01/09/2025
पहाड़ों का आह्वान
बर्फीली चादर ढके शिखर,
नीचे बहती धारा प्रलय की।
टूटे घर, बिखरे सपने,
धूल में सिमटी जीवन गाथा।
पेड़ों की छाया भी सहमी,
धरती कांपी, पत्थर रोए।
नदी बनी विनाश की धारा,
आंखों में बस आँसू बोए।
हिमालय अब मौन खड़ा है,
मानव की पीड़ा को देख रहा।
प्रकृति का क्रोध अथाह यहाँ,
हर दिल से यही प्रश्न रहा—
कब सीखेंगे हम संभलना,
कब समझेंगे उसकी पुकार।
धरती माँ का दर्द सुनो,
वरना मिट जाएगा संसार।