अहिनवार धाम

अहिनवार धाम लखनऊ जिले का इक गांव

गांव का नाम था बरवा पुरवा, हरियाली से भरपूर, छोटे-छोटे कच्चे घर, मिट्टी के आँगन और तालाब के किनारे लगे आम और पीपल के पेड...
25/07/2025

गांव का नाम था बरवा पुरवा, हरियाली से भरपूर, छोटे-छोटे कच्चे घर, मिट्टी के आँगन और तालाब के किनारे लगे आम और पीपल के पेड़। बरसात का मौसम था। बादल दिनभर मंडरा रहे थे और हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली हुई थी।

शाम का समय था, बच्चे खेतों से लौटकर कीचड़ में फिसलते-हँसते घर आ रहे थे। तभी आसमान में गड़गड़ाहट हुई और तेज बारिश शुरू हो गई।

छोटे-छोटे बच्चे नंगे पांव बाहर दौड़ पड़े। मिट्टी में खेलना, पानी में नाव बहाना और घर की छत से टपकते पानी के नीचे नहाना जैसे उनकी सबसे प्यारी खुशी थी।

गांव की बूढ़ी दादी – कमला दादी, बाहर चबूतरे पर बैठकर कहानियाँ सुनाने लगीं:

"एक बार भगवान इंद्र ने धरती पर एक किसान को वरदान दिया था कि जब भी वो चाहे, बारिश हो जाए..."

बच्चे गोल घेरा बनाकर भीगते हुए सुनते जा रहे थे।

उधर, गांव की गौशाला में बैल और गायें भीगने से बचने के लिए एक-दूसरे से सटकर खड़ी थीं। किसान घरों की छतों से बारिश का पानी इकट्ठा करने लगे – कुएँ भरने लगे, खेतों में नई जान आने लगी।

तभी अचानक बिजली कड़की और एक गरीब किसान रघुनाथ का छप्पर गिर गया। गांव के लोग इकट्ठा हुए, किसी ने बांस दिया, किसी ने बोरी, और कुछ ही देर में मिलकर उसका छप्पर फिर से खड़ा कर दिया।

दादी बोलीं –
"यही तो है गांव की असली ताकत – एकता और मदद।"

बरसात की वो शाम सिर्फ बारिश की नहीं थी,
वो प्यार, सहयोग, और बचपन की खुशियों की भी कहानी थी।
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गाँव का महीना जुलाई का था। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। खेतों में पानी भर चुका था, और अब बारी थी धान की रोपाई की। सूरज क...
20/07/2025

गाँव का महीना जुलाई का था। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। खेतों में पानी भर चुका था, और अब बारी थी धान की रोपाई की। सूरज की हल्की किरणें जब खेत के पानी पर चमकतीं, तो लगता जैसे कोई सोने की परत बिछी हो।

सवेरे-सवेरे गाँव की महिलाएँ खेत की ओर निकल पड़ीं — हाथों में बीज, सिर पर गमछा, और दिलों में उमंग। कोई गीत गा रही थी, तो कोई ठिठोली कर रही थी।

राजकली, जो गाँव की सबसे चंचल और मजाकिया औरत मानी जाती थी, पानी में उतरते ही बोली —
"देखो-देखो बहनों, आज तो ऐसा लग रहा जैसे मैं पानी में परियाँ बन गई हूँ, बस पंख लगने की देर है!"

सभी हँस पड़ीं।

गुड़िया, जो थोड़ी शर्मीली थी, बोली —
"अरे दीदी, आप परी नहीं, जलपरी हो… लेकिन बिना पूँछ वाली!"

खेत में जोर का ठहाका गूंजा।

रोपाई के बीच, अचानक फुलवा फिसल गई और पूरी कीचड़ में जा गिरी। पहले तो सब चौंक गईं, फिर उसकी चिपकी हुई साड़ी और कीचड़ से भरे चेहरे को देख सब हँसते-हँसते लोटपोट हो गईं।

फुलवा भी कम न थी, उठते ही बोली —
"देखो बहनों, अब मुझे कोई साफ-सुथरा दूल्हा नहीं मिलेगा, अब तो कीचड़ वाला ही चलेगा!"

राजकली ने कहा —
"अरे नहीं, अब तो दूल्हे को भी कीचड़ में घसीटना पड़ेगा, तभी जोड़ी जम पाएगी!"

