11/12/2024
शर्म आती है ऐसे सिस्टम से
जहां एक व्यक्ति न्याय की गुहार लगता हुआ, सुसाइड कर लेता है।
अंतिम इच्छा क्या?
अस्थियों का विसर्जन कोर्ट के गटर में कर दिया जाए। जिससे समाज को यह पता चल सके कि हमारे देश की कानून और न्यायिक व्यवस्था किस तरीके की है।
समाज में समानता और न्याय की बात अक्सर महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण तक ही सीमित रह जाती है। हालांकि, पुरुषों के अधिकारों और उनकी समस्याओं को लेकर अभी भी जागरूकता की कमी है। झूठे दहेज उत्पीड़न के मामलों ने न केवल न्याय व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा किया है, बल्कि समाज में पुरुषों के लिए न्याय की उम्मीद को भी कमजोर किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर नौवें मिनट पर एक शादीशुदा पुरुष महिला से प्रताड़ित होकर आत्महत्या कर रहा है। इन घटनाओं का मुख्य कारण झूठे दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मुकदमे हैं, जिनमें अधिकांश पुरुष खुद को निर्दोष साबित करने में नाकाम रहते हैं। यह आंकड़ा हमारे समाज की उस कठोर वास्तविकता को उजागर करता है, जहां पुरुषों को दोषी मानकर उनके अधिकारों की अनदेखी की जाती है।
न्याय प्रक्रिया या मानसिक उत्पीड़न?
झूठे मामलों में फंसे पुरुषों को बार-बार कोर्ट में अपराधियों की तरह खड़ा होना पड़ता है। उनके परिवार, माता-पिता और बच्चों को भी सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मानसिक तनाव और अपमान पुरुषों को इस कदर तोड़ देता है कि उनके पास आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
कानून के दुरुपयोग की बढ़ती घटनाएं
थानों में दर्ज मामलों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि 90% से ज्यादा केस झूठे होते हैं। महिलाएं इन कानूनों का दुरुपयोग करते हुए पुरुषों से भारी रकम वसूलने का जरिया बना रही हैं। झूठे केस में फंसाने की धमकी देकर लाखों-करोड़ों रुपए ऐंठने की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं।
महिला अधिकारों की रक्षा करना आवश्यक है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि पुरुषों के अधिकारों को छीना जाए। महिलाओं को अधिकार देकर पुरुषों को उत्पीड़ित करना समानता नहीं, बल्कि असमानता है। नारीत्व का सम्मान पुरुषों के अपमान से जुड़ा नहीं होना चाहिए।
आधुनिक नारीवाद को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। ऐसे कानून और नीतियां बननी चाहिए, जो महिलाओं और पुरुषों दोनों के अधिकारों की रक्षा करें। झूठे मामलों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि निर्दोष पुरुषों का उत्पीड़न रोका जा सके।