Coming Babu Bhai

Coming Babu Bhai जियो और जीने दो,,

पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के लोगों ने आसमान से आने वाली एक अजीब भोंपू जैसी गूंजती आवाज़ सुनी है — जैसे कोई विशाल धात...
10/07/2025

पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के लोगों ने आसमान से आने वाली एक अजीब भोंपू जैसी गूंजती आवाज़ सुनी है — जैसे कोई विशाल धातु एक-दूसरे से टकरा रही हो या ब्रह्मांड कोई चेतावनी दे रहा हो। ये आवाज़ें कभी कनाडा, कभी जर्मनी, तो कभी ऑस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड की गई हैं। वैज्ञानिकों ने कई तर्क दिए — जैसे पृथ्वी की प्लेटों की हलचल, वायुमंडलीय दबाव में बदलाव या फिर सौर गतिविधियाँ। लेकिन कोई भी तर्क इसे पूरी तरह से नहीं समझा सका।

सबसे रहस्यमयी बात ये है कि ये आवाज़ें रिकॉर्ड भी हुई हैं, लेकिन इनका सटीक स्रोत आज तक नहीं मिला। कुछ लोग इसे “sky trumpets” कहते हैं, और कुछ इसे किसी ब्रह्मांडीय घटना का संकेत मानते हैं।

क्या हमारे शरीर से प्रकाश निकलता है? एक अद्भुत वैज्ञानिक सत्य! क्या आपने कभी सोचा है कि आपके शरीर से प्रकाश निकल सकता है...
10/07/2025

क्या हमारे शरीर से प्रकाश निकलता है? एक अद्भुत वैज्ञानिक सत्य!

क्या आपने कभी सोचा है कि आपके शरीर से प्रकाश निकल सकता है? यह सुनने में भले ही किसी विज्ञान-कथा जैसी बात लगे,लेकिन यह सौ प्रतिशत सत्य है। हमारे शरीर से सच में प्रकाश निकलता है,लेकिन यह प्रकाश इतना सूक्ष्म होता है कि हम अपनी आंखों से उसे नहीं देख सकते। विज्ञान की दुनिया में इसे बायोफोटॉन एमिशन (Biophoton Emission) कहा जाता है।

क्या है बायोफोटॉन एमिशन?
हमारा शरीर हर पल लाखों रासायनिक क्रियाएं करता है भोजन पचाना,ऊर्जा बनाना,कोशिकाओं की मरम्मत इत्यादि। इन सभी क्रियाओं में जब कोशिकाएं ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करती हैं तो कुछ अणु ऐसे होते हैं जो ऊर्जावान अवस्था (excited state) में चले जाते हैं। जब ये अणु फिर से शांत अवस्था में लौटते हैं तो वे एक बेहद सूक्ष्म प्रकाश कण यानी फोटॉन छोड़ते हैं। इन्हीं फोटॉनों को वैज्ञानिक "बायोफोटॉन" कहते हैं।

यह प्रकाश कैसा होता है?
* यह प्रकाश बहुत ही कमजोर होता है,सामान्य प्रकाश से लगभग 10000 गुना कम।
* इसकी तरंगदैर्ध्य लगभग 300 से 800 नैनोमीटर तक होती है जो कि अल्ट्रावायलेट से लेकर विज़िबल रेंज में आती है।
* यह प्रकाश पूरी तरह से अदृश्य होता है और केवल विशेष कैमरों से ही इसे देखा जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने कब और कैसे खोजा?
2009 में जापान के वैज्ञानिकों ने Tohoku Institute of Technology में एक विशेष कैमरे का उपयोग करके यह सिद्ध किया कि मनुष्यों के शरीर से लगातार प्रकाश निकलता है। उन्होंने पाया कि:
* शरीर का यह प्रकाश पूरे दिन में बदलता रहता है
* दोपहर के समय,खासकर शाम 4 बजे, यह सबसे अधिक होता है
* चेहरे,खासकर गाल,माथा और गर्दन,से सबसे ज्यादा प्रकाश निकलता है

शरीर के अंदर की "रोशनी" क्या बताती है?
वैज्ञानिक मानते हैं कि यह प्रकाश हमारे शरीर की आंतरिक स्थिति को दर्शाता है। यह कुछ महत्वपूर्ण बातें उजागर कर सकता है, जैसे:
* कोशिकाओं की सेहत कैसी है
* शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव (oxidative stress) की मात्रा
* बुढ़ापे और रोगों का प्रभाव
* यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों की प्रारंभिक स्थिति भी

