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24/10/2024

कांग्रेस की इस हार को क्या नाम दूं

हरियाणा में कांग्रेस हार चुकी है। हुड्डा खेमा गहरी निराशा में हैं। समझ नहीं पा रहे आखिर हुआ क्या? बीजेपी की भी समझ में नहीं आ रहा है, वह कैसे जीत गए। यह सच बात है। कयोंकि हर सर्वे में बीजेपी को सत्ता से बाहर दिखाया जा रहा था।

कुछ भी हो, एक बात तो साफ है, इस चुनाव परिणाम की गूंज काफी समय तक सुनी जाएगी।
यह चुनाव कई मायनों में अलग रहा। मसलन जीतने की उम्मीद लगाने वाले हार गए। हार की अाशंका से निराश में बैठे अचानक जीत गए। यह सब कुछ तो दिखाई पड़ रहा है। इस सब से परे जो दिखायी नहीं दे रहा है, या जिसे देखा नहीं जा रहा है, वह यह है कि कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई हार गए हैं। अभय चौटाला भी चुनाव हार गए। यह ऐसे गढ़ है जिनका टूटना इस बात की ओर इशारा करता है कि हरियाणा की राजनीति बदल रही है।

एक ऐसे दौर में जब असमय बरसात ने धान उत्पादक किसानों को काफी नुकसान पहुंचाया है। खेतों में धान की फसल बिछ गई। जिसकी कटाई के लिए किसानों को दोगुणा से भी ज्यादा दाम चुकाना पड़ रहा है।

वह किसान जब मंडियों में धान लेकर जा रहा है तो धान बिक नहीं रही। यह चुनाव का समय था। मतदान के दिन पांच अक्टूबर को भी बड़ी संख्या में धान उत्पादक किसान धान बेचने के लिए मंडियों में धक्के खा रहे थे।

लेकिन कांग्रेस, इनेलो, जेजेपी और आम आदमी पार्टी किसानों के इस मुद्​दे को टच ही नहीं कर पाई।
मेन स्ट्रिम मीडिया में यह खबर गायब थी। गायब हुई या कराई गई, यह अलग मसला है। सही बात यह है कि क्यों कांग्रेस ने इससे मुद्​दा नहीं बनाया।
क्या यह मुद्​दा नहीं बनना चाहिए था।

यूं भी हरियाणा का मीडिया भी प्रदेश की राजनीति की तरह कई धड़ों में बंटता नजर आ रहा है। एक सत्ता पक्ष दूसरा विपक्ष। विपक्षी मीडिया जिसमें सोशल मीडिया ज्यादा है, वह भी किसी न किसी स्तर पर एक समुदाय विशेष की राजनीति को ही प्रमोट करता नजर आ रहा है।
जितना वह बोलते रहे, कांग्रेस के उतने ही वोट कम होते गए। परिणाम सामने हैं।

विपक्षी मीडिया के साथियों को समाज की नब्ज तो समझनी ही होगी, इसके साथ बदलाव के आवश्यक तत्व क्या है? इस पर भी मंथन करना होगा। इसके लिए उन्हें राजनीति के साथ साथ समाज शास्त्र और इतिहास को समझना होगा।

समझना होगा कि आप यदि विरोध में बहुत ज्यादा खड़े होते है तो दूसरा पक्ष एकजुट हो जाता है। वहीं हुआ इस बार। आप विरोध का सुर बुलंद करते रहे। मतदाता एकजुट होते चले गए।

परिणाम आपके सामने हैं।

यह चुनाव बहुत ही सुनियोजित तरीके से हार और जीत पर आकर टांग दिया गया। जबकि होना तो यह चाहिए था कि यह चुनाव मुद्​दों पर होता। लेकिन नहीं। इसके लिए मेन स्ट्रिम आफ स्ट्रिम और कांग्रेस पूरी तरह से जिम्मेदार है।

जिम्मेदारी की यदि बातचीत की जाए तो हुड्डा को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। हुड्डा स्वयं भी इससे इंकार नहीं करेंगे। क्योंकि टिकट से लेकर मुद्​दों तक हर जगह हुड्डा की चली।

इस बात को बोलने में कतई गुरेज नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस नहीं बल्कि हुड्डा भी हार गए हैं। प्रदेश के मतदाता ने हुड्डा और कांग्रेस दोनो को खारिज कर दिया।
हुड्डा को इस पर बैठ कर सोचना होगा।

