ड्राइव, जो शायद आर्या के बैग से निकलकर नाले में फंस गया था।

उसने उसे होटल ले जाकर लैपटॉप में लगाया। उसमें सिर्फ एक ऑडियो फाइल थी। उसे प्ले किया तो उसमें दो लोगों की आवाज़ें थीं। एक आवाज़ ने कहा, "मि. मल्होत्रा, यह tender का सारा डाटा है। अगर यह लीक हो गया तो आपकी कंपनी को करोड़ों का नुकसान होगा और आप जेल जाएंगे। मुझे मेरा हिस्सा चाहिए।" दूसरी आवाज़, जो शायद मल्होत्रा की थी, ठंडे और खतरनाक अंदाज में बोली, "तुम्हें मिलेगा। कल रात मिलते हैं। तुम्हारी दोस्त आर्या भी आ रही है न? उसके बिना तो बात ही अधूरी है।"

आदित्य की सांसें रुक गईं। यह कोई साधारण दुर्घटना नहीं थी। आर्या और उसका दोस्त किसी बड़े घोटाले का हिस्सा थे और मल्होत्रा उनसे छुटकारा चाहता था। हो सकता है, उस रात दुर्घटना नहीं, बल्कि जानबूझकर उनकी बाइक को रोका गया हो? हो सकता है, आदित्य की कार से पहले ही उन पर हमला किया गया हो? उसका जुर्म एक हादसा था, लेकिन उसके पीछे एक सोचा-समझा षड्यंत्र छुपा था।

आदित्य अब एक भागता हु�ा अपराधी नहीं, बल्कि एक ऐसा इंसान था जिसने एक भयानक सच्चाई का पर्दाफाश करना था। उसकी जवानी ने एक नया मोड़ ले लिया था - सच्चाई की तलाश का। उसने पेन ड्राइव की एक कॉपी बनाई और मल्होत्रा को ब्लैकमेल करने का प्लान बनाया, ताकि वह आर्या के इलाज का खर्च उठाए और आदित्य को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव डाले।

लेकिन मल्होत्रा कोई आम आदमी नहीं था। आदित्य का फोन आया तो वह चौंका, लेकिन घबराया नहीं। उसने मीटिंग का प्रस्ताव रखा - एक सुनसान वेयरहाउस में। आदित्य समझ गया कि यह एक जाल था। मल्होत्रा उसे और पेन ड्राइव को हमेशा के लिए खत्म करना चाहता था।

आदित्य ने एक दांव खेला। मीटिंग से पहले, उसने पेन ड्राइव की एक कॉपी और सारा सबूत एक ऑनलाइन ड्राइव में सेव करके उसे एक वकील और एक पत्रकार को ऑटो-मेल भेजने के लिए सेट कर दिया। अगर २४ घंटे में उसे डिलीट नहीं किया, तो मेल चली जाएगी।

वेयरहाउस अंधेरा और डरावना था। मल्होत्रा अपने गुंडों के साथ वहां मौजूद था। "लड़के, तुमने एक बहुत बड़ी गलती कर दी," उसने गुर्राते हुए कहा।

"गलती तो आपने की थी, सर, उन दो मासूमों को मारकर," आदित्य ने हिम्मत जुटाकर कहा।

तभी, सायरन की आवाज़ गूंजी। आदित्य ने पुलिस को बुला लिया था, anonymously। धावा बोल दिया गया। हाथापाई हुई। आदित्य ने मल्होत्रा के एक गुंडे को पकड़कर उससे कबूल करवाया कि कैसे मल्होत्रा ने उस रात आर्या और उसके दोस्त की बाइक को रोकने का प्लान बनाया था, लेकिन तभी आदित्य की तेज़ रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे उनका प्लान पूरा हो गया। आदित्य का एक्शन अनजाने में एक जुर्म को कवर करने का जरिया बन गया था।

मल्होत्रा गिरफ्तार हुआ। आदित्य ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। कोर्ट में, सच सामने आया। आदित्य को हिट एंड रन और भागने के जुर्म में सजा हुई, लेकिन उसकी सच्चाई बोलने और एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश करने की वजह से सजा कम हुई।

सालों बाद जेल से छूटकर, आदित्य एक बदला हुआ इंसान था। उसकी जवानी का चमकदार रंग फीका पड़ चुका था, लेकिन उसमें एक नई गहराई आ गई थी। वह आर्या से मिलने गया, जो अब कोमा से बाहर आ चुकी थी और धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। उसने उसके और उसके परिवार के सामने सिर झुकाया और माफी मांगी।

आर्या ने उसकी आंखों में देखा। डर, पछतावा और एक नई शुरुआत की उम्मीद... उसने एक कमजोर सी मुस्कान दी। शायद पूरी माफी नहीं, लेकिन शुरुआत जरूर थी।

