
12/08/2025
#शब्दचित्र
आसां नहीं होता शब्द चित्र बनाना।
खुली आँखों से,
अदृश्य काल्पनिक कैनवास पर,
एक नई सृष्टि का सृजन करना।
यहां सृजनकर्ता भी तुम
और मन के न भरने पर,
अपनी ही सृष्टि के संहारक भी तुम।
कुछ यूँ बोना पड़ता है बीज
अपनी कल्पना के,
कि लोग इंतेज़ार करें
उसके दरख़्त बनने का।
और...
बनते की उनकी आँखें
उसकी टहनियों में उलझ जाएं।
भीग जाए किसी का आँचल
उसकी ओस में भीगी पत्तियों को छूकर,
ठहर जाए किसी का मन
उसकी छाँव में ठिया बनाकर।
उम्मीद का झूला डाल
कोई बढ़ाने लगे प्रीत की पींग,
तो कोई गुजरे लम्हों की चादर ओढ़
ले ले एक छिटांक नींद।
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अलका निगम
लफ़्ज़ों की पोटली ✍️✍️✍️
लखनऊ