28/09/2025
यम–नचिकेता संवाद" (Yam–Naciketa Samvad) की कथा जानना चाहते हैं, जो कठोपनिषद (Kathopanishad) में विस्तार से वर्णित है। यह उपनिषद वेदों का हिस्सा है और इसमें मृत्यु, आत्मा और मोक्ष जैसे गहन प्रश्नों पर चर्चा होती है।
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कथा का प्रारंभ
कहानी का आरम्भ होता है ऋषि वाजश्रवस से।
उन्होंने यज्ञ किया और संकल्प लिया कि यज्ञ में प्राप्त सम्पत्ति का दान करेंगे।
लेकिन वे दान में बूढ़ी, कमजोर गायें देने लगे।
उनका पुत्र नचिकेता यह देखकर चिंतित हो गया, क्योंकि दान शुद्ध और योग्य होना चाहिए था।
नचिकेता ने पिता से पूछा –
"पिताजी, आप मुझे किसको दान करेंगे?"
तीन बार पूछने पर पिता ने क्रोधित होकर कह दिया –
“तुझे मैं मृत्यु को दान करता हूँ।”
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नचिकेता यमलोक पहुँचना
पिता की आज्ञा को सत्य मानकर नचिकेता मृत्यु–लोक (यमलोक) पहुँचा।
उस समय यमराज वहाँ नहीं थे।
नचिकेता ने तीन दिन बिना अन्न–जल के प्रतीक्षा की।
यमराज लौटे तो उन्होंने तपस्वी बालक का धैर्य और सत्यनिष्ठा देखकर प्रसन्न होकर तीन वरदान देने का वचन दिया।
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तीन वरदान
1. पहला वरदान (पिता का संतोष):
नचिकेता ने माँगा –
“मेरे पिताजी का क्रोध शांत हो जाए और वे मुझे देखकर प्रसन्न हों।”
यमराज ने यह वरदान तुरंत पूरा किया।
2. दूसरा वरदान (अग्नि विद्या):
नचिकेता ने कहा –
“स्वर्ग प्राप्ति के लिए जो अग्नि–विद्या है, वह मुझे बताइए।”
यमराज ने स्वर्गीय अग्नि–यज्ञ की विधि सिखाई।
नचिकेता ने उसे याद भी कर लिया।
प्रसन्न होकर यमराज ने उस अग्नि का नाम ही “नचिकेता अग्नि” रखा।
3. तीसरा वरदान (मृत्यु का रहस्य):
नचिकेता ने सबसे गहन प्रश्न पूछा –
“मनुष्य के मरने के बाद क्या होता है? क्या आत्मा नष्ट हो जाती है या बनी रहती है?”
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यम–नचिकेता संवाद
यहाँ से उपनिषद का सबसे गूढ़ भाग शुरू होता है।
1. यमराज की परीक्षा
यमराज ने कहा –
“यह प्रश्न बड़ा कठिन है। देवताओं को भी इसका उत्तर ठीक से ज्ञात नहीं। तुम कोई और वरदान माँग लो।”
लेकिन नचिकेता अडिग रहा। उसने कहा –
“नहीं, यही ज्ञान चाहिए।”
2. यमराज का प्रलोभन
यमराज ने उसे धन, सोना, सुंदर कन्याएँ, लंबी आयु, स्वर्ग सुख आदि सब देने का प्रस्ताव रखा।
नचिकेता ने कहा –
“ये सब क्षणिक हैं। इनसे आत्मा की तृप्ति नहीं हो सकती। मुझे केवल आत्म–तत्त्व का ज्ञान चाहिए।”
3. आत्मा और मृत्यु का रहस्य
यमराज ने तब समझाया –
आत्मा अमर और अविनाशी है।
शरीर नष्ट होता है, पर आत्मा जन्म–मरण से परे है।
आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है।
जो इसे भलीभांति जान लेता है, वह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।
मोक्ष (परम शांति) आत्मा की सच्ची पहचान और ब्रह्म से एकत्व से ही संभव है।
यमराज ने ज्ञान, श्रद्धा, संयम और गुरु–उपदेश के महत्व को भी बताया।
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नचिकेता की उपलब्धि
यमराज ने नचिकेता को आत्म–ज्ञान का रहस्य सिखाया।
नचिकेता इस ज्ञान को प्राप्त कर मृत्यु–भय से मुक्त हो गया।
इस प्रकार वह जीवित ही अमरत्व का अधिकारी बना।
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सारांश (संदेश)
1. सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला बालक भी अमर ज्ञान पा सकता है।
2. सांसारिक सुख अस्थायी हैं, पर आत्म–ज्ञान ही शाश्वत है।
3. मृत्यु का भय केवल आत्मा की पहचान से दूर होता है।
4. गुरु–शिष्य परंपरा का महत्व स्पष्ट होता है।
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