Lafzon ki Potli

Lafzon ki Potli मन से मन तक शब्दों का तारतम्य,
ज्यों प्रेम हो धरा पर अनादि, अगम्य।

 #शब्दचित्र आसां नहीं होता शब्द चित्र बनाना।खुली आँखों से,अदृश्य काल्पनिक कैनवास पर,एक नई सृष्टि का सृजन करना।यहां सृजनक...
12/08/2025

#शब्दचित्र

आसां नहीं होता शब्द चित्र बनाना।
खुली आँखों से,
अदृश्य काल्पनिक कैनवास पर,
एक नई सृष्टि का सृजन करना।
यहां सृजनकर्ता भी तुम
और मन के न भरने पर,
अपनी ही सृष्टि के संहारक भी तुम।
कुछ यूँ बोना पड़ता है बीज
अपनी कल्पना के,
कि लोग इंतेज़ार करें
उसके दरख़्त बनने का।
और...
बनते की उनकी आँखें
उसकी टहनियों में उलझ जाएं।
भीग जाए किसी का आँचल
उसकी ओस में भीगी पत्तियों को छूकर,
ठहर जाए किसी का मन
उसकी छाँव में ठिया बनाकर।
उम्मीद का झूला डाल
कोई बढ़ाने लगे प्रीत की पींग,
तो कोई गुजरे लम्हों की चादर ओढ़
ले ले एक छिटांक नींद।

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नदी और नारीदोनों ही रौद्र हो चुकी हैं।जो कल तक बंधी थी बांधों मेंआज उफनाई हुईमौत हो चुकी हैं।अब वो अपने हिस्से कीजमीन नह...
11/08/2025

नदी और नारी
दोनों ही रौद्र हो चुकी हैं।
जो कल तक बंधी थी बांधों में
आज उफनाई हुई
मौत हो चुकी हैं।

अब वो अपने हिस्से की
जमीन नहीं मांग रहीं,
अब वो पैरों तले की
जमीन खींच रही हैं।

अब क्या फ़ायदा
करने का त्राहिमाम त्राहिमाम,
बस देना ही तो था
एक अंजुरी प्रेम और सम्मान।

अब आचमन का जल है
तर्पण करने को आतुर,
तो क्यों हो रहे हो
काल से भयातुर।

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  नाम में क्या रखा हैतो जनाब नाम में बहुत कुछ रखा है,कितनी यादें जुड़ी होती हैं। किसने रखा,क्यों रखा,कैसे रखा सभी कुछ ।ऐ...
28/07/2025


नाम में क्या रखा है
तो जनाब नाम में बहुत कुछ रखा है,कितनी यादें जुड़ी होती हैं। किसने रखा,क्यों रखा,कैसे रखा सभी कुछ ।
ऐसे ही हमारा नामकरण का किस्सा है।
न न "अलका" नहीं "राका" का😀😀

पैदा होते ही हमारे सुंदर सलोने गोरे चिट्टे चेहरे को देख हमारी सुपर डुपर विद्वान double M.A बुआ ने Google के अविष्कार से पहले ही अपनी Google बुद्धि से खोज कर हमारा अनोखा नाम रखा "राका" जिसका शाब्दिक अर्थ "पूर्णचन्द्र" या पूर्णिमा की रात/चाँद होता है।
अब बेचारी को क्या मालूम था कि इस नाम के डाकू भी होंगे फिल्मों में।
ख़ैर विवाहोपरांत ससुराल वालों ने डर के मारे पहले ही कह दिया कि हमें तो नाज़ुक सी अलका ही चलेगी "राका डाकू" नहीं लेकिन मायके में आज भी हम राका के नाम से ही फेमस हैं और हमारी मम्मी बतौर "राका की मम्मी"😂😂।

अलका निगम
उर्फ़ राका

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या मात्र पंचतत्वों से निर्मित
एक नश्वर काया हूँ मैं
या....
मोहपाश कर में थामे
कोई विचरती माया हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या रागों की चाशनी में डूबी
मीठी सी वर्तिका हूँ मैं
या....
आकृति लेने को आतुर
गीली सी मृत्तिका हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या सुन प्रेमाकुल पपीहे की वाणी
जो धरा पे आये वो बूँद हूँ मैं
या....
हृदय पे रखे हिमखंडों को
पिघला दे वो धूप हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या रंगहीन अरु गंधहीन
नदिया का बहता नीर हूँ मैं
या....
या बिन बादल जो यूँ ही बरसे
वो अँखियों की पीर हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या तेरी अधमुँदी अँखियों पे
झूलती सी अलकें हूँ मैं
या....
या छवि तेरी नयनों में बसाए
वो श्यामल पलकें हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या तेरे मन की गुल्लक में बंद
भावों की खन खन हूँ मैं
या....
मात्र तेरी दृष्टि पड़ने से
पाए शिवत्व वो कण हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

क्या अपने उर की कस्तूरी से
अनभिज्ञ अबोध हिरणी हूँ मैं
या....
मोह के सागर पे उतराती
कोई सहमी सीपी हूँ मैं।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं??