सभी महिलाएँ खेत में काम करती रहीं, लेकिन साथ-साथ हँसी, मजाक, और ठिठोली चलती रही। उस रोपाई वाले दिन में काम की थकान नहीं थी, बल्कि एक ताजगी थी — आपसी अपनापन, स्नेह और हँसी की मिठास।

काम चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, अगर साथ में हँसी हो, तो हर मेहनत भी त्योहार लगती है।
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"सड़क किनारे की दावत"गांव का नाम था नवापुरा, जहां ज़्यादातर लोग गरीबी से जूझ रहे थे। लेकिन उस गांव में एक परंपरा थी — हर...
17/07/2025

"सड़क किनारे की दावत"

गांव का नाम था नवापुरा, जहां ज़्यादातर लोग गरीबी से जूझ रहे थे। लेकिन उस गांव में एक परंपरा थी — हर साल गांव के सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति की याद में एक विशाल भंडारा लगाया जाता था। खास बात यह थी कि इस दावत में सबसे पहले बच्चों को भोजन कराया जाता था, क्योंकि गांववाले मानते थे कि भगवान बच्चों के रूप में सबसे पहले भूख मिटाते हैं।

इस साल भी भंडारे का दिन आया। बच्चे अपनी स्कूल की वर्दी में सड़क किनारे पंक्तियों में बैठ गए। उनके सामने केले के पत्तों पर गरमा गरम खाना परोसा गया — हलवा, सब्ज़ी, दाल और गरम गरम चावल। बच्चों के चेहरे पर भूख भी थी और मुस्कान भी। कुछ बच्चे ऐसे थे जो हफ्तों बाद पेट भर खाना खा रहे थे।

पीछे खड़ी बुज़ुर्ग महिलाएं और गांव की महिलाएं खुद अपने हाथों से बच्चों को परोस रही थीं। एक बूढ़ी अम्मा की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह मुस्कुरा रही थीं — "आज मेरे पोते की तरह सब बच्चे खाना खा रहे हैं," उन्होंने कहा।

खाना कोई खास नहीं था, लेकिन उस दिन वो दावत, राजा के महल से भी बढ़कर लग रही थी।
क्योंकि वहां प्यार परोसा जा रहा था, और भूख को सम्मान के साथ मिटाया जा रहा था।
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भूख केवल रोटी से नहीं मिटती, उसे सम्मान और स्नेह से भी तृप्त किया जाता है।
हर गांव, हर शहर में ऐसी दावतें हों — यही असली इंसानियत है।
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एक बार की बात है, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में एक बूढ़ा किसान "रामू काका" रहते थे। वे हर दिन की तरह अपने खेत में ...
15/07/2025

एक बार की बात है, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में एक बूढ़ा किसान "रामू काका" रहते थे। वे हर दिन की तरह अपने खेत में काम कर रहे थे। तभी अचानक आसमान में काले बादल छा गए और बिजली चमकने लगी।

गांव के बाकी लोग जल्दी-जल्दी अपने घरों की ओर भागने लगे, लेकिन रामू काका सोचने लगे,
"बस थोड़ी देर में चला जाऊंगा, खेत बचाना भी तो ज़रूरी है।"

उसी समय गांव के स्कूल में पढ़ने वाला एक बच्चा "छोटू" रामू काका के पास दौड़ता हुआ आया।
छोटू बोला:
"काका! मास्टरजी ने सिखाया है कि जब बिजली चमके तो खुले मैदान, पेड़ या तालाब के पास नहीं रुकना चाहिए। जल्दी चलिए!"

रामू काका थोड़े हैरान हुए, लेकिन छोटू की बात सुनकर वह खेत छोड़ तुरंत पास के एक पक्के मकान में चले गए।

थोड़ी ही देर में ज़ोरदार आवाज़ के साथ बिजली पास के एक पुराने पेड़ पर गिरी। वो वही पेड़ था जिसके नीचे रामू काका छांव लिया करते थे।

रामू काका ने छोटू को गले लगाते हुए कहा: "बेटा, आज तूने मेरी जान बचाई। अब मैं सबको बताऊंगा कि बिजली से बचने के क्या-क्या नियम होते हैं।"

🌩 आकाशीय बिजली से बचाव के कुछ महत्वपूर्ण नियम:

