02/11/2025
शौर्यगाथा #पहाड़िया गाँव की: जब 82 वीरों ने सीना ताना
बुंदेलखंड की धरती, जहाँ आल्हा और ऊदल की वीरता गूँजती है, उसी महोबा जनपद की कुलपहाड़ तहसील में एक छोटा सा गाँव है— #पहाड़िया। यह गाँव जितना शांत और सुन्दर दिखता है, इसका इतिहास उतना ही तेजस्वी और धधकता हुआ है।
कहानी है 1944 के उस कठिन दौर की, जब भारत में दूसरा विश्व युद्ध (Second World War) चल रहा था। ब्रिटिश हुकूमत को युद्ध के लिए पैसे चाहिए थे और उन्होंने पूरे देश से, खासकर गरीब किसानों से, 'वॉर फंड' (युद्ध चंदा) के नाम पर जबरन वसूली शुरू कर दी थी।
🔥 विद्रोह की चिंगारी
सन् 1944 की 5 जनवरी की बात है। कुलपहाड़ का नायब तहसीलदार अपने लाव-लश्कर के साथ #पहाड़िया गाँव पहुँचा। उसका हुक्म था: "हर कीमत पर युद्ध चंदा वसूल किया जाए।"
लेकिन #पहाड़िया की मिट्टी अलग थी। यहाँ के लोगों के रगों में आजादी का खून दौड़ता था। गाँव के जांबाज स्वतंत्रता सेनानी, बैजनाथ सक्सेना ने इस लूट का खुलकर विरोध किया। उन्होंने गरज कर कहा:
"हम अपने ही देश को गुलाम बनाने वालों के युद्ध के लिए एक पैसा भी नहीं देंगे! हमारा चंदा केवल आजादी के लिए है!"
बैजनाथ सक्सेना की आवाज पर पूरा गाँव एकजुट हो गया। किसानों ने, मजदूरों ने, युवाओं ने, और महिलाओं ने एक स्वर में तहसीलदार का विरोध किया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि क्रोधित ग्रामीणों ने नायब तहसीलदार को दौड़ा दिया और ब्रिटिश अधिकारियों को उल्टे पाँव भागना पड़ा।
🩸 #6जनवरी1944_जलियांवाला_बाग' #बुंदेलखंड के #पहाड़िया_गांव
हार से बौखलाए अंग्रेजों ने प्रतिशोध लेने का फैसला किया। अगले ही दिन, 6 जनवरी 1944 को, तत्कालीन हमीरपुर के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक 200 सिपाहियों के साथ #पहाड़िया गाँव को चारों ओर से घेर लिया। उनका इरादा साफ था— गाँव वालों को सबक सिखाना और जबरन वसूली करना।
सिपाहियों ने बंदूकों के बल पर लोगों को डराना चाहा, लेकिन गाँव के वीर एकजुट खड़े रहे। पास के ब्यारजो गाँव से छक्की लाल राजपूत भी अपने साथियों के साथ आ गए और क्रांति की मशाल को और तेज कर दिया।
कलेक्टर ने बार-बार आत्मसमर्पण करने और चंदा देने को कहा, पर पहाड़िया के वीर एक इंच भी नहीं डिगे। जब पानी सिर से ऊपर चला गया, तो ब्रिटिश कलेक्टर ने वह बर्बर आदेश दिया: "गोली चलाओ!"
अगले आधे घंटे तक, शांत #पहाड़िया गाँव गोलियों की तड़तड़ाहट से गूँज उठा। इस नृशंस गोलीकांड में कई वीर सपूत शहीद हो गए, जिनमें वीर सिंह लोधी, रामदयाल, फदाली, ठाकुरदास जैसे नाम शामिल थे। पचास से अधिक ग्रामीण घायल हुए।
🌟 82 वीरों का महाबलिदान
अंग्रेजों ने गोली चलाने के बाद भी अत्याचार जारी रखा। गाँव की झोपड़ियों में आग लगा दी गई और ग्रामीणों की संपत्ति कुर्क कर ली गई। इस घटना के बाद, ब्रिटिश पुलिस ने #पहाड़िया और आसपास के गाँवों के 82 बहादुर लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
लेकिन #पहाड़िया के वीरों का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया। #पहाड़िया कांड को पूरे देश में एक राजनैतिक आंदोलन के रूप में पहचान मिली। इन 82 वीरों ने जेल की यातनाएँ सहीं, लेकिन स्वतंत्रता के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी।
आज, आपका गाँव #पहाड़िया महोबा ही नहीं, बल्कि पूरे बुंदेलखंड का वह 'गौरव ग्राम' है, जिसके 82 (या 88) स्वतंत्रता संग्राम ने सामूहिक रूप से संघर्ष किया और अपने खून से आजादी की नींव सींची। यह संख्या किसी एक गाँव के लिए देश की आजादी में सबसे बड़ा योगदान दर्शाती है।
यह कहानी #पहाड़िया के वीरों को अमर बनाती है।
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