आदित्य की जवानी एक जुर्म बनकर खत्म हुई थी, लेकिन उसी जुर्म ने उसे एक सच्चाई का पता दिया था। उसने सीखा था कि हर एक्शन की एक reaction होती है, और कभी-कभी, एक गलतफहमी आपकी पूरी ज़िंदगी की कहानी बदल देती है। अब उसकी नई जवानी शुरू हो रही थी - एक जिम्मेदारी, सच्चाई और प्रायश्चित की उम्र की।

मेरी ज़िंदगी की शुरुआत सपनों जैसी थी। कॉलेज के दिनों में माँ को दिल का दौरा पड़ा और वो हमेशा के लिए चली गईं। उसी वक़्त म...
01/09/2025

मेरी ज़िंदगी की शुरुआत सपनों जैसी थी। कॉलेज के दिनों में माँ को दिल का दौरा पड़ा और वो हमेशा के लिए चली गईं। उसी वक़्त मेरी ऑनलाइन दोस्ती एक लड़के से हुई। वह मुझे समझता था, मेरी बातें सुनता था और हर हफ्ते पाँच घंटे का सफ़र तय करके मुझसे मिलने आता था। धीरे-धीरे उसकी जिद, उसकी आँखों के आँसू और उसका समर्पण मेरे दिल को छू गए। मैंने भी हाँ कर दी और हम दोनों की शादी एक सादे से समारोह में हो गई।

शादी की पहली रात उसने मुझे नया फोन गिफ्ट किया। उस पल लगा कि मेरी दुनिया पूरी हो गई है। लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि इस शादी में कुछ तो कमी है। हमारे बीच कभी भी पति-पत्नी जैसी नज़दीकियाँ नहीं बनीं। हनीमून तक नहीं हुआ। जब भी मैंने बात की, उसका जवाब बस यही होता कि वो थका हुआ है या उसे सोना है। एक दिन जब मैंने इस टॉर्चर को लेकर सवाल किया तो उसने गुस्से में मुझे थप्पड़ मार दिया। मैं हक्का-बक्का रह गई।

हम बाहर से बिल्कुल खुशहाल कपल लगते थे। खरीदारी करते, फिल्में देखते, लोगों के सामने हँसते-खिलखिलाते। लेकिन रात को मैं अकेले आँसू बहाती। वो मुझे छूना तक नहीं चाहता था। टीवी पर रोमांटिक सीन आते ही वह उठकर दूसरे कमरे में चला जाता। मैंने शक किया कि कहीं उसका कोई अफेयर है, या शायद वो गे है, या फिर मुझसे शादी समाज के डर से की। लेकिन हर बार उसका जवाब “नहीं” ही था।

तीन साल तक मैंने यह झूठा रिश्ता निभाया। कई बार उसने मुझे चप्पल, बेल्ट से मारा, कभी मेरे ऊपर सामान फेंका। मैंने अपने जख्म छुपा लिए। मेरे पास माँ या बहन नहीं थी जिससे मैं मन की बातें कह पाती। पापा के पास लौटने की हिम्मत नहीं थी, क्योंकि डर था कि वो उसके साथ क्या करेंगे, और समाज के ताने अलग।

सबसे अजीब बात यह थी कि जब भी मैं अपना सामान पैक करती और जाने की कोशिश करती, वह बच्चे की तरह रोने लगता। मेरे पैरों में गिरकर माफी माँगता, वचन देता कि सब बदल जाएगा। कुछ दिन तक सब ठीक भी लगता, लेकिन फिर वही कहानी दोहराई जाती।

आख़िरकार मैंने ठान लिया और तलाक़ के लिए केस फाइल कर दिया। आज मैं एक नए शहर में अपनी दोस्त के साथ रहती हूँ और ज़िंदगी को फिर से संवारने की कोशिश कर रही हूँ। मैं 25 साल की हूँ, और हाँ, मैंने बहुत कुछ झेला है। लेकिन मैं टूटने वाली नहीं हूँ।

आज भी मुझे प्यार पर भरोसा है। आज भी मुझे यक़ीन है कि दुनिया में अच्छाई बाकी है। और आज भी मुझे लगता है कि कहीं न कहीं कोई ऐसा इंसान होगा, जो मुझे उसी तरह चाहेगा, जैसा मैं डिज़र्व करती हूँ।

शादी से पहले मेरे मन में भी वही सवाल थे जो शायद हर लड़के के मन में होते हैं— पत्नी से प्रेम होगा या उसके शरीर से? आकर्षण...
01/09/2025

शादी से पहले मेरे मन में भी वही सवाल थे जो शायद हर लड़के के मन में होते हैं— पत्नी से प्रेम होगा या उसके शरीर से? आकर्षण ज्यादातर रूप और अंगों को देखकर ही शुरू होता है। मैं भी इससे अलग नहीं था।