1. बिजली चमकते ही खुले में न रहें।

2. पेड़, बिजली के खंभे, तालाब या जलस्रोत से दूर रहें।

3. गाड़ी या पक्के मकान के अंदर शरण लें।

4. मोबाइल या बिजली से चलने वाले उपकरणों से दूर रहें।

5. धातु की चीज़ें (जैसे छाता, बेलचा, साइकिल) न पकड़ें।

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"प्रकृति की चेतावनी को हल्के में मत लो, सावधानी ही सुरक्षा है।"
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“ज्ञान की राह”धूप तेज़ थी और चारों ओर खेतों में पानी फैला हुआ था। उसी खेतों के बीच एक पगडंडी पर, एक बूढ़ा किसान बैठा था ...
14/07/2025

“ज्ञान की राह”

धूप तेज़ थी और चारों ओर खेतों में पानी फैला हुआ था। उसी खेतों के बीच एक पगडंडी पर, एक बूढ़ा किसान बैठा था — एक हाथ में छाता, दूसरे में कलम। उसका शरीर थका हुआ था, कपड़े साधारण और पुराने, लेकिन आँखों में जिज्ञासा की चमक थी। उसके सामने खुली हुई एक कॉपी थी, जिस पर वह कांपते हाथों से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था।

उसका नाम था रामलाल। उम्र भले ही सत्तर पार कर चुकी थी, लेकिन अब उसने ठान लिया था — "पढ़ना है, चाहे जैसे भी हो।" बचपन में घर की हालत ठीक नहीं थी, तो स्कूल छूट गया। जवानी खेतों में बीत गई, और बुढ़ापे में सब पूछते थे — “अब क्या करना है पढ़-लिखकर?”

लेकिन रामलाल जानते थे, पढ़ना सिर्फ नौकरी पाने के लिए नहीं होता। पढ़ना आत्मा की भूख है, सोच की रोशनी है। वह चाहते थे कि अपने नाम के आगे ‘अनपढ़’ का तमगा मिटा सकें।

हर दिन वो अपनी लाठी और छाता लेकर खेतों की मेड़ पर बैठते, जहां सन्नाटा होता और मन एकाग्र रहता। गांव के एक छोटे बच्चे से अक्षर सीखते, कभी समझते, कभी भूलते, फिर दोबारा सीखते।

कई लोग उन्हें देखकर हँसते, कुछ प्रेरित भी होते। लेकिन रामलाल को अब किसी की परवाह नहीं थी। उन्हें तो बस एक सपना पूरा करना था — "अपने पोते को चिट्ठी खुद के हाथों से लिखना"।

यह तस्वीर सिर्फ एक बूढ़े आदमी की नहीं, यह उस जज़्बे की पहचान है जो उम्र, हालात और समय की सीमाओं को लांघकर आगे बढ़ता है।

#सीख_की_कोई_उम्र_नहीं
#प्रेरणा_हर_कदम_पर

एक गांव में अर्जुन नाम का एक नौजवान रहता था। वह अक्सर प्यार में दिल लगाने की कोशिश करता, पर हर बार उसे केवल धोखा मिलता। ...
13/07/2025

एक गांव में अर्जुन नाम का एक नौजवान रहता था। वह अक्सर प्यार में दिल लगाने की कोशिश करता, पर हर बार उसे केवल धोखा मिलता। वह निराश रहने लगा और जीवन से थक गया।

एक दिन गांव के वृद्ध बाबा ने उसे एक पौधा दिया और कहा,
"बेटा, दिल लगाने से अच्छा है जीवन में कुछ ऐसा लगाओ जो फल और छांव दे।"

अर्जुन ने बाबा की बात को गंभीरता से लिया और पौधों की देखभाल शुरू कर दी। पहले-पहले तो उसे इसमें कोई मज़ा नहीं आया, लेकिन धीरे-धीरे उसे प्रकृति से लगाव हो गया।
हर दिन वो नए पौधे लगाता, उन्हें पानी देता, खाद डालता और उनका ध्यान रखता।

कुछ सालों बाद, वही बंजर ज़मीन अब एक हरियाली से भरी बगिया बन गई थी। गांव के लोग वहाँ बैठते, बच्चे खेलते, और मुसाफिर छांव पाते। अर्जुन को अब शांति और सच्ची खुशी मिलती थी।

