04/04/2024
*महाबली बाबा चौहरमल 711 वीं जयंती पर विशेष*
(04 अप्रैल 2022)
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चौहरमल का जन्म बिहार में मोकामा अंचल क्षेत्र, जो प्राचीन काल मे मगध के नाम से जाना जाता था, के मोकामा ताल के शंकरवाड़ टोला में एक दुसाध ज़ाति के एक किसान परिवार में 04 अप्रैल 1313, तदनुसार चैत्र पूर्णिमा को हुआ था। इनके पिता बन्दीमल और माता रघुमती थी। उनका शरीरान्त 120 वर्ष की आयु में 01 नवम्बर 1433 को हुआ था। इनका कर्मस्थान मोकामा ताल के चाराडीह में था औऱ इससे 14 किलोमीटर दूर तुरकैजनी गावँ में इनका ननिहाल था। समाज हित हेतु ब्राह्मणी और सामंती ताकतों से लगातार संघर्षरत रहने के कारण इन्हें चारडीह,-तुरकैजनी भाग दौड़ करना पड़ता था। इनका ससुराल मोकामा ताल के खुटहा (बड़हिया) गावँ में था। इनकी जीवनसंगिनी, ससुरसल के लोग और इनके वंशज के सम्बंध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।
चौहरमल का व्यक्तित्व और कृतित्व को निम्नलिखित बिंदुओं में दर्शाया जा सकता है:-
1. चौहरमल नैतिकता, मानवता, त्याग और शक्ति के प्रतिमूर्ति थे। 2. जब भी मान-सम्मान की रक्षा की बात आती है, चौहरमल बरबस ही स्मृति में आ जाते है। उन्होंने चरम छुआछूत के माहौल में भी शान और स्वाभिमान को शीर्ष पर बनाये रखा।
3. वे शीलव्रती थे। अपने गुरुभाई सामन्त अजबी सिंह की बहन आर्य सुंदरी रेशमा के बार बार के प्रणय निवेदन के बाद भी अपना शीलब्रत नहीं तोड़ा।
4. चौहरमल सामंती दमन के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। उन्होंने चाराडीह में सामन्तो द्वारा की गई आर्थिक नानाबन्दी का संगठन बना कर कड़ा मुकाबला किया और अपने लोगों को संकट से बचाया।
5. वे चाराडीह में सामुहिक खेती-किसानी शुरू कर उस इलाके के लोगों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। गियासुद्दीन मुहम्मद बिन तुगलक ने चौहरमल को 100 बिगहा खेती योग्य भूमि का भूमि-पट्टा दिया था जिस पर भूमिहार सामन्तो की नज़र गड़ी थी।
6. चौहरमल ने सामन्तो के अत्याचार से लोहा लेने हेतु चाराडीह को युद्ध कला ज्ञान हासिल करने का प्रशिक्षण केंद्र बनाया था जिसमे वे अस्त्र संचालन का प्रशिक्षण देते थे।
7. चौहरमल ज्ञान और शील के साथ युद्धकला में भी प्रवीण थे जिसके कारण उन्होंने विरोधियों को हर मोर्चे पर परास्त किया।
8. चौहरमल साम्प्रदायिक सौहार्द के भी प्रतीक थे। बिहार शरीफ के बड़ी दरगाह में हज़रत मखदूम साहब के मज़ार के बगल में चौहरमल का भी मज़ार है। इनके मज़ार पर उर्दू में चुल्हाय लिखा हुआ है। इससे पता चलता है कि मुस्लिम समाज मे भी चौहरमल पूज्य थे।
9. विहार शरीफ में चौहरमल को अदब से *चुल्हाय वीर* कहा जाता है।मखदूम एक सूफी संत थे जो चौहरमल के समकालीन और कल्याणमित्र थे। दोनों मिल कर मानवतावादी संदेशों को आसपास के क्षेत्रों में फैलाते थे।
10. बिहार शरीफ में पंचाने नदी के किनारे बसा कोसुत गावँ में निर्मित चौहर विहार में उनके अनुयायी शील के प्रतिक लंगोटा चढ़ाते हैं। प्राचीन काल से ही साधु-संत अपनी यौनेक्षा और यौनांगों के दमन के लिए लंगोट पहनते आये हैं। लंगोट एक पुरुष अंतःवस्त्र होता है। कोसुत में कार्तिक पूर्णिमा को प्रत्येक वर्ष मेला लगता है।
