30/11/2025
नायिका देवी
अब घोड़े पर शत्रु चढ़ आया
रण होगा अब संग्रामों का
रानी को मिल हैं समझाना
अब डर ग़ौरी के नामों का
दरबारी आकर तब बोला
ओ रानी वाहक आया हैं
परिचय जाना मैंने उससे
गौरी प्रधान बताया है ।।
अब बात युद्ध की है शायद,
जो तुमसे कहना चाहता है+1
लगता है वो घाती मुझको,
छाती पर दहना चाहता है +1।।
गर आज्ञा रानी देती हो ,
दरबार तभी उसको लाऊं
अथवा इतना भुज बल मेरे ,
उसको उलटे पैर भगाऊं ।।
आया गर दरबार हमारे,
उसको मान अतिथि लाओ तुम
पहले जानो मर्म उसका फिर
चाहे जितना दौड़ाओ तुम।।
सेनापति आकर तब बोला
रानी दिश पश्चिम से आया हूं
सेनापति हूं मैं गौरी का ,
कहना भी उनका लाया हूं।।
चाहते हैं वो राज आपका,
पाना तुमको चाहते हैं -1
करके भोग तुम्हीं से वो ,
खाना तुमको चाहते हैं ।।-1
बन जाओ रानी गौरी की,
पटरानी तुम कहलाओगी
संग गौरी के मौज तुम्हारी,
देवी सी पूजी जाओगी।।
भेजा है तुमको भेंट स्वरूप
चूडी कंगन महावर धर लो
गर सबकी खैर चहाती हो
तो गौरी को तुम वर चुन लो ।।
अब आया निमंत्रण ग़ौरी का
गर रानी तुम ठुकराओगी
करता हूं मैं सूचित तुमको,
तुम बैठी फिर पछताओगी ।।
इतना सुनते सेनापति ने
वाहक तलवारें तानी हैं
रूको बिम्समबर मारो मत
आज्ञा रानी की मानी हैं।।
नियम सदा जो होते वाहक
ना उनको मारा जाता हैं
जो करता हैं अपराधों को
रणभूमि सघारा जाता है ।।
जा कहना तू गौरी से ,
भारत ना वीरो से खाली है
निधन हुआ मेरे पति का
पर बैठी रानी मतवाली है
छोटा हैं बेटा गर मेरा
तो आकर उसको मारेगा
पहले फाड़ेगा सीना उसका
फिर धरती में वो गाड़ेगा
नाकाम करूंगी मैं उसकी
क़सम जो उसने खायी हैं
मालूम नहीं क्या गोरी को
की जीवित उसकी मायी हैं
मैं रूप धरूंगी जब काली का
वो जीत न मुझसे पाएगा
आएगा अपने पैरो पर ,
पर बनकर हिजड़ा जाएगा ।।
अपने घर में बैठा गौरी
जो हड् डी रोज़ चबाता है
मदिरा पीना, क्या बात बड़ी
मानव को जो खा जाता है
भागा पहुचा तब सेनापति
गौरी को बात सुनाई हैं
उसने माना हिजड़ा तुमको
अब होगी जग हंसाई हैं
पीकर शोणित बोला गौरी,
सेना को उसकी कूटूगा
पहले जीतूं दौलत सारी
फिर आबरू उसकी लूटूंगा
पशु कांटे तब आका पूजें
थे उसने ऐसे काम किये
अब घर से ग़ौरी निकल पड़ा
सेना को अपनी साथ लिए
बोली रानी सेनापति से
अब जल्द सभा तुम बुलवाओ
जांच करो सब हथियारो की
,जो हों कम तो अब मगबाओ
बोली रानी वीर सुनो सब
अपने मन की बात सुनाओ
या रोको तुम डोला मेरा
या अपनी तुम जान बचाओ
डोला पहुंचा यदि रानी का
तो मान बचा ना पाओगे
सब वंशज तुम पर थूकेंगे,
तुम बैठ बाद पश्चताओगे
तब बोले वीर सुनो बिस्मबर,
मान नहीं सिर्फ तुम्हारा है
जीते जी गर रानी पहुंची ,
अपमान कुल वंश हमारा है
गर कायरपन से जीत मिले,
तो जीत नहीं स्वीकार हमें
अब अपनी मातृ रक्षा हेतू,
है मरने का अधिकार हमें।।
कट जाएं भले ही इंचों में,
पर शीश नहीं झुकने देंगे
रानी की तो अब बात अलग,
टुकड़ा भू भाग न हम देंगे
आखिर बार मिलों अपनों से
तब सपनों में मत खो जाना
आंसू देखो जब तिरिया के,
तो भावो में मत रूक जाना
विपत्ति पड़ी है अब हमपर
तब तुम ही साथ लगाओगे
