30/06/2025
किश्तों में बँटी जिंदगी और ईएमआई का यज्ञोपवीत
(एक अधुनातन मध्यमवर्गीय गाथा)
✍🏻 अरविन्द त्रिपाठी
जब से आदमी ने आग खोजी थी, तब से लेकर अब तक वो खुद ही जलता चला आ रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले लकड़ी जलती थी, अब सैलरी।
मुझे याद है जब हमने पहली बार “किश्त” का नाम सुना था, तो लगा था कोई ममता से भरी हुई बुआ जी हैं, जो हर महीने थोड़ा-थोड़ा पैसा भेजती होंगी। पर जब पहली ईएमआई कटी, और खाते में ‘शून्य’ झाँकता मिला, तो समझ आया कि यह बुआ नहीं, कोई खूँखार सास है—जो हर महीने शरीर की चर्बी निचोड़ कर ले जाती है।
घर लेना हो तो किश्त।
बच्चे को स्कूल भेजो तो किश्त।
टीवी देखो तो किश्त।
यहाँ तक कि शादी के कार्ड छपवाने तक किश्त में छपते हैं।
और मोहल्ले वाले कहते हैं—“भई, बहुत तरक्की कर ली तुमने!”
तरक्की ऐसी कि जिस दिन सैलरी आती है, उसी दिन बैंक वाले उसे रस्मों-रिवाज से विदा कर देते हैं। और हम फिर उसी लिफाफे को ताकते हैं जिसमें कभी इनकम टैक्स की रसीदें और बैंक स्टेटमेंट साथ-साथ लेटे रहते थे।
पत्नी कहती है—“सुनिए, फ्रिज लेना है। गर्मी बहुत है।”
मैंने कहा—“ठीक है, लेकिन किस्तों में ठंडा करना पड़ेगा। पहले तीन महीने बर्फ नहीं जमेगी, चौथे में बिल पिघलेगा।”
बच्चे को खिलौना चाहिए तो किश्त।
पत्नी को मायके जाना है, तो टिकट की किश्त।
अब तो लगता है, अगर कभी परमात्मा के दर्शन भी हों, तो पहले पाँच साल की ईएमआई तय होगी, फिर आत्मा मोक्ष पाएगी।
और इस किश्तबाज़ी के बीच जो आदमी है, वो सिर्फ “जिन्दगी नाम की रसीद” में एक ग्राहक है। एक ऐसा ग्राहक, जिसे किश्तों में जीने की आदत हो गई है, पर जीने का वक्त नहीं मिला।
कभी-कभी लगता है कि बैंक और किस्तों का गठबंधन, भारत के लोकतंत्र से भी ज्यादा मजबूत है। नेता बदल सकते हैं, पर किश्त नहीं। वो हर महीने आपकी अंतरात्मा पर दस्तक देगी—“पिछले जन्मों का पाप है, भर दो।”
और फिर, जो किश्त नहीं चुकाए, उसके लिए आज का समाज उतना ही निर्मम है जितना परीक्षा में फेल हुए बच्चे के लिए मोहल्ला। फोन पर घंटी बजती है और कोई मधुर आवाज़ आती है—
“सर, आपकी पिछली ईएमआई मिस हो गई है। क्या आपकी आत्मा हमारे ऋण के प्रति समर्पित नहीं है?”
अब जीवन कोई कविता नहीं, एक टेढ़ी-मेढ़ी एक्सेल शीट है जिसमें हर महीने क्रेडिट डेबिट का तालमेल बैठाते हुए इंसान खुद ही सेल्फी में धुंधला पड़ता जाता है।
और इस सबके बावजूद, वो मध्यमवर्गीय आदमी मुस्कुरा कर कहता है—
“हाँ भाई, सब बढ़िया है। थोड़ा बिजी हूँ ईएमआई में…”
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