Coming Babu Bhai

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01/09/2025

गुड़ जिसका सेवन सबसे ज्यादा ठंड में किया जाता है ? पर कुछ लोग बहुत थोड़ी मात्रा में सेवन करते है इस सोच के साथ की ज्यादा गुड़ खाने से नुकसान होता है। इसकी प्रवृति गर्म होती है, लेकिन ये एक गलतफहमी है गुड़ हर मौसम में खाया जा सकता है और पुराना गुड़ हमेशा औषधि के रूप में काम करता है। आयुर्वेद संहिता के अनुसार यह शीघ्र पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। इसके अतिरिक्त गुड़ से बनी चीजों के खाने से बीमारियों में राहत मिलती है।

गुड़ में सुक्रोज 59.7 प्रतिशत, ग्लूकोज 21.8 प्रतिशत, खनिज तरल 26प्रतिशत तथा जल अंश 8.86 प्रतिशत मौजूद होते हैं।इसके अलावा गुड़ में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और ताम्र तत्व भी अच्छी मात्रा में मिलते हैं। इसलिए चाहे हर मौसम में आप गुड़ खाना न पसन्द करें लेकिन ठंड में गुड़ जरूर खाएं।
यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है। गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व जस्ता पाया जाता है यही कारण है कि इसका रोजाना सेवन करने वालों का इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है। गुड़ में मैग्नेशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है इसलिए ये बॉडी को रिचार्ज करता है साथ ही इसे खाने से थकान भी दूर होती है।

गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा परेशान नहीं करता है। रोजाना गुड़ का सेवन हाइब्लडप्रेशर को कंट्रोल करता है। जिन लोगों को खून की कमी हो उन्हें रोज थोड़ी मात्रा में गुड़ जरूर खाना चाहिए। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।

गुड़ का हलवा या लड्डू खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालता है व सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है।

अगर आप गैस या एसिडिटी से परेशान हैं तो खाने के बाद थोड़ा गुड़ जरूर खाएं ऐसा करने से ये दोनों ही समस्याएं नहीं होती हैं। गुड़, सेंधा नमक, काला नमक मिलाकर चाटने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।
गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा परेशान नहीं करता है,

भगवान गणेश को बप्पा और मोरया क्यों कहा जाता है, इसके पीछे की कहानी है बेहद रोचक,,,,गणेशजी के जयकारे लगाते समय हम अक्सर ग...
01/09/2025

भगवान गणेश को बप्पा और मोरया क्यों कहा जाता है, इसके पीछे की कहानी है बेहद रोचक,,,,

गणेशजी के जयकारे लगाते समय हम अक्सर गणपति बप्पा मोरया बोलते हैं। ऐसा बोलने के पीछे कई रोचक कथाएं छिपी हुई हैं।
आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर भगवान गणेश को बप्पा और मोरया क्यों कहा जाता है...

इसके पीछे है महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव की एक कथा। इसके पीछे के रोचक कथा है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक भगवान गणेश के भक्त हुआ करते थे। इन्हें मोरया गोसावी नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि मोरया गोसावी गणपतिजी के अंश थे और इनका जन्म 1375 ई. में हुआ था। इनके पिता वामन भट्ट और माता पार्वती भी भगवान गणेश के भक्त थे। ऐसी मान्यता है कि गणेशजी इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हीं के घर में जन्म लेने का वरदान दिया था।

मोरया के सपने में आकर गणेशजी ने कही ये बात कहा जाता है कि बचपन से ही मोरया गोसावी भगवान गणेश की भक्ति में लीन रहते थे और गणेश चतुर्थी पर चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर के दर्शन करने जाते थे। बता दें कि भगवान गणेश की सवारी मयूर यानी मोर होने से उन्हें मयूरेश्वर नाम से भी जाना जाता है। 117 साल तक लगातार मोरया ऐसा ही करते थे। जब वो वृद्धावस्था में आ गए तो उनके लिए मयूरेश्वर मंदिर जाना बहुत मुश्किल हो गया था। ऐसे में एक दिन भगवान गणेश इन्हें सपने में दिखाई दिए और उन्होंने कहा की अब तुम्हें मंदिर जाने की आवश्यकता नहीं है। कल के दिन जब स्नान करके तुम कुंड से निकलोगे, तो अपने सामने मुझे देखोगे। यह स्वप्न अगले दिन सच हो गया और कुंड से निकलने पर उन्हें अपने पास एक गणेशजी की छोटी सी प्रतिमा देखने को मिली जो बिल्कुल वैसी थी, जैसी उन्होंने अपने सपने में देखी थी।

चिंचवाड़ और मयूरेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता मोरया ने भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना चिंचवाड़ में ही की और धीरे-धीरे वह स्थान दूर-दूर तक भक्तों के बीच प्रसिद्ध होता गया। इससे भक्तों और भगवान के बीच का अंतर कम होने लगेगा। तभी से लोगों ने गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाने शुरू कर दिए। माना जाता है कि चिंचवाड़ में मौजूद गणेश भगवान की प्रतिमा मयूरेश्वर भगवान की अंश है। ऐसे में हर साल उनके अंश को मिलाने के लिए मयूरेश्वर मंदिर तक डोली निकाली जाती है।।।।।

01/09/2025

अगर आप गैस या एसिडिटी से परेशान हैं तो खाने के बाद थोड़ा गुड़ जरूर खाएं ऐसा करने से ये दोनों ही समस्याएं नहीं होती हैं। गुड़, सेंधा नमक, काला नमक मिलाकर चाटने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।

