Dehati masti

Dehati masti my name neelu Pandey and I am a gamer & streamer I am live for 2 hours on day

लड़कियों के वो 8 इशारे जो बताते हैं कि उन्हें आपमें दिलचस्पी है!👀 बार-बार देखना या नजरें मिलानाजब वो बार-बार आपको देखे औ...
11/07/2025

लड़कियों के वो 8 इशारे जो बताते हैं कि उन्हें आपमें दिलचस्पी है!
👀 बार-बार देखना या नजरें मिलाना
जब वो बार-बार आपको देखे और नजरें चुरा ले — समझो, दिल में कुछ है!
"ये इशारा है... कोशिश करो।"

😊 हल्की मुस्कान देना
जब वो आपको देखकर मुस्कुराए — ये एक मीठा राज़ होता है, जो कहता है:
"तुम खास हो..."

🤝 बिना वजह छूना
हाथ पकड़ना, कंधे पर टच — ये छोटे टच बहुत कुछ कह जाते हैं।
"वो पास आना चाहती है।"

💬 खुद ही बताना कि वो सिंगल है
अगर वो बिना पूछे बता दे कि उसका कोई नहीं है —
"तो जनाब, गेंद अब आपके पाले में है!"

🧏‍♀️ उसके दोस्त आपको पहचानते हों
अगर उसके दोस्त आपको देखकर मुस्कराएं —
तो आप उसकी बातों का हिस्सा बन चुके हैं।

🎧 आपकी बातों में गहरी दिलचस्पी लेना
जब वो attentively सुने, सवाल पूछे और हर बात में उत्सुक हो —
"वो आपसे जुड़ना चाहती है!"

😜 थोड़ा फ्लर्ट करना
हँसी-मजाक, शरारती नजरें, teasing —
"ये खेल सिर्फ उन्हीं के साथ होता है जिनमें दिलचस्पी हो!"

❓ निजी सवाल पूछना
"क्या कभी किसी से प्यार हुआ?"
"घर में कौन-कौन हैं?"
ये सब सवाल सिर्फ जानकारी के लिए नहीं होते —
"ये connection की शुरुआत होते हैं।"

🔚 तो अब फैसला आपके हाथ में है...
वो इशारे दे चुकी है, अब आपकी बारी है कि आप इसे महसूस करें, समझें... और आगे बढ़ें।

11/07/2025

"बड़ी उम्र की महिला से डेटिंग — फायदे और नुकसान दोनों"

10 कारण: क्यों आपको बड़ी उम्र की महिला से डेट करने से पहले सोचना चाहिए1. जीवन प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैंअक्सर बड़ी उम्...
10/07/2025

10 कारण: क्यों आपको बड़ी उम्र की महिला से डेट करने से पहले सोचना चाहिए
1. जीवन प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं
अक्सर बड़ी उम्र की महिलाएं अपने जीवन में स्थिरता, स्पष्टता और उद्देश्य के साथ चल रही होती हैं, जबकि युवा पुरुष अभी खुद को तलाशने के मोड़ पर होते हैं। ये भिन्नताएं टकराव पैदा कर सकती हैं।

2. जिम्मेदारियों का अंतर
बड़ी उम्र की महिला के पास परिवार, बच्चे या प्रोफेशनल कमिटमेंट्स हो सकते हैं, जिनमें एक युवा साथी के लिए जगह कम हो सकती है।

3. पीढ़ी का अंतर
संस्कृति, म्यूज़िक, फैशन, भाषा और सोच के स्तर पर अंतर आ सकता है। वही चीज़ें जो आपको ‘कूल’ लगें, उन्हें ‘बचकानी’ भी लग सकती हैं।

4. सामाजिक दबाव और आलोचना
समाज अब भी ऐसे रिश्तों को सहजता से नहीं लेता। लगातार सवाल, ताने और नज़रें रिश्ते में तनाव ला सकती हैं।

