Neelam Jasoos Karyalaya

Neelam Jasoos Karyalaya Publishers of Hindi Pulp Fiction's greatest writers Om Prakash Sharma, Ved Prakash Kamboj, Gurudutt & Parshuram Sharma etc. We also welcome new authors.

"किले की रानी" से एक अंश.... कमरे में केवल गोपाली और लाजो थे।  सुंघनी! जुकाम की सुंघनी सचमुच गोपाली की रक्षा कर रही थी। ...
02/07/2025

"किले की रानी" से एक अंश....

कमरे में केवल गोपाली और लाजो थे।
सुंघनी! जुकाम की सुंघनी सचमुच गोपाली की रक्षा कर रही थी।
गोपाली ने वहीं से बात आरम्भ की जहां से टूटी थी।
-'आप सोच लें लाजो जी। सिर्फ सोचें ही नहीं... मेरे बारे में आप अन्य लोगों से बात भी कर लें। यूं रियासती जमाने में मुझे बहुत सी रियासतों से उपाधि भी मिलीं। चमनगढ़ रियासत से तो इतनी उपाधि और इतने सम्मान मिले कि गिनती नहीं है। परन्तु चमनगढ़ के महाराज मेरे मालिक कम थे और मित्र अधिक थे। एक मौखिक उपाधि उन्होंने मुझे दी थी... राजपूताने का भूत!'
सुन कर हंसी लाजो।
-'इस समय शायद आप सोच रही हैं कि मैं अपनी तारीफ खुद कर रहा हूं... अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाली बात। परन्तु मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा हूं, आप विश्वास करें। सम्मान, उपाधि और ख्याति... इन सबके पीछे सिर्फ एक बात रही है, और वह यह कि जिस दिन मुझे प्रशिक्षित जासूस की डिग्री मिली थी उसी दिन मैंने सोच लिया था कि मुझे... आज या कल या कभी भी... स्वाभाविक मौत नहीं मरना है। आज भी मैं यही बात मानता हूं। आम लोगों की तरह बिस्तरे पर बीमार होकर नहीं मरूंगा। भाग दौड़, कूद फांद मेरा स्वभाव बन गया है, इसलिए मुझे हार्ट अटैक नहीं होगा। या तो मुझे कोई अपराधी गोली मार देगा या कोई ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी पत्नी या प्रियसी को मेरी बांहों में देख कर मेरी हत्या कर देगा। यह है मेरी नियति।
(अंश के लिए, साभार Om Prakash Sharma).................................................................................................................................
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जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा एक अद्भुत प्रतिभा का नाम है। हिन्दी लोकप्रिय साहित्य में श्री ओम प्रकाश शर्मा अपने उ.....

"सेवेन पॉइंट सिक्स" एक ऐसा हिंदी उपन्यास है, जो पाठक को पहले ही पन्ने से अपनी गिरफ्त में ले लेता है। यह सिर्फ एक कहानी न...
23/06/2025

"सेवेन पॉइंट सिक्स" एक ऐसा हिंदी उपन्यास है, जो पाठक को पहले ही पन्ने से अपनी गिरफ्त में ले लेता है। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हमारे समय की सबसे खतरनाक और अनदेखी की जा रही सच्चाई है जिसे जानकर हर कोई चौंक जाता है।

कहानी की पृष्ठभूमि है दिल्ली और अरावली की पहाड़ियाँ, जहाँ विज्ञान चेतावनी देता है कि ज़मीन के नीचे कुछ बहुत गंभीर हलचलें हो रही हैं। लेकिन इस चेतावनी को सुनने वाला कोई नहीं। वैज्ञानिक नील शर्मा, जापानी वैज्ञानिक मेगुमी ओकादा, और उनकी टीम जब यह खोज करते हैं कि एक भीषण भूकंप कभी भी दिल्ली को तबाह कर सकता है, तब भी राजनीतिक नेता, बिल्डर माफिया और आम जनता सब अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हैं।

इसी बीच कहानी में आते हैं कुछ रंगीन और उलझे हुए पात्र— जैसे जैक और मोन्टी, दो अमीर लेकिन गुमराह युवक, जो ड्रग्स, सत्ता और बेफिक्री की जिंदगी जी रहे हैं। वहीं दूसरी ओर है रघु प्रसाद, जो एक साधारण सा गाँव का लड़का है लेकिन दिल्ली आकर UPSC जैसी परीक्षा में अपने आपको झोंक चुका है।
इन सबकी कहानियाँ आपस में टकराती हैं और एक ऐसे बिंदु पर पहुँचती हैं जहाँ से पीछे लौटना नामुमकिन होता है।

