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यह पेज भारतीय देवी-देवताओं की मनमोहक तस्वीरें साझा करने के लिए समर्पित है। पवित्र कला, पौराणिक कथाएँ और आध्यात्मिक प्रेरणा के माध्यम से भक्ति की सुंदरता को अनुभव करें। रोज़ाना आशीर्वाद और दिव्य क्षणों के लिए हमें फॉलो करें!

बाबा विश्वकर्मा, जिन्हें 'देवशिल्पी' भी कहते हैं, हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण देवता हैं। उन्हें ब्रह्मा का पुत्...
17/09/2025

बाबा विश्वकर्मा, जिन्हें 'देवशिल्पी' भी कहते हैं, हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण देवता हैं। उन्हें ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है और उन्हें ब्रह्मांड के पहले इंजीनियर और वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है।
पुराणों के अनुसार, उन्होंने कई दिव्य और ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण किया है। कुछ प्रमुख निर्माण कार्य इस प्रकार हैं:
* सोने की लंका: रावण के लिए उन्होंने सोने की लंका का निर्माण किया था।
* द्वारका नगरी: भगवान कृष्ण के लिए उन्होंने द्वारका नगरी का निर्माण किया।
* इंद्रप्रस्थ: पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ शहर का निर्माण भी उन्होंने ही किया था।
* यज्ञवेदी और हथियार: उन्होंने देवताओं के लिए कई शक्तिशाली हथियार, जैसे वज्र, और यज्ञ के लिए वेदियों का निर्माण भी किया।
हर साल, विश्वकर्मा पूजा का त्योहार उनके सम्मान में मनाया जाता है। यह त्योहार आमतौर पर 17 सितंबर को होता है। इस दिन, कारीगर, इंजीनियर, और फैक्ट्री में काम करने वाले लोग अपनी मशीनरी और औजारों की पूजा करते हैं, ताकि उनका काम सुचारू रूप से चलता रहे।
कुल मिलाकर, बाबा विश्वकर्मा सृजन, वास्तुकला, और तकनीकी कला के देवता हैं, जो हमें परिश्रम और कौशल का महत्व सिखाते हैं।

राजा दशरथ का वो पल जब उन्होंने साक्षात शनिदेव को ललकार दिया! 🔥 प्रजा की रक्षा के लिए एक राजा का अद्भुत पराक्रम. कहानी सि...
06/09/2025