कहना गलत नहीं होगा कि हरियाणा में कांग्रेस ही हुड्डा और हुड्डा ही कांग्रेस नजर आ रही थी। इसके पीछे एक कई कारण है। हुड्डा ने खुद को कांग्रेस में मजबूत दिखाने के लिए एक एक कर अपने विरोधियों को साइड लाइन कर दिया। इसमें रणदीप सिंह सुरजेवाला और कुमारी शैलजा बड़ा उदाहरण है। किरण चौधरी कांग्रेस छोड़ चुकी है।

पूरे चुनाव में कांग्रेस में सिर्फ हुड्डा ही नजर आ रहे थे। विनेश फोगाट को कांग्रेस ने टिकट दिया,लेकिन चुनाव प्रचार का चेहरा ही नहीं बनाया। क्यों, जबकि वह बड़ा चेहरा साबित हो सकती थी। रणदीप सिंह सुरजेवाला, चौधरी बीरेंद्र सिंह कुमारी शैलजा जैसे चेहरे चुनाव प्रचार से गायब ही रहे।

बीरेंद्र चौधरी को लेकर भी हुड्डा की उहोपोह की स्थिति बनी रही। कायदे से होना तो यह चाहिए था कि चौधरी बीरेंद्र सिंह के पूर्व सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार से लोकसभ का चुनाव लड़ाया जाता।
लेकिन यहां जेपी को चुनाव लड़ाया गया। बृजेंद्र सिंह कांग्रेस का नया और बड़ा चेहरा साबित हो सकते हैं। पर क्योंकि भुपेंद्र सिंह हुड्डा अपने सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा से आगे सोचते ही नहीं। परिणाम सामने हैं।

इस चुनाव में सबसे बुरी यदि किसी के साथ हुई है तो वह है चौधरी बीरेंद्र सिंह और पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह। जो कि उचाना से हार गए हैं।

दरअसल इस पूरे चुनाव में कांग्रेस की रणनीति पहले ही दिन से गड़बड़ा चुकी थी। टिकट बंटवारे में देरी, फिर किस गुट को कितने टिकट मिले। कौन गुट किस पर भारी पड़ रहा है, जैसे मुद्​दे भारी पड़ते चले गए। मीडिया ने इस चर्चाओं को और ज्यादा बल दिया। स्वयं कांग्रेसी भी इस तरह की चर्चाओं के मजे लेते रहे। एक भी सीनियर कांग्रेसी ने कभी भी मीडिया में यह बयान नहीं दिया कि इससे इतर दूसरे मुद्​दें भी है। उन पर बातचीत कर ली जाए।

और फिर बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस में मामला सीएम पद की खींचतान में आ गया। कांग्रेस खुद की जीत के प्रति आश्वस्त थी। लिहाजा उन्हें भी लगा कि बात तो सीएम पद की ही होनी चाहिए।

यही वह चूक थी जो कांग्रेस को भारी पड़ गई। रही सही कसर सांसद कुमारी सैलजा के खिलाफ जातिवादी टिप्पणी करके पूरी कर दी। सैलजा एक सप्ताह तक चुनाव प्रचार से दूर ही रही।

एससी समुदाय इस तरह की टिप्पणी से कांग्रेस से दूर होता चला गया। लेकिन जीत के प्रति आश्वस्त भूपेंद्र सिंह हुड्डा खिसक रहे वोटर को देख ही नहीं पा रहे थे।
सोशल मीडिया में कांग्रेस और हुड्डा की जयजयकार के नारे लग रहे थे।

नतीजा कांग्रेस का ग्राफ तेजी से डाउन आना शुरू हो गया। भाजपा जहां पर्ची खर्ची खत्म करने की बात कर रही थी, असंध के पूर्व कांग्रेसी विधायक और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शमशेर सिंह गोगी नौकरियों में हिस्सेदारी जैसी हलकी बातों में व्यस्त थे।

वह इलाका जो जाट व सरकार बहुल है, वह वहां किसान आंदोलन की बात उठाने की बजाय यदि इस तरह की हलकी बातें करेंगे तो फिर जीत कैसे होगी? खुद भुपेंद्र सिंह हुड्डा उन मुद्​दों को उठा नहीं पाए, जो जनता के मुद्​दे थे।

