The Engineers Show

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08/06/2025

A Masterpiece of Design and Engineering:

The Chenab Bridge isn’t just functional; it’s a work of art. Spanning the wide, rugged gorge of the Chenab River, its design is as bold as the landscape it inhabits.

Here’s what makes it extraordinary:
Height: At 359 meters (1,178 feet) above the riverbed, it’s the highest railway bridge in the world.

Arch Design: A unique steel arch allows it to stretch across the vast gorge with elegance and strength.

Resilience: Built to endure wind speeds of up to 266 km/h, frequent seismic activity, and heavy Himalayan snowfall.Crafted with over 25,000 tons of steel, this bridge is engineered to stand strong for 120 years, a testament to the brilliance of modern construction.

17/04/2025

*लक्ष्मीबाई कॉलेज में गोबर विवाद:*
प्रिंसिपल और छात्रों के बीच टकराव :
दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में हाल ही में एक ऐसी घटना घटी, जिसने सभी को हैरान कर दिया। कॉलेज की प्रिंसिपल, प्रोफेसर प्रत्युषा वत्सला, ने क्लासरूम की दीवारों पर गोबर का लेप लगवाया। जवाब में, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष रौनक खत्री ने प्रिंसिपल के कार्यालय में गोबर पोत दिया। यह गोबरबाजी अब चर्चा का विषय बन चुकी है, और सोशल मीडिया पर #गोबरक्रांति के साथ वायरल हो रही है। आइए, इस पूरे मामले को समझते हैं।

प्रिंसिपल का फैसला: गोबर से शोध?

प्रिंसिपल प्रोफेसर प्रत्युषा वत्सला का कहना है कि क्लासरूम में गोबर का लेप लगाना एक शोध परियोजना का हिस्सा था। उनके मुताबिक, यह प्रयोग पारंपरिक भारतीय तरीकों का इस्तेमाल करके तापीय तनाव को नियंत्रित करने के लिए किया गया। प्रिंसिपल इसे पर्यावरण-अनुकूल शीतलन तकनीक की खोज का हिस्सा मानती हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या कॉलेज की दीवारों को गोबर से रंगना ही एकमात्र रास्ता था? और अगर यह इतना शानदार प्रयोग था, तो छात्रों से इसकी मंजूरी क्यों नहीं ली गई?

छात्रों का गुस्सा:
रौनक खत्री का जवाबछात्र संघ अध्यक्ष रौनक खत्री और उनके साथियों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि यह प्रयोग न सिर्फ अवैज्ञानिक है, बल्कि छात्रों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हो सकता है। विरोध के तौर पर, रौनक ने प्रिंसिपल के ऑफिस में गोबर पोत दिया। उनका तर्क था कि अगर प्रिंसिपल को गोबर से इतना प्यार है, तो उन्हें भी इसका स्वाद चखना चाहिए। यह कदम भले ही अतिवादी लगे, लेकिन यह छात्रों की नाराजगी को साफ दिखाता है। सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हो गया, और लोग इसे #गोबरक्रांति कहकर मजे ले रहे हैं।

पृष्ठभूमि में असली समस्या:
कॉलेज की बदहालीयह गोबर विवाद अचानक नहीं हुआ। लक्ष्मीबाई कॉलेज के छात्र लंबे समय से बुनियादी सुविधाओं की कमी से परेशान हैं। शौचालय की खराब हालत, न चलने वाले पंखे, और पीने के पानी की अनुपलब्धता जैसी समस्याएं आम हैं। ऐसे में, प्रिंसिपल का गोबर प्रयोग छात्रों के लिए ताक पर रखी गई माचिस की तीली जैसा साबित हुआ। छात्रों का कहना है कि अगर प्रिंसिपल को शोध करना ही था, तो पहले कॉलेज की हालत सुधारने पर ध्यान देना चाहिए था।

क्या कहता है यह विवाद?
यह घटना कई सवाल खड़े करती है। क्या शैक्षणिक संस्थानों में इस तरह के प्रयोग बिना छात्रों की सहमति के किए जाने चाहिए? क्या प्रिंसिपल का यह कदम वाकई में वैज्ञानिक था, या फिर यह उनके दिमाग का गोबर उजागर करता है? दूसरी ओर, रौनक खत्री का जवाब भी अतिशयोक्ति भरा था, लेकिन यह छात्रों की हताशा का प्रतीक बन गया। शायद यह गोबरबाजी प्रिंसिपल और प्रशासन को यह समझा सके कि छात्रों की आवाज को नजरअंदाज करना अब महंगा पड़ सकता है।

निष्कर्ष: गोबर से सबक
लक्ष्मीबाई कॉलेज का यह विवाद एक हास्यास्पद लेकिन गंभीर संदेश देता है। शिक्षा संस्थानों में प्रयोगों की जरूरत हो सकती है, लेकिन उन्हें छात्रों के हितों को ध्यान में रखकर करना चाहिए। प्रिंसिपल मैडम को शायद इस गोबर क्रांति से कुछ सबक मिले, और अगर उनका दिमाग का गोबर सचमुच साफ हो जाए, तो शायद छात्रों का उद्धार हो सके। लेकिन तब तक, कॉलेज को पहले साफ पानी और साफ शौचालय जैसी बुनियादी चीजों पर ध्यान देना चाहिए, न कि दीवारों पर गोबर पोतने पर। #गोबरक्रांति

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