10/07/2025
ये सन्नाटा ठीक नहीं, सुनिए उस मां की चीत्कार
गांधारी चीत्कार कर रही थी।
“सुनो कृष्ण, तुम हो सकते हो भगवान, लेकिन तुम भी मरोगे तड़प-तड़प कर, वैसे ही जैसे मेरा पुत्र मरा है, तुम्हारे छल से।”
कृष्ण कहते रह गए, “युगों-युगों तक भटकेगा जो अश्वत्थामा , वो कोई और नहीं, मैं ही हूं। जो मरे हज़ारों, लाखों, वो भी कोई और नहीं, मैं ही हूं।”
उन्होंने अपना विराट रूप तक प्रकट कर दिया, लेकिन एक मां की चीत्कार फिर भी नहीं पिघली थी।
और फिर, जैसा कि आप जानते हैं, द्वापर युग के भगवान श्रीकृष्ण को एक बहेलिए के बाणों ने छलनी कर दिया था।
संसार को जीवन-मरण, रोग-शोक, सुख-दुख से परे होने का ज्ञान देने वाले प्रभु, एक मां के शाप से पीड़ित होकर तड़प रहे थे।
अब आप सोचेंगे, संजय सिन्हा आज यह कहानी क्यों सुना रहा है?
मुझे नहीं मालूम कि आपने महाभारत को किस रूप में आत्मसात किया है, लेकिन मैंने इसे आत्मसात किया है, एक मां की चीख के रूप में, जो अपने पुत्र के शव के सामने खड़ी थी।
फिल्म शोले में गब्बर सिंह ने ठाकुर के दोनों हाथ काट दिए थे, उसका घर उजाड़ दिया था, राधा का सुहाग छीन लिया था, पर फिल्म देखते हुए दर्शकों की आंखों में आंसू तब आए जब रहीम चाचा ने कहा गब्बर के हाथों मार दिए गए अपने पुत्र अहमद की मौत के बाद कहा, "जानते हो दुनिया का सबसे बड़ा बोझ क्या होता है? बाप के (आप 'मां' भी पढ़ सकते हैं) कंधों पर बेटे का जनाज़ा!"
गांधारी के कंधों पर वही जनाज़ा था। और उस बोझ से निकली थी वो चीत्कार, जिसके आगे प्रभु को भी बेबस होना पड़ा था। चीत्कार की सजा भुगतनी पड़ी थी।
गांव में जब गब्बर के हाथों मार दिए गए एक जवान बेटे का शव आया था, तब सन्नाटा पसरा था। रहीम चाचा ने पूछा भी था,“इतना सन्नाटा क्यों है भाई?"
सन्नाटा, शोक का हो, तो उसमें चिंगारी होती है। लेकिन कायरता का हो, तो वह राख होता है। सिर्फ राख।
और ‘शोले’ के उसी सीन में एक किसान ठाकुर से कहता है, "गब्बर को अनाज दे सकता हूं, अपने बच्चो की जान नहीं।"
गब्बर (हुकूमत) को आदमी अपनी कमाई दे सकता है, बच्चा नहीं। कोई नहीं देगा। और संजय सिन्हा की आज की कहानी है एक मां से उसका बच्चा छीन लेने की।
मैं चाहता तो उस न्यूज़ क्लिप का वीडियो यहां चिपका सकता था, जिसमें एक मां वडोदरा (बड़ौदा) में नदी में खड़ी एक मां चीख रही है। मेरा बच्चा, मेरा बच्चा…।”
आपने नहीं सुनी उसकी चीख? सुन लीजिए। कुछ नहीं करना, गूगल पर टाइप कीजिए- ‘वडोदरा में पुल हादसा’ सब सामने आ जाएगा।
आपके कान सुन्न हो जाएंगे, मस्तिष्क में सन्नाटा पसर जाएगा। आप समझ सकेंगे कि बेटे का शव मां (पिता) के सामने पड़ा होता है, तो मां पर क्या गुजरती है।
सोशल मीडिया पर आप इतने एक्टिव हैं, आप जान ही गए होंगे, वडोदरा में अचानक एक चलता हुआ पुल अचानक ढह गया। कई गाड़ियां नदी में समा गईं। और ये महाभारत काल की कथा नहीं है। ये जुलाई 2025 की एक सच्ची खबर है।
शोले के अहमद की एक्टिंग नहीं, वास्तविक मौत।
मेरा दावा है, अगर आपके सीने में एक धड़कता हुआ दिल है तो उस चीत्कार को सुन कर आप दहल उठेंगे। लेकिन हमारे गब्बरों का दिल नहीं पसीजा। कहीं से खबर नहीं आई कि दोषियों को बिना ट्रायल फांसी दी जाएगी।
इस देश में सरकार है। राज्य में सरकार है। सरकार के नीचे विभाग हैं, जिनका काम है देखना (यही देखने के बदले वो मां से टैक्स लेते हैं) कि कोई पुल गिरने की हालत में तो नहीं?