5. मातृत्व या परिवार की चाह
अगर आप भविष्य में बच्चे की इच्छा रखते हैं, तो यह विषय संवेदनशील हो सकता है — शारीरिक सीमाएं और जीवन लक्ष्य इस पर असर डालते हैं।

6. स्वतंत्रता और कंट्रोल का मुद्दा
कभी-कभी बड़ी उम्र की महिलाओं में अधिक आत्मनिर्भरता और कंट्रोल की प्रवृत्ति होती है, जिससे रिश्ते में बराबरी की जगह असंतुलन आ सकता है।

7. जलन या असुरक्षा की भावना
एक युवा पुरुष को उसके दोस्त या समाज के लोग इस रिश्ते को 'ट्रॉफी रिलेशनशिप' या 'लाभ उठाने वाला' मान सकते हैं, जिससे आत्म-सम्मान प्रभावित हो सकता है।

8. रोमांटिक ऊर्जा और रुचियों का अंतर
बड़ी उम्र के साथ प्राथमिकताएं बदलती हैं — नाइट क्लब, एडवेंचर ट्रिप्स और फ़िज़िकल एक्टिविटी के लेवल पर तालमेल न बन पाए तो रिश्ते में दूरी आ सकती है।

9. अलग-अलग स्टेज़ ऑफ लाइफ
वो रिटायरमेंट की प्लानिंग कर रही हो सकती हैं, जबकि आप करियर में ग्रोथ और जोखिम लेने के मोड़ पर हों। इससे आपसी दृष्टिकोणों में बड़ा फर्क आ सकता है।

10. रिश्ते का अस्थायी या जटिल हो जाना
कई बार ऐसी रिलेशनशिप स्थायी नहीं हो पाती, खासकर अगर दोनों ने स्पष्ट संवाद नहीं किया हो। अलग-अलग जरूरतें और अपेक्षाएं इसे जटिल बना सकती हैं।

💡 ध्यान दें:
यह लेख किसी उम्र, लिंग या रिश्ते की आलोचना नहीं है। बड़ी उम्र की महिलाएं बहुत परिपक्व, समझदार और प्रेरणादायक होती हैं। यह लेख केवल उन चुनौतियों की बात करता है जो कुछ लोगों के लिए व्यवहारिक रूप से मायने रख सकती हैं।

एक गांव में एक साधारण सी घटना घटी, जो असाधारण प्रेम और प्रामाणिकता की मिसाल बन गई।एक रात, एक पति थका-मांदा यात्रा से लौट...
10/07/2025

एक गांव में एक साधारण सी घटना घटी, जो असाधारण प्रेम और प्रामाणिकता की मिसाल बन गई।

एक रात, एक पति थका-मांदा यात्रा से लौटा। बिस्तर पर बैठते ही पत्नी से बोला, "पानी लाओ, बहुत प्यास लगी है।" पत्नी तुरंत पानी लेकर आयी, लेकिन इतने में पति लेटते ही गहरी नींद में चला गया। पत्नी चुपचाप खड़ी रही, गिलास हाथ में लिए पूरी रात।

न वह उसे उठाना चाहती थी, क्योंकि वह थका था।
न वह खुद सोना चाहती थी, क्योंकि पति को प्यास थी।

वह रातभर गिलास लिए खड़ी रही — प्रेम में, निःशब्द सेवा में।
सुबह जब पति की आंख खुली, तो पत्नी को देखकर चौंका — “तू सो क्यों नहीं गयी?”
पत्नी मुस्काई — “यह कैसे संभव था? तुम्हें प्यास थी। नींद खुलती तो मैं कैसे जान पाती?”
पति ने कहा, “तो मुझे उठा देती।”
वह बोली, “वह भी कैसे कर पाती? तुम थके थे, सोये थे।”

यह बात गांव में फैली। सम्राट तक पहुंची।
राजा ने उस पत्नी को दरबार में बुलाया और उसे हीरे-जवाहरातों से सम्मानित किया।
उसका प्रेम, उसका समर्पण — निरुपम था, नकल से परे।