क्या यह कोई ऊर्जा देता है?
नहीं। यह प्रकाश केवल एक संकेत होता है,कोई ऊष्मा या ऊर्जा महसूस नहीं होती। यह केवल हमारे जैविक सिस्टम की जानकारी प्रकट करता है।

भविष्य में इसका उपयोग कैसे हो सकता है?
इस अदृश्य प्रकाश के अध्ययन से भविष्य में हम:
* बिना खून निकाले बीमारियों की जांच कर पाएंगे
* शरीर के बायो-रिदम को समझ पाएंगे
* मानसिक तनाव और जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं आसानी से पहचान सकेंगे

निष्कर्ष:
हमारा शरीर सिर्फ ऊर्जा और भावनाओं से भरा नहीं है,बल्कि वह सच में एक जीवित रोशनी का स्रोत है। यह रोशनी हमारी आंखों से नहीं,बल्कि वैज्ञानिक उपकरणों से देखी जा सकती है। यह तथ्य न केवल विज्ञान की अद्भुतता को दर्शाता है,बल्कि यह भी बताता है कि हममें छुपी शक्ति और सूक्ष्म प्रक्रियाएं कितनी गहराई लिए हुए हैं।

पेड़ो के तनों पर पाई जाने वाली रिंग की संख्या के आधार पर पेड़ की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक को डेंड्रोक्रोनो...
10/07/2025

पेड़ो के तनों पर पाई जाने वाली रिंग की संख्या के आधार पर पेड़ की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक को डेंड्रोक्रोनोलॉजी कहा जाता है।

भील बेरी वॉटरफॉल – राजस्थान का सबसे ऊँचा झरना, जो दिखता है जैसे दूध की नदी बह रही हो! अगर आप सोचते हैं कि राजस्थान सिर्फ...
10/07/2025

भील बेरी वॉटरफॉल – राजस्थान का सबसे ऊँचा झरना, जो दिखता है जैसे दूध की नदी बह रही हो!

अगर आप सोचते हैं कि राजस्थान सिर्फ रेगिस्तान और किलों की धरती है तो भील बेरी वॉटरफॉल आपको चौंका देगा!
यह झरना हरियाली, पहाड़ों और झरते पानी का ऐसा नज़ारा देता है जिसे देखकर लोग इसे "राजस्थान का दूधसागर" और "राजस्थान का मेघालय" तक कहने लगे हैं।

कहाँ है ये,,,,?

भील बेरी झरना राजस्थान के पाली जिले में आता है, लेकिन यह राजसमंद और पाली की सीमा पर बसा है।
यह अरावली पर्वतमाला में स्थित है और टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है।

ऊंचाई कितनी है,,,?
यह झरना करीब 182 फीट (55 मीटर) ऊंचाई से गिरता है यानी पूरे राजस्थान का सबसे ऊंचा जलप्रपात!

कब जाएं,,,?

👉 सबसे अच्छा समय है जुलाई से सितंबर जब मानसून की बारिश से झरना पूरे जोश में बहता है और चारों ओर हरियाली बिखर जाती है।

🛣️ कैसे पहुंचे?

सबसे नज़दीकी शहर है देवगढ़ (राजसमंद)

उदयपुर से दूरी: करीब 135 किमी

राजसमंद से दूरी: लगभग 65 किमी

पाली से दूरी: लगभग 100 किमी

🚶 आख़िरी रास्ता पैदल या जीप से तय करना होता है, क्योंकि यह जगह जंगल के बीच बसी हुई है। रास्ता थोड़ा कठिन है, लेकिन नज़ारा हर कदम पर उसका इनाम देता है।

🦜 क्या-क्या मिलेगा यहां?

ऊँचाई से गिरता सफेद झरना – जैसे दूध की धारा

हरियाली और बादलों से ढकी अरावली की पहाड़ियां

शांति, सुकून और एकदम कम भीड़

पास ही जंगल में भालू, तेंदुए और हिरण जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं (अगर किस्मत साथ दे तो)

📸 फ़ोटो खींचना मत भूलिए!
यह जगह नेचर फोटोग्राफर्स और व्लॉगर्स के लिए जन्नत जैसी है।

👉 इस बार मानसून में घूमने का मन हो, तो शिमला-मनाली नहीं राजस्थान का मेघालय, भील बेरी जरूर देख आइए!

