
17/08/2025
तुम्हें नहीं पता
बिना किसी रस्म के,
बिना किसी रिवाज़ के,
एक बंधन है
जो लिपटा है आत्मा की साँसों में
और तुमसे जुड़ता है हर एक एहसास में।
न कोई नाम है इसका,
न कोई रिश्ता लिखा है कागज़ पर,
फिर भी
तुम्हारी एक मुस्कान,
मेरे मन के सूने आँगन में
चुपचाप महक छोड़ जाती है।
ये न वचन है, न वादा,
न मांग है, न सौदा
बस एक मौन स्वीकार है,
जैसे चाँदनी रात में
समंदर खुद को खो देता है नील गगन में।
दुनिया के रिश्ते
कभी खून से बनते हैं,
कभी क़ानून से,
मगर ये जो बंधन है
ये तो बस भाव से बँधा है,
स्पर्श से नहीं, आत्मा से जुड़ा है।
तुम्हें नहीं पता
पर हर जन्म में
अगर आत्मा पहचान सके आत्मा को,
तो वही होता है
"इस जहान से परे का सबसे अटूट बंधन।"
Sandeep Singh ✍️