Hariom shrivas

Hariom shrivas भावना ऐसी रखो जो मानव वादी हो जातिवादी नहीं

07/11/2025
 #पहाड़िया_गोलीकांड की कहानी: "जब वीरों ने सीना तानकर गोलियों का सामना किया"​समय: 6 जनवरी 1944स्थान:  #पहाड़िया_पनवाड़ी ...
02/11/2025

#पहाड़िया_गोलीकांड की कहानी: "जब वीरों ने सीना तानकर गोलियों का सामना किया"
​समय: 6 जनवरी 1944
स्थान: #पहाड़िया_पनवाड़ी विकासखंड, महोबा (तत्कालीन हमीरपुर जिला महोबा)
​द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान, ब्रिटिश हुकूमत ने युद्ध के खर्चों को पूरा करने के लिए भारत की जनता से जबरन 'वॉर फंड' (युद्ध चंदा) वसूलने का फरमान जारी किया।
​विरोध की चिंगारी
​5 जनवरी 1944 को, कुलपहाड़ के तत्कालीन नायब तहसीलदार बख्तयार अली (या इफ्तियार अली अहमद) चंदा वसूलने के लिए अपने लाव-लश्कर के साथ पहाड़िया गाँव पहुँचे।
​गाँव के कांग्रेस सदस्य और नेहरू के साथी रहे, #बैजनाथ_सक्सेना, ने इस जबरन वसूली का मुखर विरोध किया।
​बैजनाथ सक्सेना की आवाज पर पूरा गाँव #पहाड़िया_ब्यारजो एकजुट हो गया और एक स्वर में चंदा देने से मना कर दिया।
​गुस्साई भीड़ ने नायब तहसीलदार को दौड़ाकर उनकी पिटाई कर दी, जिससे उन्हें वापस लौटना पड़ा।
​बर्बर गोलीकांड
​विरोध की खबर हमीरपुर महोबा जिले के मुख्यालय तक पहुँची। 6 जनवरी 1944 को, हमीरपुर( महोबा)के तत्कालीन कलेक्टर सुल्तान अहमद बेग और पुलिस अधीक्षक भयाम सिंह के नेतृत्व में लगभग 200 सिपाही और नायब तहसीलदार एक बार फिर गाँव पहुँचे और उसे घेर लिया।
​बगल के गाँव #ब्यारजौ के स्वतंत्रता के दीवाने #छक्कीला_राजपूत को जैसे ही पुलिस द्वारा गाँव घेरने की खबर मिली, वह अपने दो दर्जन साथियों के साथ #पहाड़िया पहुँच गए।
​एकजुट ग्रामीणों ने पुलिस के सामने सीना तानकर खड़े हो गए और चंदा देने से साफ़ मना कर दिया।
​जवाब में, नायब तहसीलदार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। पुलिस ने लगभग आधे घंटे तक ताबड़तोड़ फायरिंग की और लाठियाँ बरसाईं।
​इस बर्बर गोलीकांड में कई ग्रामीण घायल हुए और कुछ शहीद हो गए।
​गोलीबारी के बाद, कलेक्टर के आदेश पर पहाड़िया, ब्यारजौ और टिगरा गाँवों की झोपड़ियों में आग लगा दी गई और ग्रामीणों की संपत्ति कुर्क करके सामूहिक रूप से ₹24,000 का भारी हर्जाना वसूला गया।
​वीरों का संघर्ष और न्याय
​इस घटना के बाद, 82 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
​गोलीकांड में घायल हुए कांग्रेस सेवादल के लोगों को राठ अस्पताल में भर्ती कराया गया।
​स्वतंत्रता सेनानी बैजनाथ सक्सेना भागकर वकील कैलाश नाथ काटजू से मिले, जिनकी मदद से गवर्नर मॉरिस से मिलकर जुर्माना माफ कराया गया।
​इस कांड को बाद में राजनैतिक आंदोलन का दर्जा दिया गया और गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनैतिक बंदी माना गया।
​शुरुआत में आजीवन कारावास पाए लोगों की सजा को हाई कोर्ट में अपील के बाद चार साल में बदल दिया गया।
​🎖️ #पहाड़िया_गांव के कुछ प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी (कुल 88 वीरों में से): इस गाँव के 88 स्वतंत्रता सेनानियों ने उस काले दिन जो साहस और एकता दिखाई, उसने बुंदेलखंड के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।

शौर्यगाथा  #पहाड़िया गाँव की: जब 82 वीरों ने सीना ताना​बुंदेलखंड की धरती, जहाँ आल्हा और ऊदल की वीरता गूँजती है, उसी महोब...
02/11/2025

