05/10/2025
जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए,
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
जब न तुमसे स्नेह के दो कण मिले,
व्यथा कहने के लिए दो क्षण मिले;
जब तुम्हीं ने की सतत अवहेलना,
विश्व का सम्मान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए,
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
एक आशा, एक ही अरमान था,
बस तुम्हीं पर हृदय को अभिमान था;
पर न जब तुम ही हमें अपना सके,
व्यर्थ यह अभिमान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए,
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
दूं तुम्हें कैसे जलन अपनी दिखा?
दूं तुम्हें अपनी लगन कैसे दिखा?
जो स्वरित होकर न कुछ भी कह सकें,
मैं भला वे गान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए,
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
शलभ का था प्रश्न दीपक से यही,
मीन ने यह बात जीवन से कही;
हों विलग तुम से न जो फिर भी मिटे;
मैं भला वे प्राण लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए,
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
अर्चना निष्प्राण की कब तक करूं,
कामना वरदान की कब तक करूं,
जो बना युग-युग पहेली-सा रहे,
मौन वह भगवान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बनकर रहे गए,
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?