किसान आंदोलन, आंदोलन में किसानों की मौत, एमएसपी, अग्नीवीर योजना, पोर्टल सिस्टम, प्रापर्टी आइडी, फैमिली आईडी जैसे मुद्​दों को जोरदार तरीके से उठाने से चूक गए।

कांग्रेस के ज्यादातर उम्मदीवार जनता के बीच में सक्रिय ही नहीं थे। कालका से प्रदीप चौधरी पिछली बार चुनाव जीते,लेकिन एक बार भी वह जनता के बीच नजर नहीं आए। चौधरी निर्मल सिंह भले ही चुनाव जीत गए हो, लेकिन अंबाला शहर में उनकी उपस्थिति न के बराबर रही। अंबाला छावनी में चित्रासरवारा कांग्रेस के लिए मजबूत उम्मीदवार हो सकती थी। लेकिन उनका टिकट काट दिया गया। वह जनता के बीच में रहने वाली नेता है। परिणाम सामने हैं। आजाद चुनाव लड़ते हुए भी उन्होंने विज को कड़ी टक्कर दी है। करनाल में सुमिता सिंह एक बार भी जनता के बीच में नजर नहीं आई। इसके इतर सरदार त्रिलोचन सिंह हमेशा कांग्रेस का झंडा बुलंद किए हुए थे। लेकिन उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया गया। घरौंडा में वीरेंद्र रादौर कुछ भीतरघात तो कुछ अपनी निष्क्रियता की वजह से चुनाव हार गए। दस साल में वह घरौंडा में विपक्ष के तौर पर कहा खड़े थे, यह उन्हें सोचना होगा?

कांग्रेस के रणनीतिकार सोच रहे थे कि जनता तंग है, वह बीजेपी को वोट नहीं देगी, विकल्प बचा कौन कांग्रेस। लेकिन यह रणनीति और सोच दोनो गलत है। जब तक कांग्रेस के पास स्पष्ट रणनीति और स्पष्ट मुद्​दे नहीं होंगे, तब तक कांग्रेस जीत के बारे में सोच भी नहीं सकते।

और इस सब से पहले कांग्रेस को चाहिए कि वह अपना संगठन खड़ा करें। चुनाव के दौरान बीजेपी के पास जहां पन्ना प्रमुख थे, वहीं कांग्रेस प्रत्याशियों के पास वर्कर नाम की कोई प्राणी नहीं था।
इस वजह से चुनाव में काम करने के लिए या तो उन्होंने किराए पर लोगों को जुटाया या फिर उनके अपने लोग थे, जो काम कर रहे थे। बीजेपी से टूट कर जो लोग कांग्रेस में आए, वह सिर्फ बैठ कर खेल देखते रहे। इससे ज्यादा उन्होंने कुछ नहीं किया। क्योंकि बीजेपी छोड़ कांग्रेस के खेमे में आने से उनका रोष लगभग खत्म सा हो गया था।

लेकिन राजनीति और बदलाव के मनोविज्ञान को समझने वाले जातने हैं रोष खत्म तो खेल खत्म। कांग्रेस के साथ यही हुआ।
नमस्कार
मैं मनोज ठाकुर

19/06/2023

हरियाणा में आज होगी बिपरजॉय की एंट्री:15 शहरों के लिए अलर्ट; 60 किमी होगी हवा की रफ्तार, मौसम विभाग की गाइडलाइन

राजस्थान, गुजरात के बाद हरियाणा में आज बिपरजॉय की एंट्री होगी। इस दौरान 40 से 60 किलोमीटर की स्पीड से तेज हवाएं चलेंगी। चंडीगढ़ मौसम विभाग ने इसको देखते हुए राज्य के 15 शहरों के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। इनमें बहादुरगढ़, सांपला, रोहतक, खरखौदा, सोनीपत, गन्नौर, समालखा, बापौली, घरौंडा, करनाल, गोहाना, इसराना, सफीदों, पानीपत और असंध शामिल हैं।

इन शहरों में तेज हवाओं के साथ गरज और चमक के साथ भारी बारिश की चेतावनी भी मौसम विभाग ने जारी की है।

