सृजन फिर से

सृजन फिर से हर तपिश को मुस्कराकर आलिंगन दीजिए.....🌼🌻
(2)

नायिका देवी अब घोड़े पर शत्रु चढ़ आया रण होगा अब संग्रामों कारानी को मिल हैं समझाना अब डर ग़ौरी के नामों का दरबारी आकर त...
30/11/2025

नायिका देवी

अब घोड़े पर शत्रु चढ़ आया
रण होगा अब संग्रामों का
रानी को मिल हैं समझाना
अब डर ग़ौरी के नामों का

दरबारी आकर तब बोला
ओ रानी वाहक आया हैं
परिचय जाना मैंने उससे
गौरी प्रधान बताया है ।।

अब बात युद्ध की है शायद,
जो तुमसे कहना चाहता है+1
लगता है वो घाती मुझको,
छाती पर दहना चाहता है +1।।

गर आज्ञा रानी देती हो ,
दरबार तभी उसको लाऊं
अथवा इतना भुज बल मेरे ,
उसको उलटे पैर भगाऊं ।।

आया गर दरबार हमारे,
उसको मान अतिथि लाओ तुम
पहले जानो मर्म उसका फिर
चाहे जितना दौड़ाओ तुम।।

सेनापति आकर तब बोला
रानी दिश पश्चिम से आया हूं
सेनापति हूं मैं गौरी का ,
कहना भी उनका लाया हूं।।

चाहते हैं वो राज आपका,
पाना तुमको चाहते हैं -1
करके भोग तुम्हीं से वो ,
खाना तुमको चाहते हैं ।।-1

बन जाओ रानी गौरी की,
पटरानी तुम कहलाओगी
संग गौरी के मौज तुम्हारी,
देवी सी पूजी जाओगी।।

भेजा है तुमको भेंट स्वरूप
चूडी कंगन महावर धर लो
गर सबकी खैर चहाती हो
तो गौरी को तुम वर चुन लो ।।

अब आया निमंत्रण ग़ौरी का
गर रानी तुम ठुकराओगी
करता हूं मैं सूचित तुमको,
तुम बैठी फिर पछताओगी ।।

इतना सुनते सेनापति ने
वाहक तलवारें तानी हैं
रूको बिम्समबर मारो मत
आज्ञा रानी की मानी हैं।।

नियम सदा जो होते वाहक
ना उनको मारा जाता हैं
जो करता हैं अपराधों को
रणभूमि सघारा जाता है ।।

जा कहना तू गौरी से ,
भारत ना वीरो से खाली है
निधन हुआ मेरे पति का
पर बैठी रानी मतवाली है

छोटा हैं बेटा गर मेरा
तो आकर उसको मारेगा
पहले फाड़ेगा सीना उसका
फिर धरती में वो गाड़ेगा

नाकाम करूंगी मैं उसकी
क़सम जो उसने खायी हैं
मालूम नहीं क्या गोरी को
की जीवित उसकी मायी हैं


मैं रूप धरूंगी जब काली का
वो जीत न मुझसे पाएगा
आएगा अपने पैरो पर ,
पर बनकर हिजड़ा जाएगा ।।

अपने घर में बैठा गौरी
जो हड् डी रोज़ चबाता है
मदिरा पीना, क्या बात बड़ी
मानव को जो खा जाता है

भागा पहुचा तब सेनापति
गौरी को बात सुनाई हैं
उसने माना हिजड़ा तुमको
अब होगी जग हंसाई हैं

पीकर शोणित बोला गौरी,
सेना को उसकी कूटूगा
पहले जीतूं दौलत सारी
फिर आबरू उस‌की लूटूंगा

पशु कांटे तब आका पूजें
थे उसने ऐसे काम किये
अब घर से ग़ौरी निकल पड़ा
सेना को अपनी साथ लिए

बोली रानी सेनापति से
अब जल्द सभा तुम बुलवाओ
जांच करो सब हथियारो की
,जो हों कम तो अब मगबाओ

बोली रानी वीर सुनो सब
अपने मन की बात सुनाओ
या रोको तुम डोला मेरा
या अपनी तुम जान बचाओ

डोला पहुंचा यदि रानी का
तो मान बचा ना पाओगे
सब वंशज तुम पर थूकेंगे,
तुम बैठ बाद पश्चताओगे

तब बोले वीर सुनो बिस्मबर,
मान नहीं सिर्फ तुम्हारा है
जीते जी गर रानी पहुंची ,
अपमान कुल वंश हमारा है

गर कायरपन से जीत मिले,
तो जीत नहीं स्वीकार हमें
अब अपनी मातृ रक्षा हेतू,
है मरने का अधिकार हमें।।



कट जाएं भले ही इंचों में,
पर शीश नहीं झुकने देंगे
रानी की तो अब बात अलग,
टुकड़ा भू भाग न हम देंगे

आखिर बार मिलों अपनों से
तब सपनों में मत खो जाना
आंसू देखो जब तिरिया के,
तो भावो में मत रूक जाना

विपत्ति पड़ी है अब हमपर
तब तुम ही साथ लगाओगे
खाओ क़सम कुल देवी की
रण शत्रु के शीश गिराओगे

आज्ञा लेकर वीर चलें तब
स्त्रियां चलने को है आतुर
बांध कफ़न वो तो सर अपने,
अब रण करने को है आतुर

