सृजन फिर से

सृजन फिर से हर तपिश को मुस्कराकर आलिंगन दीजिए.....🌼🌻

11/10/2025

उनके ज़ख्मों की तुरपाई कौन करे
जिनके ज़ख्मों की परछाई छूट चुकी।
- देवेन्द्र दीक्षित

आपने  मन  का उपवन मुझे  सौंप  कर,पतझरित इस हृदय को हरित कर दिया।आप  आये  तो  घर  मेरा  घर  सा  हुआ,सारी खुशियों को है अव...
11/10/2025

आपने मन का उपवन मुझे सौंप कर,
पतझरित इस हृदय को हरित कर दिया।
आप आये तो घर मेरा घर सा हुआ,
सारी खुशियों को है अवतरित कर दिया।

मन थका, तन थका लेके लौटा कभी,
ये थकन दूर होती तुम्हें देखकर।
जग की पीड़ा के कंटक चुभे गर कभी,
हर चुभन दूर होती तुम्हे देखकर।

मैं तो मरुथल में अब तक पड़ा व्यर्थ था,
इस मधुर प्रेम ने अंकुरित कर दिया।
आपने अपना मधुवन मुझे सौंप कर,
पतझरित इस हृदय को हरित कर दिया।

नेह का एक सागर उमड़ता सदा,
इस समर्पण पे अर्पण मेरा मन प्रिये।
वनिता बन जिन्दगी को सवांरा मेरी,
मेरा संसार तुम, तुम ही जीवन प्रिये।

इस अधूरे को पूरा किया इस कदर,
पूर्ण संसार मे अंतरित कर दिया।
आपने अपना मधुवन मुझे सौंप कर,
पतझरित इस हृदय को हरित कर दिया।

पवन प्रगीत

#सृजन_फिर_से

एक शांत रात्रि में, मिट्टी के दीवारों से घिरे कोने में, दो प्राणी प्रेम और सादगी के बंधन में बंधे नजर आते हैं।युवती, अपन...
11/10/2025

एक शांत रात्रि में,
मिट्टी के दीवारों से घिरे कोने में,
दो प्राणी प्रेम और सादगी के बंधन में
बंधे नजर आते हैं।

युवती, अपने रंग-बिरंगे लहंगे और ओढ़नी में लिपटी,
हाथ में एक कटोरा लिए,
कोमल मुस्कान के साथ भोजन का स्वाद लेती है।

उसके साथ युवक,
सादी पोशाक और गमछे में लिपटा,
अपने साथी की ओर देखते हुए
शांति और स्नेह की भावना से ओतप्रोत है।

दीपक की लौ उनके चेहरों पर नृत्य करती है,
मानो प्रकृति भी इस पवित्र पल की साक्षी बन रही हो,
जहाँ समय थम सा गया है।

✍️ राहुल आर्यन

रात पहर भर बीत चली है ,चन्दा  भी  छत पे आया है,तुम भी छत पर आ जाओ अब,दोनों  मिलकर  व्रत  खोलेंगे,दिन भर के भूखे प्यासे ह...
10/10/2025

रात पहर भर बीत चली है ,
चन्दा भी छत पे आया है,
तुम भी छत पर आ जाओ अब,
दोनों मिलकर व्रत खोलेंगे,

दिन भर के भूखे प्यासे हैं,
हम दोनों की यही कहानी,
पूजा की एक थाल सजी है,
प्रणय गीत गा रही जवानी,
देख चलनियाँ से चंदा तब,
एक दूजे की प्यास हरेंगे,

तुम भी छत पर आ जाओ अब,
दोनों मिलकर व्रत खोलेंगे,

तुमसे मेरा मन उपवन है,
मुझसे है संसार तुम्हारा,
मैंने जीवन में कुछ पाया,
पुण्य सरीखा प्यार तुम्हारा,
दोनों हैं इस पुण्य के भागी,
दोनों अपना स्वर्ग गहेंगे,

तुम भी छत पर आ जाओ अब,
दोनों मिलकर व्रत खोलेंगे,

रात पहर भर बीत चली है,
चन्दा भी छत पर आया है,
तुम भी छत पर आ जाओ अब,
दोनों मिलकर व्रत खोलेंगे,