इन शहरों के लिए येलो अलर्ट

मौसम विभाग के अनुसार बिपरजॉय का आंशिक असर दूसरे शहरों में भी दिखाई देगा, इसलिए वहां के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है। इनमें नूंह, तावडू, सोहना, गुरुग्राम, नींगल चौधर , नारनौल, अटेली, महेंद्रगढ़, कनीना, भद्रा, लोहारू, चरखी दादरी, भिवानी, तोशम, बावल, रेवाड़ी, पटौद, कोसली, मातनहेल, झज्जर, बहादुरगढ़, बेर खास, सांपला, रोहतक, भसवानी, बवानीखेड़ा, हांसी, हिसार शामिल हैं।

इसके अलावा आदमपुर, नारनौंद , नाथूसरी, चौपटा, ऐलनाबाद, फतेहाबाद, रानिया, फरीदाबाद, खरखौदा, करनाल, इंद्री , राडौर, महम, गोहाना, जुलाना, इसराना, सफीदों, जींद, पानीपत, असंध , कैथल, निलोखेरि, नरवाना, सिरसा, टोहाना, कलायत, रतिया, डबवाली, थानेसर, गुहला, पेहोवा, शाहाबाद, अंबाला, बराडा , जगाधरी, छछरौली, नारायणगढ़, पंचकूला को भी अलर्ट किया गया है।

क्या पड़ेगा बिपरजॉय का इंपैक्ट

- बड़े पेड़ों की टहनियां टूटने का खतरा

- बड़ी इमारतों पर बिजली गिरने का खतरा

- मलबा उड़ने से नुकसान होने का अनुमान

- बिजली-पानी की लाइन क्षतिग्रस्त होने का खतरा

- विजिबिलिटी कम होने का बढ़ेगा खतरा

- रेल, सड़क के साथ हवाई यात्रा होगी बाधित

- कच्चे घरों के साथ झोपड़ियों के उड़ने का खतरा

मौसम विभाग ने दिए सुझाव

- मजबूत इमारतों में रहें, खिड़की से दूर रहें

- किसानों को खेतों में नहीं जाने की सलाह

- पशुओं को भी सुरक्षित स्थान रखा जाए

- बिजली के खंभों और पेड़ों से दूर खड़े हों

- लंबी यात्रा करने से लोग परहेज करें

- तेज हवा चलने पर बिजली उपकरण अनप्लग करें

12/06/2023

सुरजमुखी के एमएसपी की मांग व किसानों पर पुलिस के लाठीचार्ज के विरोध में आयोजित महापंचायत पर सभी की नजर टिकी हुई है.....

22/12/2022

LIVE: Bharat Jodo Yatra

22/12/2022

कपिल सिब्बल ने लगाया आरोप, राहुल गांधी बोले देश को समझने का मिल रहा मौका

पी. एफ. आई मुझे प्रतिबंधित क्यों किया गया?  निर्दोष लोगों पर हमला करना बहादुरी नहीं, मूर्खता है और कयामत के दिन सजा मिले...
28/09/2022