बोली सेना धीरज तो धर
मान न तेरा जाने देंगे
उस ग़ौरी की तो बात अलग
हवा पश्चिम की न आने देंगे।

जिस दिन के लिए हैं जन्म लिया
जिस दिवस की लेते शिक्षा हम
जिस दिन के लिए सीखी तलवारें
जिस दिन की करते प्रतिक्षा हम ।।


आज दिवस जब आया हैं तो
रानी हमको लड जाने दें
ख़ून सनी तलवारों से ही
अब सर शत्रु के कट जाने दें।

क्षत्रिय कुल के हम हैं प्राणी
जाति के है हम वो राजपूत ।
अब यम को हम आज पछाड़ें,
मार न सकते यमराज दूत ।।

बांध कफन अब सर पर अपने,‌
रानी हमको सज जाने दें ।
अब तू कर शीघ्र शंखनाद ,
आज़ नगाड़े बज जानें दें ।।

मत रोके तू अब तोपों को,
हमको आगे बढ़ जाने दें ।
आज पताका को ग़ौरी की
छाती में तू गढ़ जाने दें ।।



रण ठना आज संग्रामों का
रानी तू अब ठन जानें दें।
अब शत्रु के शोणित से रानी
तलवारो को सन जाने दें।

निर्णय लिया है तब रानी ने
कायिन्दा में घेरो सब चलकर
जो पग मायी पर गर डालें,
उसको मारों तुम बढ़कर

अब ध्यान रखो तुम बस इतना ,
की पग शत्रु का ना पड़ जाएं
बिन मुण्डो के चाहें युद्ध लड़ो
चाहें शीश पड़ा सड़ जाएं ।।

पावन धरती ना क़दम पड़े ,
कायिन्द्रा में जा रस्ता रोका
बेख़ौफ़ बेहोशी से आतें,
रानी ने गौरी को टोका।

इधर किधर तू जाता ग़ौरी
रस्ता तेरा निहार रही हूं।
तुझको ही मारने हेतू ,
मैं धरती अवतार रहीं हूं

तब हंसकर वो ग़ौरी बोला
रण मुझसे करने आयी है
रण का तो केवल नाम पड़ा
मौत तुझे तेरी लायी है

मैं तो वो नीच पिशाचर हूं,
जो करुणा भाव नहीं धरूंगा
बरसाऊगा तलवारों को
तों सबको मार नही मरूंगा

दानव हूं मैं रावण सा जो
पत्थर से पूजा लेता हूं
ठुकराया गर प्रस्ताव मेरा
चल मौका दूजा देता हूं

दे दें मुझको अपने घर को
फिर रानी मेरी तू बन जा
जान बचानी गर सबकी तों
सबकुछ रानी मुझको दे जा

कहना मेरा ना मानेंगी
तो मैं रूप यम का धारूगा
ना जगह मिलेगी छिपने की,
चुन चुनकर सबको मारूंगा

होली रण की जब मैं खेलूं,
तब शंकर की मैं धुन लूंगी
तू जीतें गौरव गर मेरा
तो फिर वर तुझको चुन लूंगी

साफ़ निशानी है कायर की
वो बातें खूब बनाता हैं
हाथों में जिसके बल होता
वो रण में आ अजमाता हैं ।।


कहकर इतना बोली रानी
वीरों आगे को बढ़ जाओ
नारा दे दो शिव शंकर का
शत्रु से जाकर तुम भिड़ जाओ

आज्ञा जैसे पा रानी की ,
वीरों ने तब जयकार करी
लाशें गिरती लाशें गिरती
लाशों से ही तब लाश डरी

सहम उठी गौरी की सेना,
तलवारें म्यानों से काढ़ी
फड़की हैं तब वीरों बाहें,
शत्रु खीची रानी की साड़ी

तलवारों की झंकारों से,
आकाशो में बिजली चमकी
रानी ने तलवार निकाली,
देवी सी तब रानी दमकी

बरस रहा पानी तूफानी
काल घटा भी काली छायी
छपट पड़ी वो अब शत्रु पर ,
बनकर के काली मायी है

बलगाहे दाबी दांतों में
हाथों में तब तलवार उठीं
चण्डी बनकर समरागण में
जब रानी आज चिंघार उठी

भालो पे तलवारे नाचीं,
रिपु सेना रोष समेत उठी
शक्ति चौगुनी से रणचण्डी,
अब समरागण में चेत उठीं

टन टन करती तलवारों की
आवाज सुनाई देती हैं
रानी साधे जब बाणों को
तब मौत दिखाई देती है

लाशों पे लाशें गिरतीं है,
सर पे सर काटे जाते हैं
जो करते हैं वतन गद्दारी
वो रण में मारें जातें हैं

मान नहीं उस नारी का जो
बिक जाती नारी ताजों से
पति के प्राणों के खातिर लड़
जाती नारी यमराजों से

चूड़ी कंगन महावर नारी
तलवारों का श्रंगार करें
किसको मारू किसको छोड़ूं
तब रण में काल विचार करें।

तलवारों के समरागण में
नारी गाली बन जाती हैं
तब लेके खप्पर हाथों में ,
नारी काली बन जाती हैं ।