01/09/2025

गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा परेशान नहीं करता है। रोजाना गुड़ का सेवन हाइब्लडप्रेशर को कंट्रोल करता है। जिन लोगों को खून की कमी हो उन्हें रोज थोड़ी मात्रा में गुड़ जरूर खाना चाहिए। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।

01/09/2025

गुड़ का हलवा या लड्डू खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालता है व सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है।

01/09/2025

गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व जस्ता पाया जाता है यही कारण है कि इसका सेवन करने वालों का इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है। गुड़ में मैग्नेशियम काफी मात्रा में पाया जाता है इसलिए ये बॉडी को रिचार्ज करता है साथ ही इसे खाने से थकान भी दूर होती है।

पता नहीं किसने ये अफ़वाह फैला दी है कि दालें खाने से यूरिक एसिड बढ़ जाता है। कोई भी हल्की सी जोड़ों की तकलीफ बताता है तो...
01/09/2025

पता नहीं किसने ये अफ़वाह फैला दी है कि दालें खाने से यूरिक एसिड बढ़ जाता है। कोई भी हल्की सी जोड़ों की तकलीफ बताता है तो लोग फौरन बोल देते हैं – दाल मत खाओ, यूरिक एसिड होगा। जबकि सच्चाई ये है कि यूरिक एसिड सीधे दाल से नहीं, प्यूरिन नाम के तत्व से बनता है और प्यूरिन की सबसे ज्यादा मात्रा रेड मीट, मछलियों, शराब और मीठे ड्रिंक्स में होती है। हमारी रोजमर्रा की दालों में थोड़ा प्यूरिन ज़रूर होता है, मगर इतनी अल्प मात्रा कि सामान्य खाते रहने से किसी स्वस्थ व्यक्ति में यूरिक एसिड बढ़ना मुश्किल है। भारत जैसे देश में, जहां थाली पहले से ही कम प्रोटीन और ज्यादा कार्बोहाइड्रेट से भरी होती है, वहां दालें ही वो साधारण, सस्ती और सुपाच्य प्रोटीन का जरिया हैं जो शरीर की कमजोरी, मांसपेशियों की दुर्बलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी को दूर करती हैं। सबसे ज्यादा मजेदार बात ये है कि जिन चीज़ों से यूरिक एसिड सच में बढ़ता है, जैसे शराब और फास्ट फूड, उनकी चर्चा कोई नहीं करता, और सीधा दोष दालों पर मढ़ दिया जाता है।
आइए समझते हैं कुछ प्रमुख दालों के बारे में ।

मूंग दाल
हल्की, त्रिदोषशामक (मुख्यतः कफ-पित्त शामक ), सुपाच्य
बुखार, अतिसार (दस्त), उल्टी, अपचन और गर्भवती महिलाओं के लिए भी उपयुक्त
प्रोटीन का सर्वोत्तम स्रोत, बच्चों और बुजुर्गों में उपयोगी

मसूर दाल
पित्त को शांत करने वाली होती है,
रक्त शुद्ध करता है, रक्त पित्त में उपयोगी है,त्वचा के दाग-धब्बे मिटाने में सहायक,हैवी ब्लीडिंग में उपयोगी है,मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त, ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मददगार होता है ।

चना दाल
मधुर और रुक्ष
बलवर्धक, मांसपेशियों को पुष्ट करती है
मूत्ररोग व शुक्रदोष में हितकारी
मधुमेह में भी सुरक्षित और उपयोगी।

अरहर (तुअर) दाल
पौष्टिक, बलवर्धक लेकिन वात को बढ़ाने वाली,
वातवर्धक लेकिन पाचन में मध्यम
खांसी, श्वास रोगों में लाभकारी।

उड़द दाल
भारी, बलवर्धक, शुक्रवर्धक
कमजोरी, बांझपन और शुक्र दोष में हितकारी
हड्डियों और स्नायुओं के लिए पौष्टिक

कुलथी दाल
किडनी स्टोन और मूत्रकृच्छ में विशेष लाभकारी
गठिया, जोड़ों के दर्द, मोटापे के विकारों में उपयोगी
पाचनशक्ति को सुधारती है

मटर दाल
कफ-पित्त को कम करती है लेकिन वातवर्धक है,
मध्यम पाच्य है,हृदय रोग, कब्ज और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में सहायक l

इसलिए दाल ना छोड़े किसी भी अफ़वाह में फँसकर और अपनी ज़रूरत के अनुसार दाल चुनें ।
और हाँ! दाल को बघारे मतलब की छौंक ज़रूर लगाएं,तेल,हींग,जीरा से ।
तेल वात को कम करता है ।

हिंदी विद्वान फादर कामिल बुल्के का मानना था कि 'संस्कृत महारानी है, हिंदी बहुरानी है और अंग्रेजी नौकरानी'.......।फादर का...
01/09/2025

हिंदी विद्वान फादर कामिल बुल्के का मानना था कि 'संस्कृत महारानी है,
हिंदी बहुरानी है और अंग्रेजी नौकरानी'.......।

फादर कामिल बुल्के एक ईसाई मिशनरी थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदी भाषा, भारतीय संस्कृति और साहित्य को समर्पित कर दिया। वे 1935 में भारत आए और भारतीयता को इतनी गहराई से अपनाया कि जीवनपर्यंत हिंदी, तुलसीदास और वाल्मीकि के भक्त बने रहे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी की और उनका शोध-ग्रंथ 'रामकथा: उत्पत्ति और विकास' एक महत्वपूर्ण रचना है।

01/09/2025

मूंग, मोठ,तिल की खेती ,,,,,,,,,

01/09/2025

अद्भुत दृश्य,,,

01/09/2025

जय जवान जय किसान,,,,,

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