29/04/2022
आज से 3 साल पहले मैं जयपुर में था
29 रमजान को मे जयपुर से घर के लिए निकला
अगले दिन ईद थी
मैं sindhi camp पहुंचा वहा से कोटा जाने वाली बस 🚌 में जैसे ही मैने entry ली।।।।
सामने आंखों में चमक लिए एक शख्स ने इशारे से मुझे अपने पास बैठने को इशारा किया ।।
मुझे भी पता नही जाने क्यों उसकी शक्ल अपने किसी दोस्त से मिलती जुलती लगी।
मुझे लगा मेरा कोई दोस्त है जो जयपुर में मिला ।
मैं उसके पास बैठा ।।
फिर एक दूसरे से मुखातिब हुए।
मैने उसका नाम पूछा और उसने मेरा
फिर मैने उसे बताया की तुम्हे देखकर मुझे लगा कि मेरा कोई दोस्त हैं ।
और मज़े की बात तो ये है कि उसका जवाब भी same था ।
Shahnawaz हां shahnawaz नाम बताया उसने अपना और अपना ठिकाना tonk .
बंदा रमजान से था और वक्त 5 से 6 बजे का, तो थोड़ा थका हुआ लग रहा था ।
थोड़ी देर बाद हमारी बाते शुरू हुई ।और 10 मिनट बाद ऐसा लगा जैसे कि एक दूसरे को सालो से जानते हो । जो थकान उसके चेहरे पर थी बात करने से गायब सी हो गई ।उसने थोड़ा अपने बारे में बताया वैसे थोड़ा नहीं बहुत बताया😅 ।
Jaipur से tonk तक हमारी बाते ऐसे ही चलती रही nonstop .
फिर उसका घर आया और वो घर को चल दिया
बंदा नमाजी था और रमजान से भी तो वहा से मस्जिद ले लिए निकल गया।
वो लगभग एक डेढ़ घंटे की मुलाकात ऐसी रही मानो सालो से जानते हो एक दूसरे को !
कभी कभी ऐसा होता है ना की जिन लोगों को हम सालो से जानते है फिर भी दिल उनसे connect नही हो पाते ।
और कुछ ऐसे भी होते हो जिनका और अपना दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता मगर फिर भी वो अपनो से लगने लगते है।
कोई कहता है की जब जिस्म nhi बने थे अपने तो अपनी रूहे लोहे महफूज़ पर थी और वो रूहे जिस रूह के क़रीब थी अगर वो यहाँ दुनियां में भी एक दूसरे से मिले तो उनको यहां भी एक दूसरे को देख लेने भर से ही खुशी का एहसास होता है।
अब ऐसा तो लोग कहते है😅 सच्चाई खुदा जाने ।।
मगर अल्लाह जिनके दिलो में दोस्ती पैदा करता है वो दोस्त बन ही जाते है