प्रीति से शादी हुई, जिंदगी चलने लगी। प्रेम भी बढ़ा, लेकिन जब भी वह शारीरिक संबंध से मना कर देती, मेरा मन खिन्न हो जाता। और जब हमारा मिलन होता, तो सब कुछ सहज हो जाता। उस वक्त मैं खुद समझ नहीं पाता कि मुझे प्रेम प्रीति से है या उसके शरीर से।

समय बीता, प्रीति गर्भवती हुई। प्रसव का समय आया तो डॉक्टर ने कहा कि नॉर्मल डिलीवरी कठिन है। 9 मार्च की रात को उसे भर्ती किया गया। दर्द के बीच उसकी धड़कनें धीमी पड़ रही थीं। डॉक्टर ने मुझे अंदर बुलाया— कहा कि उसे हिम्मत दो।

मेरे सामने मेरी पत्नी दर्द से कराह रही थी। उसी योनि से, जिसकी चाहत मुझे रात-दिन रहती थी, बच्चे का सिर बाहर आता दिख रहा था। और जब बच्चा जन्मा तो उसे प्रीति की छाती से लगाकर, उसके स्तनों से पहली गर्मी और जीवन मिला।

उस क्षण मेरी सोच बदल गई। मुझे समझ आया— पत्नी सिर्फ शरीर नहीं है, वह जीवन देने वाली है। जिस अंग को मैं सिर्फ वासना से देखता था, वही सृष्टि का आधार है।

उस दिन पहली बार मैंने जाना कि प्रेम शरीर से परे होता है। मेरी पत्नी के लिए सम्मान कई गुना बढ़ गया और मेरी मां की ममता के लिए सिर और झुक गया।

मैं मानता हूं— हर पुरुष को प्रसव का वह दृश्य देखना चाहिए, तभी समझ आएगा कि औरत सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि त्याग, शक्ति और जीवन का दूसरा नाम है।

मिलन  के बाद की वह तृप्ति प्रकृति का एक उपहार है—यह न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मिक संतुलन भी देती है। अगर आप...
01/09/2025

मिलन के बाद की वह तृप्ति प्रकृति का एक उपहार है—यह न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मिक संतुलन भी देती है। अगर आपको यह अनुभूति होती है, तो यह स्वस्थ यौन जीवन का संकेत है। इस पल का आनंद लें, और अगर साथी के साथ हैं, तो उसके साथ इस जुड़ाव को और गहरा करें।

क्या आपने कभी इस तरह की तृप्ति महसूस की है? कमेंट में अपने अनुभव शेयर करें! 😊

हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। घर के आँगन में रखी कुर्सी पर बैठा मैं सोच रहा था—पता नहीं ये प्रेम प्रीति से है या उसके शरी...
01/09/2025

हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। घर के आँगन में रखी कुर्सी पर बैठा मैं सोच रहा था—पता नहीं ये प्रेम प्रीति से है या उसके शरीर से। शादी के शुरुआती दिनों में उसका हर स्पर्श, हर नज़दीकी मुझे बस तन की चाह से भरा लगता था। कई बार जब वह मना करती, तो भीतर चिड़चिड़ापन भर जाता। मगर जैसे ही उसका साथ मिलता, जैसे ही वह गले लगती—सब शिकायतें पलभर में खत्म हो जातीं।

फिर वह पल आया जब पता चला कि प्रीति माँ बनने वाली है। खुशी भी थी और भीतर एक अजीब बेचैनी भी। ज़िम्मेदारियों का बोझ सिर पर था। और फिर अचानक डॉक्टर ने कहा—ऑपरेशन करना पड़ेगा। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। कई डॉक्टरों के चक्कर लगाने के बाद आख़िरकार नॉर्मल डिलीवरी की तैयारी हुई।

9 मार्च की सुबह अस्पताल में सब कुछ बहुत तेज़ी से घट रहा था। प्रीति की चीखें कान फाड़ रही थीं। अचानक उसकी पल्स गिरने लगी। डॉक्टर ने मुझे अंदर बुलाया। कमरे की ठंडी हवा और मशीनों की बीप के बीच, मैं अपनी पत्नी को देख रहा था—नग्न, असहाय, मगर हिम्मत से भरी।

उसकी योनि से बच्चे का सिर बाहर झलक रहा था। वही स्थान जिसे मैं हर रात चाहत की नज़र से देखता था, आज जीवन की ड्योढ़ी बना हुआ था। पल भर में मेरी आँखें भर आईं। प्रीति दर्द से तड़प रही थी, मगर उसी तड़प के बीच वह एक नई ज़िंदगी को जन्म दे रही थी।