खाओ क़सम कुल देवी की
रण शत्रु के शीश गिराओगे
आज्ञा लेकर वीर चलें तब
स्त्रियां चलने को है आतुर
बांध कफ़न वो तो सर अपने,
अब रण करने को है आतुर
बोली सेना धीरज तो धर
मान न तेरा जाने देंगे
उस ग़ौरी की तो बात अलग
हवा पश्चिम की न आने देंगे।
जिस दिन के लिए हैं जन्म लिया
जिस दिवस की लेते शिक्षा हम
जिस दिन के लिए सीखी तलवारें
जिस दिन की करते प्रतिक्षा हम ।।
आज दिवस जब आया हैं तो
रानी हमको लड जाने दें
ख़ून सनी तलवारों से ही
अब सर शत्रु के कट जाने दें।
क्षत्रिय कुल के हम हैं प्राणी
जाति के है हम वो राजपूत ।
अब यम को हम आज पछाड़ें,
मार न सकते यमराज दूत ।।
बांध कफन अब सर पर अपने,
रानी हमको सज जाने दें ।
अब तू कर शीघ्र शंखनाद ,
आज़ नगाड़े बज जानें दें ।।
मत रोके तू अब तोपों को,
हमको आगे बढ़ जाने दें ।
आज पताका को ग़ौरी की
छाती में तू गढ़ जाने दें ।।
रण ठना आज संग्रामों का
रानी तू अब ठन जानें दें।
अब शत्रु के शोणित से रानी
तलवारो को सन जाने दें।
निर्णय लिया है तब रानी ने
कायिन्दा में घेरो सब चलकर
जो पग मायी पर गर डालें,
उसको मारों तुम बढ़कर
अब ध्यान रखो तुम बस इतना ,
की पग शत्रु का ना पड़ जाएं
बिन मुण्डो के चाहें युद्ध लड़ो
चाहें शीश पड़ा सड़ जाएं ।।
पावन धरती ना क़दम पड़े ,
कायिन्द्रा में जा रस्ता रोका
बेख़ौफ़ बेहोशी से आतें,
रानी ने गौरी को टोका।
इधर किधर तू जाता ग़ौरी
रस्ता तेरा निहार रही हूं।
तुझको ही मारने हेतू ,
मैं धरती अवतार रहीं हूं
तब हंसकर वो ग़ौरी बोला
रण मुझसे करने आयी है
रण का तो केवल नाम पड़ा
मौत तुझे तेरी लायी है
मैं तो वो नीच पिशाचर हूं,
जो करुणा भाव नहीं धरूंगा
बरसाऊगा तलवारों को
तों सबको मार नही मरूंगा
दानव हूं मैं रावण सा जो
पत्थर से पूजा लेता हूं
ठुकराया गर प्रस्ताव मेरा
चल मौका दूजा देता हूं
दे दें मुझको अपने घर को
फिर रानी मेरी तू बन जा
जान बचानी गर सबकी तों
सबकुछ रानी मुझको दे जा
कहना मेरा ना मानेंगी
तो मैं रूप यम का धारूगा
ना जगह मिलेगी छिपने की,
चुन चुनकर सबको मारूंगा
होली रण की जब मैं खेलूं,
तब शंकर की मैं धुन लूंगी
तू जीतें गौरव गर मेरा
तो फिर वर तुझको चुन लूंगी
साफ़ निशानी है कायर की
वो बातें खूब बनाता हैं
हाथों में जिसके बल होता
वो रण में आ अजमाता हैं ।।
कहकर इतना बोली रानी
वीरों आगे को बढ़ जाओ
नारा दे दो शिव शंकर का
शत्रु से जाकर तुम भिड़ जाओ
आज्ञा जैसे पा रानी की ,
वीरों ने तब जयकार करी
लाशें गिरती लाशें गिरती
लाशों से ही तब लाश डरी
सहम उठी गौरी की सेना,
तलवारें म्यानों से काढ़ी
फड़की हैं तब वीरों बाहें,
शत्रु खीची रानी की साड़ी
तलवारों की झंकारों से,
आकाशो में बिजली चमकी
रानी ने तलवार निकाली,
देवी सी तब रानी दमकी
बरस रहा पानी तूफानी
काल घटा भी काली छायी
छपट पड़ी वो अब शत्रु पर ,
बनकर के काली मायी है
बलगाहे दाबी दांतों में
हाथों में तब तलवार उठीं
चण्डी बनकर समरागण में
जब रानी आज चिंघार उठी
भालो पे तलवारे नाचीं,
रिपु सेना रोष समेत उठी
शक्ति चौगुनी से रणचण्डी,
अब समरागण में चेत उठीं
टन टन करती तलवारों की