~SaurabhTiwari 🙏❤️


#सृजन_फिर_से

जहां तुम चले गये : जगजीत सिंह===============================10 अक्टूबर 2011 की शाम थी मैं अपने “ हिन्दुस्तान ‘ के ऑफिस प...
10/10/2025

जहां तुम चले गये : जगजीत सिंह
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10 अक्टूबर 2011 की शाम थी मैं अपने “ हिन्दुस्तान ‘ के ऑफिस पहुंचा ही था की पता चला जगजीत सिंह चले गये . मैं अवाक सा रह गया .जगजीत सिंह जी मेरी याद में दो बार कानपुर आयें , खुशनसीब था की मै उन से दोनों बार मिल सका . पहली बार उनका मूड किसी पत्रकार के सवाल की वजह से उखडा हुआ था , पर चंद पलों बाद वो सहज हो हमारी तरफ मुखातिफ हो गये . दूसरी बार की मुलाक़ात बहुत अच्छी रही. उन्होंने मुझे अपना व्यक्तिगत मोबाईल नंबर भी दिया . और हम तीसरी बार उनको बुलाने की तैयारी में ही थे की गजल मुकम्मल हो गयी .

जगजीत सिंह जी के बारे में बहुत कुछ लिखा पढ़ा गया हैं . आइये हम कोशिश करते है जगजीत सिंह को थोडा सा और करीब से जानने का :

जालंधर का डीएवी कॉलेज. कस्बे के बाहर बना और कॉलेज बिल्डिंग के सामने सड़क. सड़क के उस तरफ नया बना हॉस्टल. दो मंजिल का. ढेर सारे कमरे. कौन सा किसको मिले ? इसके लिए नियम बना दिया गया. जो टॉपर, उसको अच्छा कमरा. और टिड्डी-फिसड्डी, उनको बुरे कमरे. बुरे कमरों की तीन कैटिगरी. पहली, सीढ़ी के किनारे वाले, दिन भर शोर. दूसरी, बाथरूम और टॉयलेट के किनारे वाले. सुबह शोर, दिन भर गंध. और तीसरा जगजीत सिंह कॉरिडोर. ये तीसरा वाला इसलिए, क्योंकि एक कमरे में एक लड़का रहता था. जगजीत सिंह.

प्रिंसिपल सूरजभान का प्यारा. यूथ फेस्टिवल में म्यूजिक के सब अवॉर्ड समेट कर कॉलेज लाने वाला. लेकिन हॉस्टल वाले तो कोई तानसेन न ठहरे. जगजीत सुबह 5 बजे रियाज शुरू कर देता. 2 घंटे चलता. भरी पूरी आवाज का आलाप. इस चक्कर में अड़ोस पड़ोस वाले कपास का खेत खोजते. कभी शाम रात को भी लय खिंच जाती. तो कभी कोई खीझकर चीखने लगता, यार तुम्हें तो पास होना नहीं. हमें तो पढ़ने दे.
यही जगजीत कॉलेज में सबके मजे लगाता. दोपहर में सूरजभान लंच ब्रेक में कॉलेज से जाते. 2 घंटे बाद लौटते. तब तक कॉलेज के पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम की कुंजी जगजीत के पास रहती. कभी टप्पे सुनाता, को कभी गजल. मगर एग्जाम में तो ये सब नहीं चलता. तो सरदार जी हुसड़कर नकल करते. धर लिए गए एक बार. गुस्से में एग्जामिनर ने बाहर खींच निकाला. फिर दूसरे कमरे में ले गए. सन्नाटा. और तब गुरुजी की आवाज सुनाई दी; “ यहां बैठकर तसल्ली से लिख” .

