Santmat Maharishi Mehi Amrit Gyan Prchar

Santmat Maharishi Mehi Amrit Gyan Prchar संतमत अध्यात्मिक ज्ञान प्रचार

संत सतगुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी ८५. सत्य दुर्गुणों का विनाश कर देता है । सत्य हो, परंतु नम्र- भा...
26/03/2025

संत सतगुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी

८५. सत्य दुर्गुणों का विनाश कर देता है । सत्य हो, परंतु नम्र- भाव नहीं, तो सत्य में रूखापन रहता है इसीलिए सत्यता के साथ नम्रता अवश्य चाहिये

८६. यदि झूठ का त्याग हो जाय हिंसा का त्याग हो जाय ,नशाओं का त्याग हो जाय ,चोरी का त्याग हो जाय ,व्यविचार का त्याग हो जाय इन पांच पापों का त्याग हो जाय तो वह त्यागने वाला पुर्ण त्यागी हैं।

८७. शरीर का नाश होता है, यह तो सभी जानते हैं। लेकिन शरीर छुटने के बाद कहां जाना होता है, इस बात का यत्न नहीं जानते हैं।

🙏🏵️🙏श्री सदगुरु महाराज की जय 🌺🙏🏵️

🌺🙏🏵️संत सतगुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🙏🌺🏵️८१. जरा सोचो- यदि एक-एक शरीर में एक-एक ईश्वर है , तो एक ईश्...
21/03/2025

🌺🙏🏵️संत सतगुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🙏🌺🏵️

८१. जरा सोचो- यदि एक-एक शरीर में एक-एक ईश्वर है , तो एक ईश्वर दूसरे ईश्वर को थप्पड़ लगाता है, गाली देता है मारपीट करता है। एक ईश्वर दूसरे ईश्वर पर मामला- मुकदमा करता है , तीसरा झूठा वकील - ईश्वर झूठा फैसला करता है क्या यही ईश्वर है ? यह सब ईश्वर नहीं है। वास्तव में परम प्रभु परमात्मा एक है वह स्वरूपतः अनंत है।

८२. सत्संग से सत्य का ज्ञान होता है। सत्संग से सदाचरण का ज्ञान होता है। सत्संग से सद्गति का ज्ञान होता है ।

८३.सत्य सद्गति और सदाचरण ,इन तीनों को लोग ग्रहण कर सके तो बहुत अच्छी बात है ।

दिनांक २१ मार्च २०२५

श्री सदगुरु महाराज की जय

संत सतगुरु महर्षि मेंही परमार जी महाराज की अमृतवाणी  ७०. ईश्वर भक्ति करने के लिये सबसे पहले ईश्वर की स्थिति को जानना चाह...
19/03/2025

संत सतगुरु महर्षि मेंही परमार जी महाराज की अमृतवाणी

७०. ईश्वर भक्ति करने के लिये सबसे पहले ईश्वर की स्थिति को जानना चाहिये ।फिर उसके स्वरूप को जानना चाहिये ।

७१. जो इंद्रियों के ज्ञान से बाहर है, जो आदि- अन्त रहित हैं , जिसकी सीमा कहीं नहीं है, जो अनन्त -अनादि- असीम है, जिसकी शक्ति अप्रमित है ,जो इंद्रियों के ज्ञान में नहीं आत्मा के ज्ञान में आने योग्य हैं, वह परमात्मा है ।यह बात कहते-कहते मुझे 20 वर्ष हो गये किंतु अफसोस है कि कुछ लोग ही से समझ पाये

७२. शरीर इंद्रियों से जानने और मिलने योग्य ईश्वर मानोगे, तो उसमें ऐसी-ऐसी ऐसी बात देखने में आवेगी जिसे देखने से ईश्वर मानने के योग्य वह नहीं रह जाता उसको ईश्वर मानना आंधी श्रद्धा होगी ।

६३. तुम्हारा निज काम क्या है? तुम्हारा निजी काम परमात्मा की पहचान और अपनी पहचान है ।

७४. जो मानता है की आत्मा बिना शरीर के नहीं रह सकती सूक्ष्म शरीर में रहती है, उसका यह ज्ञान अधूरा है।