कथा तेजी से आगे बढ़ती है—कभी मीटिंग रूम की बहसों में, कभी हिमालय में तो कभी होटल के शूटआउट में; कभी हँसी-मज़ाक में, तो कभी विज्ञान की गंभीर भाषा में। लेकिन हर मोड़ पर पाठक को एक बात का अहसास होता है—कुछ बहुत बड़ा और बहुत भयावह आने वाला है।

उपन्यास का क्लाइमैक्स झकझोर देने वाला है—एक ऐसा मोड़ जहाँ से न कोई सरकार बच सकती है, न कोई वैज्ञानिक।

अंत में पाठक के मन में कई सवाल एक साथ गूंजते है:
"क्या हम इस संसार में वाकई अकेले हैं? क्या हम ऐसी आपदा के लिए तैयार हैं? क्या इससे भी बड़ी कोई चीज़ है जिसे हम अनदेखा कर रहे हैं? क्या हमारे धार्मिक विश्वास हमारा सच्चा इतिहास है? हम असल में कौन हैं?"

यही विशेषता इस उपन्यास को हिंदी थ्रिलर उपन्यासों में एक मील का पत्थर बना देती है।...............................................................................................................................

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'कायदा है कि मरने से पहले आदमी की सारी जिज्ञासाएँ शांत कर देनी चाहिएं।" पंकज ने थोड़ी देर बाद अपनी हँसी को रोकते हुए कहा...
17/06/2025

'कायदा है कि मरने से पहले आदमी की सारी जिज्ञासाएँ शांत कर देनी चाहिएं।" पंकज ने थोड़ी देर बाद अपनी हँसी को रोकते हुए कहा-"इसीलिए मैं तुम्हारे सवालों के सारे जवाब तुम्हें दिए जा रहा हूं... कोई और सवाल करना चाहते हो तो वो भी कर लो।"

"लेकिन तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो?"

"क्योंकि जो काम मैं करना चाहता हूं... राजीव उस काम को तुमसे करवाना चाहता है।"

"यानी?"

"यानी का मतलब तुम खुद सोचो... तुम तो काफी अक्लमंद आदमी हो... मजूमदार की कार के नम्बर से तुम हमारी रैंटल कम्पनी तक पहुँच गए।"

"ओह... तो वह रैंटल कम्पनी तुम्हारी ही है।"

"हां... राजीव ने जब मजूमदार को अपनी नई गाड़ी तुम्हारे नाम करने के लिए कहा तो बदले में उसे काम चलाने के लिए अपनी कम्पनी से एक कार दे दी... लेकिन तब यह नहीं सोचा था कि तुम उसकी सहायता से बिंदु तक पहुँच जाओगे।"

"तो बिंदु की हत्या भी तुमने ही की है।"

"यह बात तो तुम्हें उसका कटा हुआ सिर देखकर ही समझ जानी चाहिए थी।"

"लेकिन उसकी हत्या तुमने क्यों की ?"
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आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़िए लेखक वेद प्रकाश कांबोज
की लेखनी से सजी थ्रिलर बुक "एक तांत्रिक की मौत" ।

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लोकप्रिय साहित्य के सदाबहार उपन्यासकार वेद प्रकाश काम्बोज 18 वर्ष की अल्पायु में जासूसी लेखन क्षेत्र में कदम रखने ...

-'ही हो हो हो...हा हा हा हा! मानस... मानस ताजा भोजन हाहाहा हा... भड्रिया प्रेत के इलाके में विश्राम करने आया है? ही ही ह...
14/06/2025

-'ही हो हो हो...हा हा हा हा! मानस... मानस ताजा भोजन हाहाहा हा... भड्रिया प्रेत के इलाके में विश्राम करने आया है? ही ही ही ही ही ताजा खून हा हा हा...।'

भूत-प्रेत एक ऐसी विचित्र मानव कल्पना है कि तलवार के एक वार मे एक साथ दस योद्धाओं के शीश उतार देने वाला वीरसेन भय से थर-थर काँप रहा था। उसने शतरमर्ग की भाँति अपना मुख भूमि में गढ़ा लिया था। कमर से तलवार बंधी थी परन्तु हाथ वन्दना की मुद्रा में जुड़े हुए थे।

चीत्कार करते हुए मिश्र जी फिर उछले और भय से गठरी बने हुये वीरसेन को पूरी शक्ति से उठा कर भूमि पर पटक दिया।

-'हाय!' वीरसेन चीख उठा।

अंधेरे में मिश्र जी ने इधर-उधर देखा। कुछ दूरी पर एक नीचा वृक्ष दिखाई दिया। किलकारी मार कर वह जोर से उछले और वृक्ष की एक पतली-सी टहनी तोड़ने में सफल हो गए।
- 'ताजा खून!' वह फिर कूद कर भयभीत औंधे पड़े वीरसेन के निकट जा पहुंचे और उस लचकदार टहनी से नाच-नाच कर वीर सामन्त की पिटाई शुरू कर दी।

