31/01/2025
Deva Review: सरफिरे पुलिस अफसर की धमाकेदार कहानी, जानें कैसी है शाहिद कपूर की ‘देवा’.
शाहिद कपूर की ‘देवा’ मुंबई के एक पुलिस अफसर की कहानी है. केरल में रहने वाले मलयालम फिल्मों के एक निर्देशक मेरे शहर के पुलिस अफसर की कहानी किस तरह से दिखाते हैं, इस उत्सुकता के खातिर मैंने फिल्म देख डाली. फिल्म अच्छी है और इस फिल्म के प्रेजेंटेशन की खास बात ये है कि मुंबई पुलिस पर बनीं बाकी फिल्मों की तरह इस फिल्म में रोशन एंड्रयू ने न ही मुंबई पुलिस की इमेज का महिमामंडन करने की कोशिश की है, न ही उन्हें गलत तरीके से दिखाया है. दअरसल, ये एक एक्शन से भरपूर सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है, जाहिर सी बात है क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल हुआ है, लेकिन मुंबई की भाषा में कहा जाए तो इस फिल्म में कोई ‘शहाणपणा’ नहीं है. ‘देवा’ एक पैसा वसूल फिल्म है.
कहानी देव आंब्रे (शाहिद कपूर) की है. देव अपने पापा को सजा देने के लिए पुलिस अफसर बनता है. देव का जीजा भी पुलिस (प्रवेश राणा) है और उसका दोस्त (पावेल गुलाटी) भी. लेकिन अपने जीजाजी और दोस्त की तरह देव सीधा नहीं है. वो जलेबी की तरह टेढ़ा है. वो न तो पुलिस की वर्दी पहनता है और न ही वो कायदे से अपना काम करता है. अब इस सरफिरे अफसर के साथ ऐसा क्या होता है, जिससे वो खुद का ही दुश्मन बन जाता है? इसकी एक दिलचस्प कहानी देखने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘देवा’ देखनी होगी.
जानें कैसी है ये फिल्म
‘देवा’ बनाने से 12 साल पहले रोशन एंड्रयूज ने मलयालम में ‘मुंबई पुलिस’ बनाई थी. ‘देवा’ की कहानी कुछ हद तक इस फिल्म से ही प्रेरित है, लेकिन फिल्म का सेकंड हाफ और एंडिंग पूरी तरह से बदल दी गई है. वो क्यों बदली गई, ये एक चर्चा का विषय हो सकता है, लेकिन पहले पूरी फिल्म की बात करते हैं. फिल्म एंटरटेनमेंट से भरपूर है. कबीर सिंह के बाद शाहिद को फिर एक बार फिर से एक ऐसे किरदार में पेश किया गया है, जिसका अपना स्वैग है, अलग स्टाइल है. सालों बाद शाहिद को बड़े पर्दे पर एक्शन करते हुए देख मजा आ गया. हालांकि फिल्म में एक पॉलिटिशियन की रैली में उसके सामने पुलिस की गाड़ी के ऊपर चढ़कर, जब हम देवा को उससे अश्लील एक्शन्स के साथ चिढ़ाते हुए देखते हैं, तब लगने लगता है कि अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है. लेकिन अगले ही पल रोशन एंड्रयूज कहानी में एक ऐसा ट्विस्ट लेकर आते हैं कि हमें लगता है देवा ने जो किया, वो सही है. ‘देवा’ की कहानी में आखिर तक इतने ट्विस्ट आते हैं कि हम ढाई घंटे सिर्फ फिल्म को देखते हैं, हमारा ध्यान कहीं और नहीं जाता.
डायरेक्शन और राइटिंग
रोशन एंड्रयूज की फिल्में स्टाइल से भरपूर होती हैं. उनके अपनी फिल्म के हीरो को बड़े पर्दे पर पेश करने के अंदाज को बहुत पसंद किया जाता है. ‘देवा’ में भी हम उनका ये अंदाज देख सकते हैं. अच्छी कहानी, अच्छी कास्टिंग, अच्छा म्यूजिक और अच्छा बैकग्राउंड स्कोर इन सभी को मिलाकर रोशन ने एक परफेक्ट एंटरटेनिंग फिल्म बनाई है. मैंने तो उनकी ‘मुंबई पुलिस’ देखी है, मुझे ये कहानी पता थी, लेकिन फिर भी रोशन एंड्रयूज ने मुझे ‘देवा’ में इतना उलझा कर रखा कि मैंने तो मान लिया था कि इसका क्लाइमेक्स ‘मुंबई पुलिस’ से बिलकुल अलग होगा. इसे हम उनकी सफलता कहेंगे. एक तरफ अक्षय कुमार की ‘सरफिरा’ और वरुण धवन की ‘बेबी जॉन’ है, जो पूरी तरह से तमिल फिल्मों का रीमेक है, वहां रोशन एंड्रयूज ने हमें सरप्राइज किया है. लेकिन उनके इस मिशन में फिल्म के एक्टर्स ने भी उनका पूरा साथ दिया है.