साउथ बॉम्बे के बहारिस्तान इलाके में देबू प्रसाद दत्ता रहते थे. ब्रिटानिया बिस्किट में बड़े अधिकारी. कंपनी का फ्लैट. फ्लैट में बीवी चित्रा और बिटिया मोना. देबू को साउंड रेकॉर्डिंग में बहुत दिलचस्पी थी. नई से नई टेक्नॉलजी की जानकारी. आगे चलकर उन्होंने घर में ही एक रेकॉर्डिंग स्टूडियो बना लिया. खैर, एक रोज की बात है. चित्रा बालकनी में खड़ी थी. पड़ोस वाले फ्लैट में एक गुजराती परिवार रहता था. बच्चा नहीं हुआ तो गोद ले लिया. दाई उसको झुलाती दूध पिलाती बालकनी में आ जाती. चित्रा भी बच्चे के साथ खेल लेतीं. एक रोज बच्चा चुपाए न चुपे. मेड उसे लेकर चित्रा के दरवाजे पर खड़ीं. बच्चा चुप गया. और चित्रा की पड़ोसियों से दोस्ती हो गई. फिर एक रोज की बात है. चित्रा इस बार भी बालकनी में खड़ी थीं. सामने सड़क पर उन्हें एक नौजवान दिखा. भयानक टाइट सफेद पैंट पहने. किसी तरह हंसी रुकी. कुछ देर बाद गुजराती पड़ोसी के घर से साज सुर सुनाई देने लगे. ये अकसर होता था. महफिल कोई नई तो नहीं थी. कुछ और देर बाद बालकनी में वही सफेद पैंटधारी आया. सिगरेट फूंकी और चला गया. शाम को चित्रा उनके घर गईं. पड़ोसन लगीं तारीफ के ढेर बनाने में. क्या गाता है ये लड़का. पंजाब की मिठास लिए. ये कहकर उन्होंने एक रेकॉर्डिंग प्ले की. चित्रा बोलीं: सरदार है क्या ? जवाब आया” हां,!! मगर दाढ़ी कटवा दी है” कुछ देर बाद चित्रा बोलीं: “ छी. ये भी कोई सिंगर है. गजल तो तलत महमूद गाते हैं”.

नापसंदगी का अभी एक दौर और चलना था. देबू की तरक्की हो गई थी. अब वह गुलिस्तान में रहते थे. और उनके यहां रेकॉर्डिंग के चलते कंपोजर्स का मजमा लगा रहता. ऐसे ही एक सज्जन थे. वैद्यनाथन. एक दिन उनकी तय की सिंगर नहीं आई. तो वह चित्रा से इसरार करने लगे. चित्रा झिझकीं. बोलीं, मैं तो बरसों पहले दुर्गा पूजा में गाती थी. कभी कभार रेडियो में गा दिया. कैसे करूंगा. पर किया. और कुछ ही बरसों में मुंबई सर्किट की जिंगल क्वीन कहलाने लगीं.

एक रोज चित्रा के घर शोकेस रेकॉर्डिंग थी. महिंदरजीत सिंह ने स्टूडियो बुक किया था. नए सिंगर्स का एलबम निकालना था. चित्रा सिंगर भी थीं और होस्ट भी. एक बार घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा. एक आदमी किनारे सिर टिकाए ऊंघ रहा था. चित्रा कुछ पूछतीं, तब तक पीछे से सिंह साहब की आवाज आई. अरे लल्लू तुम. आ जाओ आ जाओ.

लल्लू आया और जमात में किनारा पकड़कर फिर नींद में. कुछ घंटे बाद उसकी रेकॉर्डिंग का नंबर आया. उठा. ऊंघते हुए हारमोनियम बजाने लगा और लेओ.. जैसे रियाज रुका ही न हो.
सिंह साहब बोले ” पहले ये सिंगल गाएगा और फिर चित्रा के साथ डुएट “ . चित्रा अब तक आवाज पहचान गई थीं. वही सफेद पैंट वाला. वो बोलीं “ मैं नहीं गाऊंगी. मेरी पतली और हाई पिच वाली आवाज है. जबकि इसकी भारी बास साउंड “
लल्लू ने नजर उठाई. घर को उचटती नजरों से निहार फिर चित्रा पर टिका. और बोला: “ आपको गाने की जरूरत भी कहाँ हैं .. ? “ शाम को देबू घर आया. उसने रेकॉर्डिंग सुनी. और जगजीत की आवाज पर फिदा हो गया. अगले दो रोज तक उसी की रेकॉर्डिंग होती रही. लकीरें अब भी धारदार थीं. मगर बीच में दस्ता था. समानांतर सड़क सा बिछा.
क्रॉसिंग आई 1967 में. जगजीत और चित्रा एक ही स्टूडियो में रेकॉर्ड कर रहे थे. बाहर मिले तो बात हुई. चित्रा बोलीं, आपको मेरा ड्राइवर छोड़ देगा घर तक. रास्ते में चित्रा का घर आया. उन्होंने जगजीत को चाय पर बुलाया.