पड़ोस की महिला को ईर्ष्या हुई। उसने भी वैसा ही दृश्य दोहराया, योजना बनाकर।
पति को समझाया — "आज तुम थके-मांदे लौटना, पानी मांगना, और फिर सो जाना। मैं गिलास लेकर खड़ी रहूंगी। सुबह सबके सामने वैसा ही संवाद होगा, ताकि खबर फैले और मुझे भी राजा से इनाम मिले।"

सब किया गया वैसा ही।

पर अंतर था — पहली महिला के भीतर प्रेम का सागर था, दूसरी के भीतर पुरस्कार की लालसा।
वह रातभर खड़ी नहीं रही। सो गई।
सुबह संवाद ज़रूर बोला गया, पर दिल से नहीं, स्क्रिप्ट से।

राजा ने सब सुना। पर उसकी आंखें पढ़ गईं —
"तुमने किया वही है, लेकिन हुआ नहीं है।"

और उस पर कोड़े बरसाए गए।

क्योंकि करने और होने में फर्क है।

इस कथा में एक गहरा संदेश छुपा है —
सच्चाई की कोई नकल नहीं होती।
प्रेम, भक्ति, सेवा, समर्पण — ये चीज़ें होती हैं, की नहीं जातीं।

आज हम भी बहुत बार ऐसा करते हैं:
किसी की प्रार्थना शैली अपनाते हैं,
दूसरों की भक्ति रीति नकल करते हैं,
या दूसरों की जीवन यात्रा दोहराने की कोशिश करते हैं।

पर ईश्वर को अभिनय नहीं चाहिए।
उसे चाहिए हृदय का सत्य।

हर प्रेमी का प्रेम अलग होता है,
हर भक्त की पुकार अलग होती है।
अगर मजनू बनना है, तो अपने भीतर से बनो।
अगर मीरा की भक्ति चाहिए, तो मीरा जैसा हृदय लाओ, उसके भजन नहीं।

नक़ल से मुक्ति नहीं मिलती।
नकल प्रेम नहीं, पाखंड बन जाती है।

जो प्रेम से होता है, वह नीरस रिवाजों से ऊपर उठता है।
जो सच्चे भाव से होता है, वही भगवान तक पहुंचता है।
बाकी सब — अभिनय है, स्वांग है, और अंततः व्यर्थ है।

इसलिए प्रेम करो, जैसे पहले किसी ने नहीं किया।
भक्ति करो, जैसे यह तुम्हारी आत्मा की पुकार हो।
और जीयो, जैसे हर क्षण अनोखा है — क्योंकि सचमुच, वह है।

"राही और उसका मुक़द्दर"(एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान)कभी-कभी ज़िंदगी में हम ऐसे मोड़ पर खड़े हो जाते हैं जहाँ से ...
10/07/2025

"राही और उसका मुक़द्दर"
(एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान)

कभी-कभी ज़िंदगी में हम ऐसे मोड़ पर खड़े हो जाते हैं जहाँ से न पीछे लौटने का रास्ता होता है और न ही आगे बढ़ने की हिम्मत बचती है। वहां बस एक तन्हा राही होता है... और उसका बदनसीब मुक़द्दर।

राही... एक ऐसा नाम नहीं, एक एहसास है। हर उस शख़्स का चेहरा जो मोहब्बत में टूटा है, जिसे ज़िंदगी ने हर बार आज़माया और हर बार उसने ग़म को गले से लगा लिया।

"मुक़द्दर आज़माने की कोशिश में,
अक्सर बदनसीबी के साए इर्द-गिर्द नजर आते हैं राही..."

वो किसी से प्यार करता था, बेहद... लेकिन शायद प्यार सिर्फ़ एकतरफा था। या शायद मुक़द्दर को उसकी मोहब्बत मंज़ूर नहीं थी। उसने कांटों से दोस्ती कर ली थी, क्योंकि फूल तो हमेशा छिन जाते थे। अब जब राह में कांटे भी मिलते हैं, तो वह उन्हें चूम लेता है। क्योंकि वो भी अब उसके दर्द के हमदर्द बन चुके हैं।

"अब राह में जो भी कांटे दिखे,
उन्हें चूम लेते हैं, वो भी हमें ग़म के तरफ़दार नज़र आते हैं राही..."