सैनिक से सैनिक लड़ते हैं
सरदार लडे सरदारों से।
भालो से भाला लड़ते हैं,
तलवार लडी तलवारों से ।

टन टन करती तलवारों से ,
रण में कट कट तब मुण्ड गिरें,
इधर गिरे या की उधर गिरें,
भूतल पर विकट वितुण्ड गिरें ।।

घोड़ों से घोडा लड़ते हैं
हाथी लड जातें हाथी से
हैं अपनों का कुछ पता नहीं
साथी लड़ जाते साथी से ।।

दब जातें हैं लाखों सैनिक
करवट से गज भगवान गिरा
गिर जाते घोड़ों से सैनिक,
हाथी से जब बलवान गिरा

रण में हैं भीषड़ कोलाहल
एक दूजे को सब मार रहें
कुछ को निकला काम राम से
कुछ तो अल्लाह पुकार रहें ।।

काट दिये तब सर शत्रु के
रानी की जब तलवार बढ़ी
रण में हैं भीषड़ कोलाहल
अब काली जीभ निकाल बढ़ी ।।

अब काटे सर तलवारों से
रानी तो रण में विचल गयी
तलवार अभी थामी उसने
मार अभी वो निकल गयी ।

छड़ इधर गयी छड़ उधर गयी
रानी पता नहीं किधर गयी
वो इधर गयी वो उधर गयी,
उस ओर चलो वो जिधर गयी ।।

अवतारी हैं वो नागिन की ,
डसने में लेती कहर नहीं
छड़ में मर जाते हैं सैनिक,
तन मे फैला भी जहर नहीं ।।

कट कट कर धड़ अलग गिरे
सैनिक की होती पहचान नहीं
गर्दनें कटती तलवारों से,
भाला भी खोता शान नहीं।।

शत्रु मारें दांतों से घोडा,
कुछ को टापों से ठोक दिया
तलवार उछाली नभ रानी
भाले पर उसको रोक दिया

खप्पर खाली हैं काली का
पर हृदय आया संतोष नहीं
पग पग आगे बढती काली,
कम होता पर अब रोष नही ।

तब तक देख लिया रानी ने
गौरी लड़ता हैं हाथी पर
लड़ जीते जिससे युद्ध बहुत,
ऐसे अपने उस साथी पर ।

शोणित का देह उबाल उठा,
रानी जल बैठी ज्वाला से
घोड़े से बोली तू बढ़ आगे,
और कहा निज भाला से

रख दी टापें गज मस्तक पर,
रानी का घोड़ा लहर उठा
ठहर गया ग़ौरी का हाथी
शत्रुऔ पर घोड़ा कहर उठा

बैठ गया गौरी का हाथी,
अब काली लड़ती साथी पर।
पहले तोडी गौरी की कुर्सी
चढ़ बोली रानी हाथी पर।।

बोल उठी तलवार अचानक
अब घाव समय के सीने दें
मुझको शोणित की प्यास लगी,
गौरी का शोणित पीने दें

ना रोको करछी तलवारें ,
सेना को भी ना रोको तुम
बढ़ने दो बैरी गर्दन तक,
रानी ना हमको टोको तुम

काट गर्दन धरती पर तुझको,
धड़ अलग गगन से कर दूंगी
पीछे हट जा अब तू जल्दी
सर अलग बदन से कर दूंगी

माफ़ी बोल उठा तब ग़ौरी
अब सबके प्राण बचाने को
अब रख दीं तलवारें सबने
वापस अपने घर जाने को

जारी हो इक फ़रमान गया
झुक गजनी का सुल्तान गया
झुक गजनी का सुल्तान गया
झुक गजनी का सुल्तान गया

जा तुझको जीवन दान दिया
अब वापस तुझको मान दिया
लड़ने से पहले ध्यान रहे
भारत ने तुझको प्राण दिया

सतीश कुमार यादव
#सृजन_फिर_से

मतलब नहीं रहा है अब किसी से हो गया हूं मैं दूर भी अब सभी से मेरी उम्र के लोग आसमां छू रहे मैं निकला नहीं ग़म की नदी सेवो...
30/11/2025

मतलब नहीं रहा है अब किसी से
हो गया हूं मैं दूर भी अब सभी से

मेरी उम्र के लोग आसमां छू रहे
मैं निकला नहीं ग़म की नदी से

वो सो रही है बाहों में किसी की
सोचकर हाथ कांपते हैं अभी से

वो मुझसे अब बहुत दूर जा चुका
गया नहीं है मगर अभी जिंदगी से

मेरा चेहरा देखना भी गंवारा नहीं
पर रोएगी बहुत मेरी खुदकुशी से

~` देवेन्द्र चौहान देव 🥀

#सृजन_फिर_से

सुनो नमेरे बिहारी जी…एक दिन तो स्वीकारोगे ही मेरी यह काँपती हुई अर्जी,एक दिन तो तुम्हारे नीले कमल-से दर्शनमेरी सूनी आँखो...
30/11/2025

सुनो न
मेरे बिहारी जी…
एक दिन तो स्वीकारोगे ही मेरी यह काँपती हुई अर्जी,
एक दिन तो तुम्हारे नीले कमल-से दर्शन
मेरी सूनी आँखों को अमृत से भर देंगे।