काश की हमारे लोग  इसे समझ पाते....मर्म-स्पर्शी कहानी                                • विरासत •        महेश के घर आते ही ...
10/07/2025

काश की हमारे लोग इसे समझ पाते....
मर्म-स्पर्शी कहानी
• विरासत •
महेश के घर आते ही बेटे ने बताया कि वर्मा अंकल आर्टिगा गाड़ी ले आये हैं। पत्नी ने चाय का कप पकड़ाया और बोली पूरे 13 लाख की गाड़ी खरीदी और वो भी कैश में। महेश हाँ हूँ करता रहा। आखिर पत्नी का धैर्य जवाब दे गया, हम लोग भी अपनी एक गाड़ी ले लेते हैं, तुम मोटर साईकल से दफ्तर जाते हो क्या अच्छा लगता है कि सभी लोग गाड़ी से आएं और तुम बाइक चलाते हुए वहाँ पहुंचो, कितना खराब लगता है। तुम्हे न लगे पर मुझे तो लगता है।

देखो घर की किश्त और बाल बच्चों के पढ़ाई लिखाई के बाद इतना नही बचता कि गाड़ी लें। फिर आगे भी बहुत खर्चे हैं। महेश धीरे से बोला।

बाकी लोग भी तो कमाते हैं, सभी अपना शौक पूरा करते हैं, तुमसे कम तनखा पाने वाले लोग भी स्कोर्पियो से चलते हैं, तुम जाने कहाँ पैसे फेंक कर आते हो। पत्नी तमतमाई।*

अरे भई सारा पैसा तो तुम्हारे हाथ मे ही दे देता हूँ, अब तुम जानो कहाँ खर्च होता है। महेश ने कहा।

मैं कुछ नहीं जानती, तुम गाँव की जमीन बेंच दो ,यही तो समय है जब घूम घाम लें हम भी ज़िंदगी जी लें। मरने के बाद क्या जमीन लेकर जाओगे। क्या करेंगे उसका। मैं कह रही कल गाँव जाकर सौदा तय करके आओ बस्स। पत्नी ने निर्णय सुना दिया।

अच्छा ठीक है पर तुम भी साथ चलोगी। महेश बोला । पत्नी खुशी खुशी मान गयी और शाम को सारे मुहल्ले में खबर फैल गयी कि सरला जल्द ही गाड़ी लेने वाली है।

सुबह महेश और सरला गाँव पहुँचे। गाँव में भाई का परिवार था। चाचा को आते देख बच्चे दौड़ पड़े। बच्चों ने उन्हें खेत पर ही रुकने को बोला, चाचा माँ आ रही है। तब तक महेश की भाभी लोटे में पानी लेकर वहाँ आईं और दोनों के जूड़ उतारने के बाद बोलीं लल्ला अब घर चलो।

बहुत दिन बाद वे लोग गाँव आये थे, कच्चा घर एक तरफ गिर गया था। एक छप्पर में दो गायें बंधीं थीं। बच्चों ने आस पास फुलवारी बना रखी थी, थोड़ी सब्जी भी लगा रखी थी। सरला को उस जगह की सुगंध ने मोह लिया। भाभी ने अंदर बुलाया पर वह बोली यहीं बैठेंगे। वहीं रखी खटिया पर बैठ गयी। महेश के भाई कथा कहते थे। एक बालक भाग कर उन्हें बुलाने गया। उस समय वह राम और भरत का संवाद सुना रहे थे। बालक ने कान में कुछ कहा, उनकी आंख से झर झर आँसू गिरने लगे, कण्ठ अवरुद्ध हो गया। जजमानों से क्षमा मांगते बोले, आज भरत वन से आया है राम की नगरी। श्रोता गण समझ नही सके कि महाराज आज यह उल्टी बात क्यों कह रहे। नरेश पंडित अपना झोला उठाये नारायण को विश्राम दिया और घर को चल दिये।

महेश ने जैसे ही भैया को देखा दौड़ पड़ा, पंडित जी के हाथ से झोला छूट गया, भाई को अँकवार में भर लिए। दोनो भाइयों को इस तरह लिपट कर रोते देखना सरला के लिए अनोखा था। उसकी भी आंखे नम हो गयीं। भाव के बादल किसी भी सूखी धरती को हरा भरा कर देते हैं। वह उठी और जेठ के पैर छुए, पंडित जी के मांगल्य और वात्सल्य शब्दों को सुनकर वह अन्तस तक भरती गयी।

दो पैक्ड कमरे में रहने की अभ्यस्त आंखें सामने की हरियाली और निर्दोष हवा से सिर हिलाती नीम, आम और पीपल को देखकर सम्मोहित सी हो रहीं थीं। लेकिन आर्टिगा का चित्र बार बार उस सम्मोहन को तोड़ रहा था। वह खेतों को देखती तो उसकी कीमत का अनुमान लगाने बैठ जाती।

