16/09/2025
“कभी सोचा है… पत्थर भी बोलते हैं? हाँ, बोलते हैं।
बस उन्हें सुनने वाला चाहिए। बुंदेलखंड की बाँसों और पहाड़ियों के बीच अडिग खड़ा है — कालिंजर का किला।
जहाँ हर ईंट, हर दीवार, हर बुर्ज… वीरता और बलिदान की दास्तान सुनाती है।
कहा जाता है कि 9वीं सदी में चंदेल राजाओं ने इस किले का निर्माण कराया।
राजा कीर्ति वर्मा, राजा धंग… इन नामों के बिना कालिंजर की गाथा अधूरी है।
यही वह किला है, जहाँ से चंदेल वंश ने मंदिरों, गढ़ों और संस्कृति का साम्राज्य रचा।
समय बदला, आक्रमण हुए — खिलजी आए, लोधी आए, मुग़ल आए…
लेकिन यह किला अडिग खड़ा रहा। मानो कह रहा हो —
‘जो भी आया, लौट गया… पर मैं यहीं हूँ।’
यहाँ तलवारों की टकराहट गूँजी, तोपों का धुआँ उठा।
महारानी दूर्गावती जैसी वीरांगनाओं की कहानियाँ इसी मिट्टी में घुल गईं।
यही किला उस दौर का साक्षी है, जब बुंदेल वीरों ने बाहरी आक्रांताओं को चुनौती दी।
आज भले ही इसकी दीवारें टूटी-फूटी हों, लेकिन गर्व और गौरव अब भी संजोए हैं।
यहाँ खड़े होकर लगता है — इतिहास अभी भी हमारी आँखों के सामने सांस ले रहा हो।
तो अगली बार जब आप बुंदेलखंड आएँ…
तो सिर्फ किला देखने मत जाइएगा।
उस पत्थर से पूछिएगा — ‘तूने क्या-क्या देखा है?’
यकीन मानिए… हवा आपको जवाब ज़रूर सुनाएगी।
पर्यटन की दृष्टि से यह धरोहर आज उपेक्षा का शिकार है,
लेकिन इसके महत्व को नज़रअंदाज़ करना असंभव है।