मैं जानती हूँ—मैं अधम हूँ, पापी हूँ,
मन में हज़ार कलंक लिए तुम्हारे द्वार पर आती हूँ,
पर तुम…
तुम तो वो हो जो टूटे दीपक में भी बाती जलाते हो,
काँटों में भी विश्वास के फूल खिला देते हो,
करूणा के सागर, ब्रजधाम के रसिक शिरोमणि हो।

बिहारी जी,
जब-जब मन अपने ही दोषों से थरथर काँपता है,
तब-तब तुम्हारी मुरली की मधुरता
मुझे बाँध लेती है—
जैसे कह रही हो,
“आ जा, तू मेरी ही है,
तेरी सारी कमियाँ भी मुझमें ही समा जाएँगी…”

हे प्यारे,
कभी तो पुकारोगे इस पथभ्रष्ट को,
कभी तो अपने नंदरायी दरबार में
एक क्षण का आसन दोगे मुझे,
जहाँ चरण-रज भी सौ जन्मों के पाप धो देती है।

मैं तो बस नज़रें बिछाए खड़ी हूँ—
तुम्हारी करुणा की एक किरण के लिए,
जिस दिन तुम बुला लोगे न बिहारी जी,
उस दिन मेरा सारा जीवन
धन्य हो जाएगा…
और मैं—
एक पतित नहीं,
तुम्हारी दया से जन्मी एक नई आत्मा बन जाऊँगी।
मधु शुभम पाण्डे ✍️

#सृजन_फिर_से

30/11/2025

जैसा मन था बिल्कुल वैसा मोड़ दिया,
मैंने उसका माथा चूमा छोड़ दिया

-रवींद्र अजनबी

कल एक काम से कानपुर गया। अद्भुत शहर है। लेकिन यदि कोई मुझसे कानपुर की शान पूछेगा तो मैं चमड़े या सूती के उद्योग के अलावा...
30/11/2025

कल एक काम से कानपुर गया। अद्भुत शहर है। लेकिन यदि कोई मुझसे कानपुर की शान पूछेगा तो मैं चमड़े या सूती के उद्योग के अलावा कहूंगा "रंगछाप महाराज" अर्थात गुटखा चबाने वाले।

शताब्दी ट्रेन से उतरते ही प्लेटफॉर्म पर जुगाली करता एक महाराज दिख गया ...गाल फूले हुए, होंठ केसरिया।

लगा कि कुछ ढूंढ रहा है वो। उसने पहले दाएं-बाएं देखा… फिर कलाकारों जैसा हाथ घुमाया… और छपाक! बिजली के खंभे की जड़ में ऐसी ‘लाल-पिचकारी पेंटिंग’ बनाई कि मैं तो वहीं ठिठक गया। कुत्ते और गुटखा खाने वालों में एक बात कॉमन होती है दोनों की नजर किसी कोने या खम्बे पर ही रहती है। इनसे सुंदर स्ट्रीट आर्ट विश्व का कोई भी कलाकार नहीं उकेर सकता।

आगे बढ़ा। स्टेशन से बाहर आ गया। ऑटो करने के लिए हाथ हिलाया। पच्चीस तीस साल का एक नौजवान ऑटो वाला आया वही गाल फूले हुए, होंठ केसरिया। कभी कभी सोचता हूं कि विमल और राजश्री का कितना उपकार है देश के गरीबों पर, कि चार लाख किलो वाला केसर 5 रुपए के गुटखे के पैकेट में मिलाकर बेच रहे हैं। इनका दाना दाना केसर लिपटा हुआ होता है और इसका प्रमाण पत्र बॉलीवुड के तीन तीन सुरतियों ने ठोक बजा कर टीवी पर दिया है। विमल और राजश्री वालों का ये परोपकार किसी को नहीं दिखता। मैं सरकार से इनके लिए एक एक भारत रत्नों की मांग करता हूं।

गुटखा खाने वालों में संस्कार भी गजब के होते हैं। वे बड़े शांत और धीर गंभीर रहते हैं और गुटखा थूक कर केवल तभी बोलते हैं जब बोलने की कीमत गुटखे से ज्यादा हो। वर्ना हूं या उहूँ में ही जबाब देते हैं।

मैंने पूछा "पनकी चलोगे?"
वो लाल-लाड़ा लपड़गंजिया बिना जवाब दिए वापस चला गया। मुझे लगा "क्या घोंचू आदमी है! इसने ना तो हां बोला , ना ही ना बोला"

मैं दूसरे ऑटो वाले को आवाज देने ही वाला था कि वो वापस आता दिखा। वो गेट के कोने में पीक थूकने चला गया था। मैंने वहां उचककर देखा... गेरूआ निशान था... जैसे कानपुर की मुहर हो। मुझे लगता है कि अगर सरकार ने कभी गुटखा खाने वालों को ताजमहल में एक रात के लिए बंद कर दिया तो सुबह ताजमहल की जगह लालकिला मिलेगा। इन्हें अंडरस्टिमेट मत करना।

मैं फिर बोला "पनकी चलोगे"
वो पिचकारी चौबे
:"हाँ, चलै लूँगा।”
"कितने लोगे"
"अउरन के त ढाई सौ ठोक देत हैं, हम तो तोहरे से सुद्ध दुई सौ लेंगे"
मैंने मन में सोचा "इतनी इनायतें! मैं किस रिश्ते का सगा हूं इसका जो मेरे लिए धन की तिजोरी खोल रहा है ये!"
खैर, मैं बोला "चलो"