७५. उस चेतन- आत्मा का निज- ज्ञान परमात्मा की पहचान है। इसके अतिरिक्त परमात्मा को किसी से पहचाना नहीं जा सकता ।
७६. ईश्वर को कल्पित कहने वाले का ज्ञान मिथ्या है। कल्पित तो वह है ,जिनकी स्थिति नहीं हो और मन से कुछ गढ़ लिया गया हो , किंतु एक अनादि- अनंत तत्व आवश्य हैं। उसकी स्थिति आवश्य हैं ,वह कल्पित कैसा ?
७७ जो असीम है, जिसकी शक्तिअपरिमित हैं, उसको तुम अपनी परिमित बुद्धि से कैसे नाप सकते हो ? कोई यह नहीं कह सकता की बुद्धि अपरिमित है।

७८. गौरव करते हो की अणु बम हमने बनाया । तारे, चॅंद, सूर्य सभी हमने बनाये ? दूसरे देश के लोगों से हम डरते हैं कि कहीं बम गिरा दे तो हमारा सर्वनाश हो जाएगा, और हम गौरव करते हैं कि ये सब हमने बनाये।

७९. परम प्रभु परमात्मा देखने की शक्ति से परे, असीम, मन और बुद्धि की पहचान से परे ,अजन्मा, कुल- विहीन, काल और कर्म से रहित तथा भूल और मनोंमय संकल्प से हिन है।

८०. एक-एक शरीर में एक-एक ईश्वर मानने वाले को कितना भ्रम है , उसका ठिकाना नहीं। जो परमात्मा सर्वव्यापी है, वह सब के घट -घट में है। उसको पाने का यत्न अपने अन्दर करो। अन्दर में यत्न करने पर तुम अपने को भी जानोगे और ईश्वर को भी पहचानोगे ।

दिनांक १९ मार्च २०२५

🌺🙏🏵️श्री सदगुरु महाराज की जय 🌺🙏🏵️

🌺🙏🏵️संत सतगुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️६५.  हम सबके अंदर में कुछ ऐसा यंन्त्र है, जो बजता ही रहत...
16/03/2025

🌺🙏🏵️संत सतगुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️

६५. हम सबके अंदर में कुछ ऐसा यंन्त्र है, जो बजता ही रहता है असल में वह सारशब्द है । उसको पा लेने पर यम का भी डर नहीं रहता।

६६. जब से यह शब्द प्राप्त हो जाता है, तब से बजता ही रहता है, क्या सोने में क्या जगने में, उसे सुनेगा ही। उस सार शब्द को सुनता हुआ काम भी करता रहेगा और कर्मबंधन से निर्लिप्तत रहेगा ।

६७. सारशब्द का साधक कभी उस शब्द से नहीं छूटेगा छूटेगा तभी जब परमात्मा से मिलकर एक हो जाएगा ।

६८. जैसे जल में जल पैठकर अलग नहीं होता, उसी तरह ब्रह्म को पाकर उससे मिलकर कोई अलग नहीं होता।

६९. सभी नदियों का जल जिस तरह समुद्र में मिल जाता है, अलग नहीं होता है ।उसी तरह साधक साधना करके परमात्मा में मिल जाता है। कभी वह आवागमन के चक्कर में पड़कर इस संसार में नहीं आता है

दिनांक। १६ मार्च २०२५

🙏🏵️ श्री सदगुरु महाराज की जय 🙏🌺

🌺🙏🏵️संत सद्गुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🌺 ६९. सभी नदियों का जल जिस तरह समुद्र में मिल जाता है, अल...
15/03/2025

🌺🙏🏵️संत सद्गुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🌺

६९. सभी नदियों का जल जिस तरह समुद्र में मिल जाता है, अलग नहीं होता है।उसी तरह साधक साधना करके परमात्मा में मिल जाता है। कभी वह आवागमन के चक्कर में पड़कर इस संसार में नहीं आता।

🌺🙏🏵️ श्री सदगुरु महाराज की जय 🌺🙏🏵️

🌺🙏🏵️संत सद्गुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️६०.  संतमत का सिद्धांत बहुत छोटा है - गुरु, ज्ञान और सत...
15/03/2025