राजा दशरथ का वो पल जब उन्होंने साक्षात शनिदेव को ललकार दिया! 🔥 प्रजा की रक्षा के लिए एक राजा का अद्भुत पराक्रम. कहानी सिर्फ साहस की नहीं, बल्कि उस भक्ति की है जिसने नियति को भी बदल दिया. क्या आप जानते हैं, इस घटना के बाद ही राजा दशरथ ने वो शनि स्तोत्र रचा जो आज भी भक्तों को शक्ति देता है?
पूरी कहानी नीचे पढ़ें और शेयर करें अगर आपको लगता है कि सच्चा साहस हमेशा जीतता है! 🙏
क्या आपने कभी सोचा है कि एक राजा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए देवताओं के राजा को भी चुनौती दे सकता है? यह कहानी है उस अदम्य साहस की, जब अयोध्या के महाप्रतापी राजा दशरथ ने शनिदेव को रोकने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी थी.
यह बात तब की है जब शनिदेव अपने सबसे भयंकर रूप में थे. वे रोहिणी नक्षत्र को भेदने वाले थे, और ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि ऐसा होते ही धरती पर 12 साल का भयंकर अकाल पड़ेगा, जिससे चारों ओर हाहाकार मच जाएगा. नदियां सूख जाएंगी, फसलें जल जाएंगी, और जीवन का नामोनिशान मिट जाएगा.
यह खबर सुनकर राजा दशरथ बेचैन हो उठे. उनकी प्रजा की जान खतरे में थी! उन्होंने तुरंत अपने गुरु, ऋषि वशिष्ठ, से सलाह ली. वशिष्ठ जी ने कहा, "महाराज, शनिदेव को रोकना असंभव है. उनके सामने कोई टिक नहीं सकता."
लेकिन राजा दशरथ का दृढ़ संकल्प अटल था. उन्होंने तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे अपनी प्रजा को इस विनाश से बचाएंगे. उन्होंने अपना दिव्य धनुष उठाया, रथ पर सवार हुए और सीधा आकाश की ओर चल पड़े, जहाँ शनिदेव रोहिणी नक्षत्र को भेदने की तैयारी कर रहे थे.
जैसे ही शनिदेव ने रोहिणी नक्षत्र की ओर अपनी दृष्टि डाली, उन्हें सामने एक रथ दिखाई दिया. उस रथ पर एक राजा खड़े थे, जिन्होंने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींच रखी थी. शनिदेव ने पूछा, "हे राजा, क्या तुम मेरे मार्ग में बाधा बनने आए हो?"
राजा दशरथ ने गरजते हुए कहा, "हाँ, मैं तुम्हें तब तक आगे नहीं बढ़ने दूंगा जब तक मेरी प्रजा सुरक्षित न हो!"
राजा दशरथ की भक्ति और पराक्रम देखकर शनिदेव अचंभित रह गए. आज तक किसी ने भी उन्हें ऐसे ललकारा नहीं था. शनिदेव ने उनकी परीक्षा ली और अपनी एक भयानक दृष्टि उन पर डाली. लेकिन दशरथ अपने स्थान पर अटल रहे, न डरे, न हिले.
राजा की इस भक्ति और साहस से शनिदेव अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने दशरथ से कहा, "हे राजन्, तुम्हारे जैसा भक्त और राजा मैंने आज तक नहीं देखा. तुम्हारी प्रजा पर कोई संकट नहीं आएगा. मैं वचन देता हूँ कि अब मैं कभी भी रोहिणी नक्षत्र को नहीं भेदूंगा."
शनिदेव ने राजा दशरथ को एक शक्तिशाली शनि स्तोत्र भी दिया, जिसका पाठ करने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इस तरह, राजा दशरथ ने अपने साहस, भक्ति और प्रजा-प्रेम से एक बड़ा संकट टाल दिया और पूरे ब्रह्मांड में अपनी वीरता का परचम लहराया.
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा साहस और भक्ति सबसे बड़ी शक्तियों को भी झुका सकती है.

राधा अष्टमी: क्या आप जानते हैं क्यों है यह इतनी खास? 🤔अक्सर हम जन्माष्टमी की धूम में खो जाते हैं, लेकिन क्या आपको पता है...
31/08/2025

राधा अष्टमी: क्या आप जानते हैं क्यों है यह इतनी खास? 🤔
अक्सर हम जन्माष्टमी की धूम में खो जाते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि इसके ठीक 15 दिन बाद एक और महत्वपूर्ण त्योहार आता है?
यह है राधा अष्टमी, जो राधा रानी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। राधा रानी सिर्फ कृष्ण की प्रेमिका ही नहीं, बल्कि भक्ति का एक ऐसा प्रतीक हैं, जिन्होंने निस्वार्थ प्रेम की परिभाषा गढ़ी।
आज का दिन हमें सिखाता है कि प्रेम और भक्ति किसी भी रिश्ते को कैसे अमर बना सकते हैं।
आइए, इस खास मौके पर हम सब मिलकर राधा रानी का आशीर्वाद लें और उनके प्रेम से जीवन को रोशन करें।
आपका पसंदीदा राधा-कृष्ण भजन कौन सा है? कमेंट्स में ज़रूर शेयर करें! 👇

राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! ✨क्या आप जानते हैं कि जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद हम एक और बहुत ही खास त्योहार मनाते...
30/08/2025

राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! ✨
क्या आप जानते हैं कि जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद हम एक और बहुत ही खास त्योहार मनाते हैं? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं राधा अष्टमी की!
आज का दिन प्रेम, भक्ति और निस्वार्थ समर्पण की देवी, राधा रानी के जन्मोत्सव का है। राधा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय सखी माना जाता है। कहते हैं कि राधा रानी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण की भक्ति अधूरी है।
तो चलिए, आज के इस पावन दिन पर राधा रानी को याद करते हुए, उनके प्रेम और समर्पण से प्रेरणा लेते हैं।
आप सभी को राधा अष्टमी की बहुत-बहुत बधाई! 🌸

एक ज़माने की बात है... जब ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली और पूजनीय देवता, भगवान शिव, कैलाश पर्वत से कहीं दूर गए हुए थे। उनक...
27/08/2025