वो किससे कहे अपने टूटे दिल की बात? शहर की भीड़ में सब ज़िंदा हैं, मगर ज़िंदा-जिंदा से कोई सुनता ही नहीं। अब वह किसी से कुछ नहीं कहता। दर्द को अपनी चुप्पी में छुपा लेता है। भीड़ में रहते हुए भी अजनबी-सा हो गया है।

"इस शहर में कोई नहीं हमारी दर्द सुनने वाला,
हम भी अब सर झुकाए चुपचाप चले जाते हैं राही..."

उसकी मोहब्बत समंदर की लहरों सी थी—बेसब्र, बेक़ाबू और बहुत गहराई लिए। पर ये लहरें भी उसकी हमसफ़र बन कर आईं और फिर वही लहरें उसे अकेला छोड़ कर चली गईं। मोहब्बत ने साथ निभाने का वादा तो किया था, पर निभा न सकी।

"नक़्श-ए-दिल पे क्या बीती, पूछो मत,
कितनी लहरें हमसफ़र बन के, हमें ही तन्हा कर जाती हैं राही..."

अब वह किसी गिले-शिकवे का हक़ नहीं रखता। वह जानता है कि यह सब कुदरत के फैसले हैं। जब मुकद्दर ही दर-बदर लिख दिया गया हो, तो इंसान क्या करे? वह अब बस अपनी बर्बादी को अपनी पहचान मान चुका है।

"क़ुदरत के फ़ैसले से दर-बदर होना था,
करूं अब क्या, मैं बर्बादी में ही शुमार हो जाता हूँ राही..."

हर इंसान की एक कहानी होती है, और हर कहानी में एक राही होता है। वो राही जो कभी किसी की मुस्कान के पीछे छुपा होता है, कभी भीड़ में खोया होता है, कभी कविता में छलकता है, तो कभी ब्लॉग में सांस लेता है।

शायद आप भी कभी ऐसे राही से मिले होंगे…
या शायद... आप ख़ुद ही वो राही हों।

समुद्र के किनारे एक बच्चा खेल रहा था। एक तेज़ लहर आई और उसका चप्पल बहा ले गई। बच्चा रेत पर उंगली से लिखता है —"समुद्र चो...
10/07/2025

समुद्र के किनारे एक बच्चा खेल रहा था। एक तेज़ लहर आई और उसका चप्पल बहा ले गई। बच्चा रेत पर उंगली से लिखता है —
"समुद्र चोर है..."

थोड़ी दूरी पर एक मछुआरे की नाव भर गई थी, वह रेत पर लिखता है —
"समुद्र मेरा पालनहार है..."

वहीं किसी कोने पर एक मां अपने बेटे की याद में डूबी हुई है जो समुद्र में डूब गया था। वो रेत पर लिखती है —
"समुद्र हत्यारा है..."

कई मील दूर, एक बूढ़ा आदमी समुद्र के किनारे टहलते हुए एक सीप में अनमोल मोती पा जाता है। वो मुस्कुराते हुए रेत पर लिखता है —
"समुद्र बहुत दानी है..."

और तभी…
एक बड़ी लहर आती है और रेत पर लिखी सारी बातें बहा ले जाती है। बिना कुछ कहे, बिना कुछ पूछे।

समुद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उसे क्या कहता है।
वो हर दिन अपनी लहरों में खोया रहता है — मस्त, शांत और अथाह।

कभी चोर, कभी दानी, कभी हत्यारा, कभी पालनहार...
पर सच्चाई यही है कि समुद्र तो बस समुद्र है।
लोग अपनी-अपनी सोच, अनुभव और दुःख–सुख के अनुसार उसकी व्याख्या करते हैं।

ठीक वैसे ही जैसे लोग हमें भी परिभाषित करते हैं।
कभी तारीफ करते हैं, तो कभी आलोचना।
कभी हमारा समर्थन करते हैं, तो कभी निंदा।
लेकिन क्या हम हर बार उनकी सोच के हिसाब से खुद को बदलते हैं?