फिर कैसे गिर गया वो पुल?
आपको नहीं लगता कि वो मां, वो पिता हम-आप में से भी कोई हो सकता था (है)?
अब तक तो वो हमसे-आपसे अनाज (टैक्स) ले रहे थे। हम आप दे रहे थे। लेकिन अब वो हमारे-आपके बच्चे भी ले जा रहे हैं।
और बदले में? सिर्फ सन्नाटा?
उस मां की चीख पर एक स्वर भी नहीं? क्यों? इंतज़ार किस बात का?
याद रखिएगा, ये सन्नाटा भारी पड़ेगा। आपको मां की चीख सुनाई नहीं दी न? क्योंकि उस पुल से उस मां का बच्चा…
छोड़िए। संजय सिन्हा किसी को शाप नहीं देते। पर आगाह जरूर करते हैं। पता है, जब मैंने वो खबर देखी, तो तय किया था, ये कहानी नहीं सुनाऊंगा। लेकिन वो वीडियो बार-बार आंखों में कौंधता है। नींद में भी कांप जाता हूं।
उस मां की आवाज़ मेरे कान चीर देती है, "संजय सिन्हा, इतनी कहानियां सुनाते हो, मेरी चीख सुनाई नहीं देती?"
इतने सवाल पूछते हो, मेरा सवाल नहीं पूछोगे कि इस देश में हुक्मरान है भी या नहीं? है तो क्या ऐसे ही पुल टूटते रहेंगे? विमान गिरते रहेंगे? सड़कें धंसती रहेंगी? और किसी को सज़ा नहीं मिलेगी?
सरकार अपनी उपलब्धियों का प्रचार करती रहेगी, और सवाल पूछने वाले से आप कहेंगे कि सवाल पूछने वाले, तुम्हें सरकार की एक अच्छाई नहीं दिखती, जो एक मां के कंधे पर बेटे का शव देख कर, उसकी चीत्कार सुन कर चले आते हो सरकार से सवाल पूछने?
सवाल पूछने वाले को आप ‘वामी’, ‘कांगी’, ‘लिब्रांडू’ कहकर मज़ाक उड़ाएंगे न? उड़ाइए। मज़ाक उड़ाइए। लेकिन याद रखिएगा, जब मां शाप देती है, तो भगवान भी नहीं बचते।
आज आप संजय सिन्हा को ज्ञान दीजिए युगों-युगों के उदाहरणों का। लेकिन एक बहेलिया आएगा, आपको भी छलनी कर जाएगा, जैसे भगवान को कर गया था। तब कोई नहीं होगा आपके सामने आपकी चीख सुनने वाला।
जानते हैं क्यों? क्योंकि एक मां का शाप लगेगा सभी को।
मैंने तो उस दिन कुरुक्षेत्र की भूमि पर भी कहा था, मां की इस चीख से डरिए प्रभु (सरकार)।
डरना चाहिए Act of God से नहीं, Act of Fraud से।
बस इतना याद रखिएगा, जब मां की चीत्कार उठती है, तो भगवान भी तड़पते हैं। फिर उन्हें भी मरना पड़ता है। प्रायश्चित करना पड़ता है।
बड़ौदा की घटना पर आप सन्नाटा परोसे रहिए, उस मां को चीखने दीजिए। तक तक, जब तक उसका शाप फलित नहीं हो जाता।
आप चाहें तो मेरी इस कहानी को फ्लोरिडा के तूफान में मरी बच्चियों की खबर से तोल दें, कह दें, "ऐसा तो दुनिया में हर जगह होता ही है।"
हां, होता है। लेकिन याद रखिएगा, जहां मां चीत्कार कर उठती है, वहां प्रभु को भी खत्म होना पड़ता है,
तड़प-तड़प कर।
नोट- कहानी में दुर्योधन और सुयोधन मत तलाशिएगा। कहानी है एक मां के कंधे पर बेटे के शव के बोझ की।