04/11/2024
कानपुर और झांसी रोड पर एक जिला बसा हुआ है कानपुर देहात। उसी के एक गांव में हाईवे के किनारे बना है एक साधारण-सा घर है, दीवाली की नई-नई रंगाई-पुताई से चमचमाता हुआ। इस घर की छत पर तिरंगा लहरा रहा है, मानो हर एक को एकता और स्वतंत्रता का संदेश दे रहा हो। घर के बाहर बने चबूतरे पर डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति स्थापित है, उस मूर्ति के देखने के भाव से लग रहा है जैसे हाईवे से गुजरने हर यात्री का अभिवादन करते हुए कह रही हो, "अपनें अधिकारों को मत भूलो, समानता का आदर करो।"
चबूतरे के क्यारियों में लगे सुंदर फूलों के पौधे इस घर की सादगी और सजगता में भावुकता के रंग भर रहे हैं। इन फूलों को देखकर लगता है कि, जैसे हर पौधा इस परिवार के सपनों का प्रतीक है।
इस घर में रहने वाला परिवार किसान है, जिसने अपनी ज़िंदगी खेतों में मेहनत करते और अपने परिवार के लिए सुख-साधनों का इंतजाम करते हुए बिताई है। उत्तर प्रदेश में किसान का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण होता है। हर साल सूखा, बारिश का अभाव, और फिर कर्ज का बोझ। कई बार तो फसलें भी चौपट हो जाती है, लेकिन किसान सृजनकर्ता होता है हर परिस्थिति में हार नहीं मानता। क्योंकि वो डॉ. अंबेडकर से प्रेरणा लेकर हर कठिनाई का सामना कर लेता है और नए भारत के संघर्ष भी सीख रहा है।
दीवाली के अवसर पर उसने घर को रंगवाया, तिरंगे को छत पर फहराया, और डॉ. अंबेडकर की मूर्ति का रंग रोगन कर, अपने जीवन के संघर्ष और सफलता की कहानी को इस प्रतीक के रूप में अमर कर दिया। ये मूर्ति उसके संघर्ष में प्रेरणा का प्रतीक है, जो उसे हर दिन साहस और उम्मीद देती है।
शायद! किसान को उम्मीद है कि उसके बच्चे इस घर और डॉ. अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेंगे और समाज में समानता और न्याय की अलख जगाएंगे। इस दीवाली पर उसका घर रोशन है, लेकिन असली रोशनी उसके दिल में है—सपनों की रोशनी, उम्मीद की रोशनी, और समानता की रोशनी।
नोट:- आते जाते हुए इस मूर्ति को मैं एक दशक से देख रहा हूँ।