उसे अब समझ आया कि दिल लगाने से अच्छा था पौधे लगाना,
क्योंकि ये न घाव देते हैं, न धोखा — सिर्फ छांव और सुकून देते हैं।
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"भावनाओं में घुलने से बेहतर है, कुछ ऐसा करो जो दुनिया को सुकून दे।"
#प्रेरणादायककहानी
#दिलसेछांवतक
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#प्रकृति_से_प्रेम
#हरियाली_ही_सच्चा_प्यार
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#छांव_देनेवाले_पौधे

#धोखा_नहीं_छांव_दे

हरिहरपुर गांव का रामसागर एक गरीब किसान था। कुछ जमीन थी, लेकिन बारिश न होने पर वह भी बंजर हो जाती। बच्चों की फीस, बूढ़े म...
12/07/2025

हरिहरपुर गांव का रामसागर एक गरीब किसान था। कुछ जमीन थी, लेकिन बारिश न होने पर वह भी बंजर हो जाती। बच्चों की फीस, बूढ़े मां-बाप की दवा, और घर का खर्च – सब कुछ रामसागर की चिंता में डूबा रहता।

एक दिन गांव में सूचना आई – मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत काम शुरू होने वाला है। रामसागर ने बिना देर किए पंजीकरण कराया और अगले ही दिन से गांव की सड़क की मरम्मत के काम में लग गया।

सुबह 8 बजे से लेकर दोपहर 4 बजे तक वह कड़ी मेहनत करता। हाथों में छाले पड़ जाते, लेकिन चेहरे पर उम्मीद की रेखा बनी रहती। धीरे-धीरे, मनरेगा से मिलने वाली मजदूरी से घर चलने लगा, बच्चों की पढ़ाई दोबारा शुरू हो गई, और मां-बाप को इलाज मिलने लगा।

काम करते-करते रामसागर ने सीखा कि कैसे ईंटें जमाई जाती हैं, कैसे गड्ढे खुदते हैं और पानी का बहाव कैसे मोड़ा जाता है। उसकी मेहनत और लगन देखकर ग्राम प्रधान ने उसे ‘मेट’ बना दिया – अब वह खुद मजदूरों की निगरानी करता, उनकी हाजिरी भरता, और योजनाओं की जानकारी देता।

आज वही रामसागर गांव में सम्मान के साथ जी रहा है। उसकी बेटी पढ़ाई कर रही है और बेटा भी अब कंप्यूटर सीख रहा है।
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मनरेगा सिर्फ मजदूरी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का रास्ता है। मेहनत और ईमानदारी से कोई भी इंसान अपनी तकदीर बदल सकता है।🌱🌹🌹🌹🌱🌹🌹🌹🌱🌹🌹🌹

एक समय की बात है, एक प्यारा सा गांव था — नाम था अहिनवार। चारों तरफ हरियाली, खेतों में लहराती फसलें, और नदी का मीठा संगीत...
10/07/2025

एक समय की बात है, एक प्यारा सा गांव था — नाम था अहिनवार। चारों तरफ हरियाली, खेतों में लहराती फसलें, और नदी का मीठा संगीत इस गांव को स्वर्ग जैसा बनाता था।

इस गांव के लोग बहुत मेहनती और दिल से साफ थे। यहां न कोई झूठ बोलता, न किसी से बैर रखता। हर किसी के चेहरे पर मुस्कान रहती थी। सुबह होते ही गांव के बच्चे पक्षियों की चहचहाहट के साथ स्कूल जाते, और बड़े लोग अपने-अपने खेतों में काम करने लगते।

गांव का सबसे बुजुर्ग आदमी था – महगी दादा। वो सबको समझाते थे कि "जिस गांव में प्यार, सहयोग और ईमानदारी हो, वहां भगवान खुद बसते हैं।"

एक बार गांव में पानी की भारी कमी हो गई। कुएं सूखने लगे, फसलें मुरझाने लगीं। लेकिन गांववालों ने हार नहीं मानी। सबने मिलकर एक बड़ा तालाब खुदवाया, और एक साथ काम कर के पानी की पाइपलाइन भी जोड़ ली।

थोड़े समय बाद गांव फिर से हरा-भरा हो गया।

अब अहिनवार का नाम पूरे जिले में लिया जाने लगा
“खुशियों वाला गांव” के नाम से।

जब लोग आपस में मिल-जुलकर रहें, तो हर समस्या का हल मिल जाता
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10/11/2024
इनके साथ The Lucknow Express – मुझे अभी-अभी इनका एक टॉप फ़ैन होने की पहचान मिली है! 🎉
10/11/2024

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