31/12/2024
1. सूचना का अधिकार
2. शिक्षा का अधिकार
3. भोजन का अधिकार
4. काम का अधिकार
5. वनाधिकार
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल में भारतीय जनता को जितने अधिकार मिले उतने कभी नहीं मिले। इन तमाम अधिकारों ने भारतीय नागरिकों के जीवन स्तर में गजब का सुधार किया।
भोजन का अधिकार जिसकी वजह से खाद्य सुरक्षा योजना लागू हुई, उसी ने कोरोना के दुखद दौर में देश के करोड़ों गरीबों की सुरक्षा की और आज भी उसी के दम पर गरीबों का जीवन है।
काम का अधिकार यानी मनरेगा ने देश के मजदूरों को वाजिब मेहनताना दिलाया इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए। यह योजना भले भ्रष्टाचार का शिकार हुई मगर इसके बावजूद गरीबों के लिए वरदान साबित हुई।
शिक्षा का अधिकार वह कानून था जिसकी वजह से वंचित तबके की पहली पीढ़ी आज स्कूलों और कॉलेजों में है। हर दो किमी पर स्कूल इसी अधिकार की वजह से खुले।
सूचना के अधिकार की धार आज कुंद कर दी गई है, मगर इस अधिकार ने क्या कमाल किया, हम सब जानते हैं।
वनाधिकार एक ऐसा अधिकार था जिसे लागू कराने में किसी की रुचि नहीं थी, पर यही वह अधिकार है जिससे आदिवासियों का जीवन बेहतर हो सकता है।
इन्हीं अधिकारों की वजह से मैं मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल को भारतीय इतिहास का सबसे सुनहरा दौर मानता हूं।
यह अफसोस है कि उस वक्त हम समझ नहीं पाए। अन्ना आंदोलन के झांसे में इन्हें क्या क्या नहीं कहा गया। मगर वह दौर मौन क्रांति का दौर था।
इन्हें इतिहास जिस रूप में याद रखे, मेरी याद में आप इसी वजह से रहेंगे। उदारवाद के नायक के रूप में नहीं।
बतौर वित्त मंत्री न्यू इंडिया,ग्लोबल इंडिया का मंत्र देने वाले डॉ़ मनमोहन सिंह स्वभावत: शालीन और मृदुभाषी रहे। तकरीबन कंगाल हो चुके देश को 1991 संकट से निकालने वाले टीम के अहम मेंबर मनमोहन सिंह जब बतौर पीएम आखिरी बार मीडिया से बोले तो उन्होंने बस इतना भर कहा- उम्मीद है इतिहास उन्हें सही जगह देगा और नए सिरे से जज करेगा। उनकी बात में वेदना भी थी। लेकिन शिकायत नहीं की।
पीएम के तौर पर मनमोहन सिंह का टर्म मिश्रित रहा। सर्वसम्म्त राय है कि यूपीए 2 के अंतिम दिनों में वह बेहद औसत रहे। गलत फैसले लिये। यपीए 1 का बेहद सफल टर्म ओवरशैडो हो गया। लेकिन उन्हें इसकी कीमत कहीं अधिक चुकानी पड़ी। मनमोहन का मतलब बस जोक और मजाक का विषय बन गया। नफरत की बोरियां उनपर उडेल दी गई। किये गये तमाम अच्छे कार्य डस्टबीन में डाल दी गई। जबकि उनके दस सालों में जीडीपी ग्रोथ 8 फीसदी रही। यह फैक्ट है।
जब पीएम पद से मुक्त हुए तो दूसरों की तरह मनमोहन सिंह भी किताब लिख सकते थे। आईं-बाईं-साईं बयान दे सकते थे। खुद को डिफेंड करने के लिए सनसनीखेज बयान-इंटरव्यू दे सकते थे। ऐसा करने का ट्रेंड रहा है। रिटायर करने के बाद नेता हो या अभिनेता या ब्यूरोक्रेट, अपने देश में सिंघम और ईमानदार का दादा बन जाता है। लेकिन मिडिल क्लास वैल्यूज वाले मनमोहन सिंह रिटायर करने के बाद अपनी दुनिया में मशगूल रहे। मतलब उनका स्वभाव ही ऐसा था। हर इंसान अलग हाेता है। शांत रहना मनमोहन सिंह का स्वभाव रहा ।
निश्चित तौर पर उनके योगदान का इतिहास नये सिरे से मूल्यांकन करेगा। विनम्र श्रद्धांजलि आधुनिक भारत के शिल्पकार को
सार्वजनिक जीवन में असहमति को सम्मान और स्थान देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मेरी श्रद्धांजलि। आपकी शालीनता भारत की राजनीति में मील का पत्थर है। बिना किसी भय के आपकी सरकार की खूब आलोचना का अवसर मिला। बिना कटुता और कपट के किसी पर हमला किए राजनीति के शिखर पर रहने वाले और खुली प्रेस कांफ्रेंस करने वाले भारत के आख़िरी प्रधानमंत्री को प्रणाम।