11. विहार यानि मगध बुद्ध का ज्ञान और कर्मस्थली रहा है। इस कारण बुद्ध की पंचीशील तथा मानववादी देशना का उन पर गहरा असर था, यही कारण है कि रेशमा के लाख कोशिश करने के बावजूद वे उसके कामवासना के फंदे में नहीं फंसे। पुराणों में बड़े बड़े ऋषि मुनियों की कथाएँ भरी पड़ी है जिनकी तपस्या रंभा, मेनका और उर्वशी जैसे अप्सराओं की हल्की सी मुस्कान पर स्खलित हो गई है। परन्तु चौहरमल जींवन भर रेशमा को बहन ही मानते रहे, यह बिना बुद्ध उपदेशित शील पालन के संभव नहीं।
12. चौहरमल को मोकामा के आस पास के लोग लोक-देवता और कुल-देवता के रूप में पूजते हैं। घर आंगन में मिट्टि की गुम्बदाकार पिंडी बना कर उनकी पूजा होती है।
13. बौद्ध संस्कृति में यही पिंडी स्तूप कहलाता है जिसमें बुद्धों और बोधिसत्वों का अस्थि भस्म रखा हुआ होता है।
14. चौहरमल की वीरता और महानता पर लोकगीतों की भरमार है। इनके पुजेरी को भगैत कहते हैं जो दुसाध ज़ाति का होता है न् कि कोई ब्राह्मण पुरोहित।
15. चाराडीह में उनका विहार है जहां प्रत्येक साल चैत्र माह में एक हप्ते का विशाल मेला लगता है। चौहरमल मेले में विभिन्न क्षेत्रों से 10 लाख से ज्यादा लोग आते हैं। यहां भी इनकी पिंडी है जिसकी पूजा कई सालों से होती आ रही है । बाद में यहां एक आदमकद प्रतिमा भी स्थापित किया गया है।
16. कुछ लोग चौहरमल के ब्राह्मणीकरण का भी प्रयास करते हैं और बताते है कि उनके पास चमत्कारिक शक्तिया थी। परंतु यह सत्य नहीं है। वे महामानव थे और अपने मंगल कृत्यों से पूजित हैं।
मोकामा के आसपास रेशमा-चौहरमल नाटक बहुत प्रसिद्ध है जिसके माध्यम से उनके कृतित्व को दर्शाया जाता है।
17. आज चौहरमल के व्यक्तित्व और कृतित्व का अनुशरण करने की आवश्यकता है क्योंकि आज भी समाज मनुवाद से ग्रसित है। यदि हमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गैर बराबरी से लड़नी है तो चौहरमल की तरह संगठित रूप से एकता बद्ध हो कर इज़्ज़त और हक़ के लिए लड़ना होगा।
18. उनकी शिक्षा है कि अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल मत करो, अपनी ज्ञान और ताक़त हमेशा समाज-हित में लगाओ, आलस और नशा से दूर रहो, स्त्री का सम्मान करो, प्रेम और एकता से रहो, घमंड मत करो, परिश्रम करो, स्वाभिमान से रहो, इज़्ज़त से जियो,
19. अत्याचार कभी मत सहन करो, न्याय का समर्थन करो, मेल-मिलाप से रहो, दुसरो की रक्षा एवम मद्त करो आदि।
20. चौहरमल का जींवन वृत लोक कथाओं में समाहित है।
समय के साथ लोककथा में अंधविश्वास और चमत्कार प्रवेश कर जाता है। अतः हमें बुद्धि और विज्ञान की कसौटी पर परख कर ही उनकी जीवनी को लिपिबध्द करनी चाहिए अथवा उनका फिल्मांकन करना चाहिए।
21. चौहरमल पर बहुत कम ही लिखा गया है। जो भी लिखा गया है वह बौद्धिकता और वैज्ञानिकता से कोसों दूर है।
22. मैंने बहुत ही परिश्रम करके चौहरमल पर एक शोधग्रंथ तैयार किया है, *महाबली बाबा चौहरमल* । इसे सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है।अभी और खोज जारी रखने की आवश्यकता है।
Alok Kumar Bharti
महाबली बाबा चौहरमल की जयंती पर उन्हें शत शत नमन