एक ज़माने की बात है... जब ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली और पूजनीय देवता, भगवान शिव, कैलाश पर्वत से कहीं दूर गए हुए थे। उनकी अनुपस्थिति में, उनकी पत्नी, माता पार्वती, को एकांत महसूस हुआ। उन्होंने अपने तन की मैल और चंदन का लेप मिलाकर एक बच्चे की आकृति बनाई और उसमें प्राण फूँक दिए। वह बालक उनका सबसे प्रिय और आज्ञाकारी पुत्र बन गया, जिसका नाम उन्होंने रखा गणेश।
पार्वती माँ ने गणेश को आदेश दिया कि कोई भी, यहाँ तक कि स्वयं भगवान शिव भी, उनकी अनुमति के बिना भवन में प्रवेश नहीं कर पाएँ। गणेश ने सिर झुकाकर यह आज्ञा स्वीकार कर ली।
तभी, भगवान शिव वापस लौटे। अपने घर में प्रवेश करने की कोशिश की, तो एक अनजान बालक ने उन्हें रोक दिया। शिव जी ने बहुत समझाया, पर गणेश अपनी माँ की आज्ञा पर अटल रहे। शिव जी को लगा कि कोई उनका अपमान कर रहा है। क्रोध में आकर उन्होंने अपना त्रिशूल निकाला और एक ही झटके में उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब माता पार्वती को यह पता चला, तो उनका हृदय टूट गया। उनके दुख और क्रोध ने पूरे ब्रह्मांड को हिला दिया। उनका रौद्र रूप देखकर सभी देवता काँप उठे। अपनी पत्नी को शांत करने के लिए, शिव जी ने तुरंत अपने गणों को भेजा और कहा कि जो भी पहला जीव दिखे, उसका सिर लेकर आओ।
सबसे पहले एक हाथी का बच्चा मिला, जिसका सिर लाकर गणेश के धड़ से जोड़ा गया। भगवान शिव ने उसे फिर से जीवित किया और उसे सबसे पहला पूजनीय देवता होने का वरदान दिया।
इस तरह, एक दुखद घटना ने भगवान गणेश को एक नया जीवन और सर्वोच्च सम्मान दिया। इसलिए, हर साल गणेश चतुर्थी का त्योहार हमें याद दिलाता है कि जीवन में हर अंत एक नई और अद्भुत शुरुआत लेकर आता है।
#विघ्नहर्ता

कौशिकी अमावस्या का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है, खासकर तांत्रिक साधना और शक्ति की पूजा के लिए। यह भाद्रपद मास मे...
22/08/2025

कौशिकी अमावस्या का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है, खासकर तांत्रिक साधना और शक्ति की पूजा के लिए। यह भाद्रपद मास में पड़ने वाली अमावस्या को कहा जाता है। इसका महत्व कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है।
कौशिकी अमावस्या का पौराणिक महत्व
कौशिकी अमावस्या से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएं और मान्यताएं इस प्रकार हैं:
* देवी कौशिकी का अवतरण: एक प्रचलित कथा के अनुसार, जब दैत्य शुंभ और निशुंभ के अत्याचारों से देवता परेशान हो गए, तब देवी महामाया ने अपनी इच्छाशक्ति से देवी कौशिकी को जन्म दिया। मान्यता है कि भाद्रपद की अमावस्या को ही देवी कौशिकी ने शुंभ-निशुंभ का वध किया था, इसलिए इस तिथि को उनके नाम पर कौशिकी अमावस्या कहा जाने लगा। इस दिन देवी की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
* तारापीठ और वामाखेपा: पश्चिम बंगाल के तारापीठ में इस अमावस्या का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी रात को महाश्मशान के श्वेतशिमुल वृक्ष के नीचे महान साधक वामाखेपा को माता तारा के दर्शन हुए थे। इसलिए, तारापीठ में इस दिन देशभर से साधक और श्रद्धालु पहुंचते हैं और विशेष तांत्रिक अनुष्ठान व यज्ञ करते हैं। यह दिन तंत्र साधना के लिए अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
* पितरों को प्रसन्न करने का दिन: सामान्य रूप से सभी अमावस्या पितरों को समर्पित होती हैं, लेकिन कौशिकी अमावस्या पर पितरों की शांति और मोक्ष के लिए किए गए दान-पुण्य और तर्पण का विशेष फल मिलता है। इस दिन गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने, दान करने और पीपल के वृक्ष की पूजा करने का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों से पितर अति प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
इस प्रकार, कौशिकी अमावस्या देवी शक्ति की उपासना, तांत्रिक सिद्धियों और पितरों को प्रसन्न करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है।

