11/05/2025
#कलयुग_की_शादी यह लो एक और लव मैरिज हो गई। अब आप और हम तो बधाई ही दे सकते है। अब इनको सरकार पांच लाख रुपए भी दे सकती है क्योंकि इन्होंने दुसरी जाति मे विवाह किया है। अब यहा तक आ ही गये हो तो इस प्यार भरी कहानी को पढ ही लो। आगे भी इस तरह के विवाह और होगे तो आप बधाई देने के लिए तैयार रहना।
मई का महीना था, लू के थपेड़े और तपती धूप ने सबको घरों में बंद कर दिया था। मगर करन को रोज़ कुएं से पानी लाना होता था, और वहीं पास में पिपल का एक पुराना पेड़ था, जिसकी छांव में अक्सर गौरी बैठी होती — अपनी किताबें लेकर।
गौरी शहर से गांव आई थी गर्मी की छुट्टियों में — अपने नाना-नानी के घर। पढ़ाई में तेज़, लेकिन दिल से बिल्कुल देसी। करन वहीं गांव का लड़का, मेहनती, मगर थोड़ा शर्मीला।
पहली बातचीत:
एक दिन करन ने हिम्मत जुटाकर कहा,
"इतनी गर्मी में किताब कौन पढ़ता है?"
गौरी मुस्कराई, "और इतनी गर्मी में कौन पानी लाता है?"
वो दोनों हंसे। फिर धीरे-धीरे हर दिन पिपल की छांव में मुलाकात होने लगी। गौरी करन को अंग्रेज़ी के शब्द सिखाती, और करन उसे मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाता।
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प्यार का एहसास:
एक दिन गौरी ने पूछा, "अगर मैं वापस शहर चली गई, तो क्या करोगे?"
करन ने चुप रहकर मिट्टी की एक छोटी सी गुड़िया बनाई और कहा,
"तू चली जाएगी, पर तेरा रूप तो यहीं रहेगा।"
उस दिन गौरी को अहसास हुआ कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं थी।
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बिछड़ने की घड़ी:
छुट्टियां खत्म हुईं। गौरी को लौटना था। स्टेशन पर करन चुपचाप खड़ा था — आंखों में नमी, पर चेहरे पर मुस्कान।
गौरी ने कहा, "क्या मैं अगली गर्मी में फिर आ सकती हूं?"
करन ने जवाब दिया,
"पिपल की छांव, कुएं का पानी, और मैं — तुझे हर साल यहीं इंतज़ार करेंगे।"
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हर साल का वादा:
अब हर गर्मी में गौरी लौटती है। गांव की तपन में, करन की आंखों में, और पिपल की छांव में उन्हें फिर से प्यार मिल जाता है।