19/03/2025
संत सतगुरु महर्षि मेंही परमार जी महाराज की अमृतवाणी
७०. ईश्वर भक्ति करने के लिये सबसे पहले ईश्वर की स्थिति को जानना चाहिये ।फिर उसके स्वरूप को जानना चाहिये ।
७१. जो इंद्रियों के ज्ञान से बाहर है, जो आदि- अन्त रहित हैं , जिसकी सीमा कहीं नहीं है, जो अनन्त -अनादि- असीम है, जिसकी शक्ति अप्रमित है ,जो इंद्रियों के ज्ञान में नहीं आत्मा के ज्ञान में आने योग्य हैं, वह परमात्मा है ।यह बात कहते-कहते मुझे 20 वर्ष हो गये किंतु अफसोस है कि कुछ लोग ही से समझ पाये
७२. शरीर इंद्रियों से जानने और मिलने योग्य ईश्वर मानोगे, तो उसमें ऐसी-ऐसी ऐसी बात देखने में आवेगी जिसे देखने से ईश्वर मानने के योग्य वह नहीं रह जाता उसको ईश्वर मानना आंधी श्रद्धा होगी ।
६३. तुम्हारा निज काम क्या है? तुम्हारा निजी काम परमात्मा की पहचान और अपनी पहचान है ।
७४. जो मानता है की आत्मा बिना शरीर के नहीं रह सकती सूक्ष्म शरीर में रहती है, उसका यह ज्ञान अधूरा है।
७५. उस चेतन- आत्मा का निज- ज्ञान परमात्मा की पहचान है। इसके अतिरिक्त परमात्मा को किसी से पहचाना नहीं जा सकता ।
७६. ईश्वर को कल्पित कहने वाले का ज्ञान मिथ्या है। कल्पित तो वह है ,जिनकी स्थिति नहीं हो और मन से कुछ गढ़ लिया गया हो , किंतु एक अनादि- अनंत तत्व आवश्य हैं। उसकी स्थिति आवश्य हैं ,वह कल्पित कैसा ?
७७ जो असीम है, जिसकी शक्तिअपरिमित हैं, उसको तुम अपनी परिमित बुद्धि से कैसे नाप सकते हो ? कोई यह नहीं कह सकता की बुद्धि अपरिमित है।
७८. गौरव करते हो की अणु बम हमने बनाया । तारे, चॅंद, सूर्य सभी हमने बनाये ? दूसरे देश के लोगों से हम डरते हैं कि कहीं बम गिरा दे तो हमारा सर्वनाश हो जाएगा, और हम गौरव करते हैं कि ये सब हमने बनाये।
७९. परम प्रभु परमात्मा देखने की शक्ति से परे, असीम, मन और बुद्धि की पहचान से परे ,अजन्मा, कुल- विहीन, काल और कर्म से रहित तथा भूल और मनोंमय संकल्प से हिन है।
८०. एक-एक शरीर में एक-एक ईश्वर मानने वाले को कितना भ्रम है , उसका ठिकाना नहीं। जो परमात्मा सर्वव्यापी है, वह सब के घट -घट में है। उसको पाने का यत्न अपने अन्दर करो। अन्दर में यत्न करने पर तुम अपने को भी जानोगे और ईश्वर को भी पहचानोगे ।
दिनांक १९ मार्च २०२५
🌺🙏🏵️श्री सदगुरु महाराज की जय 🌺🙏🏵️