अब घुमाओ दिमाग का कैमरा. ड्राइंग रूम में जगजीत सिंह बैठे हैं. गुनगुनाते हुये . किचेन में चित्रा हैं. चाय का पानी खौलातीं. और तभी आवाज का चरखा चल पड़ता है. सुर के सूत कातता. ये एक गजल है. जो कि जगजीत गा रहे हैं: “ धुंआ उट्ठा था “. चित्रा किचेन से सुनती रहती हैं. उन्हें पसंद आती है. पूछती हैं किसकी है. जगजीत कहते हैं मेरी. मैंने कंपोज की है और तब पहली मर्तबा जगजीत सिंह की गायकी से चित्रा इंप्रैस हुईं.

ये सब एक ऐसे घर में हो रहा था. जहां जब गूंजते थे तो रेकॉर्डिंग के कहकहे. साजिंदों की लय. या जो होती थी बचे वक्त में. वो चुप्पी. चित्रा और देबू के बीच सब ठीक नहीं चल रहा था.

देबू बंगाली भद्रलोक वाला आदमी. कलकत्ता का. एक रोज उसने टैगोर डांस ड्रामा देखा. लड़की से नजर नहीं हटी. घरवालों को बताया. बच्चा काबिल था. मोटी सैलरी पर था. सलीकेदार था. शादी हो गई. चित्रा 16 बरस की थीं. फिर अगला एक दशक उन्होंने अच्छी बीवी और मां बनने में गुजारे. मोनिका के होने के बाद चीजें रंग बदलने लगीं. और एक दिन देबू ने कह दिया. चित्रा, तुम अच्छा गा रही हो. उसी में आगे बढ़ो. मैं भी किसी और तरफ निकलना चाहता हूं.

इशारा साफ था. शादी मिसमैच थी. ओवर होने को थी. जल्द ही चित्रा को देबू के अफेयर के बारे में पता चल गया. और 1968 में तलाक का प्रोसेस शुरू हो गया. चित्रा मोनिका को लेकर एक वनरूम फ्लैट में आ गईं. संगीत बिरादरी के तमाम लोगों ने भी धीरे-धीरे नाता तोड़ लिया. मगर जगजीत जो फकत एक बरस पहले दोस्त बना था. साथ खड़ा रहा मजबूती से. और एक रोज लाल सूजी जुकाम वाली आंखों से जगजीत ने कह दिया” मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं चित्रा!! चित्रा बोलीं” मगर मैं शादीशुदा हूं और तलाक अभी मुकम्मल नहीं हुआ” .
जगजीत बोले” मैं इंतजार करूंगा”

इंतजार हुआ खतम 1970 में. चित्रा के पति देबू ने भी दूसरी शादी कर ली थी और उन्हें एक बेटी भी हो गई थी. जगजीत देबू के पास गए. और कहा “ मैं चित्रा से शादी करना चाहता हूं “ कमाल आदमी था यार. निरा बच्चा. चित्रा के पूर्व पति से इजाजत लेने गया था कि आशीर्वाद ?
शादी हुई. 30 रुपये के खर्च में. एक मंदिर में. तबला प्लेयर हरीश ने पुजारी का इंतजाम किया. गजल सिंगर भूपिंदर सिंह दो माला और मिठाई का डब्बा लेकर आए. और मिठास भर गई.