रास्ते में रेड लाइट पे हमारे ऑटो के बराबर में एक ऑडी कार आकर रुकी। आगे एक राजनीतिक पार्टी का झंडा था। बीस बाइस साल का कोई लड़का होगा, कपड़ों से अच्छे घर का लग रहा था, कार भी महंगी वाली थी। लेकिन जब उसका मुंह मेरी तरफ घूमा तो वही गाल फूले हुए, होंठ केसरिया, थूक-बवंडर भोंपू। कानपुर का जेन जी लॉरियल की क्रीम लगाता हैं, बादाम का तेल मलता है, निविया का बॉडी लोशन थोपता हैं और खाता हैं "विमल"। ऐसे लड़कों का आधा जीवन गुटखा खाने और आधा जीवन युवा नेता बनकर "पार्टी नगर अध्यक्ष के साथ बिताए गए खुशी के कुछ पल' या आज नेताजी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ वाली सेल्फी लेने में ही बीत जाता है। उखाड़ न पाते लपूझन्ना भी।

लाइट ग्रीन हो गई। मैं बैठा बैठा बोर हो रहा था। मैंने ऑटो वाले से पूछा "शादी हो गई?" बोला "उहूँ"
"27 28 के तो होगे तुम?"
बोला "उहूँ"
"तो कितने के हो"
ये प्रश्न उहूँ करने वाला नहीं था। उसने चलते ऑटो से ही लाल रंग की वमन कर दी। गुटखा खाया हुआ आदमी अगर अचानक से गुटखा थूक दे तो यह समझ लेना चाहिए कि उसके बाद वो बहुत बड़ी ज्ञान की बात करने वाला है। और ऐसा ही हुआ।
ये थूकनिया झिंगुर बोला :"तीसवां तो पार कर लिए हैं, अब इकतीसवाँ घसीट रई। रिश्ता तो जम गओ था, पर हम बोले हमका चैन चाही, घर-गिरस्ती नहीं! ब्याह तो टराय दियो फिलहाल"

मैंने मन मन में बोला "साले दांत पीले हैं तेरे! इसलिए हाथ पीले नहीं हो रहें हैं।"

फिर मैंने उससे बोला "भैया, पिछले महीने गुटखे के दाम बढ़ गए हैं, अब तुम्हारा खर्चा ज्यादा होता होगा?"
बोला:" नहीं सर, का कहें कउनो असर नाहीं पड़ा! अब त पीक आधा घंटा देर से थूकत हौं!"

और ये कहते हुए उसका सीना गर्व से चौड़ा हो रहा था कि वो आधा घंटा अधिक उसी गुटखे को दबाए रखता है।

पनकी आ गया। मैंने उसे पेमेंट किया और मार्केट से फल खरीदने लगा। लगभग 15 मिनट के बाद देखा, तो वो गुटखा-गुल्ला वहीं खड़ा था।वो कीचड़ का समुद्र बना चुका था। गुटखा चबाने वाला मनुष्य 2 लीटर पानी से कुल्ला करता है।
कुल्ला क्यों ?
ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे किसान हर फसल काटने के बाद खेत में घंटों ट्यूब वेल चलाता है ताकि नई फसल बो सके। ये भी दोबारा खैनी रगड़ेगा एक बार फिर से वतन के अंधेरे कोनों को गेरूआ रंगने के लिए।
______________
Udit Garg ji

#सृजन_फिर_से

“पिता का हाथ छूटते हीज़िंदगी ने किराया माँगना शुरू कर दिया।”पिता के रहतेज़िंदगी कभी महंगी लगी ही नहीं;उनकी छाया मेंहर मु...
30/11/2025

“पिता का हाथ छूटते ही
ज़िंदगी ने किराया माँगना शुरू कर दिया।”

पिता के रहते
ज़िंदगी कभी महंगी लगी ही नहीं;
उनकी छाया में
हर मुश्किल आधी हो जाती थी
और हर खुशी दोगुनी।

घर तब घर जैसा लगता था,
क्योंकि दरवाज़े पर खड़ी उनकी चिंता
हमारा सबसे बड़ा सुरक्षा कवच थी।
हम बेफिक्र थे…
क्योंकि फ़िक्र करने वाला कोई और था।

लेकिन जिस दिन
वो हाथ उँगलियों से छूट गया,
उसी दिन ज़िंदगी ने
पहली किस्त भेज दी
ज़िम्मेदारी के नाम पर।

फिर हर कदम का अलग बिल आया:
थकान का किराया,
आँसुओं का शुल्क,
और सपनों पर
दुनिया का टैक्स।

अब कोई नहीं जो कहे
“रहने दे, ये मैं संभाल लूंगा।”
अब कोई नहीं जो
छोटी गलती को भी
मुस्कान में बदल दे।

उनके जाने के बाद
हम बड़े नहीं हुए…
बस दुनिया ने मान लिया
कि अब हम अकेले खड़े हो सकते हैं।

पिता थे तो ज़िंदगी चलती थी,
पिता गए… तो
ज़िंदगी समझौते पर चलानी पड़ती है।
और यही सबसे बड़ा किराया है
जो हर दिन, हर पल
दिल चुकाता रहता है।

🙏🏻
©सचिन साळुंके
#बापपेज #बाप #पिता Facebook
#सृजन_फिर_से

एक बेटी का पिता! एक दिन शाम को सभी बैठकर बात कर रहे थे! बातों बातों में बाबू जी बोले कि...... ए मालकिन एक बात बताओ! बेटी...
29/11/2025

एक बेटी का पिता!