आवाज सुनाई देती हैं
रानी साधे जब बाणों को
तब मौत दिखाई देती है
लाशों पे लाशें गिरतीं है,
सर पे सर काटे जाते हैं
जो करते हैं वतन गद्दारी
वो रण में मारें जातें हैं
मान नहीं उस नारी का जो
बिक जाती नारी ताजों से
पति के प्राणों के खातिर लड़
जाती नारी यमराजों से
चूड़ी कंगन महावर नारी
तलवारों का श्रंगार करें
किसको मारू किसको छोड़ूं
तब रण में काल विचार करें।
तलवारों के समरागण में
नारी गाली बन जाती हैं
तब लेके खप्पर हाथों में ,
नारी काली बन जाती हैं ।
सैनिक से सैनिक लड़ते हैं
सरदार लडे सरदारों से।
भालो से भाला लड़ते हैं,
तलवार लडी तलवारों से ।
टन टन करती तलवारों से ,
रण में कट कट तब मुण्ड गिरें,
इधर गिरे या की उधर गिरें,
भूतल पर विकट वितुण्ड गिरें ।।
घोड़ों से घोडा लड़ते हैं
हाथी लड जातें हाथी से
हैं अपनों का कुछ पता नहीं
साथी लड़ जाते साथी से ।।
दब जातें हैं लाखों सैनिक
करवट से गज भगवान गिरा
गिर जाते घोड़ों से सैनिक,
हाथी से जब बलवान गिरा
रण में हैं भीषड़ कोलाहल
एक दूजे को सब मार रहें
कुछ को निकला काम राम से
कुछ तो अल्लाह पुकार रहें ।।
काट दिये तब सर शत्रु के
रानी की जब तलवार बढ़ी
रण में हैं भीषड़ कोलाहल
अब काली जीभ निकाल बढ़ी ।।
अब काटे सर तलवारों से
रानी तो रण में विचल गयी
तलवार अभी थामी उसने
मार अभी वो निकल गयी ।
छड़ इधर गयी छड़ उधर गयी
रानी पता नहीं किधर गयी
वो इधर गयी वो उधर गयी,
उस ओर चलो वो जिधर गयी ।।
अवतारी हैं वो नागिन की ,
डसने में लेती कहर नहीं
छड़ में मर जाते हैं सैनिक,
तन मे फैला भी जहर नहीं ।।
कट कट कर धड़ अलग गिरे
सैनिक की होती पहचान नहीं
गर्दनें कटती तलवारों से,
भाला भी खोता शान नहीं।।
शत्रु मारें दांतों से घोडा,
कुछ को टापों से ठोक दिया
तलवार उछाली नभ रानी
भाले पर उसको रोक दिया
खप्पर खाली हैं काली का
पर हृदय आया संतोष नहीं
पग पग आगे बढती काली,
कम होता पर अब रोष नही ।
तब तक देख लिया रानी ने
गौरी लड़ता हैं हाथी पर
लड़ जीते जिससे युद्ध बहुत,
ऐसे अपने उस साथी पर ।
शोणित का देह उबाल उठा,
रानी जल बैठी ज्वाला से
घोड़े से बोली तू बढ़ आगे,
और कहा निज भाला से
रख दी टापें गज मस्तक पर,
रानी का घोड़ा लहर उठा
ठहर गया ग़ौरी का हाथी
शत्रुऔ पर घोड़ा कहर उठा
बैठ गया गौरी का हाथी,
अब काली लड़ती साथी पर।
पहले तोडी गौरी की कुर्सी
चढ़ बोली रानी हाथी पर।।
बोल उठी तलवार अचानक
अब घाव समय के सीने दें
मुझको शोणित की प्यास लगी,
गौरी का शोणित पीने दें
ना रोको करछी तलवारें ,
सेना को भी ना रोको तुम
बढ़ने दो बैरी गर्दन तक,
रानी ना हमको टोको तुम
काट गर्दन धरती पर तुझको,
धड़ अलग गगन से कर दूंगी
पीछे हट जा अब तू जल्दी
सर अलग बदन से कर दूंगी
माफ़ी बोल उठा तब ग़ौरी
अब सबके प्राण बचाने को
अब रख दीं तलवारें सबने
वापस अपने घर जाने को
जारी हो इक फ़रमान गया
झुक गजनी का सुल्तान गया
झुक गजनी का सुल्तान गया
झुक गजनी का सुल्तान गया
जा तुझको जीवन दान दिया
अब वापस तुझको मान दिया
लड़ने से पहले ध्यान रहे
भारत ने तुझको प्राण दिया
सतीश कुमार यादव
#सृजन_फिर_से