दोपहर में खाने के बाद पण्डित जी नित्य मानस पढ़ कर बच्चों को सुनाते थे। आज घर के सदस्यों में दो सदस्य और बढ़ गए थे। अयोध्याकांड चल रहा था। मन्थरा कैकेयी को समझा रही थी, भरत को राज कैसे मिल सकता है। पाठ के दौरान सरला असहज होती जाती जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो। पाठ खत्म हुआ। पोथी रख कर पण्डित जी गाँव देहात की समसामयिक बातें सुनाने लगे। सरला को इसमें बड़ा रस आता था। उसने पूछा कि क्या सभी खेतों में फसल उगाई जाती है? पण्डित जी ने सिर हिलाते हुए कहा कि एक हिस्सा परती पड़ा है। सरला को लगा बात बन गयी, उसने कहा क्यों न उसे बेंच कर हम कच्चे घर को पक्का कर लें। पण्डित जी अचकचा गए। बोले बहू, यह दूसरी गाय देख रही, दूध नही देती पर हम इसकी सेवा कर रहे हैं। इसे कसाई को नही दे सकते। तुम्हे पता है, इस परती खेत में हमारे पुरखों का जांगर लगा है। यह विरासत है, विरासत को कभी खरीदा और बेंचा थोड़े जाता है। विरासत को संभालते हुए हम लोगों की कितनी पीढ़ियाँ खप गयीं। कितने बलिदानों के बाद आज भी हमने अपनी मही माता को बचा कर रखा है। तमाम लोगों ने खेत बेंच दिए, उनकी पीढ़ियाँ अब मनरेगा में मजूरी कर रही हैं या शहर के महासमुन्दर में कहीं विलीन हो गए। तुम अपनी जमीन पर बैठी हो, इन खेतों की रानी हो। इन खेतों की सेवा ठीक से हो तो देखो कैसे माता मिट्टी से सोना देती है। शहर में जो हर लगा है बेटा वो सब कुछ हरने पर तुला है, सम्बन्ध, भाव, प्रेम, खेत, मिट्टी, पानी हवा सब कुछ। आज तुम लोग आए तो लगा मेरा गाँव शहर को पटखनी देकर आ गया। शहर को जीतने नही देना बेटा। शहर की जीत आदमी को मशीन बना देता है। हम लोग रामायण पढ़ने वाले लोग हैं जहाँ भगवान राम सोने की लंका को जीतने के बाद भी उसे तज कर वापस अजोध्या ही आते हैं, अपनी माटी को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं।

तब तक अंदर से भाभी आयीं और उसे अंदर ले गईं। कच्चे घर का तापमान ठंडा था। उसकी मिट्टी की दीवारों से उठती खुशबू सरला को अच्छी लग रही थी। भाभी ने एक पोटली सरला के सामने रख दी और बोलीं, मुझे लल्ला ने बता दिया था, इसे ले लो और देखो इससे कार आ जाये तो ठीक नही तो हम इनसे कहेंगे कि खेत बेंच दें।

सरला मुस्कुराई, विरासत कभी बेंचा नही जाता भाभी। मैं बड़ों की संगति से दूर रही न इसलिए मैं विरासत को कभी समझ नही पाई। अब यहीं इसी खेत से सोना उपजाएँगे और फिर गाड़ी खरीदकर आप दोनों को तीरथ पर ले जायेंगे, कहते हुए सरला रो पड़ी, क्षमा करना भाभी। दोनो बहने रोने लगीं। बरसों बरस की कालिख धुल गयी।

अगले दिन जब महेश और सरला जाने को हुए तो उसने अपने पति से कहा, सुनो मैंने कुछ पैसे गाड़ी के डाउन पेमेंट के लिए जमा किये थे उससे परती पड़े खेत पर अच्छे से खेती करवाइए। अगली बार उसी फसल से हम एक छोटी सी कार लेंगे और भैया भाभी के साथ हरिद्वार चलेंगे।

शहर हार गया, जाने कितने बरस बाद गाँव अपनी विरासत को मिले इस मान पर गर्वित हो उठा था।

ये सन्नाटा ठीक नहीं, सुनिए उस मां की चीत्कारगांधारी चीत्कार कर रही थी।“सुनो कृष्ण, तुम हो सकते हो भगवान, लेकिन तुम भी मर...
10/07/2025

ये सन्नाटा ठीक नहीं, सुनिए उस मां की चीत्कार

गांधारी चीत्कार कर रही थी।
“सुनो कृष्ण, तुम हो सकते हो भगवान, लेकिन तुम भी मरोगे तड़प-तड़प कर, वैसे ही जैसे मेरा पुत्र मरा है, तुम्हारे छल से।”

