
02/07/2025
कहीं सरसों कहीं गेहूं कभी अरहर निकलते हैं,
सफ़र में जब कभी हम गाँव से होकर निकलते हैं,
कहानी और किस्सो की तरह सब याद है मुझको,
जो बच्चे देख लूँ बचपन के सब मंज़र निकलते हैं
भले ही बन गए हैं कंकरीटों के महल ऊंचे,
मगर इंसां यहाँ के रिश्तों से बेघर निकलते हैं
बड़ा ही शोर करते हैं पलक की कोर तक आँसू,
मगर बाहर की दुनिया मे बड़ा थमकर निकलते हैं
सभी देवों को अमृत,हीरे मोती की ही चाहत है
मगर विषपान करने के लिए शंकर निकलते हैं
लिखा देती है जिसकी याद कितनी ही नई ग़ज़लें
उसी को देखने को शाम में छत पर निकलते हैं