नहीं। बदलो मत। समुद्र बनो।

बड़ा बनो, गहरा बनो, शांत बनो।

लोगों की राय, उनके शब्द, उनकी सोच — रेत पर लिखी बातों की तरह हैं।
वक्त की एक लहर आएगी और सब बहा ले जाएगी।

तुम सिर्फ अपने होने को जीयो।
क्योंकि दुनिया की सोच तुम्हारे मूल्य का पैमाना नहीं है।

06/07/2025

इन कारणों से आपकी पत्नी किस और के साथ सोती है

सच्चा प्रेमदीपक और मेरी शादी को दो साल हो चुके थे। मधुबनी की उस मिट्टी में पली थी, जहाँ सिखाया गया था कि लड़की की सबसे ब...
06/07/2025

सच्चा प्रेम

दीपक और मेरी शादी को दो साल हो चुके थे। मधुबनी की उस मिट्टी में पली थी, जहाँ सिखाया गया था कि लड़की की सबसे बड़ी इज्जत उसकी "लज्जा" होती है। शादी के बाद मेरा जीवन मानो स्वप्न बन गया। दीपक सिर्फ पति नहीं, मेरे सबसे अच्छे दोस्त भी थे। उनका प्यार हर तकलीफ़ की दवा था।

फिर एक दिन, मैं गर्भवती हुई। यह खबर सबके लिए खुशियों की सौगात थी। एक चेकअप के दिन, लौटते समय हमें एक ई-रिक्शा ने टक्कर मारी। मैं पेट के बल गिर पड़ी और सब कुछ अंधेरा हो गया।

जब होश आया, तो पता चला कि मेरा निचला हिस्सा कभी काम करता है, कभी नहीं। और... हमारा बच्चा अब इस दुनिया में नहीं था।

मैं टूटी थी — भीतर से, बाहर से। एक दिन खाना खाते वक्त पेशाब निकल गया। दीपक ने बिना कुछ कहे साफ किया। मेरा सिर शर्म से झुक गया। सासू माँ से बात की तो वो नाराज़ हो गईं — "शर्म नहीं आती पति से ये सब करवाते हुए?"

शाम को दीपक से कहा, “तुम्हें ये सब नहीं करना चाहिए।” वो मुस्कुराए, मेरी आंखों में देखा और बोले,
"अगर मेरी जगह तुम होतीं, क्या मुझे दूर कर देतीं?"
मैं चुप थी।
उन्होंने कहा, “जिसने तुम्हें हर रूप में अपनाया है, उससे कैसी शर्म? अगर नर्स रखी, तो हमारे रिश्ते का क्या अर्थ रह जाएगा?”

उनके शब्दों ने जैसे मेरे मन की सारी गांठें खोल दीं।

आज उस हादसे को दो साल हो गए हैं। दीपक अब भी हर रात मेरी कमर की मालिश करते हैं... हर दर्द पर अपने प्रेम का मरहम लगाते हैं।

शायद, यही होता है — सच्चा प्रेम।

वो बचपन का प्यारा दौर..."वो भी क्या ज़माना था...ना फ़िक्र थी, ना चिंता, बस मस्ती ही मस्ती थी।ना रिज़ल्ट का डर, ना फ्यूचर...
06/07/2025

वो बचपन का प्यारा दौर..."