एक दिन शाम को सभी बैठकर बात कर रहे थे! बातों बातों में बाबू जी बोले कि...... ए मालकिन एक बात बताओ! बेटी के विवाह में व्रत रखते हैं का?(क्या बेटी के विवाह में व्रत रखा जाता है)
मां तनिक गुस्से में झिड़कती हुई बोली... तो का खाकर कन्यादान करिहो?(तो क्या खाकर कन्यादान करोगे)
बाबू जी बोले... न हो हमसे तो भूखल न रहा जाई हम तो बिट्टू के विवाह में खाय कय ही कन्यादान करब!(हम तो बिट्टू के विवाह में खा कर ही कन्यादान करेंगे)

मां सुनकर भुनभुनाती हुई उठकर चली गई।

विवाह को अभी छह महीने बचे हैं। तीनों समय खाने के बाद भी भूख भूख करते रहने वाले बाबू जी को अब भोजन करने के लिए याद न दिलाओ तो याद ही नहीं रहता है। सारा दिन न जाने किस उधेड़बुन में लगे रहते हैं।
रोज सुबह दर्जनों काम लेकर घर से निकलते हैं और दिन डूबे कहीं जाकर घर वापस लौटते हैं।
थक कर चारपाई पर बैठते हैं। मां पानी लाती हैं। पानी पीकर एक गहरी लंबी सांस लेकर आंख बंद करके न जाने कहां खो जाते हैं।
मां पूछती हैं कि कुछ काम बना? आज क्या क्या निपटाए?
बाबू जी जबरदस्ती मुस्कराते हुए कहते हैं कि हां! सब हो जाएगा तुम चिंता न करो।
देर रात तक बाबू जी मां से न जाने क्या क्या सलाह करते रहते हैं।
विवाह के एक हफ्ते पहले बुआ आ गई हैं। बुआ को देखकर बाबू जी जरा खिल से उठे हैं।
अब बाबू जी की मीटिंग में मां के साथ साथ बुआ भी होती हैं।
बाबू जी इतनी व्यस्तता के बाद भी अपनी निगरानी में सारे फर्नीचर बनवा रहे हैं। बढ़ई काका को बार बार टोक रहे हैं कि बिटिया के ससुराल से शिकायत नहीं मिलनी चाहिए बढ़िया सामान बना कर देना पैसों की फिक्र नहीं करना काम अच्छा करना।
पैसों की फिक्र तो बाबू जी ने खुद तक ही रखी हुई है। हर दिन कॉपी लेकर हिसाब करते हैं और उनके माथे पर पड़ती लकीरें बताती हैं कि पर्याप्त पैसों की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। किसी से जरा भी मदद की उम्मीद लगती है तो तुरंत उससे बात करने चले जाते हैं।

जब सारी कोशिश के बावजूद बजट को लेकर संतुष्ट नहीं होते हैं तब हार कर बाबू जी मां से कहते हैं बिट्टू की मां चार में से दो कड़े दे दो तो जमाई बाबू का उपहार थोड़ा भारी हो जाएगा कौन सा हम उनको बार बार देंगे। तुम फिक्र न करो अगले वर्ष गन्ने का पैसा आयेगा तो इससे मोटा मोटा कड़ा बनवा दूंगा।
भागदौड़ करते करते विवाह दो दिन बचा है। थोड़ी देर भी भूखे न रहने वाले बाबू जी दो दिन से बिन खाए, बिन सोए विवाह की व्यवस्था में पगलाए हुए से हैं।
कमरे की खिड़की से चोरी चोरी बाबू जी को इधर उधर भाग दौड़ करते देखती बिट्टू रो देती थी कि मेरे विवाह की फिक्र में बाबू जी इन कुछ दिनों में ही अचानक से उम्रदराज दिखाई देने लगे हैं। मुंह उतर आया है, रंग काला सा हो गया है।
बिट्टू बाबू जी के सामने पड़ने से कतराती थी और बाबू जी खुद भी बिट्टू को भर नजर नहीं देख पाते थे उससे पहले ही आंख भर आती थी। मन ही मन सोचते कि कल तक इधर उधर फुदकने वाली मेरी चिड़िया सी लाड़ो इतनी बड़ी हो गई कि अब विदा होकर मेरा आंगन सूना करके उड़ जाएगी।

