Devyan The Poet

Devyan The Poet "अम्बर तक जाने वाले हैं,मेरे गीत धुऑं पहने हैं,
जीत सके कब प्रेम समर हम,व्यर्थ में ही धनुआ पहने हैं।"

कहीं सरसों कहीं गेहूं  कभी अरहर निकलते हैं,सफ़र में  जब कभी हम गाँव से होकर निकलते हैं,कहानी और किस्सो की तरह सब याद है म...
02/07/2025

कहीं सरसों कहीं गेहूं कभी अरहर निकलते हैं,
सफ़र में जब कभी हम गाँव से होकर निकलते हैं,

कहानी और किस्सो की तरह सब याद है मुझको,
जो बच्चे देख लूँ बचपन के सब मंज़र निकलते हैं

भले ही बन गए हैं कंकरीटों के महल ऊंचे,
मगर इंसां यहाँ के रिश्तों से बेघर निकलते हैं

बड़ा ही शोर करते हैं पलक की कोर तक आँसू,
मगर बाहर की दुनिया मे बड़ा थमकर निकलते हैं

सभी देवों को अमृत,हीरे मोती की ही चाहत है
मगर विषपान करने के लिए शंकर निकलते हैं

लिखा देती है जिसकी याद कितनी ही नई ग़ज़लें
उसी को देखने को शाम में छत पर निकलते हैं

21/03/2025

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