With Devanshi Rajput RT – I just got recognised as one of their rising fans! 🎉
22/08/2025

With Devanshi Rajput RT – I just got recognised as one of their rising fans! 🎉

कौशिकी अमावस्या का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है, खासकर तांत्रिक साधना और शक्ति की पूजा के लिए। यह भाद्रपद मास मे...
22/08/2025

कौशिकी अमावस्या का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है, खासकर तांत्रिक साधना और शक्ति की पूजा के लिए। यह भाद्रपद मास में पड़ने वाली अमावस्या को कहा जाता है। इसका महत्व कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है।
कौशिकी अमावस्या का पौराणिक महत्व
कौशिकी अमावस्या से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएं और मान्यताएं इस प्रकार हैं:
* देवी कौशिकी का अवतरण: एक प्रचलित कथा के अनुसार, जब दैत्य शुंभ और निशुंभ के अत्याचारों से देवता परेशान हो गए, तब देवी महामाया ने अपनी इच्छाशक्ति से देवी कौशिकी को जन्म दिया। मान्यता है कि भाद्रपद की अमावस्या को ही देवी कौशिकी ने शुंभ-निशुंभ का वध किया था, इसलिए इस तिथि को उनके नाम पर कौशिकी अमावस्या कहा जाने लगा। इस दिन देवी की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
* तारापीठ और वामाखेपा: पश्चिम बंगाल के तारापीठ में इस अमावस्या का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी रात को महाश्मशान के श्वेतशिमुल वृक्ष के नीचे महान साधक वामाखेपा को माता तारा के दर्शन हुए थे। इसलिए, तारापीठ में इस दिन देशभर से साधक और श्रद्धालु पहुंचते हैं और विशेष तांत्रिक अनुष्ठान व यज्ञ करते हैं। यह दिन तंत्र साधना के लिए अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
* पितरों को प्रसन्न करने का दिन: सामान्य रूप से सभी अमावस्या पितरों को समर्पित होती हैं, लेकिन कौशिकी अमावस्या पर पितरों की शांति और मोक्ष के लिए किए गए दान-पुण्य और तर्पण का विशेष फल मिलता है। इस दिन गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने, दान करने और पीपल के वृक्ष की पूजा करने का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों से पितर अति प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
इस प्रकार, कौशिकी अमावस्या देवी शक्ति की उपासना, तांत्रिक सिद्धियों और पितरों को प्रसन्न करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है।

जब भगवान श्री राम पृथ्वी लोक से वापस जाने लगे, तब उन्होंने अपने सबसे बड़े भक्त हनुमान जी को अपने साथ नहीं ले गए और उन्हे...
18/08/2025

जब भगवान श्री राम पृथ्वी लोक से वापस जाने लगे, तब उन्होंने अपने सबसे बड़े भक्त हनुमान जी को अपने साथ नहीं ले गए और उन्हें अमरता का वरदान देते हुए सप्त चिरंजीवी में शामिल होने का आदेश दिया। हनुमान जी को यह वरदान इसलिए मिला क्योंकि उन्हें कलयुग के अंत तक पृथ्वी पर रहकर धर्म की रक्षा करनी थी और भक्तों को सही मार्ग दिखाना था। उनका सप्त चिरंजीवी में शामिल होना यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा कभी समाप्त नहीं होती। आज भी हनुमान जी हर उस भक्त के साथ खड़े हैं जो सच्चे दिल से उन्हें याद करता है और उनकी भूमिका सिर्फ एक योद्धा की नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक और संकटमोचन की भी है।

जन्माष्टमी की रात का वो अद्भुत पल! जब कंस के काल का जन्म हुआ। कैसे एक नन्हा बालक यमुना नदी की उफनती लहरों को शांत कर गया...
16/08/2025