🌺🙏🏵️संत सद्गुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️

६०. संतमत का सिद्धांत बहुत छोटा है - गुरु, ज्ञान और सत्संग।

६१. अंधकार के बाद प्रकाश में जाने के लिए शिवाय दृष्टियोग के कोई यत्न नहीं है।

६२. त्रिगुण- सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण। इन तीनों गुणों से परे के पदार्थ का ध्यान करे और उनकी वहाॅं की पहुंच रहे। ऐसे गुरु की पहचान वे ही कर सकते हैं ,जो स्वयं वैसे हो वा वैसे होने के पथ पर चलते हो ऐसे ही गुरु का सत्संग और उनकी सेवा करें ।

६३. सत्संग थोड़े- काल करें, तब भी कुछ लाभ ही होता है । जब दीर्घकाल तक सत्संग करें ,तो गुरु का गुण जाना जाता है। तब उनसे दीक्षा लेकर अपने कुछ साधन करें ।

६४.जैसे सोना कहीं विष्ठा में भी पड़ जाय तो उनका माल नहीं कटता, इस तरह भक्ति का संस्कार उॅंच- नीच घर में जन्म लेने पर भी मिटता नहीं ।

🌺🙏🏵️श्री सदगुरु महाराज की जय 🌺🙏🏵️

15/03/2025

संत सतगुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की अद्भुत लीलाफांसी की सजा से हुआ


maharishimehiadbhutlila

🌺🏵️🏵️संत सदगुरु महर्षि मेॅंही परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️५७. जितेन्द्रिय तत्पर हुआ श्रद्धावन् पुरुष ज्ञान को प्राप...
15/03/2025

🌺🏵️🏵️संत सदगुरु महर्षि मेॅंही परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️

५७. जितेन्द्रिय तत्पर हुआ श्रद्धावन् पुरुष ज्ञान को प्राप्त होता है। ज्ञान को प्राप्त होकर तत्क्षण भगवत्प्राप्ति- रूप परम- शान्ति को प्राप्त हो जाता है।

५८. विन्दु और नाद का उपासक शिव- शक्ति से आशीर्वाद पाता है। विष्णु- लक्ष्मी से भी वैसे ही। इससे वह लक्ष्मीवन होता है और ईश्वर से रक्षा पाता है

५९. संतमत नाम से ही प्रकट होता है कि यह शांति दायक है। शांतिस्वरूप परमात्मा स्वयं है ।जो उनसे मिलते हैं वह भी शांतिमय हो जाते हैं। ऐसे सन्तों के मत को संतमत कहते हैं ।

🌺🙏श्री सदगुरु महाराज की जय 🙏🏵️

🌺🙏🏵️संत सदगुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️५४.  ऑंख बन्द करने पर अंधकार मालूम होता है। अंधकार के बि...
15/03/2025

🌺🙏🏵️संत सदगुरु महर्षि मेॅंहीॅं परमहंस जी महाराज की अमृतवाणी 🌺🙏🏵️

५४. ऑंख बन्द करने पर अंधकार मालूम होता है। अंधकार के बिना जो प्रकाश है ,उसमें जो रहता है, वही सगुण - पद को छोड़कर निर्गुण- पद में जाता है ।यह कैसे समझा जाय ? यहाॅं केवल श्रद्धा काम करती है।

५५. हमलोगों को ज्ञान और युक्ति चाहिये ।केवल तर्क से बुद्धि चंचल हो जाती है।

५६. ईश्वर ऐसे, हैं वैसे हैं, कह सकते हैं, तो क्या पहचान कर सकते हैं? भाव यह है कि जैसा हम कहते हैं, यदि वैसा हम बन जायॅं, तो ठीक-ठक ज्ञान हो जाएगा। चाहिये कि हम श्रध्दाशील बने ।श्रद्धाशील को ज्ञान होता है।
दिनांक १५ मार्च २०२५ 🌺🙏🏵️श्री सदगुरु महाराज की जय 🌺🙏🏵️

आपको और आपके परिवार को होली के ढेर सारे शुभकामनाएं
14/03/2025

आपको और आपके परिवार को होली के ढेर सारे शुभकामनाएं

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