कृष्ण कहते रह गए, “युगों-युगों तक भटकेगा जो अश्वत्थामा , वो कोई और नहीं, मैं ही हूं। जो मरे हज़ारों, लाखों, वो भी कोई और नहीं, मैं ही हूं।”
उन्होंने अपना विराट रूप तक प्रकट कर दिया, लेकिन एक मां की चीत्कार फिर भी नहीं पिघली थी।
और फिर, जैसा कि आप जानते हैं, द्वापर युग के भगवान श्रीकृष्ण को एक बहेलिए के बाणों ने छलनी कर दिया था।
संसार को जीवन-मरण, रोग-शोक, सुख-दुख से परे होने का ज्ञान देने वाले प्रभु, एक मां के शाप से पीड़ित होकर तड़प रहे थे।

अब आप सोचेंगे, संजय सिन्हा आज यह कहानी क्यों सुना रहा है?

मुझे नहीं मालूम कि आपने महाभारत को किस रूप में आत्मसात किया है, लेकिन मैंने इसे आत्मसात किया है, एक मां की चीख के रूप में, जो अपने पुत्र के शव के सामने खड़ी थी।

फिल्म शोले में गब्बर सिंह ने ठाकुर के दोनों हाथ काट दिए थे, उसका घर उजाड़ दिया था, राधा का सुहाग छीन लिया था, पर फिल्म देखते हुए दर्शकों की आंखों में आंसू तब आए जब रहीम चाचा ने कहा गब्बर के हाथों मार दिए गए अपने पुत्र अहमद की मौत के बाद कहा, "जानते हो दुनिया का सबसे बड़ा बोझ क्या होता है? बाप के (आप 'मां' भी पढ़ सकते हैं) कंधों पर बेटे का जनाज़ा!"

गांधारी के कंधों पर वही जनाज़ा था। और उस बोझ से निकली थी वो चीत्कार, जिसके आगे प्रभु को भी बेबस होना पड़ा था। चीत्कार की सजा भुगतनी पड़ी थी।

गांव में जब गब्बर के हाथों मार दिए गए एक जवान बेटे का शव आया था, तब सन्नाटा पसरा था। रहीम चाचा ने पूछा भी था,“इतना सन्नाटा क्यों है भाई?"

सन्नाटा, शोक का हो, तो उसमें चिंगारी होती है। लेकिन कायरता का हो, तो वह राख होता है। सिर्फ राख।

और ‘शोले’ के उसी सीन में एक किसान ठाकुर से कहता है, "गब्बर को अनाज दे सकता हूं, अपने बच्चो की जान नहीं।"

गब्बर (हुकूमत) को आदमी अपनी कमाई दे सकता है, बच्चा नहीं। कोई नहीं देगा। और संजय सिन्हा की आज की कहानी है एक मां से उसका बच्चा छीन लेने की।

मैं चाहता तो उस न्यूज़ क्लिप का वीडियो यहां चिपका सकता था, जिसमें एक मां वडोदरा (बड़ौदा) में नदी में खड़ी एक मां चीख रही है। मेरा बच्चा, मेरा बच्चा…।”
आपने नहीं सुनी उसकी चीख? सुन लीजिए। कुछ नहीं करना, गूगल पर टाइप कीजिए- ‘वडोदरा में पुल हादसा’ सब सामने आ जाएगा।

आपके कान सुन्न हो जाएंगे, मस्तिष्क में सन्नाटा पसर जाएगा। आप समझ सकेंगे कि बेटे का शव मां (पिता) के सामने पड़ा होता है, तो मां पर क्या गुजरती है।
सोशल मीडिया पर आप इतने एक्टिव हैं, आप जान ही गए होंगे, वडोदरा में अचानक एक चलता हुआ पुल अचानक ढह गया। कई गाड़ियां नदी में समा गईं। और ये महाभारत काल की कथा नहीं है। ये जुलाई 2025 की एक सच्ची खबर है।
शोले के अहमद की एक्टिंग नहीं, वास्तविक मौत।

मेरा दावा है, अगर आपके सीने में एक धड़कता हुआ दिल है तो उस चीत्कार को सुन कर आप दहल उठेंगे। लेकिन हमारे गब्बरों का दिल नहीं पसीजा। कहीं से खबर नहीं आई कि दोषियों को बिना ट्रायल फांसी दी जाएगी।
इस देश में सरकार है। राज्य में सरकार है। सरकार के नीचे विभाग हैं, जिनका काम है देखना (यही देखने के बदले वो मां से टैक्स लेते हैं) कि कोई पुल गिरने की हालत में तो नहीं?
फिर कैसे गिर गया वो पुल?

आपको नहीं लगता कि वो मां, वो पिता हम-आप में से भी कोई हो सकता था (है)?