विवाह की रस्में पूरी करते घूंघट की आड़ में बिट्टू न जाने कितनी बार रोई थी। जब बाबू जी ने कन्यादान किया तो बाबू जी खुद भी आंसू रोकते रोकते हुए भी सिसक पड़े थे।
विदाई की बेला आई। बिट्टू को पकड़ कर सभी रो रहे थे और बिट्टू की आंखें तो बाबू जी को खोज रही थी। बाबू जी कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
नजर भी कैसे आते वो मंडप छोड़कर जनवासे की तरफ़ जो भाग गए थे।
बिट्टू रोती हुई पूछती भैया! बाबू जी कहां हैं।
भैया अपने साथ साथ बिट्टू के आंसू पोछता हुआ गाड़ी की तरफ ले आता है कहता है यही कहीं होंगे अभी आते होंगे।
बिट्टू गाड़ी में बैठ जाती है और देखती है पेड़ के पास खड़े बाबू जी पगड़ी उतार कर आंसू पोंछ रहे थे लेकिन गाड़ी तक नहीं आए।
वो जानते थे कि अपने हाथों से बिट्टू को विदा नहीं कर पाएंगे इसलिए वहीं से ही दोनों हाथ गाड़ी की तरफ उठा कर आशीष दे दिया और मुंह घुमा लिया।
कठोर मन के माने जाने वाले बाबू जी बिट्टू के विवाह में सबसे छिप छिप कर न जाने कितनी बार रो लिया करते थे।
बड़ी होते ही पिता पुत्री के बीच एक मर्यादा की दीवार बन जाती है। बेटी न कभी पिता के गले लग पाती है और न पिता अपने गले लगा कर बेटी को चुप करा पाता है इसलिए लाड़ो की विदाई के समय अक्सर बाबू जी यूं दूर खड़े होकर भरी आंखों से हाथ उठाकर बिटिया को आशीष देकर विदा कर देते हैं।

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~अरूणिमा सिंह

#सृजन_फिर_से

कुछ स्त्रियाँ गंगा होती हैं...कुछ स्त्रियाँ केवल शरीर नहीं होतीं, वे नदी होती हैं, गंगा होती हैं। वे जीवन के प्रवाह की त...
29/11/2025

कुछ स्त्रियाँ गंगा होती हैं...

कुछ स्त्रियाँ केवल शरीर नहीं होतीं, वे नदी होती हैं, गंगा होती हैं। वे जीवन के प्रवाह की तरह सतत बहती हैं, अपने भीतर प्रेम, त्याग और सहनशीलता की अथाह गहराई समेटे। वे अपने प्रियजनों के सुख-दुःख का जलधार बनती हैं—कभी शांत, कभी वेगवान, कभी कोमल तो कभी प्रचंड। वे ठहरती नहीं, वे सागर से मिलने की चाह भी नहीं रखतीं। वे बहती हैं, केवल बहती हैं, और इसी में उनका सम्पूर्ण अस्तित्व सिमट जाता है।

जब किसी पुरुष का जीवन कठिनाइयों से घिर जाता है, जब उसे अपने ही संघर्षों की आग में जलना पड़ता है, तब वही स्त्री उसके लिए ठंडी छाँव बन जाती है। उसकी गोद में सिर रखते ही सारे बोझ उतरने लगते हैं, जैसे कोई तपता हुआ सूरज बादलों की गोद में समा जाए। उसकी हथेलियाँ आश्वासन का स्पर्श बन जाती हैं, उसके शब्द अमृत-धारा। वह कुछ कहती नहीं, पर उसकी मौन उपस्थिति ही घावों पर मलहम बन जाती है।

कभी वह माँ होती है, जो अपनी संतान के हर दर्द को खुद पर ले लेती है। कभी वह प्रेमिका होती है, जो अपने प्रिय की आँखों में उदासी नहीं देख सकती और अपनी हँसी से उसका मन बहलाने की कोशिश करती है। कभी वह पत्नी होती है, जो अपने साथी के सपनों को खुद से अधिक महत्व देती है और उसके हर संघर्ष में चुपचाप खड़ी रहती है। कभी वह बेटी होती है, जो पिता की चिंताओं को मुस्कान में छुपा लेती है।

स्त्रियाँ प्रेम में जलती हैं, पर राख नहीं होतीं। वे आँसू पीती हैं, पर मुस्कुराहट बिखेरती हैं। वे खुद को मिटाकर अपनों को संवारती हैं। वे नदी की तरह त्यागमयी हैं—जो सबको जल देती है, पर खुद कभी प्यास की शिकायत नहीं करती। वे तीर्थ हैं—जहाँ आकर हर कोई पापमुक्त हो जाता है, मगर स्वयं कभी मुक्ति नहीं पातीं।

कुछ स्त्रियाँ गंगा होती हैं…
उनमें डूबकर उनके प्रिय पुरुष अपने विकारों से मुक्त हो जाते हैं, अपने बोझ हल्के कर लेते हैं, और निर्मल होकर लौटते हैं।
लेकिन वे स्त्रियाँ? वे बहती रहती हैं… सतत, निःस्वार्थ, निस्सीम… बिना किसी शिकायत, बिना किसी विराम के।

Ak Ash भाई 😊🙏❤️

#सच #सत्य #सुखद #स्त्रियां #सृजन #सृजन_फिर_से
#गंगा

बहुत दिनों तक हुई परीक्षाअब रूखा व्यवहार न हो।अजी, बोल तो लिया करो तुमचाहे मुझ पर प्यार न हो॥जरा जरा सी बातों परमत रूठो ...
29/11/2025

बहुत दिनों तक हुई परीक्षा
अब रूखा व्यवहार न हो।
अजी, बोल तो लिया करो तुम
चाहे मुझ पर प्यार न हो॥

जरा जरा सी बातों पर
मत रूठो मेरे अभिमानी।
लो प्रसन्न हो जाओ
गलती मैंने अपनी सब मानी॥