क्या सचमुच एक पहेली हूँ
या....
अलबेली कोई सहेली हूँ।

तुम ही कहो
कौन हूँ मैं???

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हरियाली तीज की हार्दिक शुभकामनाएं  😊🙏बरसों बरस बीते ओ मोरी गुइँयानैहर में झूला झुलाए रेधानी चुनरिया में लचकत कमरिया सेढो...
27/07/2025

हरियाली तीज की हार्दिक शुभकामनाएं 😊🙏

बरसों बरस बीते ओ मोरी गुइँया
नैहर में झूला झुलाए रे
धानी चुनरिया में लचकत कमरिया से
ढोलक पे ठुमके लगाए रे।

दिन वो सुनहरे, न कोई थे पहरे
उड़ती पतंग थे हम,
पल पल सपनों की पींगे बढ़ाते
मेघों को छूते थे हम।
खोलूँ किवड़िया जो बरखा की लड़ियाँ
नयना ये मोरे भिगाये रे।

बरसों बरस बीते ओ मोरी गुइँया
नैहर में झूला झुलाए रे।
धानी चुनरिया में लचकत कमरिया से
ढोलक पे ठुमके लगाए रे।

अल्हड़ थे दिन और सलोनी सी रातें
उड़ते थे पंखों से संग,प
सपने थे साझे सलोने हमारे
पल पल बदलते थे रंग।
चमके बिजुरिया जो अब मोरे अँगना
यौवन की झाँकी दिखाए रे।

बरसों बरस बीते ओ मोरी गुइँया
नैहर में झूला झुलाए रे।
धानी चुनरिया में लचकत कमरिया से
ढोलक पे ठुमके लगाए रे।

ढोलक की थापें,वो कजरी के सुर और
सावन के वो रतजगे,
मेहंदी लगी वो नाज़ुक हथेलियां
ज्यों सपनें हो अपने सजे।
घिर आएं मोरे जो अँगना बदरवा
मनवा में टीस उठाए रे।

बरसों बरस बीते ओ मोरी गुइँया
नैहर में झूला झुलाए रे।
धानी चुनरिया में लचकत कमरिया से
ढोलक पे ठुमके लगाए रे।

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आप सभी को नववर्ष मंगलमय हो💐💐🙏🙏विग्रह से बचते हुए प्रतिभा संवर्धन तुम करो,सूर्य सम निष्काम कर्मके पथिक से तुम बनो,प्राणिम...
01/01/2025

आप सभी को नववर्ष मंगलमय हो💐💐🙏🙏

विग्रह से बचते हुए
प्रतिभा संवर्धन तुम करो,
सूर्य सम निष्काम कर्म
के पथिक से तुम बनो,

प्राणिमात्र से स्वत्व हेतु
धारणशक्ति के संवर्धनार्थ,
संयम और धैर्य को धारण कर
तुम धरा सम धीर बनो।

हो क्षीरपुत्र से अमृततत्व
हों कला कुशलताएं तुममें,
प्रतिदिन बढ़ते ओज संग
तुम शुक्ल पक्ष के चंद्र बनो।

हो भाव वृष्टि के संतुलन का
हो तुममें जल सी निर्मलता,
स्वऊर्जा का सदुपयोग कर
तुम शुद्ध रूप पावक से बनो।

मन को नभ सा दे विस्तार
तुम प्रीत की छाँव सदा रखना,
जिससे हो नित जीवन संचार
संजीवनी तुम वायु से बनो।

हे मनुज मनुजता धारण कर
अब नई सृष्टि का सृजन करो,
सृजनशक्ति का कर विकास
अपने ब्रम्ह तुम स्वयं बनो।

असुरता के निवारणार्थ
त्रैलोक्यमोहन का रूप धरो,
धारण कर व्यक्तित्व में शिवत्व
वाणी से वाग्विशुद्ध बनो।

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