विवेक सिंह. जगजीत-चित्रा का बेटा. मोनिका का भाई. टॉल, फेयर एंड हैंडसम. उम्र 18 साल और 11 महीने. अपने दो दोस्तों के साथ मरीन ड्राइव पर घूम रहा था. एक दोस्त, साईराज बहुतुले. जो आगे चलकर मशहूर क्रिकेटर बने. दूसरे, राहुल मजूमदार. रात के 2 बजे थे. कार तेज स्पीड में जा रही थी. ड्राइविंग सीट पर विवेक था. तभी उसे नजर आई सड़क पर पड़ी सीढ़ी. जिसका इस्तेमाल म्यूनिसिपैलिटी वाले स्ट्रीट लाइट ठीक करने में करते हैं. स्टेयरिंग घूमी. मगर बैलेंस बिगड़ गया. भयानक एक्सिडेंट. विवेक की मौके पर ही मौत हो गई. बाकी दोनों घायल हुए और बाद में दुरुस्त हो गए.

अगले दिन हर अखबार की यही सुर्खी. और उसकी टोन यही” रईसजादे शराब की नशे में धुत्त “वगैरह वगैरह. विवेक की बहन भाई बब्बू के बारे में इस तरह लिखी चीजों को नजरअंदाज नहीं कर पाई. उसने लंबी लीगल लड़ाई लड़ी. म्यूनिसिपैलिटी की जिम्मेदारी समझ आई, जिसने सड़क पर सीढ़ी छोड़ दी थी. बाद में उस सड़क का नाम विवेक सिंह के नाम पर रख दिया गया.

मगर जगजीत और चित्रा के बीच एक बोर्ड टंग गया था. हवा में फड़फड़ाता. आगे रास्ता बंद है, ऐसा लिखा झिलमिलाता. जगजीत तो खैर कुछ हफ्तों बाद तानपुरे पर लौटे. और 6 महीने की चुप्पी के बाद उन्होंने संगीत में ही मुक्ति खोजी.

श्रद्धांजलि 🙏

मृदुल कपिल

#सृजन_फिर_से

10/10/2025

तलवारों ने इतिहास रचा.....🙏

#सृजन_फिर_से

10/10/2025

गीत भी उदास थे, छन्द बदहवास थे
रागिनी अधीर थी, राग बने दास थे
और हम ठगे- ठगे
रात दिन जगे-जगे
चाँद के लिए सदा, चकोर माँगते रहे
रात के चरन पकड़ के भोर माँगते रहे

चाह थी कि हर कली को, तितलियों का प्यार दें
आँसुओं की पालकी को, आँख के कहार दें
हर झुकी - झुकी नज़र की, आरती उतार दें
पतझड़ों से हार चुके , बाग़ को बहार दें
किन्तु भाग्य में लिखा
है कौन जो मिटा सका
सिन्धु की लहर में स्वयं बूँद सा समा सका
किन्तु हम बुझे - बुझे
अश्रुबाण से बिंधे
सूख चुके नयन हेतु, लोर माँगते रहे
रात के चरन पकड़ के, भोर माँगते रहे

इस धरा पे कौन है जो दर्द में पला नहीं
या किसी सुबह को साँझ -साँझ में ढ़ला नही
कौन सूर्य है जो स्वयं अग्नि में जला नहीं
कौन है पथिक जो राह - राह में चला नहीं
देह , प्राण , चेतना
है विशुद्ध कल्पना
शूल के नगर - नगर में फूल की विवेचना
सत्य की तलाश में
सृजन में, विनाश में
शान्त प्राण - सिन्धु में हिलोर माँगते रहे
रात के चरन पकड़ के , भोर माँगते रहे

- मुक्तेश्वर पराशर ❤️💐

#सृजन_फिर_से

10/10/2025
10/10/2025

एक प्यारा सा गीत सुनियेगा अवश्य ❤️
#सृजन_फिर_से

10/10/2025

फट गयी ढोलक मंजीरा बज रहा है....♥️🙏

#सृजन_फिर_से

10/10/2025

आग पानी बुलाने लगे......
#सृजन_फिर_से

मैंने आज बस ये चांद निहारा है और कभी इक चांद मुझे भी निहारेगा,एक वक्त आएगा जब इक चांद मुझ चांद को भी बड़े जतन से संवारेगा...
10/10/2025

मैंने आज बस ये चांद निहारा है और कभी इक चांद मुझे भी निहारेगा,
एक वक्त आएगा जब इक चांद मुझ चांद को भी बड़े जतन से संवारेगा !

-प्रशांत कुमार मिश्रा
🙏😍💐😊

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