जन्माष्टमी की रात का वो अद्भुत पल! जब कंस के काल का जन्म हुआ। कैसे एक नन्हा बालक यमुना नदी की उफनती लहरों को शांत कर गया और खुद शेषनाग ने आकर उस पर छाया की! यह सिर्फ कहानी नहीं, आस्था है। इस जन्माष्टमी आइए, जुड़ें भगवान कृष्ण की इस अद्भुत लीला से।
राजा कंस के आतंक से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। मथुरा की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी और कंस की क्रूरता की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन, कहते हैं न कि जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, तब-तब भगवान स्वयं कोई रूप लेकर आते हैं। और ऐसा ही कुछ होने वाला था।
एक अंधेरी रात, घनघोर बारिश हो रही थी। बिजली कड़क रही थी और मानो पूरी प्रकृति उस महान घटना की गवाह बनने को आतुर थी। मथुरा के कारागार में माता देवकी और वसुदेव की कोख से जन्म हुआ एक दिव्य बालक का। जी हाँ, वह कोई और नहीं, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे।
उनका जन्म हुआ तो सभी बेड़ियाँ खुल गईं, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और चारों ओर एक अलौकिक शांति छा गई। यह भगवान की लीला थी! वसुदेव जी ने इस नन्हे बालक को कंस के कहर से बचाने के लिए तुरंत उसे गोकुल पहुँचाने का निश्चय किया।
उन्होंने अपने सिर पर एक टोकरी में कान्हा को उठाया और यमुना नदी की ओर चल पड़े। उफनती हुई यमुना नदी उस रात अपने पूरे वेग में थी। लेकिन, जैसे ही वसुदेव जी ने कदम रखा, नदी का पानी शांत होने लगा और रास्ता देने लगा। बारिश से बचाने के लिए एक विशालकाय शेषनाग ने अपने फन से कान्हा पर छाया कर दी।
यह दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं था!
नदी पार करके वसुदेव जी गोकुल पहुँचे। वहाँ नंद बाबा के घर में यशोदा मैया को एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव जी ने चुपके से श्रीकृष्ण को मैया यशोदा के पास रख दिया और उस कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए।
अगर आपको भी वासुदेव जी का यह साहसिक और दिव्य दृश्य देख कर रोमांच हुआ हो, तो कमेंट में लिखें —
💙 राधे-राधे 💙”
✨ “इस दिव्य दृश्य को हर कृष्ण भक्त तक पहुँचाएँ ❤️ शेयर ज़रूर करें।”

जन्माष्टमी की रात का वो अद्भुत पल! जब कंस के काल का जन्म हुआ। कैसे एक नन्हा बालक यमुना नदी की उफनती लहरों को शांत कर गया...
16/08/2025

जन्माष्टमी की रात का वो अद्भुत पल! जब कंस के काल का जन्म हुआ। कैसे एक नन्हा बालक यमुना नदी की उफनती लहरों को शांत कर गया और खुद शेषनाग ने आकर उस पर छाया की! यह सिर्फ कहानी नहीं, आस्था है। इस जन्माष्टमी आइए, जुड़ें भगवान कृष्ण की इस अद्भुत लीला से।
राजा कंस के आतंक से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। मथुरा की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी और कंस की क्रूरता की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन, कहते हैं न कि जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, तब-तब भगवान स्वयं कोई रूप लेकर आते हैं। और ऐसा ही कुछ होने वाला था।
एक अंधेरी रात, घनघोर बारिश हो रही थी। बिजली कड़क रही थी और मानो पूरी प्रकृति उस महान घटना की गवाह बनने को आतुर थी। मथुरा के कारागार में माता देवकी और वसुदेव की कोख से जन्म हुआ एक दिव्य बालक का। जी हाँ, वह कोई और नहीं, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे।
उनका जन्म हुआ तो सभी बेड़ियाँ खुल गईं, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और चारों ओर एक अलौकिक शांति छा गई। यह भगवान की लीला थी! वसुदेव जी ने इस नन्हे बालक को कंस के कहर से बचाने के लिए तुरंत उसे गोकुल पहुँचाने का निश्चय किया।
उन्होंने अपने सिर पर एक टोकरी में कान्हा को उठाया और यमुना नदी की ओर चल पड़े। उफनती हुई यमुना नदी उस रात अपने पूरे वेग में थी। लेकिन, जैसे ही वसुदेव जी ने कदम रखा, नदी का पानी शांत होने लगा और रास्ता देने लगा। बारिश से बचाने के लिए एक विशालकाय शेषनाग ने अपने फन से कान्हा पर छाया कर दी।
यह दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं था!
नदी पार करके वसुदेव जी गोकुल पहुँचे। वहाँ नंद बाबा के घर में यशोदा मैया को एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव जी ने चुपके से श्रीकृष्ण को मैया यशोदा के पास रख दिया और उस कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए।
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