पी. एफ. आई मुझे प्रतिबंधित क्यों किया गया?
निर्दोष लोगों पर हमला करना बहादुरी नहीं, मूर्खता है और कयामत के दिन सजा मिलेगी मासूम बच्चों पर हमला करना, महिलाओं और नागरिकों पर हमला करना बहादुरी नहीं है, आजादी की रक्षा करना, किसी को बचाना और उन पर हमला न करना ही असली बहादुरी है। शेख मुहम्मद सैयद अल-तंतावी, इमाम अल अजहर मस्जिद, काहिरा, मिस्र। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अपने शुरुआती दिनों से ही सांप्रदायिक संघर्ष और राजनीतिक हत्या में शामिल रहा है। 2015 में, केरल के एक प्रोफेसर टी.जे. ईशनिंदा के आरोपी जोसेफ ने पी.एफ.आई. मजदूरों को काटा, इस सिलसिले में पी.एफ. आई.आई. 13 कार्यकर्ता गिरफ्तार कुछ साल पहले कुन्नूर में एक एबी था। हत्या के लिए 6 पीएफ वीपी कार्यकर्ता। I. कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और महाराजा कॉलेज, एर्नाकुलम के एसएफआई को गिरफ्तार कर लिया गया। नेता अभिमन्यु की कथित हत्या के आरोप में नौ लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था। 2014 में, केरल सरकार ने उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि पी.एफ. आई कम से कम 27 राजनीतिक हत्याओं, 86 हत्या के प्रयास और 125 सांप्रदायिक मामलों में शामिल। यह सूची अनंत है। हादिया जहां केस से लेकर एन.एस. हाँ। कमांडो भोखर राठौर की हत्या से लेकर बेंगलुरु हिंसा से लेकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों तक, सांप्रदायिक हिंसा ने आग में घी डाला, पी.एफ.आई. यह संगठन अपने एक्सपर्ट सिस्टम से बेगुनाहों की हत्या करने के लिए जाना जाता है। अब पढ़े-लिखे मुसलमानों और बुद्धिजीवियों को तय करना है कि वे अपने पूर्वजों के बताए रास्ते पर चलकर पीएफआई में शामिल हों। जैसे किसी कट्टरपंथी हिंसक संगठन का बहिष्कार करना या ऐसे संगठन के झूठे और सस्ते भेष में पड़ना। पीएफआई खुद को एक नव-सामाजिक आंदोलन के रूप में वर्णित करता है, जो समाज के दलित और दलित अल्पसंख्यक समुदाय की आवाज उठाता है। पी. एफ.आई. इसके 22 राज्यों में इकाइयां होने का दावा करता है। खुफिया एजेंसी का मानना ​​है कि इसका विकास प्रत्यक्ष/असाधारण है जिसने खुद को समुदाय के रक्षक के रूप में स्थापित किया है। पीएफआई का सफल चित्रण मुख्य रूप से अमीर खाड़ी देशों से पैसा इकट्ठा करने में मदद करते हैं। यह स्थिति क्यों बनी? इसका उत्तर धार्मिक मुसलमानों की निष्क्रियता है। पीएफआई विभिन्न मुद्दों पर इसके उग्रवाद और इसके चरमपंथी रवैये ने बहुत सारे युवाओं को आकर्षित किया है और यह लगातार बढ़ रहा है। जैसा कि एक महान विचारक ने एक बार कहा था, 'पहला कदम हमेशा सबसे कठिन होता है, लेकिन जब तक इसे नहीं लिया जाता है, तब तक प्रगति की धारणा केवल एक धारणा रह जाती है, कोई उपलब्धि नहीं'। सरकार ने अपने हिस्से का काम पी.एफ. आई. पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब गेंद कोर्ट के पाले में है. हमें तय करना है कि क्या पी.एफ.आई. का विस्तार बंद करो, अपने देश को बचाओ और सरकार या पी.एफ. आई का समर्थन करो। आइए हम सांप्रदायिक अशांति फैलाने, इस्लाम को बदनाम करने और अपने प्यारे देश को नष्ट करने के लिए एक अच्छी जमीन तैयार करें। (लेखक कशिश वारसी सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)

03/09/2022

*BREAKING NEWS*

*चंडीगढ़ - चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस आज*

आज हो सकती है पंचायत चुनाव की घोषणा

11:00 बजे चुनाव आयुक्त धनपत सिंह करेंगे प्रेस कॉन्फ्रेंस

इलेक्शन कमिशन की बैठक में शामिल होंगे सभी जिलों के डिप्टी कमिश्नर

अक्टूबर के पहले हफ्ते में हो सकते हैं पंचायत चुनाव

24/08/2022

UCI MTB Eliminator World Cup 2022 in leh ladakh

24/08/2022

UCI MTB Eliminator World cup Leh, 2022
, 2022

16/08/2022

राष्ट्रमंडल खेलों के प्रतिभागियों के अभिनंदन कार्यक्रम में सीएम मनोहर लाल

मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम।  शिक्षा वह आधारशिला है जिस...
16/08/2022

मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम।

शिक्षा वह आधारशिला है जिस पर किसी भी समुदाय का विकास होता है। इस्लाम, शिक्षा और कौशल विकास को बढ़ावा देता है। एक 'हदीस' के मुताबिक अगर आपको ज्ञान हासिल करने के लिए चीन आदि दुर्गम जगहों पर जाना पड़े तो ऐसा करने में संकोच न करें। हम इतिहास से यह सबक लेते हैं कि कुछ शुरुआती आविष्कारक, औषधविज्ञानी और गणितज्ञ मुस्लिम समुदाय से थे, मुसलमानों ने भी व्यापार के क्षेत्र में प्रगति की। लेकिन, आज स्थिति कुछ और ही कहानी बयां करती है।

