
25/07/2025
गांव का नाम था बरवा पुरवा, हरियाली से भरपूर, छोटे-छोटे कच्चे घर, मिट्टी के आँगन और तालाब के किनारे लगे आम और पीपल के पेड़। बरसात का मौसम था। बादल दिनभर मंडरा रहे थे और हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली हुई थी।
शाम का समय था, बच्चे खेतों से लौटकर कीचड़ में फिसलते-हँसते घर आ रहे थे। तभी आसमान में गड़गड़ाहट हुई और तेज बारिश शुरू हो गई।
छोटे-छोटे बच्चे नंगे पांव बाहर दौड़ पड़े। मिट्टी में खेलना, पानी में नाव बहाना और घर की छत से टपकते पानी के नीचे नहाना जैसे उनकी सबसे प्यारी खुशी थी।
गांव की बूढ़ी दादी – कमला दादी, बाहर चबूतरे पर बैठकर कहानियाँ सुनाने लगीं:
"एक बार भगवान इंद्र ने धरती पर एक किसान को वरदान दिया था कि जब भी वो चाहे, बारिश हो जाए..."
बच्चे गोल घेरा बनाकर भीगते हुए सुनते जा रहे थे।
उधर, गांव की गौशाला में बैल और गायें भीगने से बचने के लिए एक-दूसरे से सटकर खड़ी थीं। किसान घरों की छतों से बारिश का पानी इकट्ठा करने लगे – कुएँ भरने लगे, खेतों में नई जान आने लगी।
तभी अचानक बिजली कड़की और एक गरीब किसान रघुनाथ का छप्पर गिर गया। गांव के लोग इकट्ठा हुए, किसी ने बांस दिया, किसी ने बोरी, और कुछ ही देर में मिलकर उसका छप्पर फिर से खड़ा कर दिया।
दादी बोलीं –
"यही तो है गांव की असली ताकत – एकता और मदद।"
बरसात की वो शाम सिर्फ बारिश की नहीं थी,
वो प्यार, सहयोग, और बचपन की खुशियों की भी कहानी थी।
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