Bhagwatii

Bhagwatii सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तुते।।

बड़ा देव श्री हरि विष्णु मतलोड़ा जी 🍁
28/10/2025

बड़ा देव श्री हरि विष्णु मतलोड़ा जी 🍁

15/10/2025
भगवती गाड़ा दुर्गा जालपा जी गाड़ागुसैन ❤️
15/10/2025

भगवती गाड़ा दुर्गा जालपा जी गाड़ागुसैन ❤️

10/10/2025

प्रभु अनंत बालू नाग जी रघुनाथ जी के शिविर में 🚩

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सराज घाटी के प्रमुख देव थाची घाटी में एक साथ 🙏
08/10/2025

सराज घाटी के प्रमुख देव थाची घाटी में एक साथ 🙏

नवरात्रि का 9वां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का अंतिम स्वरूप हैं और भक्तों को सिद्धियाँ, यश, धन औ...
01/10/2025

नवरात्रि का 9वां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का अंतिम स्वरूप हैं और भक्तों को सिद्धियाँ, यश, धन और मोक्ष प्रदान करती हैं. इस दिन का समापन कन्या पूजन, हवन और मां को विभिन्न प्रकार के भोग लगाने के बाद होता है. 

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप और महत्व

सिद्धि की देवी: 

मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं, और उनकी कृपा से भक्तों की कठिन मनोकामनाएँ भी पूरी होती हैं. 

कमल पर विराजमान: 

मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान होती हैं, और उनका वाहन सिंह है. 

चार भुजाएँ: 

देवी की चार भुजाएँ हैं, जिनमें दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र और ऊपर वाले हाथ में गदा है. बाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है. 

पूजा और भोग 

पूजा विधि: 

नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जिसके बाद कन्या पूजन का विधान भी है.

भोग: 

मां सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए हलवा-पूरी, चना, खीर और नारियल जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं.

पूजा का फल

समृद्धि और सुख: 

मां सिद्धिदात्री की पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. 

सफलता: 

इस दिन मां की पूजा करने से भक्तों को सभी कामों में सफलता मिलती है. 

मोक्ष प्राप्ति: 

देवी-देवता, गंधर्व और ऋषि भी माता सिद्धिदात्री की पूजा करके सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं और अंत में मोक्ष प्राप्त करते हैं. 

महागौरी की कथा के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, जिससे उनका शरीर धूल और मिट...
30/09/2025

महागौरी की कथा के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, जिससे उनका शरीर धूल और मिट्टी से काला पड़ गया. शिवजी ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनके शरीर को गंगाजल से धोया, जिससे उनका रूप पुनः अत्यंत उज्ज्वल और श्वेत हो गया. इसी कारण उन्हें महागौरी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है 'अत्यंत श्वेत और सौम्य देवी'.
कथा विस्तार से:
तपस्या और काला पड़ना: मां पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए हज़ारों वर्षों तक कठोर तपस्या की. इस दौरान उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर दिया और घने जंगलों में रहकर ध्यानमग्न रहीं. इस कठोर तपस्या के कारण उनका शरीर धूल, मिट्टी और पसीने से ढक गया और उनका वर्ण काला पड़ गया.
शिव का प्रसन्न होना: देवी की इस अटूट भक्ति और समर्पण से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वचन दिया.
गंगाजल से शुद्धिकरण: जब देवी ने स्नान किया, तो शिवजी ने उन्हें गंगाजल से शुद्ध किया. गंगा के पवित्र जल से स्नान करते ही उनका शरीर विद्युत के समान कांतिमान, अत्यंत उज्ज्वल और गौर वर्ण का हो गया.
नामकरण: इस अद्भुत परिवर्तन के बाद, उनका रंग श्वेत हो जाने के कारण ही उन्हें महागौरी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है 'अत्यंत श्वेत और सौम्य देवी'.