अब तक तो वो हमसे-आपसे अनाज (टैक्स) ले रहे थे। हम आप दे रहे थे। लेकिन अब वो हमारे-आपके बच्चे भी ले जा रहे हैं।
और बदले में? सिर्फ सन्नाटा?
उस मां की चीख पर एक स्वर भी नहीं? क्यों? इंतज़ार किस बात का?
याद रखिएगा, ये सन्नाटा भारी पड़ेगा। आपको मां की चीख सुनाई नहीं दी न? क्योंकि उस पुल से उस मां का बच्चा…

छोड़िए। संजय सिन्हा किसी को शाप नहीं देते। पर आगाह जरूर करते हैं। पता है, जब मैंने वो खबर देखी, तो तय किया था, ये कहानी नहीं सुनाऊंगा। लेकिन वो वीडियो बार-बार आंखों में कौंधता है। नींद में भी कांप जाता हूं।
उस मां की आवाज़ मेरे कान चीर देती है, "संजय सिन्हा, इतनी कहानियां सुनाते हो, मेरी चीख सुनाई नहीं देती?"
इतने सवाल पूछते हो, मेरा सवाल नहीं पूछोगे कि इस देश में हुक्मरान है भी या नहीं? है तो क्या ऐसे ही पुल टूटते रहेंगे? विमान गिरते रहेंगे? सड़कें धंसती रहेंगी? और किसी को सज़ा नहीं मिलेगी?

सरकार अपनी उपलब्धियों का प्रचार करती रहेगी, और सवाल पूछने वाले से आप कहेंगे कि सवाल पूछने वाले, तुम्हें सरकार की एक अच्छाई नहीं दिखती, जो एक मां के कंधे पर बेटे का शव देख कर, उसकी चीत्कार सुन कर चले आते हो सरकार से सवाल पूछने?

सवाल पूछने वाले को आप ‘वामी’, ‘कांगी’, ‘लिब्रांडू’ कहकर मज़ाक उड़ाएंगे न? उड़ाइए। मज़ाक उड़ाइए। लेकिन याद रखिएगा, जब मां शाप देती है, तो भगवान भी नहीं बचते।

आज आप संजय सिन्हा को ज्ञान दीजिए युगों-युगों के उदाहरणों का। लेकिन एक बहेलिया आएगा, आपको भी छलनी कर जाएगा, जैसे भगवान को कर गया था। तब कोई नहीं होगा आपके सामने आपकी चीख सुनने वाला।
जानते हैं क्यों? क्योंकि एक मां का शाप लगेगा सभी को।
मैंने तो उस दिन कुरुक्षेत्र की भूमि पर भी कहा था, मां की इस चीख से डरिए प्रभु (सरकार)।

डरना चाहिए Act of God से नहीं, Act of Fraud से।

बस इतना याद रखिएगा, जब मां की चीत्कार उठती है, तो भगवान भी तड़पते हैं। फिर उन्हें भी मरना पड़ता है। प्रायश्चित करना पड़ता है।
बड़ौदा की घटना पर आप सन्नाटा परोसे रहिए, उस मां को चीखने दीजिए। तक तक, जब तक उसका शाप फलित नहीं हो जाता।

आप चाहें तो मेरी इस कहानी को फ्लोरिडा के तूफान में मरी बच्चियों की खबर से तोल दें, कह दें, "ऐसा तो दुनिया में हर जगह होता ही है।"
हां, होता है। लेकिन याद रखिएगा, जहां मां चीत्कार कर उठती है, वहां प्रभु को भी खत्म होना पड़ता है,
तड़प-तड़प कर।

नोट- कहानी में दुर्योधन और सुयोधन मत तलाशिएगा। कहानी है एक मां के कंधे पर बेटे के शव के बोझ की।

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳 फोटो में जो वृद्ध गड़रिया है  वास्तव में ये सेना का सबसे बड़ा राजदार था पूरी पोस्ट पड़ो इनके चरणों मे आ...
10/07/2025

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳
फोटो में जो वृद्ध गड़रिया है वास्तव में ये सेना का सबसे बड़ा राजदार था पूरी पोस्ट पड़ो इनके चरणों मे आपका सर अपने आप झुक जाएगा, 2008 फील्ड मार्शल*मानेक शॉ* वेलिंगटन अस्पताल, तमिलनाडु में भर्ती थे। गम्भीर अस्वस्थता तथा अर्धमूर्छा में वे एक नाम अक्सर लेते थे - *'पागी-पागी!'* डाक्टरों ने एक दिन पूछ दिया “Sir, who is this Paagi?”