मैं भूलों की भरी पिटारी
और दया के तुम आगार।
सदा दिखाई दो तुम हँसते
चाहे मुझ से करो न प्यार॥

~ सुभद्रा कुमारी चौहान 🌻

#सृजन_फिर_से

हम फूलों के देश से आए, पाकर देश निकाला।हमको पतझड़ ने अपनाया, कांटो ने है पाला ।तुमने हाथ छुड़ाया हमसे, है उपकार तुम्हारा...
29/11/2025

हम फूलों के देश से आए, पाकर देश निकाला।
हमको पतझड़ ने अपनाया, कांटो ने है पाला ।

तुमने हाथ छुड़ाया हमसे, है उपकार तुम्हारा,
हमने रुककर सोचा उस दिन,क्या जीता क्या हारा,
बरसों बरसों बीत गए थे, खुद को गले लगाए,
तुमसे छूट के, खुद में लौटे, हम बाहें फैलाए,

हम टूटे, बिखरे,संभले, फिर
अपना होश संभाला ।

वरदानों की चाह में हमको,अक्सर शाप मिले हैं।
छांव घड़ी भर मांगी जिनसे, उनसे ताप मिले हैं।
जो कुछ जीवन से पाया,वो सब कुछ हमने साधा।
सुख का मान किया, दुख को भी आंचल में है बांधा।

हमने अपने पांव का कांटा,
अपने हाथ निकाला।

हर शबरी के भाग्य न होता, है रघुबर का आना।
पर साधक की सिद्धि नहीं है,वरदानों को पाना।
पुष्प चढ़ाकर वेदी पर क्या हम वंचित होते हैं ?
नहीं सुरभि से, देवों के सम,अभिसिंचित होते हैं?

दीप जला करते बिन मांगे,
अपने लिए उजाला। : Swarika Kirti ✍️

#सृजन_फिर_से #हिंदीसाहित्य

अम्मा तुम तो चली गयी-----------------------------------अम्मा तुम तो चली गयी पर लाल तुम्हारा झेल रहा।जैसे तैसे घर की गाड़...
29/11/2025

अम्मा तुम तो चली गयी
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अम्मा तुम तो चली गयी पर लाल तुम्हारा झेल रहा।
जैसे तैसे घर की गाड़ी अपने दम पर ठेल रहा।

बैठ करे पंचायत दिन भर
सजती और सँवरती है!
जस की तस है बहू तुम्हारी
अपने मन का करती है!

कभी नहीं ये राधा नाची कभी न नौ मन तेल रहा।
अम्मा तुम तो चली गयी पर लाल तुम्हारा झेल रहा।

राधे बाबा का लड़का तो
बेहद दुष्ट कसाई है!
साथ उसी के घूमा करता
अपना छोटा भाई है!

सोचा था कुछ पढ़ लिख लेगा उसमें भी ये फेल रहा।
अम्मा तुम तो चली गई पर लाल तुम्हारा झेल रहा।

खेत कर लिया है कब्जे में
बोया उसमें आलू है!
लछमनवा से मगर मुकदमा
वैसे अब तक चालू है!

जुगत भिड़ाया तब जाकर वह एक महीने जेल रहा।
अम्मा तुम तो चली गयी पर लाल तुम्हारा झेल रहा।

चलो कटेगा जैसे भी अब
आशीर्वाद तुम्हारा है!
और भरोसा है ईश्वर पर
उसका बहुत सहारा है!

खेल खिलाता वही सभी को और जगत ये खेल रहा।
अम्मा तुम तो चली गयी पर लाल तुम्हारा झेल रहा।

--- धीरज श्रीवास्तव 🙏
#गीत #अम्मा #लाल
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बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ।अन्तर्मन के कोरे कागज पर तुमको मनमीत लिखूँ।**लिख दूँ कैसे नजर तुम्हारीदिल...
29/11/2025

बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ।
अन्तर्मन के कोरे कागज पर तुमको मनमीत लिखूँ।
**
लिख दूँ कैसे नजर तुम्हारी
दिल के पार उतरती है !
और कामना कैसे मेरी
तुमको देख सँवरती है !
**
पंछी जैसे चहक रहे इस मन की सच्ची प्रीत लिखूँ।
बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ।
**
लिख दूँ हवा महकती क्योँ है?
क्योँ सागर लहराता है !
जब खुलते हैँ केश तुम्हारे
क्योँ तम ये गहराता है !
**
शरद चाँदनी क्योँ तपती है क्योँ बदली ये रीत लिखूँ।
बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ।
**
प्राण कहाँ पर बसते मेरे
जग कैसे ये चलता है !
किसका रंग खिला फूलोँ पर
कौन मधुप बन छलता है !
**
एक एक कर सब लिख डालूँ अंतर का संगीत लिखूँ।
बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ।
**
इन नयनोँ के युद्ध क्षेत्र मेँ
तुमसे मैँ हारा कैसे !
जीवन का सर्वस्व तुम्हीँ पर
मैँने यूँ वारा कैसे !
**
आज पराजय लिख दूँ अपनी और तुम्हारी जीत लिखूँ।
बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ।
**

रचना - धीरज श्रीवास्तव जी 🙏💐
Dheeraj Srivastava
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