वीरसेन पीड़ा से कभी-कभी कराह तो उठता था परन्तु उठ कर प्रेत से लड़े अथवा भाग खड़ा हो ऐसा साहस वह एकत्र नहीं कर पा रहा था।

मारते-मारते मिश्र जी के हाथ दुखने लगे, टहनी टूट गई... तब पैरों का सहारा लेकर जी भर कर मिश्र जी ने पिटाई की।

-'उठ खड़ा हो। कायर, उठ कर खड़ा हो।'
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आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़िए जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा की लेखनी से सजी ऐतिहासिक बुक "विषकन्या" ।

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VISHKANYA

होश में आते ही उन्होंने पूछा, "कहां है वह?""कौन? मालकिन?"हरीचंद अंदर-ही-अंदर तड़प उठे। रूपा को मालकिन का संबोधन। पर खून ...
13/06/2025

होश में आते ही उन्होंने पूछा, "कहां है वह?"

"कौन? मालकिन?"

हरीचंद अंदर-ही-अंदर तड़प उठे। रूपा को मालकिन का संबोधन। पर खून का घूंट पीकर वह बोले, "हां, वही !"

"वह तो, मालिक... वह तो !" लच्छ और रधिया दोनों में किसी से कुछ कहते नहीं बना।

"ओह! तो कहते क्यों नहीं वह भाग गई?" हरीचंद ने सिर घुमा कर तिजौरी की और देखा। उसमें सामने ही नोटों की गड्डियां लगी हुई थीं। गनीमत थी कि कुछ ज्यादा लेकर नहीं भाग सके। कुछ गड्डियों की जगह खाली थी।

लच्छू और रधिया सिर झुकाए खड़े रहे।

"कोई बात नहीं, चली गई तो अच्छा ही हुआ। अब अगर वह कभी आये तो धक्के देकर निकाल देना। और हां, अगर तुमसे कोई पूछे कि कहां है, तो कहना किसी रिश्तेदार के घर गई हुई है। याद रहेगा न?"

"क्यों नहीं, मालिक ? आपने कभी देखा है हमें हुक्म टालते?"

हरीचंद अपने बड़े भाई लालचंद के पास पहुंचे।

"विजय कहां है?"

"आओ, हरी, आओ। बड़े भाग्य जो गरीब भाई के घर आये।"

"विजय कहां है?” हरीचंद ने होंठ भींचते हुए प्रश्न दुहराया।..................................................................................................................................

आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़िए चंदर की लेखनी से सजी थ्रिलर बुक "रूपघर की रूपसी"
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कैलाश ने घर लौट कर देखा शुभा कमरे में गुमसुम बैठी। उसने इसके अंदर की ज्वाला भडकाने के लिए हँस कर कहा- "शुभाजी का गुस्सा ...
12/06/2025

कैलाश ने घर लौट कर देखा शुभा कमरे में गुमसुम बैठी। उसने इसके अंदर की ज्वाला भडकाने के लिए हँस कर कहा- "शुभाजी का गुस्सा अभी तक नहीं उतरा। अरे भई इसमें इतना गुस्सा करने की क्या बात है ? इधर-उधर तो कुछ किया नहीं। साली को ही तो चाहा था"

शुमा चीख कर बोली- "क्या?"

-"साली भी तो आधी पत्नी होती है।", कैलाश ने आग में घी डालने के लिए बेशर्मी से कहा।

शुभा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उसने अपने सामने मेज पर रखा फूलदान उठा कर कैलाश पर फेंका। कैलाश उसी ताक में था। वह उचककर बच गया।

शुभा के हाथ में जो भी फेंकने लायक चीज पड़ी, उसने वही उठाकर कैलाश पर फेंकी। कैलाश ने जोर-जोर से कहना शुरू किया- "अरे क्या पागल हो गई हो ? सुनो तो....! यह क्या हो गया है तुम्हे?"

-हाँ-हाँ, मैं पागल हूँ। मैं तुम्हारा खून कर दूंगी। तुम नीच हो, कमीने हो। धोखेबाज हो...!"