एक्टिंग
‘कबीर सिंह’ के बाद ‘देवा’ में फिर एक बार शाहिद कपूर ने कमाल करके दिखाया है. इस फिल्म में शाहिद पूरी तरह से दो अलग किरदार में नजर आते हैं. स्पॉइलर्स बता नहीं सकते, लेकिन ये बात जान लीजिए की एक ही व्यक्ति को दो अलग-अलग तरह से एक ही फिल्म में पेश करना, जहां उसके किरदार में कुछ पुरानी क्वालिटीज़ भी हो और कुछ पूरी तरह से नई भी, ये बहुत चैलेंजिंग होता है. लेकिन शाहिद ने इसे इतनी सहजता से किया है कि इस किरदार में हम किसी और एक्टर की कल्पना भी नहीं कर सकते. भले ही उनका ये किरदार कबीर सिंह की तरह लगे, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, तब ये एहसास हो जाता है कि देव का किरदार ‘कबीर सिंह’ से बहुत कॉम्प्लेक्स है. पूजा हेगड़े से ज्यादा फिल्म में कुबरा सैत नजर आ रही हैं. प्रवेश राणा, पावेल गुलाटी, गिरीश कुलकर्णी, उपेंद्र लिमये सभी ने अपने किरदार में जान डाल दी है.
देखें या न देखे
रोशन एंड्रयूज का स्टाइल बहुत ही शानदार है. फिल्म की ओपनिंग ही उन्होंने मुंबई की आवाज से की है, वो चाहते तो बाकी निर्देशकों की तरह एक गणपति उत्सव के साथ मुंबई एस्टब्लिश करते हुए आगे बढ़ सकते थे. लेकिन उन्होंने अपनी शुरुआत मुंबई की आवाज से की है, ये आवाज हम यहां रोजमर्रा की जिंदगी में सुनते हैं, बिल्डिंग के छत पर कबूतर की गुटर गू, सुबह सुबह दरवाजे पर आने वाले बुगु बुगु वाले (अपने शरीर पर चाबुक ओढ़कर भिक्षा मांगने वाले) की आवाज, ट्रेन और टैक्सी की आवाज, इस अनोखे म्यूजिक के साथ रोशन हमें बताते हैं कि अब मुंबई की कहानी शुरू होने जा रही है. कई सीन फिल्म में ऐसे हैं, जो सच्ची घटनाओं से प्रेरित हैं. गैंग वॉर के समय जब मुंबई में कुछ गुंडे अपने इलाके में छुपते थे, तब उन्हें उनके इलाके में रहने वालों का बहुत साथ मिलता था, जब भी पुलिस आती थी, तब उस गुंडे के इलाके में वहां के लोग धर्म नहीं देखते थे, न उस गुंडे की जात देखते थे, वो उसे बचाने के लिए पुलिस से ही लड़ने लग जाते थे, फिर वो चॉल की औरतों को पुलिस पर मिर्ची पाउडर डालना हो या फिर उपर से उनपर बर्तन फेंकना. ये सीन रोशन ने अपनी फिल्म में भी दिखाया है. अक्सर इस तरह की डिटेलिंग बॉलीवुड में नजर नहीं आती. जिस होमवर्क के साथ रोशन ने देवा की कहानी पेश की है, मुझे तो लगा कि वो केरल में नहीं बल्कि मुंबई में रोहित शेट्टी के साथ पले-बढ़े हैं.
बाकी सौ बात की एक बात शाहिद फिर एक बार ऐसी धमाकेदार फिल्म लेकर आए हैं, जो एक्शन से भरपूर है. तो एक अच्छी कहानी और दमदार एक्शन के लिए ये फिल्म थिएटर जाकर देख सकते हैं.
फिल्म का नाम : देवा
निर्देशक : रोशन एंड्रयूज
एक्टर्स : शाहिद कपूर, पूजा हेगड़े प्रवेश राणा, पावेल गुलाटी और गिरीश कुलकर्णी
रिलीज : थिएटर
रेटिंग: 3 स्टार