10/08/2025
यह दुनिया अजीब हो चली है…
कभी दोस्ती वो हुआ करती थी, जिसमें सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर चला जाता था। वो ज़माना था जब एक दोस्त गिर जाए, तो दूसरा उसके गिरने से पहले ही उसे संभाल लेता था। आज के दौर में दोस्ती के मायने बदल गए हैं—अब साथ सिर्फ़ हंसी-ठिठोली, मौज-मस्ती और सोशल मीडिया की चमक-दमक तक सिमट कर रह गई है।
कभी हम सुनते थे कि “सच्चा दोस्त वही, जो मुसीबत में काम आए।” मगर अब हालत यह है कि मुसीबत आते ही दोस्त पीछे हट जाते हैं, जैसे किसी अनजान को देख लिया हो। ज़रा सोचिए… एक वक़्त था जब दोस्त अपना हिस्सा काटकर भी हमें खिलाते थे, और आज का वक़्त यह है कि मौत के साये में भी छोड़कर भाग जाते हैं।
दर्द होता है यह देखकर कि दोस्ती अब दिल से नहीं, जरूरत से निभाई जाती है। पुराने वक्त में दोस्ती एक इबादत थी—आज वो बस एक दिखावा है, एक तस्वीर में मुस्कुराता चेहरा, जिसके पीछे खालीपन और स्वार्थ छुपा है।
सवाल बस इतना है—हमने दोस्ती खो दी, या दोस्ती ने हमें छोड़ दिया?
कभी वक्त मिले, तो सोचिएगा… क्योंकि सच्चे दोस्त अब बस कहानियों में मिलते हैं।
साभार: दैनिक जागरण