27/01/2022
क्या कोई इस बात का जवाब दे सकता है कि बिहार में 1940 रुपये का धान 1000-1300 में क्यों बिक रहा है? क्या 1940 रुपये का माल 1000 रुपये में बेचने पर आय दोगुनी हो जाती है?
इस बार सरकार ने धान का समर्थन मूल्य1940 रुपये प्रति क्विंटल तय किया. जहां मंडियां हैं, जैसे पंजाब और हरियाणा में, वहां किसानों ने धान इसी मूल्य पर बेचा. लेकिन बिहार जैसे राज्यों के किसानों को 1000 से लेकर 1250 रुपये में धान बेचना पड़ा. सरकार इस लूट को ही कानूनी जामा पहनाना चाहती है.
सरकार की चिंता किसानों की उपज बढ़ाना या उन्हें उचित मूल्य दिलाना नहीं है. सरकार की चिंता है कि कैसे खेती निजी सेक्टर को सौंप दी जाए.
सरकार ठीक कह रही है कि वह तो वही कर रही है जो कांग्रेस करना चाहती थी. कांग्रेस ने ही निजीकरण की शुरुआत की थी और इस निजीकरण का एकमात्र मकसद है कि अमेरिका की तर्ज पर निजीकरण करना. लक्ष्य है कि किसानों को कृषि से हटाया जाए और खेती की जमीनों को निजी हाथों में सौंपा जाए ताकि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग हो सके.
लेकिन ये बीजेपी ही थी जो कह रही थी कि 70 सालों की गड़बड़ी दुरुस्त करना है. आज हालत ये है कि बीजेपी सिर्फ कांग्रेस की बुराइयों को आगे बढ़ा रही है.
उन्हें सुधार के नाम पर निजीकरण करना है. कॉरपोरेट की गिद्ध निगाह अब खेती पर है. लेकिन समस्या ये है कि पंजाब और हरियाणा के किसान जागरूक हैं. वे नहीं चाहते कि उनकी मेहनत की लूट हो. बिहार वाले आराम से लुट रहे हैं तो उन्हें लेकर कोई समस्य नहीं है.
पक्ष या विपक्ष के किसी नेता ने ये सवाल नहीं उठाया कि बिहार में धान 1100 ,से 1250 में क्यों बिक रहा है? किसानों की आय से किसी का लेना देना नहीं है. ये सब सिर्फ राजनीति कर रहे हैं.
#आपका_खादिम
# कैसर आलम
ग्राम पंचायत हिम्मतनगर
पैक्स अध्यक्ष प्रत्याशी
कोचाधामन किशनगंज बिहार