सारे घर में उन दोनों की आवाजें पहुँची। नौकर-नौकरानियां और विभा वही एकत्र हो गए। विभा और एक नौकरानी ने बड़ी मुश्किल से शुभा को रोका।

कैलाश की बन आई। उसे बड़ी आसानी से वक्त-जरूरत के लिए गवाह मिल गये थे।

धूर्त पति ने बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से शुभा को 'पागल' बनने के लिए मजबूर कर दिया था। पहले तो नशीली गोलियों का चस्का उसे लगाया, फिर नींद की गोलियों का आदी बनाया। उससे शुभा हर समय बेचैन अस्थिर रहने लगी। जब उसका मस्तिष्क संतुलन खो बैठा, तो निरंतर आघात किये।.................................................................................................................................
आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़िए चंदर की लेखनी से सजी थ्रिलर बुक "अपने अपने सपने" ।
जो रोमांच और जाल के ताने बाने में बुनी है

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सादत खां की आंखें प्रतिशोध के नशे से जैसे लाल हो उठीं- 'नूरबाई को हुक्म दो कि हम याद फरमाते हैं।'सुलग रहा था सादत खां।नू...
11/06/2025

सादत खां की आंखें प्रतिशोध के नशे से जैसे लाल हो उठीं- 'नूरबाई को हुक्म दो कि हम याद फरमाते हैं।'

सुलग रहा था सादत खां।

नूरबाई !
उसकी असफलता का प्रतीक नूरबाई।

क्या हक़ है नूरबाई को जिन्दा रहने का !

नूरबाई के आते ही... सादत खां ने मन ही मन निश्चय किया... आते ही दूरबाई को सजाए मौत का हुक्म सुनाया जाएगा। उस खूबसूरत नागिन के लिए यह सजा भी कम है... बहुत कम।

लेकिन इससे बड़ी सजा दी भी तो नहीं जा सकती।

सादत खां चिन्ता के सागर में डूब रहा था, डूबता ही चला जा रहा था।

मौत दे देने से बादशाह का कोप शान्त हो जाएगा?.....
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-'क्या करोगे मेरा मुझे छुपाकर''तुमसे प्यार करूंगा।'-'शर्म करो।'-अक्सर शर्म करता हूं, कभी-कभी न भी करुं तो क्या हर्ज है ,...
10/06/2025

-'क्या करोगे मेरा मुझे छुपाकर'

'तुमसे प्यार करूंगा।'

-'शर्म करो।'

-अक्सर शर्म करता हूं, कभी-कभी न भी करुं तो क्या हर्ज है ,सच मानो तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।'

-"ऐसा मालूम होता है कि पैरिस की आबी-हवा तुम पर तेजी से असर करती जा रही है। जानते हो देवराज ने मुझे तुम्हारे साथ इसीलिये भेजा है कि तुम्हें जा में फास लूं। सूर्यप्रकाश की जगह खाली है ना, उसकी जगह यह तुम्हें रखना चाहता

-"ऐसी-तैसी साले देवराज को, और तुम तुम मुझे क्या जाल में पर्वभोगी। जरा मेमसाहब खुद दिल को टटोलो...जाने कब से शायद बम्बई से ही मिस साहिबा मेरे जाल में फंसी हुई हैं।

सेविका खाना ले आई... सूप, स्लाइस, मछली आदि... वहीं यूरोपियन ढंग का हना था। बातचीत का तारतम्य कुछ देर के लिये टूट गया।

-'भई हमें तो अच्छा लगता नहीं।' राजेश ने पुनः बात छेड़ी।

-'क्या?'

-'यही सब यूरोपियन खाना... सूप पियो, स्लाइस खाओ, वाहियात चलो -बहुत खा लिया जाये। शाम का खाना भारतीय दूतावास में खायेंगे। क्या है?'

दूतावास के सैक्रेटरी पूछेंगे कि मैं तुम्हारी कौन हूं, तो क्या उत्तर दोगे ?'.......
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आज प्रकाशित हो गया है नीलम जासूस कार्यालय का 44 वन सेट जिसके लेखक हैं जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा  #हिंदीपल्पफिक्शन  #जा...
10/06/2025

आज प्रकाशित हो गया है नीलम जासूस कार्यालय का 44 वन सेट जिसके लेखक हैं जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

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"सांझ का सूरज" एक ऐसे सम्राट की गाथा है जो इतिहास के आखिरी पन्नों में दर्ज है — बहादुर शाह ज़फ़र। यह उपन्यास 1857 की क्र...
06/06/2025

"सांझ का सूरज" एक ऐसे सम्राट की गाथा है जो इतिहास के आखिरी पन्नों में दर्ज है — बहादुर शाह ज़फ़र। यह उपन्यास 1857 की क्रांति के बाद दिल्ली के लाल किले में रहने वाले उस बूढ़े बादशाह की पीड़ा, बेबसी और आत्मा की आवाज़ को बयान करता है, जिसे अंग्रेज़ों ने सिर्फ एक प्रतीक बना छोड़ा था — ना सत्ता, ना शक्ति, सिर्फ एक नाम। और अंत समय बिताना पड़ा रंगून की जेल में- बिल्कुल असहाय |.................................................................
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