वो भी क्या ज़माना था...
ना फ़िक्र थी, ना चिंता, बस मस्ती ही मस्ती थी।
ना रिज़ल्ट का डर, ना फ्यूचर की सोच।
बस मिट्टी में खेलते हुए, सपनों का महल बनाते थे।

कंचे, लुका-छिपी, पतंगें — हर चीज़ में दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिलती थी।
कभी चोट लगी तो माँ की एक फूँक ही काफी थी दर्द मिटाने को।
पापा की उँगली पकड़कर चलना, और उनकी गोदी में दुनिया की सबसे महफूज़ जगह लगती थी।

वो गर्मियों की छुट्टियाँ, नानी के घर की मिठास,
वो छत पर सोना और तारों से बातें करना...
हर बात में एक मासूमियत थी, हर पल में एक जादू।

आज जब बड़े हो गए हैं, तो समझ आता है —
सबसे अमीर हम तब थे, जब जेब में सिर्फ़ कंचे और दिल में हज़ारों सपने हुआ करते थे।

काश... वो बचपन फिर लौट आता। 🌸

अगर आप चाहें, तो मैं इस पर एक खूबसूरत इमोशनल रील की स्क्रिप्ट, बैकग्राउंड म्यूजिक का सुझाव या इससे जुड़ी कोई इमेज/आर्टवर्क भी बना सकता हूँ। बताइए कैसे मदद करूं?

"इंसानियत वाली दुकान"हर रात की तरह वो अपनी किराने की दुकान बंद कर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम आवाज़ आई —"अंकल....
06/07/2025

"इंसानियत वाली दुकान"
हर रात की तरह वो अपनी किराने की दुकान बंद कर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम आवाज़ आई —
"अंकल... अंकल..."
उन्होंने पलट कर देखा — 7-8 साल की एक लड़की हांफती हुई दौड़ी चली आ रही थी।

"क्या बात है बेटा? सब ठीक तो है?"
बच्ची ने धीमे स्वर में कहा —
"पंद्रह रुपए की कनियाँ और दस रुपए की दाल लेनी थी..."

उन्होंने थकान भरे मगर नरम लहजे में कहा —
"अब तो दुकान बंद कर दी है बेटा... सुबह आ जाना।"
"पर अभी चाहिए थी..." उसने झिझकते हुए कहा।
"जल्दी आ जाती तो दे देता… सारा सामान समेट दिया है।"

बच्ची कुछ नहीं बोली। सिर झुकाए बोली —
"घर में आटा भी नहीं है… और पापा अभी-अभी मज़दूरी से लौटे हैं..."

ये शब्द जैसे सीने में कहीं चुभ गए।

कुछ पल चुप रहने के बाद उन्होंने जेब से चाबी निकाली, दुकान का ताला खोला और बिना तोले ही कनियाँ और दाल थैले में डाल दी।
बच्ची ने थैला पकड़ा और मुस्कुराकर बोली —
"धन्यवाद अंकल..."
"अब घर ध्यान से जाना बेटा..." उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा।

लेकिन उस रात वो सो न सके।
बच्ची की वो मासूम आँखें और शब्द —
"घर में आटा भी नहीं है..."
बार-बार उनके ज़हन में गूंजते रहे।

उन्हें अपना बचपन याद आया।
पिता रिक्शा चलाते थे, माँ दूसरों के घरों में काम करती थीं।
कई रातें ऐसी होती थीं जब पानी में रोटी भिगोकर खानी पड़ती थी।
"काश तब कोई मदद कर देता..."

सुबह जब उन्होंने दुकान खोली, सबसे पहले एक बोर्ड लगाया —
"अगर ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए। सामान उधार नहीं, हक़ से मिलेगा।"

और पास में एक डिब्बा रखा —
"अगर आप किसी की मदद करना चाहें, तो इसमें पैसे डाल सकते हैं।"

लोग पहले तो चौंके, फिर धीरे-धीरे समझने लगे कि ये दिखावा नहीं, इंसानियत का कदम था।

एक हफ्ते बाद वही बच्ची फिर आई — इस बार अपने छोटे भाई के साथ।
"अंकल, पापा ने पैसे दिए हैं। पिछली बार का भी जोड़ लेना।"

वो मुस्कराए —
"बेटा, वो इंसानियत का कर्ज़ था… उसका कोई हिसाब नहीं होता।"

बच्ची ने बोर्ड की ओर इशारा किया और कहा —
"पापा ने कहा है जब अगली बार मज़दूरी करेंगे, तो डिब्बे में पैसे डालेंगे... ताकि कोई और भूखा न सोए..."

