
02/07/2025
"किले की रानी" से एक अंश....
कमरे में केवल गोपाली और लाजो थे।
सुंघनी! जुकाम की सुंघनी सचमुच गोपाली की रक्षा कर रही थी।
गोपाली ने वहीं से बात आरम्भ की जहां से टूटी थी।
-'आप सोच लें लाजो जी। सिर्फ सोचें ही नहीं... मेरे बारे में आप अन्य लोगों से बात भी कर लें। यूं रियासती जमाने में मुझे बहुत सी रियासतों से उपाधि भी मिलीं। चमनगढ़ रियासत से तो इतनी उपाधि और इतने सम्मान मिले कि गिनती नहीं है। परन्तु चमनगढ़ के महाराज मेरे मालिक कम थे और मित्र अधिक थे। एक मौखिक उपाधि उन्होंने मुझे दी थी... राजपूताने का भूत!'
सुन कर हंसी लाजो।
-'इस समय शायद आप सोच रही हैं कि मैं अपनी तारीफ खुद कर रहा हूं... अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाली बात। परन्तु मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा हूं, आप विश्वास करें। सम्मान, उपाधि और ख्याति... इन सबके पीछे सिर्फ एक बात रही है, और वह यह कि जिस दिन मुझे प्रशिक्षित जासूस की डिग्री मिली थी उसी दिन मैंने सोच लिया था कि मुझे... आज या कल या कभी भी... स्वाभाविक मौत नहीं मरना है। आज भी मैं यही बात मानता हूं। आम लोगों की तरह बिस्तरे पर बीमार होकर नहीं मरूंगा। भाग दौड़, कूद फांद मेरा स्वभाव बन गया है, इसलिए मुझे हार्ट अटैक नहीं होगा। या तो मुझे कोई अपराधी गोली मार देगा या कोई ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी पत्नी या प्रियसी को मेरी बांहों में देख कर मेरी हत्या कर देगा। यह है मेरी नियति।
(अंश के लिए, साभार Om Prakash Sharma).................................................................................................................................
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