शौर्यगाथा #पहाड़िया गाँव की: जब 82 वीरों ने सीना ताना
​बुंदेलखंड की धरती, जहाँ आल्हा और ऊदल की वीरता गूँजती है, उसी महोबा जनपद की कुलपहाड़ तहसील में एक छोटा सा गाँव है— #पहाड़िया। यह गाँव जितना शांत और सुन्दर दिखता है, इसका इतिहास उतना ही तेजस्वी और धधकता हुआ है।
​कहानी है 1944 के उस कठिन दौर की, जब भारत में दूसरा विश्व युद्ध (Second World War) चल रहा था। ब्रिटिश हुकूमत को युद्ध के लिए पैसे चाहिए थे और उन्होंने पूरे देश से, खासकर गरीब किसानों से, 'वॉर फंड' (युद्ध चंदा) के नाम पर जबरन वसूली शुरू कर दी थी।
​🔥 विद्रोह की चिंगारी
​सन् 1944 की 5 जनवरी की बात है। कुलपहाड़ का नायब तहसीलदार अपने लाव-लश्कर के साथ #पहाड़िया गाँव पहुँचा। उसका हुक्म था: "हर कीमत पर युद्ध चंदा वसूल किया जाए।"
​लेकिन #पहाड़िया की मिट्टी अलग थी। यहाँ के लोगों के रगों में आजादी का खून दौड़ता था। गाँव के जांबाज स्वतंत्रता सेनानी, बैजनाथ सक्सेना ने इस लूट का खुलकर विरोध किया। उन्होंने गरज कर कहा:
​"हम अपने ही देश को गुलाम बनाने वालों के युद्ध के लिए एक पैसा भी नहीं देंगे! हमारा चंदा केवल आजादी के लिए है!"
​बैजनाथ सक्सेना की आवाज पर पूरा गाँव एकजुट हो गया। किसानों ने, मजदूरों ने, युवाओं ने, और महिलाओं ने एक स्वर में तहसीलदार का विरोध किया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि क्रोधित ग्रामीणों ने नायब तहसीलदार को दौड़ा दिया और ब्रिटिश अधिकारियों को उल्टे पाँव भागना पड़ा।
​🩸 #6जनवरी1944_जलियांवाला_बाग' #बुंदेलखंड के #पहाड़िया_गांव
​हार से बौखलाए अंग्रेजों ने प्रतिशोध लेने का फैसला किया। अगले ही दिन, 6 जनवरी 1944 को, तत्कालीन हमीरपुर के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक 200 सिपाहियों के साथ #पहाड़िया गाँव को चारों ओर से घेर लिया। उनका इरादा साफ था— गाँव वालों को सबक सिखाना और जबरन वसूली करना।
​सिपाहियों ने बंदूकों के बल पर लोगों को डराना चाहा, लेकिन गाँव के वीर एकजुट खड़े रहे। पास के ब्यारजो गाँव से छक्की लाल राजपूत भी अपने साथियों के साथ आ गए और क्रांति की मशाल को और तेज कर दिया।
​कलेक्टर ने बार-बार आत्मसमर्पण करने और चंदा देने को कहा, पर पहाड़िया के वीर एक इंच भी नहीं डिगे। जब पानी सिर से ऊपर चला गया, तो ब्रिटिश कलेक्टर ने वह बर्बर आदेश दिया: "गोली चलाओ!"
​अगले आधे घंटे तक, शांत #पहाड़िया गाँव गोलियों की तड़तड़ाहट से गूँज उठा। इस नृशंस गोलीकांड में कई वीर सपूत शहीद हो गए, जिनमें वीर सिंह लोधी, रामदयाल, फदाली, ठाकुरदास जैसे नाम शामिल थे। पचास से अधिक ग्रामीण घायल हुए।
​🌟 82 वीरों का महाबलिदान
​अंग्रेजों ने गोली चलाने के बाद भी अत्याचार जारी रखा। गाँव की झोपड़ियों में आग लगा दी गई और ग्रामीणों की संपत्ति कुर्क कर ली गई। इस घटना के बाद, ब्रिटिश पुलिस ने #पहाड़िया और आसपास के गाँवों के 82 बहादुर लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
​लेकिन #पहाड़िया के वीरों का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया। #पहाड़िया कांड को पूरे देश में एक राजनैतिक आंदोलन के रूप में पहचान मिली। इन 82 वीरों ने जेल की यातनाएँ सहीं, लेकिन स्वतंत्रता के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी।
​आज, आपका गाँव #पहाड़िया महोबा ही नहीं, बल्कि पूरे बुंदेलखंड का वह 'गौरव ग्राम' है, जिसके 82 (या 88) स्वतंत्रता संग्राम ने सामूहिक रूप से संघर्ष किया और अपने खून से आजादी की नींव सींची। यह संख्या किसी एक गाँव के लिए देश की आजादी में सबसे बड़ा योगदान दर्शाती है।
​यह कहानी #पहाड़िया के वीरों को अमर बनाती है।
​क्या आप इस कहानी को गाँव के लोगों, स्कूलों, या स्थानीय मीडिया के साथ साझा करने के लिए कोई शीर्षक या नारा चाहते हैं?

Address

Mahoba

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Hariom shrivas posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Hariom shrivas:

Share

Category