उनकी आंखें भर आईं।

धीरे-धीरे लोग इस दुकान को "इंसानियत वाली दुकान" कहने लगे।
यहां से बुज़ुर्ग, मजदूर, अकेले रहने वाले लोग इज़्ज़त से सामान लेने लगे।
जो सक्षम होते, वो चुपचाप डिब्बे में कुछ न कुछ डाल जाते।
बच्चे अपनी गुल्लक से पैसे लाकर रखने लगे।

यह दुकान अब सिर्फ व्यापार नहीं थी — भरोसे का मंदिर बन चुकी थी।

फिर एक दिन एक पत्रकार ने इसकी कहानी छापी —
"जहां मुनाफा नहीं, ज़रूरत की कीमत ज़्यादा है"

यह लेख वायरल हुआ। लोग दूर-दूर से इस दुकान को देखने आने लगे।
पर दुकानदार ने कभी इसका फायदा नहीं उठाया।
बस इतना कहा —
"अगर एक बच्ची की भूख ने मुझे बदल दिया, तो शायद ये दुकान किसी और को भी बदल दे।"

अब वह बच्ची स्कूल जाती है — उसकी फीस भी उन्होंने गुप्त रूप से भर दी।
उसके पिता ने एक दिन आकर कहा —
"आपने सिर्फ दाल-चावल नहीं दिए थे… आपने मेरी बेटी को यकीन दिया कि अच्छे लोग अब भी ज़िंदा हैं।"

आज भी दुकान के बाहर वो बोर्ड है —
"अगर ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए।"
और डिब्बे में हर दिन कोई न कोई चुपचाप कुछ डाल जाता है…

क्योंकि कभी एक बच्ची ने सिखा दिया था —
"बदलाव बाहर से नहीं, दिल के भीतर से शुरू होता है।"

है कोई मेरे साथ चलने वाला
06/07/2025

है कोई मेरे साथ चलने वाला

खूबसूरत लड़की और धोखा"कहानी उस लड़की की, जो आईने से भी ज्यादा साफ थी, लेकिन दुनिया ने उसकी मुस्कान के पीछे का दर्द कभी न...
05/07/2025

खूबसूरत लड़की और धोखा"
कहानी उस लड़की की, जो आईने से भी ज्यादा साफ थी, लेकिन दुनिया ने उसकी मुस्कान के पीछे का दर्द कभी नहीं देखा...

वो बेहद खूबसूरत थी। उसकी आँखों में सपने नहीं, समंदर थे… गहराई से भरे हुए। लोग उसके चेहरे की तारीफ करते नहीं थकते थे, लेकिन कोई उसके दिल को पढ़ नहीं पाया।

उसने किसी से प्यार किया था… पूरे दिल से, पूरी नीयत से। और शायद यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी। जिस शख्स को उसने अपना सबकुछ समझा, उसने उसी को सबसे बड़ा धोखा दे दिया।

उसने सोचा था, खूबसूरती उसकी ताकत है — लेकिन दुनिया ने इसे उसकी कमजोरी बना दिया। लोगों ने उसे चाहा, पर सिर्फ उसके चेहरे के लिए। उसकी आत्मा की पुकार, उसकी सच्चाई, उसकी वफ़ादारी — सबको नजरअंदाज कर दिया गया।

धोखा सिर्फ एक रिश्ते का नहीं था, वो भरोसे का, सपनों का और खुद से किए गए वादों का भी था।

लेकिन यही वो मोड़ था, जहाँ से उसने खुद को फिर से खड़ा किया।
अब वो लड़की सिर्फ खूबसूरत नहीं है… वो मजबूत है, होशियार है, और अब किसी की नजरों से नहीं, अपनी पहचान से जीती है।

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