सैम साहब ने खुद ही brief किया...

1971 भारत युद्ध जीत चुका था, जनरल मानेक शॉ *ढाका* में थे। आदेश दिया कि पागी को बुलवाओ, dinner आज उसके साथ करूँगा! हेलिकॉप्टर भेजा गया। हेलिकॉप्टर पर सवार होते समय पागी की एक थैली नीचे रह गई, जिसे उठाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया था। अधिकारियों ने नियमानुसार हेलिकॉप्टर में रखने से पहले थैली खोलकर देखी तो दंग रह गए, क्योंकि उसमें दो रोटी, प्याज तथा बेसन का एक पकवान (गाठिया) भर था। Dinner में एक रोटी सैम साहब ने खाई एवं दूसरी पागी ने।

*उत्तर गुजरात* के *सुईगाँव* अन्तर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक border post को *रणछोड़दास post* नाम दिया गया। यह पहली बार हुआ कि किसी आम आदमी के नाम पर सेना की कोई post हो, साथ ही उनकी मूर्ति भी लगाई गई हो।

पागी यानी *'मार्गदर्शक'*, वो व्यक्ति जो रेगिस्तान में रास्ता दिखाए। *'रणछोड़दास रबारी'* को जनरल सैम मानिक शॉ इसी नाम से बुलाते थे।

गुजरात के *बनासकांठा* ज़िले के पाकिस्तान सीमा से सटे गाँव *पेथापुर गथड़ों* के थे रणछोड़दास। भेड़, बकरी व ऊँट पालन का काम करते थे। जीवन में बदलाव तब आया जब उन्हें 58 वर्ष की आयु में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक *वनराज सिंह झाला* ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक के रूप में रख लिया।

*हुनर इतना कि ऊँट के पैरों के निशान देखकर बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार हैं। इन्सानी पैरों के निशान देखकर वज़न से लेकर उम्र तक का अन्दाज़ा लगा लेते थे। कितनी देर पहले का निशान है तथा कितनी दूर तक गया होगा सब एकदम सटीक आँकलन जैसे कोई कम्प्यूटर गणना कर रहा हो।*

1965 युद्ध की आरम्भ में पाकिस्तान सेना ने भारत के गुजरात में *कच्छ* सीमा स्थित *विधकोट* पर कब्ज़ा कर लिया, इस मुठभेड़ में लगभग 100 भारतीय सैनिक हत हो गये थे तथा भारतीय सेना की एक 10000 सैनिकोंवाली टुकड़ी को तीन दिन में *छारकोट* पहुँचना आवश्यक था। तब आवश्यकता पड़ी थी पहली बार रणछोडदास पागी की! रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ की बदौलत उन्होंने सेना को तय समय से 12 घण्टे पहले मञ्ज़िल तक पहुँचा दिया था। सेना के मार्गदर्शन के लिए उन्हें सैम साहब ने खुद चुना था तथा सेना में एक विशेष पद सृजित किया गया था *'पागी'* अर्थात पग अथवा पैरों का जानकार।

भारतीय सीमा में छिपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की location तथा अनुमानित संख्या केवल उनके पदचिह्नों से पता कर भारतीय सेना को बता दी थी, तथा इतना काफ़ी था भारतीय सेना के लिए वो मोर्चा जीतने के लिए।

1971 युद्ध में सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ अग्रिम मोर्चे तक गोला-बारूद पहुँचवाना भी पागी के काम का हिस्सा था। *पाकिस्तान* के *पालीनगर* शहर पर जो भारतीय तिरंगा फहरा था उस जीत में पागी की भूमिका अहम थी। सैम साब ने स्वयं ₹300 का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था।

पागी को तीन सम्मान भी मिले 65 व 71 युद्ध में उनके योगदान के लिए - *संग्राम पदक, पुलिस पदक* व *समर सेवा पदक*!

27 जून 2008 को सैम मानिक शॉ की मृत्यु हुई तथा 2009 में पागी ने भी सेना से 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' ले ली। तब पागी की उम्र 108 वर्ष थी ! जी हाँ, आपने सही पढ़ा... 108 वर्ष की उम्र में 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति'! सन् 2013 में 112 वर्ष की आयु में पागी का निधन हो गया।

आज भी वे गुजराती लोकगीतों का हिस्सा हैं। उनकी शौर्य गाथाएँ युगों तक गाई जाएँगी। अपनी देशभक्ति, वीरता, बहादुरी, त्याग, समर्पण तथा शालीनता के कारण भारतीय सैन्य इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए रणछोड़दास रबारी यानि हमारे 'पागी'।