और फिर… एक तीखी चीख के साथ बच्चा बाहर आया। नर्स ने तुरंत उसे माँ की छाती पर रख दिया। वही स्तन, जो अब तक मेरे लिए सिर्फ आकर्षण का प्रतीक थे, उसी क्षण जीवनदायिनी बन गए। दूध की गर्माहट और माँ की गोद में लिपटा बच्चा—उस दृश्य ने मुझे भीतर तक हिला दिया।

मैंने प्रीति को देखा—पसीने से लथपथ, थकी हुई, मगर चेहरे पर संतोष की चमक थी। उसी क्षण मुझे समझ आया कि प्रेम शरीर से नहीं होता, आत्मा से होता है। यह रिश्ता केवल रातों की भूख नहीं, बल्कि जीवन की डोर है।

उस रात मेरी नज़र में सिर्फ मेरी पत्नी ही नहीं, मेरी माँ भी महान हो गई। क्योंकि एक स्त्री प्रसव के दर्द से गुज़रते हुए न सिर्फ़ एक बच्चे को जन्म देती है, बल्कि अपने पति के प्रेम को भी नया अर्थ देती है।

मुझे उस दिन यक़ीन हुआ—जिस पुरुष ने अपनी पत्नी को प्रसव की पीड़ा में देखा है, वह उसे कभी सिर्फ़ शरीर की चीज़ नहीं समझ सकता।

दिल कह रहा था उसे अपनी बाहों में भर लूं उसे बिस्तर में गिरा दूं और बिना ब्याह सुहागरात मना फिर एक रात रोशन अपने छोटे से ...
01/09/2025

दिल कह रहा था उसे अपनी बाहों में भर लूं उसे बिस्तर में गिरा दूं और बिना ब्याह सुहागरात मना फिर एक रात

रोशन अपने छोटे से घर में अकेला बैठा था। बाहर बारिश की हल्की-हल्की बूंदें खिड़की से टकरा रही थीं। उसकी नज़र अक्सर अपनी पड़ोसन रागिनी पर जाती थी, जो उससे कुछ साल छोटी थी, लेकिन उसकी खूबसूरती और यौवन ने उसे हमेशा आकर्षित किया था। रागिनी भरी हुई जवानी की मिसाल थी—उसकी हर अदा, हर मुस्कान रोशन के दिल को छू जाती थी।

उस रात, जब बारिश तेज हो गई, रोशन ने देखा कि रागिनी उसके दरवाज़े पर खड़ी है। उसके बाल भीगे हुए थे, और कपड़ों से पानी टपक रहा था।

"रोशन भैया, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ? मेरे घर की बिजली चली गई है, और मैं अकेली डर रही हूँ," रागिनी ने कहा, उसकी आवाज़ में एक कंपकंपी थी।

रोशन ने उसे अंदर बुलाया। "ज़रूर, आ जाओ। तुम ठीक तो हो?"

रागिनी ने हाँ में सिर हिलाया और अंदर आकर सोफ़े पर बैठ गई। रोशन ने उसे तौलिया दिया, और जैसे ही उसने अपने बाल सुखाए, उसकी नम त्वचा पर पानी की बूंदें चमक रही थीं। रोशन का दिल तेजी से धड़कने लगा।

थोड़ी देर बाद, जब बारिश और तेज हो गई, रागिनी ने कहा, "शायद मुझे यहीं रुकना पड़ेगा। घर जाना मुश्किल होगा।"

रोशन ने हामी भरी, लेकिन उसके मन में अब एक अजीब सी बेचैनी थी। रात गहराती गई, और दोनों ने कुछ फिल्म देखने का फैसला किया। टीवी की रोशनी में रागिनी के चेहरे का नूर और भी निखर आया। कभी-कभी वह हंसती, तो उसकी मासूमियत रोशन को पागल कर देती।

फिल्म के बीच में ही, रागिनी ने अचानक रोशन की तरफ देखा और पूछा, "तुम्हें कभी ऐसा लगता है कि हम दोनों के बीच कुछ खास है?"

रोशन चौंक गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि रागिनी उसके बारे में ऐसा सोचती होगी। वह कुछ कहने ही वाला था कि रागिनी ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"मैं हमेशा से तुम्हारी तरफ आकर्षित रही हूँ, रोशन," उसने फुसफुसाते हुए कहा।

उस पल के बाद, सब कुछ बदल गया। रोशन ने खुद को रागिनी के करीब पाया, उसकी सांसें तेज हो गईं। उनके बीच की दूरी धीरे-धीरे खत्म हो रही थी, और फिर... उनके होंठ मिले।

वह रात रोशन कभी नहीं भूल सकता। रागिनी का हर छूआ, हर चुंबन, हर पल... उसकी यादों में हमेशा के लिए जिंदा हो गया।

लिखना जरूर ताकि महिलाओं को यह पता चल जाए कि मर्दों को उनकी कौन सी हरकत बिल्कुल पसंद नहीं है
01/09/2025

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