अन्य कथाएं:
एक अन्य कथा के अनुसार, जब शुंभ-निशुंभ राक्षसों ने धरती पर उत्पात मचाया, तो उनका वध केवल देवी शक्ति ही कर सकती थीं. इस दौरान शिवजी ने देवी पार्वती की काया को काला कर दिया. बाद में, तपस्या के बाद उन्हें मानसरोवर में स्नान करने का निर्देश मिला, जिसके बाद उनका रूप पुनः श्वेत हो गया और उन्हें कौशिकी नाम से जाना गया, जिन्होंने राक्षसों का वध किया. जय माता दी 🚩

मां कालरात्रि की कथा के अनुसार, जब रक्तबीज राक्षस के रक्त की हर बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो रहा था, तब मां दुर्गा ने अ...
29/09/2025

मां कालरात्रि की कथा के अनुसार, जब रक्तबीज राक्षस के रक्त की हर बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो रहा था, तब मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि का रूप धारण किया और अपने मुख में रक्त को सोखकर सभी राक्षसों को नष्ट किया. यह देवी काली का ही रूप हैं और सभी प्रकार की बाधाओं और शत्रुओं से मुक्ति दिलाती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. 

रक्तबीज राक्षस का वध

पौराणिक कथा के अनुसार, जब रक्तबीज नामक राक्षस ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की. 

भगवान शिव के कहने पर मां पार्वती ने अपने तेज और शक्ति से देवी कालरात्रि को उत्पन्न किया. 

मां कालरात्रि ने रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में सोख लिया और उसका वध कर दिया. 

मां कात्यायनी की पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वनमीकथ नामक महर्षि के पुत्र कात्य से कात्य गोत्र की उत्पत्ति हु...
28/09/2025

मां कात्यायनी की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वनमीकथ नामक महर्षि के पुत्र कात्य से कात्य गोत्र की उत्पत्ति हुई. इसी गोत्र में आगे चलकर महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ. उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने मां भगवती को पुत्री के रूप में प्राप्त करने की इच्छा से कठोर तपस्या की. उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती प्रकट हुईं और वचन दिया कि वे उनके घर पुत्री रूप में अवतरित होंगी.

इसी बीच तीनों लोकों पर महिषासुर नामक दैत्य ने अत्याचार बढ़ा दिए. उसके आतंक से परेशान देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महादेव से सहायता मांगी. तब त्रिदेव के तेज से प्रकट होकर मां ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया. पुत्री के रूप में अवतरित होने के कारण वे कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुईं.

कहते हैं कि महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले तीन दिनों तक उनकी पूजा की. इसके बाद देवी ने संसार को महिषासुर, शुंभ-निशुंभ और अन्य राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त कराया. इस प्रकार मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है.

मां कात्यायनी का महत्व

मां कात्यायनी को अमोघ फल प्रदान करने वाली देवी माना गया है. कहा जाता है कि ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की आराधना यमुना तट पर की थी. इसी कारण से उन्हें ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।

नवरात्री 5वां दिन माँ स्कन्द माता 🚩प्राचीन कथा के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस को ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि...
27/09/2025

नवरात्री 5वां दिन माँ स्कन्द माता 🚩
प्राचीन कथा के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस को ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उनकी मृत्यु केवल शिव जी की संतान के हाथों ही होगी। तारकासुर का आतंक अत्यधिक बढ़ गया था। इस स्थिति में मां पार्वती ने स्कंदमाता का रूप धारण किया और अपने पुत्र स्कंद अर्थात कार्तिकेय को युद्ध के लिए तैयार करने लगी। जय माता दी 🚩

जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने अपनी मध...
26/09/2025

जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की।अतः, वह सृष्टि की आदिशक्ति और आदिस्वरूपा हैं।

नाम और रूप
'कुष्मांडा' नाम का अर्थ है कि उन्होंने 'कुष्मांड' (ब्रह्मांड) को अपनी 'अंडा' (कोख/गर्भ) में उत्पन्न किया। सूर्य के भीतर निवास करने वाली मां कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला होती है। उनकी उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक दूर होते हैं, और उन्हें आयु, यश, बल व आरोग्य प्राप्त होता है। जय माता दी 🚩

भोलेनाथ को शांत करने और विवाह के लिए एक मनोहर रूप प्रस्तुत करने हेतु, देवी पार्वती ने क्षण भर के लिए उनके प्रचंड रूप से ...
24/09/2025

भोलेनाथ को शांत करने और विवाह के लिए एक मनोहर रूप प्रस्तुत करने हेतु, देवी पार्वती ने क्षण भर के लिए उनके प्रचंड रूप से मेल खाते हुए एक भयंकर रूप धारण किया, जिसमें उनके दस हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र थे और उनके मुकुट पर घंटे के आकार का चंद्रमा था। देवी के इस रूप की पूजा चंद्रघंटा के रूप में की जाती है। जय माता दी 🚩

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