मुसलमानों के इस पतन का मुख्य कारण यह है कि मुस्लिम समुदाय शिक्षा के मुद्दे पर बंटा हुआ है। कुछ अन्य मानते हैं कि केवल धार्मिक ज्ञान आवश्यक है, कुछ का मानना ​​है कि केवल सांसारिक ज्ञान आवश्यक है। नतीजतन, बच्चों को या तो नियमित शिक्षा के लिए स्कूलों में भेजा जाता है या उन्हें धार्मिक शिक्षा के लिए मदरसों में भेज दिया जाता है। मदरसे बोर्डिंग स्कूलों की तरह होते हैं जहाँ बच्चे दूर-दूर के शहरों / स्थानों से आते हैं, वहाँ रहते हैं और धर्म की बुनियादी शिक्षा प्राप्त करते हैं जिसमें अरबी भाषा में कुरान और हदीस का ज्ञान शामिल है। अधिकांश मदरसे शिक्षा के अन्य विषयों जैसे गणित, विज्ञान, सामाजिक राजनीति विज्ञान या अन्य भाषाएँ पढ़ाते हैं। यह चिंता का विषय है कि अब अधिकांश मदरसे उर्दू को प्रमुख भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। नतीजा यह होता है कि नियमित स्कूलों में स्कूल आने वाले बच्चे इस बदले हुए माहौल में खुद को अलग-थलग पाते हैं और 'भाषा' उनके लिए एक बाधा बन जाती है क्योंकि ज्यादातर स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाता है। इस कारण मदरसों के मूलभूत ढांचे को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ औपचारिक शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की गई।

इस दिशा में महाराष्ट्र स्थित 'मालवानी-ए-मलाड संस्थान के परिसर में स्कूल-सह-मदरसा की स्थापना करने वाले सैयद अली ने एक उल्लेखनीय बदलाव किया है। उनके द्वारा 'जामिया तजवीदुल कुरान' और 'नूर मेहर उर्दू स्कूल' चलाये जा रहे हैं ।जहां अधिकांश शिक्षक मदरसों के पाठ्यक्रम में आधुनिक विषयों को शामिल करने के लिए अनिच्छुक हैं, वहीं सैयद अली ने अपने स्कूल और मदरसा शिक्षकों को बुनियादी पाठ्यक्रम और आधुनिक औपचारिक शिक्षा प्रणाली के साथ एकीकृत किया है। नतीजतन, यहां पढ़े-लिखे कई हाफिज बच्चों को मुख्यधारा में नौकरी मिल गई है, जिसमें इंजीनियर और डॉक्टर जैसे पेशे शामिल हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। इसके अलावा हाल ही में आयोजित एसएससी में इन मदरसों के 22 हाफिज बच्चों ने भी हिस्सा लिया। परीक्षा भी पास की। 10 साल पहले, जब वर्ष 2000 में इस संस्थान की नींव रखी गई थी, तब तक 97 बच्चों ने एसएससी पूरा किया है। परीक्षा उत्तीर्ण की और समाज में सम्मानजनक नौकरी प्राप्त की।

सैयद अली प्रेरणा के स्रोत हैं जिन्होंने दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है और देश भर के अन्य मदरसों का अनुसरण कर सकते हैं। इस संस्थान की सफलता से पता चलता है कि मदरसों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों को भी उचित रोजगार मिल सकता है यदि औपचारिक शिक्षा प्रणाली को भी मदरसा पाठ्यक्रम के साथ एकीकृत किया जाए। यदि सैयद अली की सोच को उचित संतुलन के साथ लागू किया जाए तो हजारों की संख्या में चल रहे मदरसे इन बच्चों के लिए एक मजबूत मंच के रूप में कार्य कर सकते हैं जहां वे आधुनिक सांसारिक शिक्षा के अलावा धर्म की बुनियादी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। यह इन बच्चों को करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा जिससे वित्तीय स्थिरता और उनके समुदाय का विकास हो सके। बदलाव की शुरुआत हमेशा घर से होती है। शक्तिशाली परिवार अपने समुदायों को भी सशक्त बना सकते हैं। जो अपने राष्ट्र को और सशक्त बना सकते हैं।

10/08/2022

दीपेंद्र हुड्डा की बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस - Live !

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