जैसे को तैसा (एक शिक्षाप्रद कहानी)बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में जीर्णधन नामक एक बनिए का लड़का रहता था। वह अत्यंत ब...
10/07/2025

जैसे को तैसा (एक शिक्षाप्रद कहानी)

बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में जीर्णधन नामक एक बनिए का लड़का रहता था। वह अत्यंत बुद्धिमान, व्यवहारकुशल और सज्जन था। उसके घर में कोई विशेष सम्पत्ति नहीं थी, केवल एक मन-भर लोहे की तराजू थी, जो उसके पिता की धरोहर थी। धन कमाने के उद्देश्य से उसने परदेश जाने का निश्चय किया।

विदेश जाने से पहले जीर्णधन ने वह भारी लोहे की तराजू एक महाजन के पास धरोहर के रूप में रख दी और कहा, "जब मैं वापस लौटूँगा, तो इसे ले लूँगा।" महाजन ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

कई वर्ष बीत गए। जीर्णधन विदेश से अच्छा धन कमाकर वापस लौटा। उसने महाजन के पास जाकर अपनी तराजू वापस मांगी। परंतु महाजन ने कपट करते हुए उत्तर दिया, “मित्र, मुझे खेद है कि तुम्हारी लोहे की तराजू को चूहों ने खा लिया।”

जीर्णधन तुरन्त समझ गया कि महाजन झूठ बोल रहा है। मगर वह क्रोधित नहीं हुआ, बल्कि मुस्कराते हुए बोला, “कोई बात नहीं, मित्र! यह चूहों का दोष है, तुम्हारा नहीं। मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ।” महाजन उसकी इस सहज प्रतिक्रिया से बहुत प्रभावित हुआ।

फिर थोड़ी देर बाद जीर्णधन ने कहा, “मैं नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। यदि चाहो तो अपने पुत्र धनदेव को भी मेरे साथ भेज दो। वह भी ताजगी महसूस करेगा।” महाजन को कोई संदेह नहीं हुआ और उसने अपने पुत्र को उसके साथ भेज दिया।

जीर्णधन ने धनदेव को नदी के पास स्थित एक गुफा में ले जाकर उसे वहाँ बंद कर दिया और गुफा के द्वार पर भारी शिला रख दी जिससे वह बाहर न निकल सके। इसके बाद वह वापस महाजन के पास लौटा।

महाजन ने आते ही पूछा, “मेरा बेटा धनदेव कहाँ है?”

जीर्णधन ने शांति से उत्तर दिया, “उसे तो एक चील उठा ले गई।”

यह सुनते ही महाजन क्रोधित होकर बोला, “क्या बकते हो! क्या कभी चील भी किसी बच्चे को उठा सकती है?”

जीर्णधन बोला, “भले आदमी! जब चूहे मन-भर लोहे की तराजू खा सकते हैं, तो चील भी बच्चे को उठा सकती है।”

इस बात को लेकर दोनों में बहस होने लगी और बात बढ़ते-बढ़ते राजा के दरबार तक जा पहुँची। वहाँ न्यायाधिकारी के सामने दोनों ने अपना-अपना पक्ष रखा।

महाजन बोला, “यह बनिया मेरा लड़का चुरा ले गया है।”

न्यायाधिकारी ने जीर्णधन से कहा, “तुम महाजन का लड़का उसे लौटा दो।”

जीर्णधन ने उसी शांत लहजे में उत्तर दिया, “महाराज! मैं झूठ नहीं बोल रहा। महाजन का बेटा तो चील उठा ले गई।”

न्यायाधिकारी ने आश्चर्य से कहा, “कभी ऐसा भी हुआ है कि चील इतने बड़े बच्चे को उठा ले जाए?”

तब जीर्णधन बोला, “महाराज! जब न्याय की भूमि पर चूहे मन भर लोहे की तराजू खा सकते हैं, तब चील भी बच्चे को उठा सकती है। यदि आप न्याय चाहते हैं, तो पहले मुझे मेरी तराजू दिलवाइए, मैं भी उसका पुत्र लौटा दूँगा।”

न्यायाधिकारी को सारा मामला समझ आ गया। उन्होंने महाजन से कहा, “तुमने छल किया है। तुरंत बनिए को उसकी तराजू लौटाओ।”

महाजन लज्जित हुआ और उसने तुरन्त तराजू लौटा दी। फिर जीर्णधन ने भी महाजन के पुत्र को सही सलामत लौटाकर अपनी बुद्धिमानी और धैर्य का परिचय दिया।

सीख: इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि धैर्य, बुद्धिमानी और सही समय पर उठाया गया कदम बड़े से बड़े छल को भी पराजित कर सकता है।

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